पाँच महागुरु और माँ गुरु
माँ की महिमा कही न जाये
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9/19/20241 मिनट पढ़ें
समस्त सृष्टि के संचालन का कार्यभार पाँच महागुरु — भूमि, गगन, वायु, अग्नि और नीर — संभाले हुए हैं। सभी महागुरु अपने-अपने स्वभाव और धर्म के अनुरूप अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा से कर रहे हैं। इन पाँच महागुरुओं ने अपने सभी गुणों को 'माँ' के रूप में मानव को प्रदान किया है।
मानव के लिए सृष्टि का प्रारंभ माँ के माध्यम से ही होता है। माँ से जुड़ाव, बच्चे का जन्म लेने से पहले ही स्थापित हो जाता है। परंतु, कुछ कारणों से आजकल माँ की भूमिका एक 'दाई माँ' जैसी होती जा रही है। आधुनिकता की दौड़ में माँ का नया नाम 'मम्मी' हो गया है। आपको ज्ञात ही होगा कि 'मम्मी' एक ऐसा शव होता है जो दिखने में तो मानव के जैसा होता है, परंतु उसमें जीवन नहीं होता। यह एक प्रकार से जीवन के साथ व्यावहारिक और भावनात्मक संबंधों की कमी की ओर इशारा करता है।
आपको अपने बचपन के वे दिन याद होंगे जब कोई तकलीफ होती थी और माँ के गले लगते ही वह दर्द दूर हो जाता था। आज, माँ ने बच्चों को गले लगाना बंद कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप तनाव और अन्य मानसिक व शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं।
माँ केवल एक आभास मात्र नहीं है, वह जीवन का दर्शन है, जिससे बच्चा अनगिनत मूल्यवान बातें सीखता है। माँ सृष्टि की पहली गुरु है, क्योंकि बिना माँ के किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। माँ का स्नेह, ज्ञान और समझ जीवन की नींव होती है, और उसी से बच्चे का विकास और चरित्र निर्माण होता है।
इस प्रकार, माँ केवल जन्मदात्री ही नहीं, बल्कि जीवन का पहला और सबसे महत्वपूर्ण गुरु है।
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