ध्यानकथा – “अंदर की बगिया”
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8/21/20251 मिनट पढ़ें
ध्यानकथा – “अंदर की बगिया”
एक नगर में एक युवक था – नीरज। वह बार-बार ध्यान करता, पर मन अशांत रहता। कभी गुस्सा आता, कभी झूठ बोल देता, कभी लोभ पकड़ लेता।
थककर वह एक संत के पास गया और बोला –
“गुरुदेव, ध्यान क्यों नहीं टिकता? मन बार-बार भाग जाता है।”
संत मुस्कुराए और बोले –
“पुत्र, जब तक यम की जड़ें गहरी नहीं होंगी, ध्यान का वृक्ष नहीं उगेगा। आओ, मैं तुम्हें एक-एक कर पाँच यम का रहस्य दिखाऊँ।”
1. अहिंसा – करुणा की बगिया
संत उसे एक उपवन में ले गए। वहाँ कुछ लोग पत्थर मारकर पेड़ से फल तोड़ रहे थे। पेड़ घायल हो रहा था।
संत बोले –
“देखो, हिंसा से जीवन को पीड़ा मिलती है। पर यदि प्रेम और करुणा से जाओगे, तो पेड़ स्वयं फल झुका देगा।”
नीरज ने जाना – जब वह किसी को चोट पहुँचाता है, तो उसका मन भी अशांत हो जाता है। ध्यान की गहराई तभी आएगी जब वह अहिंसा के मार्ग पर चलेगा।
2. सत्य – निर्मल झरना
फिर संत ने उसे नदी किनारे ले जाकर कहा –
“सत्य नदी के जल जैसा है। जब तक जल साफ है, प्यासा संतुष्ट होता है। झूठ और छल मिट्टी और कचरे की तरह हैं, जो धारा को गंदा कर देते हैं।”
नीरज ने महसूस किया – जब वह झूठ बोलता है, मन भीतर से बोझिल हो जाता है। ध्यान में हल्कापन तभी आएगा जब जीवन सत्य से भरेगा।
3. अस्तेय – विश्वास की संपदा
संत ने एक किसान का खेत दिखाया। कुछ लोग चोरी से उसकी फसल काट रहे थे। किसान दुखी था।
संत बोले –
“अस्तेय न केवल चोरी न करना है, बल्कि दूसरों के हक का आदर करना है। जो तेरा नहीं है, उसे लेने से मन अस्थिर होता है। विश्वास खो जाता है।”
नीरज ने जाना – ध्यान का सुख तभी है जब भीतर का मन अस्तेय से पवित्र हो।
4. ब्रह्मचर्य – ऊर्जा का दीपक
संत ने उसे रात्रि में एक दीपक दिखाया। बोले –
“दीपक की लौ तभी उज्ज्वल रहती है जब तेल व्यर्थ न बहे। यदि तेल इधर-उधर बह गया तो दीपक बुझ जाएगा। वैसे ही इन्द्रियों की ऊर्जा का संयम आवश्यक है।”
नीरज ने समझा – इन्द्रिय-विकार में उलझकर उसकी ऊर्जा नष्ट हो जाती थी। यदि वह ब्रह्मचर्य का पालन करे तो ध्यान की लौ तेज होगी।
5. अपरिग्रह – खाली हाथ की मुक्ति
अंत में संत ने उसे एक यात्री दिखाया। यात्री के पास इतना सामान था कि वह रास्ता ही नहीं चल पा रहा था।
संत बोले –
“लोभ और संचय बोझ बनते हैं। जितना हल्का चलोगे, उतनी दूर पहुँचोगे।”
नीरज ने जाना – जब तक वह संग्रह और लोभ में बंधा है, ध्यान गहरा नहीं होगा। अपरिग्रह ही मुक्ति का द्वार है।
✨ ध्यान का सार
संत ने कहा –
