अंतर्मुखी कछुआ
BLOG
8/28/20251 मिनट पढ़ें
अंतर्मुखी कछुआ – प्रत्याहार की विस्तृत कथा
बाहरी संसार की खींचतान
काशी के प्राचीन घाटों पर विवेक नाम का एक युवा साधक रहता था। वह बुद्धिमान था, शास्त्रों में निपुण था, लेकिन उसका मन अक्सर बाहर भाग जाता। गंगा के सुंदर दृश्य उसे मोहित करते, मंदिरों की घंटियों की ध्वनि उसे विचलित कर देती, स्वादिष्ट प्रसाद की सुगंध उसकी जीभ को उत्तेजित कर देती। ध्यान की गादी पर बैठते ही विचारों का तूफ़ान उठता – बीते हुए दृश्य, भविष्य की कल्पनाएँ, लोगों की बातें।
एक दिन वह थककर अपने गुरु ध्रुव के पास गया और बोला –
"गुरुदेव, मैं इन्द्रियों का दास बन गया हूँ। ध्यान करने बैठता हूँ तो हर आवाज़, हर गंध, हर स्मृति मुझे खींच लेती है। इसे कैसे रोकूँ?"
गुरु की दृष्टि – प्रत्याहार का रहस्य
गुरु ध्रुव मुस्कुराए और बोले –
"विवेक, तू इन्द्रियों को रोकना चाहता है, लेकिन उन्हें दबाने की कोशिश कर रहा है। दबाव से इन्द्रियाँ और शक्तिशाली होकर बाहर भागती हैं। उन्हें मित्र बनाकर भीतर मोड़ना होगा। इसे प्रत्याहार कहते हैं।"
गुरु ने उसे गंगा किनारे ले जाकर एक पत्थर पर बिठाया।
"ध्यान से देख।"
वहाँ एक कछुआ धीरे-धीरे रेत पर चल रहा था। अचानक पास से एक लड़का आया और उसे छेड़ने लगा। कछुए ने बिना किसी डर के अपने चारों पैर और सिर को खोल से भीतर समेट लिया। लड़का थककर चला गया, और कछुआ फिर बाहर आया और सहजता से चलता रहा।
गुरु बोले –
"देख विवेक, कछुआ जानता है कि कब संसार से जुड़ना है और कब अपने खोल में लौटना है। यही प्रत्याहार है – इन्द्रियों को ज़रूरत के समय उपयोग करना और ध्यान के समय उन्हें भीतर समेट लेना।"
इन्द्रियों की पाँच दिशाएँ और उनका नियंत्रण
गुरु ने समझाया –
"तेरी आँखें रूप देखने के लिए लालायित रहती हैं, कान ध्वनियों की ओर दौड़ते हैं, जीभ स्वाद के पीछे भागती है, त्वचा सुखद स्पर्श ढूँढती है, नाक गंध के पीछे जाती है। ये पाँचों बाहर की ओर खिंचते हैं। जब तू उन्हें नियंत्रित नहीं करता, तो वे मन को अस्थिर कर देते हैं। लेकिन जब तू इन्हें भीतर खींच लेता है, तो यही इन्द्रियाँ साधना का द्वार बन जाती हैं।"
"सोच, अगर तू अपनी आँखों को बाहर के दृश्य की बजाय भीतर की रोशनी देखने दे, कानों को मौन सुनने दे, जीभ को मौन रखे, त्वचा को स्थिर रखे – तब मन कहाँ जाएगा? भीतर की ओर। वहीं प्रत्याहार शुरू होता है।"
अनुभव – भीतर का आकाश
गुरु ने विवेक से कहा –
"आँखें बंद कर। गहरी साँस ले। बाहर की आवाज़ों को जैसे नदी का शोर समझकर दूर बहने दे। अपनी आँखों को भीतर मोड़, जैसे तू अपने माथे के बीच से देख रहा हो। कानों को बाहर की ध्वनि से हटाकर मौन सुनने दे। स्वाद, गंध और स्पर्श को बस साक्षीभाव में देख।"
धीरे-धीरे विवेक का मन शांत होने लगा। उसे लगा मानो भीतर एक आकाश खुल रहा है – न विचार, न विकर्षण, केवल एक गहरी शांति। वहाँ न सुख था न दुःख, केवल साक्षीभाव।
गुरु ने कहा –
"यही प्रत्याहार है। यह अंत नहीं, आरंभ है। जब इन्द्रियाँ भीतर मुड़ती हैं, तब ही ध्यान, धारणा और समाधि का मार्ग खुलता है।"
कथा का गहरा अर्थ
1. कछुए का प्रतीक – शक्ति बाहर नहीं, भीतर है। आवश्यक समय पर इन्द्रियों को समेटना ही सुरक्षा है।
2. दमन नहीं, दिशा देना – प्रत्याहार का अर्थ इन्द्रियों को दबाना नहीं, बल्कि उनकी ऊर्जा को भीतर की ओर मोड़ना है।
3. भीतर की यात्रा – जब इन्द्रियाँ मौन होती हैं, तब मन बाहरी संसार से मुक्त होकर आत्मा की ओर जाता है।
4. अगला कदम – प्रत्याहार ध्यान की पहली सीढ़ी है; इसके बाद धारणा, ध्यान और समाधि आती है।
