"अंदर का आश्रम" — एक व्यापारी की साधना
8/15/2025
"अंदर का आश्रम" — एक व्यापारी की साधना
शहर का सबसे व्यस्त इलाक़ा — सुबह से लेकर रात तक दुकानों की चहल-पहल, गाड़ियों का शोर, और लोगों की आवाज़ें।
यही था अद्वैत का संसार।
एक सफल कपड़ा व्यापारी, जिसके पास सब कुछ था —
धन, सम्मान, परिवार, मित्र — पर फिर भी मन में एक खालीपन।
रात को थककर बिस्तर पर लेटते समय वह अक्सर सोचता —
"दिन भर भागा, पर किसके लिए? और क्या मैंने खुद को जाना भी?"
साधु से मुलाकात
एक दिन, किसी ग्राहक को कपड़ा देने के बाद वह गली के मोड़ पर एक वृद्ध साधु को बैठा देखता है। साधु की आँखों में ऐसी स्थिरता थी, जैसे भीतर कोई गहरी नदी बह रही हो।
अद्वैत ने उनके पास जाकर नमस्कार किया।
साधु ने बिना किसी परिचय के कहा:
“सन्यास का मतलब दुनिया छोड़ना नहीं है, बल्कि मन के बंधनों को छोड़ना है।”
अद्वैत ने पूछा:
"पर मैं तो घर, परिवार और दुकान छोड़ नहीं सकता… तो क्या मैं कभी सन्यासी नहीं बन सकता?"
साधु मुस्कुराए:
“जो भागकर जंगल जाता है, वह केवल जगह बदलता है।
जो भीतर के लोभ, क्रोध और अहंकार से मुक्त होता है, वह असली सन्यासी है।
तुम अपने घर में रहकर भी सन्यासी हो सकते हो — अगर संयम अपनाओ।”
संयम का अर्थ
साधु ने अद्वैत को समझाया:
संयम का अर्थ किसी गतिविधि को रोकना नहीं है, बल्कि सही दिशा में उसे ले जाना है।
यह शरीर को दंड देना नहीं, बल्कि उसे साधना है।
यह इच्छाओं को कुचलना नहीं, बल्कि उन्हें समझकर धीरे-धीरे उनकी पकड़ ढीली करना है।
अभ्यास की शुरुआत
अद्वैत ने उसी दिन से अभ्यास शुरू किया। उसने अपने जीवन को चार क्षेत्रों में बांटा:
भोजन का संयम
अब वह केवल शरीर की ज़रूरत भर खाता।
मिठाई सामने होने पर वह पहले तीन बार गहरी साँस लेता और खुद से पूछता — "क्या यह शरीर के लिए ज़रूरी है, या मन के स्वाद के लिए?"
वाणी का संयम
क्रोध में बोलने से पहले चुप होकर पानी पीता।
प्रशंसा या अपमान — दोनों में संतुलित शब्द चुनता।
समय का संयम
हर सुबह सूर्योदय से पहले 10 मिनट मौन ध्यान करता।
रात को दुकान बंद होने के बाद कुछ देर अपने दिन की समीक्षा करता — "कहाँ संयम रहा, कहाँ छूट गया?"
भावनाओं का संयम
क्रोध, ईर्ष्या, लोभ या घमंड आने पर तुरंत भीतर “रुकने” का अभ्यास करता।
जैसे कोई यात्री स्टेशन पर खड़ा है और ट्रेन को जाने देता है, वैसे ही वह नकारात्मक भावनाओं को बिना चढ़े जाने देता।
चरण-दर-चरण परिवर्तन
शुरू के दिनों में यह आसान नहीं था।
कभी वह किसी ग्राहक की कठोर बात सुनकर गुस्से में जवाब दे देता, कभी मीठे पकवान देखकर नियंत्रण खो देता।
लेकिन साधु के शब्द उसे याद रहते:
“सीढ़ी एक-एक करके चढ़ी जाती है, कूदकर नहीं।”
धीरे-धीरे, वह बदलने लगा।
जहाँ पहले वह अपमान पर तिलमिला उठता था, अब बस मुस्कुरा देता।
जहाँ पहले व्यापार में लाभ के लिए छोटी चालाकियाँ करता, अब स्पष्ट और ईमानदार व्यवहार रखता।
परिवार के बीच बैठकर अब वह केवल सुनने का आनंद लेता, बिना किसी निर्णय के।
घर में ही आश्रम
कुछ महीनों बाद, अद्वैत ने महसूस किया कि उसका घर ही उसका आश्रम बन चुका है।
बच्चों की हँसी उसे मंत्र जैसी मधुर लगती।
पत्नी के साथ रोज़मर्रा के संवाद, उसके धैर्य और समझ की परीक्षा बनते।
ग्राहकों से लेन-देन उसके लिए करुणा और सत्य का अभ्यास बन गए।
वह जान गया कि सन्यास का असली स्वरूप स्थान बदलने में नहीं, बल्कि दृष्टिकोण बदलने में है।
अंतिम मिलन
एक दिन वह फिर उसी गली से गुज़रा। साधु अभी भी वहीं थे।
अद्वैत ने उनके चरण स्पर्श करते हुए कहा —
"गुरुदेव, मैंने घर छोड़े बिना सन्यास पा लिया।"
साधु ने आँखें बंद कर आशीर्वाद दिया:
“अब तुम जानते हो —
संयम का अर्थ है — जीवन की सीढ़ी पर एक-एक कदम सचेत होकर चढ़ना,
और त्याग का अर्थ है — जो अनावश्यक है, उसे मुस्कुराकर छोड़ देना।”
ध्यान अभ्यास (घर में सन्यास)
सुबह मौन क्षण – जागने के बाद 5-10 मिनट मौन बैठें, श्वास पर ध्यान दें।
दैनिक समीक्षा – दिन में 3 बार खुद से पूछें: “क्या मैं अभी संयम में हूँ?”