“देखो पुत्र, अहिंसा से हृदय कोमल होता है, सत्य से मन निर्मल होता है, अस्तेय से जीवन भरोसेमंद होता है, ब्रह्मचर्य से ऊर्जा सुरक्षित रहती है, और अपरिग्रह से आत्मा हल्की हो जाती है। जब ये पाँच जड़ें जमती हैं, तभी ध्यान का वृक्ष फलता है और समाधि का फूल खिलता है।”
नीरज ने प्रणाम किया और जब अगली बार ध्यान में बैठा, तो उसका मन शांत झील की तरह स्थिर हो गया।
🧘♂️ यम-आधारित ध्यान प्रैक्टिस
👉 अभ्यास का समय: सुबह या रात को शांति में 15–20 मिनट।
👉 आसन: सीधी रीढ़, आरामदायक स्थिति।
👉 विधि: श्वास को सहज रखते हुए प्रत्येक यम पर 2-3 मिनट ध्यान करें।
1. अहिंसा – करुणा का ध्यान
आँखें बंद करें और धीरे-धीरे गहरी साँस लें।
अपने मन में कल्पना करें कि आपके हृदय से शांत प्रकाश फैल रहा है।
यह प्रकाश आपके परिवार, मित्रों, अजनबियों और यहाँ तक कि शत्रुओं तक पहुँच रहा है।
मन ही मन दोहराएँ:
“मैं किसी को हानि नहीं पहुँचाता। मेरा हृदय करुणा और प्रेम से भरा है।”
2. सत्य – पारदर्शिता का ध्यान
श्वास पर ध्यान केंद्रित करें।
अब भीतर देखें: क्या कोई झूठ या छल का बोझ मन में है?
कल्पना करें कि आपके भीतर से एक स्वच्छ झरना बह रहा है, जो हर असत्य को धोकर साफ कर रहा है।
मंत्र की तरह कहें:
“मैं सत्य से जीता हूँ। मेरा मन और वाणी निर्मल हैं।”
3. अस्तेय – संतोष का ध्यान
श्वास लेते हुए सोचें: “मुझे जो चाहिए, वह सब मेरे पास है।”
अपने भीतर और आसपास कृतज्ञता का भाव लाएँ।
जो आपका नहीं है, उसे न चाहने का संकल्प लें।
मन ही मन दोहराएँ:
“मैं दूसरों का हक नहीं छीनता। मैं संतोष और कृतज्ञता से भरा हूँ।”
4. ब्रह्मचर्य – ऊर्जा का ध्यान
अपनी श्वास के साथ भीतर उठती ऊर्जा को महसूस करें।
कल्पना करें कि यह ऊर्जा एक दीपक की लौ बन रही है।
संकल्प करें: “मैं अपनी इन्द्रियों और जीवनशक्ति का सही उपयोग करता हूँ।”
दोहराएँ:
“मेरी ऊर्जा संयमित है। यह ऊर्जा मेरी साधना को प्रकाशित कर रही है।”
5. अपरिग्रह – हल्केपन का ध्यान
मन में कल्पना करें कि आप भारी बोझ (लोभ, वस्तुएँ, इच्छाएँ) उतारकर धीरे-धीरे हल्के हो रहे हैं।
स्वयं को एक यात्री मानें जो खाली हाथ है, पर मुक्त और प्रसन्न है।
दोहराएँ:
“मुझे जितना चाहिए उतना ही है। मैं आसक्ति और लोभ से मुक्त हूँ।”
🕉️ समापन
अंत में कुछ क्षण मौन में बैठें।
अनुभव करें – करुणा (अहिंसा), निर्मलता (सत्य), संतोष (अस्तेय), ऊर्जा (ब्रह्मचर्य) और हल्कापन (अपरिग्रह) अब आपके भीतर एक साथ खिल रहे हैं।
धीरे-धीरे आँखें खोलें और यह भाव पूरे दिन अपने साथ रखें।
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