“झील और पाँच नियम”

BLOG

8/23/20251 मिनट पढ़ें

झील और पाँच नियम

एक गाँव में अनंत नाम का युवक था। वह बार-बार ध्यान करता, पर उसका मन कभी शोर करता, कभी भटक जाता।
थककर वह एक संत के पास पहुँचा और बोला –
गुरुदेव, मन स्थिर क्यों नहीं होता?”

संत ने उसे पास की झील दिखाकर कहा –
यह झील तुम्हारे मन जैसी है। नियमों का पालन करने से यह झील साफ होगी और तभी ध्यान की गहराई मिलेगी। आओ, पाँच नियमों का रहस्य समझो।

1. शौच – पवित्रता की लहरें

संत ने झील में कचरा डालते बच्चों को दिखाया। जल मैला हो गया।
देखो अनंत! जब तक शरीर और मन अपवित्र हैं, ध्यान में अशांति बनी रहती है। शौच यानी बाहर-भीतर की सफ़ाई।
स्वच्छ भोजन, स्वच्छ शरीर, और स्वच्छ विचार ही ध्यान को निर्मल बनाते हैं।

अनंत ने जाना – शुद्धि ही ध्यान की पहली सीढ़ी है।

2. संतोष – झील की शांति

फिर संत ने झील की सतह पर बहती हवा दिखाई।
जब हवा तेज़ होती है, लहरें उठती हैं। जब हवा शांत होती है, जल स्थिर हो जाता है।
इसी तरह इच्छाएँ और असंतोष मन को लहरों की तरह डिगा देते हैं। संतोष वह शांति है जो मन को स्थिर करती है।

अनंत ने महसूस किया – संतोष से ध्यान सहज हो जाता है।

3. तप – धूप की साधना

संत ने कहा –
देखो, यह झील गर्मी, सर्दी और बरसात सब सहती है, तब ही अस्तित्व बनाए रखती है।
तप का अर्थ है कठिनाइयों को सहकर आत्मसंयम बनाए रखना। साधक यदि थोड़ी पीड़ा, भूख या नींद का अभ्यास कर ले, तो उसका मन मजबूत होता है।

अनंत ने समझा – तप ध्यान की शक्ति है।

4. स्वाध्याय – झील का दर्पण

संत ने उसे झील की सतह दिखाई –
जब जल शांत और साफ हो जाता है तो वह दर्पण बन जाता है।
स्वाध्याय यानी आत्मचिंतन और शास्त्र का अध्ययन। इससे साधक अपनी ही छवि, अपने दोष और गुण देख पाता है।

अनंत ने जाना – स्वाध्याय ध्यान को गहराई देता है।

5. ईश्वर-प्रणिधान – समर्पण की धारा

अंत में संत ने कहा –
यह झील अपनी सारी धारा नदी को समर्पित कर देती है। वैसे ही साधक जब अपने अहंकार, प्रयास और फल की चिंता को ईश्वर को समर्पित करता है, तब ध्यान सहज होकर समाधि में बदल जाता है।

अनंत ने अनुभव किया – समर्पण ही ध्यान का परम रहस्य है।

निष्कर्ष

संत बोले –
शौच से मन निर्मल, संतोष से स्थिर, तप से मजबूत, स्वाध्याय से गहरा और ईश्वर-प्रणिधान से आत्मा मुक्त होती है।
जब ये पाँच नियम साधक के जीवन में उतरते हैं, तब ध्यान केवल अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन का स्वरूप बन जाता है।

अनंत ने प्रणाम किया और जब अगली बार ध्यान में बैठा तो उसका मन झील की तरह गहरा और शांत हो गया।

पाँचों नियम (Niyama) को एक-एक करके ध्यान-प्रैक्टिस (Meditation Exercise) के रूप में समझेंगे।
यह अभ्यास रोज़ाना किया जा सकता है — चाहे सुबह ध्यान में बैठें या रात को सोने से पहले आत्मचिंतन करें।

🧘‍♂️ नियम-आधारित ध्यान अभ्यास

👉 समय: 20–25 मिनट (प्रत्येक नियम पर 4–5 मिनट)
👉 आसन: सीधी रीढ़, आरामदायक स्थिति, आँखें बंद।
👉 विधि: श्वास पर ध्यान रखते हुए प्रत्येक नियम का आंतरिक अनुभव करें।

1. शौच – आंतरिक और बाहरी शुद्धि

  • गहरी श्वास लें और कल्पना करें कि सफेद प्रकाश आपके शरीर को धो रहा है।

  • हर श्वास छोड़ते समय सोचें: मेरी नकारात्मकता और अशुद्ध विचार बाहर निकल रहे हैं।

  • दोहराएँ:
    मैं शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध हूँ।

👉 इससे मन हल्का और निर्मल होगा।

2. संतोष – जो है उसी में संतोष

  • श्वास लेते हुए अपने जीवन की किसी एक बात के लिए कृतज्ञता महसूस करें।

  • कल्पना करें कि आपके हृदय में एक शांत झील है, जिसकी सतह पर कोई लहर नहीं।

  • मन ही मन कहें:
    मैं जो कुछ भी है, उसमें पूर्ण हूँ। मुझे संतोष प्राप्त है।

👉 इससे मन स्थिर और प्रसन्न रहेगा।

3. तप – आत्मसंयम और सहनशीलता

  • श्वास पर ध्यान करते हुए सोचें कि आप कठिनाइयों को सहजता से सह रहे हैं।

  • कल्पना करें कि आप धूप में खड़े एक वृक्ष की तरह हैं, जो गर्मी-सर्दी, आँधी-तूफान सब सह लेता है।

  • दोहराएँ:
    मैं संयमी हूँ, कठिनाइयों को धैर्य से सहता हूँ।

👉 इससे भीतर साहस और आत्मशक्ति जागेगी।

4. स्वाध्याय – आत्मचिंतन और ज्ञान

  • अब मन में कोई एक पवित्र शब्द, मंत्र या शास्त्र का वाक्य स्मरण करें।

  • ध्यान करें कि यह शब्द आपके भीतर गूँज रहा है और मन को दर्पण की तरह साफ कर रहा है।

  • दोहराएँ:
    मैं अपने भीतर झाँकता हूँ और सत्य को पहचानता हूँ।

👉 इससे आत्मबोध और स्पष्टता मिलेगी।

5. ईश्वर-प्रणिधान – समर्पण

  • गहरी श्वास लें और कल्पना करें कि आप अपना अहंकार, चिंता और बोझ ईश्वर के चरणों में रख रहे हैं।

  • अनुभव करें कि आप अब हल्के, मुक्त और शांत हैं।

  • दोहराएँ:
    मैं स्वयं को ईश्वर को समर्पित करता हूँ। सब कुछ उन्हीं की इच्छा है।

👉 इससे गहन शांति और दिव्य अनुभूति होगी।

🕉️ समापन

अंत में 2–3 मिनट मौन रहें।
अनुभव करें कि शुद्धि (शौच), संतोष, आत्मबल (तप), आत्मज्ञान (स्वाध्याय), और समर्पण (ईश्वर-प्रणिधान) आपके भीतर एक साथ खिल रहे हैं।
धीरे-धीरे आँखें खोलें और इस भाव को पूरे दिन साथ रखें।

यह ध्यान साधक को धीरे-धीरे भीतर से निर्मल, स्थिर, साहसी, ज्ञानी और समर्पित बना देता है।