प्रत्याहार (इन्द्रिय-संयम) – चरणबद्ध ध्यान-अभ्यास गाइड
उद्देश्य: इन्द्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर भीतर की ओर मोड़ना, जिससे ध्यान के गहरे स्तर तक पहुँचा जा सके।
चरण 1: तैयारी – वातावरण और मन को शांत करना
1. स्थान चुनें: शांत, स्वच्छ, हवादार स्थान चुनें जहाँ कम से कम व्यवधान हो।
2. समय: सुबह ब्रह्ममुहूर्त (4–6 बजे) या शाम ध्यान के लिए श्रेष्ठ।
3. आसन: सुखासन, पद्मासन या वज्रासन। पीठ सीधी लेकिन तनाव-मुक्त।
4. शरीर स्थिर: हाथों को ज्ञानमुद्रा या अपने घुटनों पर रखें।
चरण 2: श्वास-जागरूकता (Breath Awareness)
1. गहरी साँस लें: नाक से धीरे-धीरे गहरी साँस अंदर लें, फिर धीरे-धीरे छोड़ें।
2. लयबद्ध श्वास: 4 सेकंड में साँस अंदर, 4 सेकंड रोकें, 6 सेकंड में साँस बाहर।
3. मन की स्थिरता: 5–7 बार ऐसा करें ताकि मन शांत हो और शरीर तैयार हो।
चरण 3: इन्द्रियों की जागरूकता (Senses Awareness)
1. आँखें (दृष्टि): आँखें बंद करें, भीतर अंधकार में देखने का अनुभव करें।
2. कान (श्रवण): आस-पास की आवाज़ें सुने, फिर उन्हें दूर के शोर की तरह बहने दें।
3. नाक (गंध): किसी गंध का ध्यान आए तो सिर्फ पहचानें, प्रतिक्रिया न दें।
4. जीभ (स्वाद): मुँह में कोई स्वाद हो तो बस साक्षी बने।
5. त्वचा (स्पर्श): शरीर में हवा, कपड़े, तापमान – केवल देखें, जुड़ें नहीं।
चरण 4: प्रत्याहार – भीतर की ओर मोड़ना
1. कछुए की कल्पना करें: जैसे कछुआ अपने अंग समेटता है, वैसे ही इन्द्रियों को भीतर लाएँ।
2. अंतरदृष्टि: कल्पना करें कि सारी इन्द्रियाँ मन में विलीन हो रही हैं।
3. ध्यान बिंदु: भृकुटि (आँखों के बीच), हृदय केंद्र या नाभि केंद्र पर ध्यान केंद्रित करें।
4. विचार आने पर: बिना विरोध के उन्हें देखें, फिर धीरे से ध्यान को भीतर मोड़ें।
चरण 5: मौन और साक्षीभाव
1. मौन का अनुभव: अब बाहरी ध्वनियाँ, गंध, स्पर्श सब दूर हों – बस मौन सुनें।
2. साक्षी बनें: हर अनुभव को देखें लेकिन प्रतिक्रिया न करें।
3. मन का विलयन: कुछ क्षण के लिए केवल "मैं हूँ" की अनुभूति पर टिकें।
चरण 6: अभ्यास का समापन
1. धीरे-धीरे लौटें: ध्यान समाप्त करने के लिए 3 गहरी साँस लें।
2. आँखें खोलें: धीरे से आँखें खोलें, आसपास देखें लेकिन स्थिर रहें।
3. अनुभव लिखें: ध्यान के बाद 1–2 मिनट का संक्षिप्त नोट बनाएं – क्या महसूस हुआ।
दैनिक अभ्यास सुझाव
समय: शुरुआत में 10 मिनट, धीरे-धीरे 20–30 मिनट।
अनुशासन: रोज़ एक ही समय और स्थान पर करें।
स्मरण: "इन्द्रियाँ मेरे सेवक हैं, मैं उनका स्वामी हूँ।"
मंत्र (वैकल्पिक):
"प्रत्याहाराय नमः" – तीन बार मन ही मन जपें।
लाभ
मन की एकाग्रता बढ़ती है।
बाहरी विकर्षण कम होते हैं।
ध्यान और आत्मचिंतन के लिए मन तैयार होता है।
भावनात्मक स्थिरता और मानसिक शांति बढ़ती है।
हमारा उद्देश्य केवल सजगता बढ़ाना है ,हम जन साधारण को संतो, ध्यान विधियों ,ध्यान साधना से संबन्धित पुस्तकों के बारे मे जानकारी , इंटरनेट पर मौजूद सामग्री से जुटाते है । हम किसी धर्म ,संप्रदाय ,जाति , कुल ,या व्यक्ति विशेष की मान मर्यादा को ठेस नही पहुंचाते है । फिर भी जाने अनजाने , यदि किसी को कुछ सामग्री सही प्रतीत नही होती है , कृपया हमें सूचित करें । हम उस जानकारी को हटा देंगे ।
website पर संतो ,ध्यान विधियों , पुस्तकों के बारे मे केवल जानकारी दी गई है , यदि साधकों /पाठकों को ज्यादा जानना है ,तब संबन्धित संस्था ,संस्थान या किताब के लेखक से सम्पर्क करे ।
© 2024. All rights reserved.