क्रिया योग

क्रिया योग (लाहड़ी महाशय )

MEDITATION TECHNIQUES

11/18/20241 मिनट पढ़ें

क्रिया योग

क्रिया योग, लाहिड़ी महाशय द्वारा प्रसारित एक गहन योग प्रणाली है, जो आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर से मिलन का एक शक्तिशाली साधन मानी जाती है। यह योगिक विधि साधक को शरीर, मन और आत्मा के स्तर पर शुद्धि प्रदान करती है और उसे ध्यान की गहराई में ले जाकर आत्मज्ञान की ओर ले जाती है। क्रिया योग में श्वास-प्रश्वास, चक्र ध्यान, और ऊर्जा नियंत्रण की तकनीकें शामिल हैं। यह साधना मन को शांत करती है और साधक को परमात्मा से जोड़ने में सहायता करती है।

1. क्रिया योग का अर्थ और मूल सिद्धांत

- क्रिया का अर्थ है "कारवाई" या "प्रक्रिया," और योग का अर्थ है "मिलन" या "एकता"। क्रिया योग का उद्देश्य साधक के भीतर आत्मा और परमात्मा के मिलन की प्रक्रिया को सक्रिय करना है।

- इस साधना का मूल सिद्धांत यह है कि सांसों का नियंत्रण करके, मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को एकत्रित किया जा सकता है, जिससे साधक का मन एकाग्र हो जाता है और उसे आत्मज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

2. क्रिया योग का उद्देश्य

- इसका उद्देश्य साधक की आंतरिक ऊर्जा को नियंत्रित करना और उसे शरीर के भीतर मौजूद विभिन्न चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) के माध्यम से परमात्मा की ओर बढ़ाना है।

- यह आत्मा को सांसारिक चीज़ों से मुक्त कर, साधक को ध्यान के गहरे अनुभव में लाने में सहायक होता है। इससे साधक का मन और आत्मा शुद्ध होती है, और उसे ईश्वर के अस्तित्व का सीधा अनुभव प्राप्त होता है।

3. मुख्य चरण और विधियाँ

(i) श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण (प्राणायाम)

- क्रिया योग में साँस की लयबद्धता और गति को नियंत्रित किया जाता है, जिसे प्राणायाम कहा जाता है। प्राणायाम का अर्थ है प्राण (जीवन ऊर्जा) और आयाम (नियंत्रण)।

- प्राणायाम के माध्यम से साधक अपनी सांसों को नियंत्रित करके शरीर और मस्तिष्क को शुद्ध करता है, जिससे ध्यान की गहराई बढ़ती है। श्वास-प्रश्वास को नियमित और शांत करके मन की चंचलता को कम किया जाता है।

(ii) ऊर्जा को जाग्रत करना और उसे चक्रों में प्रवाहित करना

- क्रिया योग के अंतर्गत साधक अपनी ऊर्जा को मस्तिष्क से लेकर रीढ़ की हड्डी तक स्थित चक्रों के माध्यम से संचालित करता है। इन चक्रों में प्रमुख हैं - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार चक्र।

- ऊर्जा को इन चक्रों में प्रवाहित करने के लिए श्वास के साथ ध्यान और मानसिक एकाग्रता का प्रयोग किया जाता है, जिससे प्रत्येक चक्र में संचित ऊर्जा सक्रिय होती है और साधक की चेतना को जाग्रत करती है।

(iii) क्रिया योग की मुख्य क्रिया: ऊर्ध्वगति (उर्ध्वरेता साधना)

- साधक अपनी चेतना को ऊर्ध्वगामी बनाने के लिए अपनी ऊर्जा को मूलाधार से सहस्रार तक चढ़ाता है। यह ऊर्ध्वगति क्रिया योग का एक मुख्य हिस्सा है।

- इस क्रिया के दौरान साधक अपनी सांसों के साथ, अपने चक्रों पर ध्यान केंद्रित करता है और ऊर्जा को रीढ़ की हड्डी के आधार से मस्तिष्क के शीर्ष तक ले जाने का प्रयास करता है। यह प्रक्रिया साधक के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बीच एक अद्वितीय ऊर्जा प्रवाह स्थापित करती है।

(iv) ब्रह्मरंध्र ध्यान

- क्रिया योग में सहस्रार चक्र (जो मस्तिष्क के शीर्ष पर स्थित है) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिसे ब्रह्मरंध्र भी कहते हैं। इसे भगवान का द्वार माना जाता है।