त्याग का लघु अभ्यास – रोज़ किसी एक छोटी आदत को त्यागें (अनावश्यक मिठाई, गपशप, शिकायत)।
धैर्य का क्षण – जब भी कोई चुनौती आए, तुरंत जवाब न दें; पहले 3 गहरी साँस लें।
"घरेलू सन्यास साधना" का 7-दिवसीय कार्यक्रम — जिसे घर में रहते हुए भी अपनाया जा सकता है, और जो कहानी "अंदर का आश्रम" के सिद्धांतों पर आधारित है।
दिन 1 – मौन की शुरुआत
मुख्य अभ्यास:
सुबह उठते ही 10 मिनट मौन बैठें।
बस अपनी श्वास पर ध्यान दें – आने-जाने वाली हवा को महसूस करें।
इस समय कोई योजना, समस्या या विचार न पकड़ें।
संयम संकेत:
दिन में 3 बार खुद से पूछें – “क्या मैं अभी जल्दबाज़ी में हूँ?”
यदि हाँ, तो एक मिनट धीमे हो जाएँ।
दिन 2 – वाणी का संयम
मुख्य अभ्यास:
बोलने से पहले 2 सेकंड रुकें।
अपने शब्दों को तीन कसौटियों पर परखें:
सत्य – क्या यह सच है?
आवश्यक – क्या यह बोलना ज़रूरी है?
मधुर – क्या यह विनम्र है?
संयम संकेत:
दिन में कम से कम 2 बार, केवल सुनने का अभ्यास करें – बिना बीच में बोले।
दिन 3 – भोजन का संयम
मुख्य अभ्यास:
भोजन के पहले 3 गहरी साँस लें।
सोचें – क्या यह शरीर के लिए है या केवल स्वाद के लिए?
भोजन धीरे-धीरे खाएँ, बिना मोबाइल/टीवी के।
संयम संकेत:
आज मिठाई, तली-भुनी चीज़ें या अनावश्यक स्नैक से परहेज़ करें।
दिन 4 – समय का संयम
मुख्य अभ्यास:
सुबह 10 मिनट सुनियोजित मौन समय – ध्यान या आध्यात्मिक पठन।
शाम को 5 मिनट दिन की समीक्षा –
आज कहाँ संयम रखा? कहाँ छूट गया?
संयम संकेत:
सोशल मीडिया/टीवी के समय को 50% कम करें।
दिन 5 – भावनाओं का संयम
मुख्य अभ्यास:
जब भी गुस्सा, ईर्ष्या या लोभ महसूस हो – तुरंत रुकें।
5 गहरी साँस लें और मन में कहें – “मैं इस ट्रेन पर नहीं चढ़ूँगा।”
संयम संकेत:
किसी चुनौती या अपमान पर तुरंत प्रतिक्रिया न दें; उत्तर देने से पहले कम से कम 30 सेकंड रुकें।
दिन 6 – त्याग का अभ्यास
मुख्य अभ्यास:
आज एक अनावश्यक आदत या वस्तु छोड़ें (जैसे पुराना सामान, नकारात्मक बोलना, बेकार खर्च)।
उस त्याग के बाद हल्कापन महसूस करें और उसे नोटबुक में लिखें।
संयम संकेत:
दिन में 3 बार मन में दोहराएँ – “मुझे जितना चाहिए, मेरे पास उतना है।”
दिन 7 – सेवा और कृतज्ञता
मुख्य अभ्यास:
आज बिना किसी अपेक्षा के किसी के लिए अच्छा काम करें – परिवार, पड़ोसी, या ज़रूरतमंद।
दिन के अंत में 5 ऐसी चीज़ें लिखें जिनके लिए आप आभारी हैं।
संयम संकेत:
सेवा करते समय मन में यह भावना रखें – “यह भी साधना है।”
नोट
हर दिन के अभ्यास को अगले दिन भी जारी रखें।
7वें दिन तक, आपके पास 7 आदतों का समूह होगा जो घर में रहते हुए भी आपको भीतर का सन्यास सिखाएगी।
चाहें तो इसे 21-दिन या 40-दिन की साधना में बदलकर गहराई में जा सकते हैं।
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