‘एक ज्योति और चार छायाएँ’ — आत्मा की मौन यात्रा

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8/9/20251 मिनट पढ़ें

‘एक ज्योति और चार छायाएँ’ — आत्मा की मौन यात्रा

🌌 कहानी: ‘एक ज्योति और चार छायाएँ’ — आत्मा की मौन यात्रा

🕯️ भूमिका: एक मौन पुकार

वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं था।
उसे न नाम की भूख थी, न किसी पद की चाह।
लोग उसे "निशब्द" कहते थे, क्योंकि वह बहुत कम बोलता था — पर जब वह मौन होता, तो सृष्टि बोलती थी।

एक दिन उसने अंतर में प्रश्न किया:

"प्रकाश क्या है, और मैं उसमें कहाँ हूँ?"

उस रात वह ध्यान में बैठा।
अंतर में एक अवाज़ नहीं, आहट आई:

"चार छायाएँ हैं जो तुझे घेरे हुए हैं।
तीन दीप हैं जो तुझे भीतर ले जा सकते हैं।
पर एक प्रकाश ऐसा है जो तुझसे परे है – जहाँ ‘तू’ भी नहीं रहता।"

🪨 पहली छाया: निश्चित — जड़ पदार्थ की सीमा

वह गुफा के पहले तल में उतरता है।
हर ओर पत्थर, मिट्टी, हड्डियाँ, अंग, कोशिकाएँ।

शरीर के भीतर शरीर था –
नाड़ी, अस्थि, रक्त, तंतु।

यहाँ ‘निश्चितताथी — लेकिन वह मौन और जड़ थी।

एक चट्टान पर खुदा था:

यह तुम्हारा संयोजन है, लेकिन तुम नहीं हो।

वह पहला दीप देखता है — तमस का दीपक
उससे एक फुसफुसाहट आती है:

"मैं तुझे बांधता नहीं, लेकिन यदि तू मुझे ही 'स्व' समझेगा, तो तू चल नहीं पाएगा।"

वह धीरे से आगे बढ़ता है…

🌊 दूसरी छाया: अनिश्चित — मन का जाल

अब वह एक जल की परत में प्रवेश करता है।
यहाँ सब कुछ बह रहा है — विचार, इच्छा, स्मृति, कल्पना, पहचानें, अपेक्षाएँ।

कोई ठहराव नहीं।

एक विचार बार-बार उठता है —

तू कुछ है… कुछ बड़ा… कुछ खास…

वह रुकता है। सोचता है —
क्या यह मैं हूँ, या यह मन का अभिनय है?

दूसरा दीपक जल रहा है — रजस का दीपक

यह कहता है:

मैं शक्ति हूँ — लेकिन यदि तुम मुझे पकड़ लोगे, मैं भ्रम बन जाऊँगा।

अंदर एक स्पंदन होता है —
शक्ति चाहिए, लेकिन पकड़ नहीं। गति चाहिए, लेकिन केंद्र से जुड़ी हुई।

वह आगे बढ़ता है…

🌕 तीसरी छाया: सांकेतिक — आत्मा की झलक

अब वह एक आकाश-कक्ष में है —
कोई आकार नहीं, कोई समय नहीं, कोई दिशा नहीं।

यहाँ केवल उपस्थिति है।
"
मैं हूँ"यह अनुभव, जो न विचार है, न भावना।
यह एक मौन साक्षी है, बिना टिप्पणी के।

तीसरा दीपक वहाँ है — सत्त्व का दीपक।

वह धीमे-धीमे कहता है:

"मैं स्थिरता हूँ। मैं प्रकाश हूँ।
लेकिन मैं अंतिम नहीं। मुझे भी एक दिन रखना होगा — और उस पार जाना होगा…"

वह अब आत्मा के अनुभव में है —
जैसे कोई झील हो, जिसमें स्वयं की प्रतिबिंब को निहार रहा हो — लेकिन जल में भी कोई हलचल नहीं।

अब वह रुक सकता था,
वहीँ जीवन भर बैठ सकता था —
क्योंकि यहाँ सच्चा सुख था, ज्ञान, शांति, प्रकाश

लेकिन भीतर एक और मौन आहट आई:

"जिसे तू देख रहा है… वह तू नहीं। वह अब भी एक प्रतीक है…"

🕳️ चौथी छाया: अव्यक्त — अनात्मा का मौन

अब वह सबकुछ छोड़ता है —
दीपक, प्रतीक, अनुभव, ‘मैं हूँ’ की अनुभूति तक।

वह अंधकार में नहीं, बल्कि मौन में प्रवेश करता है।

यहाँ कोई भाषा नहीं काम करती।

यहाँ कोई प्रश्न नहीं है, उत्तर नहीं है, न आत्मा है, न शरीर, न भाव, न उद्देश्य।

यह शुद्ध मौन है —
"
अव्यक्त",
जहाँ अनात्मा है —
वह जो कुछ भी नहीं है, लेकिन सब कुछ है।

वह वहाँ विलीन नहीं होता, वह वहाँ गायब नहीं होता,
बल्कि वह हट जाता हैऔर शेष रह जाता है केवल ‘वह’

🌠 कथा का मौन बोध:

🌺 चार अवस्थाएँ:

  1. निश्चितशरीर और पदार्थ (स्थूल सत्य)

  2. अनिश्चितमन और विचार (प्रवाहमान सत्य)

  3. सांकेतिकआत्मा की चेतना (सूक्ष्म सत्य)

  4. अव्यक्तमौन, शून्य, अनात्मा (परम सत्य)

🔥 तीन गुण:

  • तमसशरीर को स्थिर करता है, लेकिन बांधता है

  • रजसमन को चलाता है, लेकिन उलझाता है

  • सत्त्वआत्मा को शांत करता है, पर मुक्त नहीं कर पाता

☀️ अंतिम शिक्षा:

"प्रकाश भी एक सीमा है।
जब साधक दीपक को भी छोड़ दे —
तब जो शेष रह जाता है —
वही ‘सत्य’ है।"

🧘‍♂️ ध्यान निर्देश (Guided Reflection)

हर ध्यान के बाद यह पूछो:

  • क्या मैं शरीर हूँ, या शरीर का साक्षी?

  • क्या मैं मन की लहरें हूँ, या उस पर दृष्टा?

  • क्या मैं आत्मा हूँ, या आत्मा भी एक अनुभव है?

  • क्या मैं ‘मैं’ भी हूँ?

फिर मौन में उतर जाओ…
जहाँ ‘प्रकाश’ भी चुप बैठा हो…
वहाँ शायद तुम पहली बार होगेबिना ‘तुम’ के।