- इस ध्यान विधि में साधक अपनी चेतना को सहस्रार पर एकत्र करता है और अपने भीतर ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करता है। यह स्थिति गहरी ध्यानावस्था में साधक को ब्रह्मांडीय चेतना का अनुभव देती है।

(v) ओम ध्यान (ध्वनि साधना)

- साधक को अपनी चेतना को उस ध्वनि पर केंद्रित करना सिखाया जाता है, जिसे ओम कहा जाता है। ओम ध्यान से साधक को ईश्वर की दिव्यता का अनुभव होता है।

- यह ध्वनि मस्तिष्क में उत्पन्न होती है और ध्यान के दौरान साधक इस ध्वनि को सुनता है, जो उन्हें भीतर की गहराई में ले जाती है।

4. क्रिया योग का अभ्यास कैसे करें

प्रारंभिक तैयारी

- एक शांत और पवित्र स्थान चुनें जहाँ आपको कोई व्यवधान न हो। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए ध्यान की मुद्रा में बैठें।

- धीरे-धीरे श्वास को नियंत्रित करें, इसे गहरा और धीमा बनाते हुए मन को शांत करें।

चरणबद्ध प्रक्रिया

1. प्राणायाम का अभ्यास करें: पहले गहरी सांस लें और धीरे-धीरे छोड़ें। इससे मस्तिष्क और शरीर में प्राण शक्ति प्रवाहित होती है और मन एकाग्र होता है।

2. ऊर्जा प्रवाह पर ध्यान दें: श्वास-प्रश्वास के साथ-साथ अपनी चेतना को मूलाधार से लेकर सहस्रार चक्र तक ऊपर की ओर ले जाने का प्रयास करें।

3. चक्रों का ध्यान करें: हर चक्र पर थोड़ी देर के लिए ध्यान केंद्रित करें। इसके लिए अपनी चेतना को चक्र पर केंद्रित करें और महसूस करें कि ऊर्जा वहाँ प्रवाहित हो रही है।

4. सहस्रार पर ध्यान केंद्रित करें: अंत में सहस्रार (मस्तिष्क के शीर्ष) पर ध्यान केंद्रित करें। यहाँ पर चेतना को केंद्रित करने से ध्यान की गहराई बढ़ती है और साधक का ईश्वर से संपर्क मजबूत होता है।

5. ध्वनि ध्यान (ओम) का अभ्यास करें: मन में ओम की ध्वनि का अनुभव करें और उसमें खो जाएँ। यह ध्वनि ध्यान में गहराई लाता है।

5. क्रिया योग के लाभ

- मानसिक शांति: यह मन को शांत करता है और मानसिक अशांति को दूर करता है।

- शारीरिक स्वास्थ्य: शरीर के हर अंग और तंत्रिका तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जिससे स्वास्थ्य में सुधार होता है।

- आध्यात्मिक उन्नति: साधक के भीतर चेतना का विस्तार होता है, जो उसे आत्मज्ञान और ईश्वर के अनुभव की ओर ले जाता है।

- चक्र जागरण: चक्रों के जागरण से ऊर्जा संतुलित होती है, जिससे साधक के भीतर आंतरिक शक्ति बढ़ती है।

- समाधि की प्राप्ति: निरंतर अभ्यास से साधक समाधि की अवस्था प्राप्त कर सकता है, जिसमें आत्मा और परमात्मा के बीच कोई अंतर नहीं रहता।

6. क्रिया योग के अभ्यास में सावधानियाँ

- क्रिया योग का अभ्यास योग्य गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए, क्योंकि इसमें ध्यान और ऊर्जा का गहन अनुभव होता है।

- नियमितता और संयम का पालन करना आवश्यक है। इस साधना में धैर्य और अनुशासन बनाए रखना जरूरी है।

- किसी प्रकार का नकारात्मक विचार या भावना साधना में बाधा बन सकता है, इसलिए मन को सकारात्मक बनाए रखें।

क्रिया योग न केवल ध्यान की एक विधि है बल्कि आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर से मिलन की एक उत्कृष्ट साधना है। लाहिड़ी महाशय ने इस साधना को आम जन तक पहुँचाया ताकि हर व्यक्ति अपने जीवन में आत्मिक शांति, आंतरिक शुद्धि और ईश्वर का अनुभव प्राप्त कर सके।