साझी मूर्खता

सामाजिक संस्कार

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10/4/20241 मिनट पढ़ें

जैसा कि आज सब आधुनिकता की रट लगाए रहते है, और अपने आप को ज्यादा समझदार मानते है। यह किसी से छिपा नहीं है, यहाँ हर कोई एक-दूसरे से बढ़कर है, सिर्फ बातें बनाने में केवल कोरी अनुभवहीन बातें, कई बार सब कुछ जाने अनजाने में या परम्परागत तरीके से करते रहते है, जो कि कोई मान्यता या चमत्कार नहीं है, उसके पीछे कुछ लोगों का निजी स्वार्थ काम करता रहता है। एक तरफ विज्ञान के जानकार बन जाते है, तथा दूसरी तरफ मूर्ख भी बनते रहते है । जिसके कइयों उदाहरण, आप हर रोज आस-पास देख सकते है।

जैसे कि :

1. यदि आप के घर में कलह, लड़ाई झगड़े रहते है, आप किसी वास्तुशास्त्री के पास जाते है, वह आपको दिशा देखकर आपके घर के बारे में बता देता है, कि इस कोने में यह रखो, उस में यह रखो आदि-आदि। परन्तु यही बात अगर वैज्ञानिक तरीके से सोची जाये जो कि सिद्ध किया जा चूका है, कि धरती घूम रही है तो क्या कोई भी दिशा कभी भी पूर्व- पश्चिम या फिर उत्तर-दक्षिण रह पायेगी? नहीं! फिर भी इतने समझदार होकर सभी कार्य करते है, और देखते ही देखते आपको कुछ समय शान्तिः प्राप्त हो जाती है। परन्तु कुछ समय बाद फिर वही कलह होनी शुरू हो जाती है, तो आपका उपाय तो असफल हो गया, फिर आप किसी दूसरे वास्तुशास्त्री से मिलेंगे वह भी आपको कुछ अलग चीज घर में रखने कि सलाह देगा। ये तो आधुनिक डॉक्टर की तरह है, कि यह-यह दवाई ले लेना दवाई की दुकान से तथा दुकान का नाम भी बतायेगा, जिससे उसको उसका ऊपरी हिस्सा प्राप्त होता रहता है, इसी तरह वास्तुशास्त्री भी अपना हिस्सा लेते है, और अपनी धंधा बढ़ाते जाते है। अब आप समझ जाये कि आप सही है या विज्ञान सही है।

2. आप किसी कुण्डली विशेषज्ञ से कुण्डली दिखाने जाते है, थोड़ा उस पर भी विचार करते है वह आपकी कुण्डली के सारे गृह नक्षत्र जांच करके बता देते है, यह-यह दोष है, ये-ये चीज चढ़ानी पड़ेगी और ये-ये यज्ञ होंगे अगर करवाने है, तो सही नहीं तो बड़ी विपति सामने खड़ी है। अब आप डर के कारण सब कुछ बताये अनुसार करेंगे तथा फिर भी घटनाक्रम तो चलता रहेगा। क्या कभी आपने सोचा भी है? वह कुण्डली विशेषज्ञ आपके जनम दिवस से सारी गणनाएं करके बताता है, वह समय थोड़ा ऊपर नीचे बता दे तो सारा हिसाब-किताब बदल जाते है। अब थोड़ा-सा विचार सभी धर्मों की मुख्य धार्मिक किताबों से लेते है, जो कि मुख्यतः सारांश में यह बतलाती है, कि आत्मा/जीव अजर अमर है। जब आत्मा ना मरती है ना जन्म लेती है, तो फिर जन्म दिवस का आप कैसे पता लगा सकते है? यह तो सरासर झूठ हो गया, चलो फिर से सोचते है जन्म दिवस आप किसे मानते है एक बच्चा माँ के गर्भ में पहले दिन से आया वो या गर्भ से बाहर आया वो दोनों ही बच्चे के लिए अलग-अलग है। अब आपका विशेषज्ञ बता पायेगा कि बच्चा कब गर्भ में आया या आप बता पायेंगे? नहीं! तो फिर यह भी एक विशेषज्ञ वाली मूर्खता सिद्ध हुई।

