धारणा -"एक बूँद में ब्रह्मांड"

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8/30/20251 मिनट पढ़ें

धारणा -"एक बूँद में ब्रह्मांड"

एक पर्वतीय आश्रम में एक युवा साधक अग्निवेश आया। वह पढ़ा-लिखा था, जिज्ञासु था, लेकिन उसका मन हर समय इधर-उधर भटकता रहता था। कभी भविष्य की चिंता, कभी अतीत के पछतावे, कभी बाहरी दुनिया के आकर्षण उसे चैन नहीं लेने देते। उसने गुरु के चरणों में बैठकर विनती की:

"गुरुदेव, मेरा मन स्थिर नहीं होता। मैं ध्यान करना चाहता हूँ, परंतु यह चंचलता मेरा साथ नहीं छोड़ती। मुझे कोई उपाय बताएँ।"

गुरु मुस्कुराए। वे जानते थे कि साधक की यात्रा तब ही शुरू होती है जब वह अपनी अस्थिरता को देख लेता है। उन्होंने उसे एक पीतल की छोटी कटोरी दी, जिसमें एक निर्मल जल की बूँद रखी थी। गुरु बोले:

"अग्निवेश, इसे लेकर नदी किनारे जाओ। इस बूँद को देखो, पर ध्यान रखना कि तुम्हारी दृष्टि और विचार केवल इसी पर केंद्रित हों।"

अग्निवेश गया। नदी का किनारा शांत था, परंतु वहाँ भी बहुत कुछ था – कलकल बहता पानी, हवा की सिहरन, पक्षियों का स्वर, दूर से आती घंटियों की ध्वनि। जैसे ही उसने बूँद पर दृष्टि जमाई,

  • कभी हवा का झोंका उसका ध्यान खींच लेता,

  • कभी नदी में चमकती धूप उसकी आँखों को लुभाती,

  • कभी उसके भीतर अतीत और भविष्य के विचार उमड़ने लगते।

कुछ देर बाद वह असफल होकर लौट आया:

"गुरुदेव, मेरा ध्यान बार-बार भटक जाता है।"

गुरु ने शांत स्वर में कहा:

"यही तो मन का स्वभाव है। यह हर बाहरी ध्वनि और दृश्य की ओर दौड़ता है। धारणा का अर्थ है इस दौड़ को रोकना। कल फिर जाना। इस बार एक मंत्र का जप करना – ‘ॐ’। अपनी आँखें बूँद पर और कान अपने मंत्र पर रखें।"

दूसरे दिन उसने ऐसा ही किया। पहले तो वही हुआ – ध्यान भटका। पर जैसे-जैसे उसने मंत्र दोहराया, उसकी साँसें धीमी हुईं। धीरे-धीरे वह बूँद में डूबने लगा।

  • उसे लगा जैसे बूँद में कोई प्रकाश फैल रहा हो।

  • उसका मन शिथिल हुआ, परंतु जागरूक रहा।

  • बाहरी ध्वनियाँ जैसे दूर हो गईं।

दिन बीतते गए। अब बूँद मात्र बूँद नहीं रही; वह उसके लिए एक द्वार बन गई। उसे अनुभव हुआ कि जब मन पूरी तरह एक बिंदु पर ठहरता है, तो उसका विस्तार असीम हो जाता है।

कुछ सप्ताह बाद, अग्निवेश जब गुरु के पास पहुँचा, उसकी आँखों में स्थिरता और चेहरे पर गहरी शांति थी। गुरु ने पूछा:

"क्या पाया?"

अग्निवेश बोला:

"गुरुदेव, बूँद में मैंने अपना मन देखा। जब वह भागता है तो दुनिया में भटकता है; जब वह ठहरता है, तो ब्रह्मांड को समा लेता है।"

गुरु मुस्कुराए:

"यही धारणा है। मन के चंचल घोड़े को एक जगह बाँध दो, और देखो, वही घोड़ा तुम्हें सत्य के मार्ग पर ले जाएगा।"

गहरे अर्थ और भावार्थ

1. बूँद – प्रतीक है फोकस का: जब मन एक बिंदु पर रुकता है, तब उसका विस्तार असीम होता है।

2. भटकाव – इन्द्रियों का स्वभाव: हमारा मन ध्वनि, स्पर्श, दृश्य, विचारों के बीच भटकता है।

3. साधन – मंत्र, दृष्टि और श्वास: किसी एक पर ध्यान टिकाना मानसिक स्थिरता लाता है।

4. धारणा के बिना ध्यान संभव नहीं: एकाग्रता ही ध्यान और समाधि का प्रथम द्वार है।

अभ्यास के लिए चरणबद्ध मार्गदर्शन (गहराई से)

1. स्थान चुनेंशांत जगह, कम विक्षेप।

2. वस्तु या बिंदु चुनेंदीपक की लौ, बूँद, मंत्र, श्वास।

3. दृष्टि और विचार स्थिर करेंआँखें उसी पर, विचार उसी पर।

4. श्वास का तालमेलगहरी और धीमी साँसें।

5. विक्षेप आने पर स्वीकारेंबिना खीझे वापस लौटें।

6. निरंतर अभ्यास करेंरोज़ कुछ मिनट।

7. अनुभव लिखेंअभ्यास के बाद मन की स्थिति नोट करें।