"चार द्वार और तीन दीपक" – आत्मा की यात्रा
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8/7/20251 मिनट पढ़ें
"चार द्वार और तीन दीपक" – आत्मा की यात्रा
📖 कहानी: "चार द्वार और तीन दीपक" – आत्मा की यात्रा
🔔 भूमिका: एक मौन आवाज़
वह एक साधारण सा युवक था, जिसका नाम था अकम्प। लेकिन उसका हृदय साधारण नहीं था — उसके भीतर एक जिज्ञासा सदा जलती रहती थी —
“मैं कौन हूँ? जो मैं देखता हूँ, क्या वही सब है? ये मन, ये शरीर — क्या यही मैं हूँ?”
एक दिन, ध्यान में बैठा तो भीतर से एक मौन आवाज़ आई:
"अंदर चलो… वहाँ चार द्वार हैं… और तीन दीपक तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं…"
🚪 प्रथम द्वार: निश्चित – पदार्थ का क्षेत्र
अकम्प एक गहरी गुफा में प्रविष्ट हुआ। पहला द्वार मिला – पत्थर का — भारी, ठोस, अविचल। जैसे ही उसने द्वार पार किया, वहाँ केवल पदार्थ थे – शरीर, इंद्रियाँ, रस, गंध, आकार, रंग…
यहां उसका पहला दीपक तमस था — निष्क्रियता का दीप।
वह बैठ गया, और देखा —
“शरीर बिना चेतना के एक जड़ संरचना है। यह चलता है क्योंकि कुछ और इसे चला रहा है।”
इस द्वार ने उसे सिखाया:
“पदार्थ निश्चित है, ठोस है, पर उसमें चेतना नहीं होती — वह प्रकाश के बिना जड़ है।”
🌊 द्वितीय द्वार: अनिश्चित – मन का क्षेत्र
दूसरा द्वार मिला — धुंध से ढका, तरल जैसा। यह था मन का द्वार। जैसे ही वह भीतर गया, विचारों की लहरें उठने लगीं — इच्छा, भय, स्मृति, कल्पना, तुलना…
यहां उसका दूसरा दीपक रजस था — सक्रियता का दीप।
मन कभी शांत नहीं होता, वह चलता है — आगे, पीछे, ऊपर, नीचे। लेकिन अकम्प ने देखा:
“यह क्षेत्र अनिश्चित है — यह ठोस नहीं है, पर यह मुझे बहा सकता है। यदि मैं ध्यान नहीं रखूँ, तो मैं अपने ही विचारों का शिकार हो सकता हूँ।”
इस द्वार ने उसे सिखाया:
“मन साधन है, स्वामी नहीं। सक्रियता शक्ति है, लेकिन यदि वह विवेक से न बंधे, तो भ्रम बन जाती है।”
🌕 तृतीय द्वार: सांकेतिक – आत्मा का संकेत
तीसरा द्वार पूर्ण मौन था। न ध्वनि, न हलचल। जैसे ही अकम्प भीतर गया, उसे केवल चेतना का स्पर्श हुआ — न रूप, न आकार, परंतु एक जागृति, एक “मैं हूँ” की अनुभूति।
यहाँ उसका तीसरा दीपक था — सत्त्व — प्रकाश और स्थिरता का दीप।
यहां अकम्प पहली बार अपने को नहीं, अपने ‘होने’ को अनुभव कर सका।
“यह आत्मा है — न पदार्थ, न विचार। यह केवल प्रतीक है – सांकेतिक। यह केवल दिखता नहीं, यह महसूस होता है — और जितना चुप रहो, उतना प्रकट होता है।”
इस द्वार ने उसे सिखाया:
“जो स्थिर है, वही प्रकाश है। और जो प्रकाश है, वही चेतना है।”
🕳️ चतुर्थ द्वार: अव्यक्त – अनात्मा का मौन
अंत में एक अंधकारमय गड्ढा था — कोई द्वार नहीं, कोई आकृति नहीं। अकम्प ने भीतर कदम रखा, और देखा – वहाँ कुछ नहीं था। पूर्ण शून्यता। न 'मैं', न 'तू', न प्रकाश, न अंधकार।
यह अव्यक्त था — जहाँ अनात्मा का क्षेत्र था — "जो मैं नहीं हूँ"।
वहाँ कोई दीपक नहीं था। वहाँ दीपक रखने वाला भी नहीं था।
अकम्प वहां कुछ क्षण ठहरा… और फिर लौटा नहीं — वह वहीं विलीन हो गया।
🧘 जब कोई लौटता नहीं…
ऋषि कहते हैं:
“जो चौथे द्वार से लौटे — वह ज्ञानी।
जो वहीं रुक जाए — वह मुक्त।
और जो केवल पहले दो में भटके — वह संसार में पुनः जन्म लेता है।”
🌌 कहानी का ध्यानात्मक अर्थ:
पहला द्वार (निश्चित) शरीर और भौतिकता – तमस (जड़ता)
दूसरा द्वार (अनिश्चित) मन और विचार – रजस (चंचलता)
तीसरा द्वार (सांकेतिक) आत्मा की प्रतीति – सत्त्व (स्थिर प्रकाश)
चौथा द्वार (अव्यक्त) अनात्मा, शून्यता – निर्विकल्प समाधि
🔑 सार-संदेश (Essence)
सत्त्व गुण हमें तीसरे द्वार तक ले जाता है — जहाँ आत्मा स्वयं को जानती है।
लेकिन उससे भी परे वह मौन है, जहाँ ‘मैं भी नहीं हूँ’ — वही मोक्ष है।
🧘♀️ ध्यान में उतरने के लिए एक संकल्प पंक्ति:
"मैं न शरीर हूँ, न मन; मैं प्रकाश भी नहीं — मैं वह हूँ जो सब कुछ में होकर भी कुछ नहीं है।"
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