3. आधुनिक डर जो सब से ज्यादा फैलाया जा रहा है, वह है शनिदेव का डर जिसके कोप से देवता तक नहीं बच पाते, उत्तम किस्म का डर है। अब इस पर थोड़ा विचार करते है, वह यह है कि एक आदमी सारा दिन शनिवार के दिन सरसों का तेल मांगकर इक्कठा करता है, तथा साथ में कुछ पैसा भी लेता है शनिदेव के नाम पर, तथा घर जाकर उस पैसे को निजी काम में खर्च करता है। तेल को घर पर प्रयोग करता है, या बाजार में बेंच देता है। जब इस आदमी का शनिदेव जोकि उसके नाम को खराब कर रहा है, कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। तो आप तो वैसे ही उससे डरते है, डर के कारण आप तो वैसे भी भला-बुरा नहीं कह पाते। अब आप खुद सोच रहे होंगे कि यह तो विरोधाभास है, नहीं यह केवल जागरूकता है। अगर कोई समझ जाये तो सही न समझे तो सही। अब आपके मन में यह विचार आ रहा होगा, फिर ठीक कैसे हो जाते है। जैसे घर में कलह कम हो जाती है, या आपका काम बनने लगता है, या आपके सम्बन्धों में मधुरता आ जाती है।

इन सबके पीछे कारण है आपके द्वारा ग्रहण किए गए संस्कार जो कि आपको पता नहीं होता कब ग्रहण हो गए। यदि आप कण-कण में प्राण/परमात्मा का वास मानते है, तो आपको यह भी पता है छोटे से छोटा कण भी अपनी स्मृति लेकर चलता है, जिसको हम कोशिका कहते है। यह कोशिका अलग-अलग शरीरों के हिसाब से ढलती रहती है, शरीर बहुत सारी कोशिकाओं का जोड़ है। जो कुछ भी खा रहे है, पी रहे है, श्वास ले रहे है, इसमें कोशिकाओं का घटना-बढ़ना चलता रहता है। इसी तरीके से जिस प्रकार का पदार्थ ग्रहण करते है, या शरीर में भेजते है उसी प्रकार के संस्कार अंदर उत्पन्न हो जाते है। यदि यह मानकर चले कि एक गेहूँ/चावल का दाना क्या संस्कार उत्पन्न करेगा तो वह दाना किन-किन अच्छी-बुरी उसे अनुरूप या विषय परिस्थितियों से होकर गुजरा है। वह उसका अनुभव साथ लेकर चलता है तथा जब शरीर में पहुँचता है, तो अपने अनुभव साथ लेकर चलता है, तथा शरीर में पहुँचता है। तथा अपने अनुभव के आधार पर संस्कार उत्पन्न करता है। यह बहुत बारीक क्रिया है, थोड़ा सोचने पर ही समझ आ पायेगा, परन्तु आपको तो जानना है कि फिर उपरोक्त मूर्खताओं के करने के बाद भी फायदा तो मिला है। इसका कारण आपके द्वारा किया गया प्रयोजन नहीं परन्तु आपके द्वारा यह महसूस करना है कि अब सब अच्छा होगा।

यदि मानव मस्तिष्क की बात करें, इसमें बहुत से छोटे-छोटे तंतु है जो शारीरिक संदेशों को शरीर में इधर-उधर करते है। जैसा कि आपने देखा होगा टेलीफोन एक्सचेंज में बहुत बारीक-बारीक तार होते है, तथा संचालक जब इन पर काम करता है, तो एक तार को किसी दूसरे के कनेक्शन (जुड़ाव) से जोड़ता है, और उसका फ़ोन न. बदल जाता है। उसी प्रकार आपके मस्तिष्क के तंतु जब आप उपरोक्त गलतियाँ या मूर्खता करते है। तो वह अपना स्थान बदल लेता है यह आपकी इच्छा शक्ति से हुआ है, न कि उपरोक्त दान-दक्षिणा से, आप समझ तो गए होंगे कि एक आदमी जैसे सोचता है वैसा बन जाता है।

आपको इसके लिए एक छोटा सा ध्यान बताते है, जब कभी आपको लगे की आपके साथ कुछ बुरा चल रहा है या हो रहा है तो खुले आसमान के नीचे खड़े होकर दोनों हाथों को फैलाकर आसमान को देखते हुए यह बोले All is Well आपके बुरे विचार, बुरे दिन एक सप्ताह, यदि आप लगातार करते है तो अच्छे में बदल जायेंगे और आपके अंदर जोश भर जायेगा, जिससे इच्छा शक्ति बढ़ती जाएगी।