लाहिड़ी महाशय
(श्री श्याम चरण लाहिड़ी)
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लाहिड़ी महाशय (श्री श्याम चरण लाहिड़ी)
लाहिड़ी महाशय (श्री श्याम चरण लाहिड़ी) भारतीय योग परंपरा के एक महान गुरु और संत थे, जिनका जन्म 30 सितंबर 1828 को पश्चिम बंगाल के गहनी गाँव में हुआ था। लाहिड़ी महाशय को क्रिया योग के पुनर्जीवित करने वाले महान योगी के रूप में जाना जाता है। वे श्री महावतार बाबाजी के शिष्य थे, जिन्होंने उन्हें क्रिया योग की दीक्षा दी थी। लाहिड़ी महाशय के जीवन का मुख्य उद्देश्य इस साधना को सरल, आम लोगों के लिए सुलभ और हर तरह के साधकों के लिए उपलब्ध कराना था।
प्रारंभिक जीवन
लाहिड़ी महाशय का पूरा नाम श्याम चरण लाहिड़ी था, और उनका परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था। उनका बचपन और युवावस्था सामान्य ढंग से बीती, लेकिन वे हमेशा आध्यात्मिकता और धार्मिक साधना में रुचि रखते थे। उनकी शिक्षा काशी (अब वाराणसी) में हुई, जहाँ उन्होंने वेद, उपनिषद, गीता आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया।
आध्यात्मिक जागरण और महावतार बाबाजी से मुलाकात
1861 में, ब्रिटिश सरकार में एकाउंटेंट के पद पर काम करते हुए, लाहिड़ी महाशय को रानीखेत के पास हिमालय की यात्रा पर जाना पड़ा। वहीं पर उनकी मुलाकात महावतार बाबाजी से हुई, जो एक महान और दिव्य योगी थे। बाबाजी ने उन्हें दिव्य ज्ञान की शिक्षा देने के उद्देश्य से बुलाया था। इस मुलाकात में बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय को क्रिया योग की दीक्षा दी। इसके बाद लाहिड़ी महाशय का आध्यात्मिक जीवन एकदम बदल गया, और वे क्रिया योग के एक महान शिक्षक बन गए।
क्रिया योग का प्रचार
लाहिड़ी महाशय का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने क्रिया योग को आम लोगों के बीच प्रचारित किया। उनका मानना था कि यह साधना जीवन के किसी भी क्षेत्र में कार्यरत लोग कर सकते हैं, चाहे वे गृहस्थ हों या संन्यासी। क्रिया योग का अभ्यास आत्मा की शुद्धि और ईश्वर से मिलन का मार्ग माना जाता है। यह साधना श्वास-प्रश्वास और ध्यान की एक विशेष विधि है, जिससे साधक का मन और आत्मा शुद्ध होती है।
शिक्षा और शिष्य
लाहिड़ी महाशय के शिष्य अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते थे – गृहस्थ, व्यापारी, सरकारी कर्मचारी, विद्वान और योगी। वे अपने शिष्यों को एक साधारण और अनुशासित जीवन जीने का उपदेश देते थे और बताते थे कि परमात्मा को पाने के लिए संन्यास लेना आवश्यक नहीं है। उनके प्रमुख शिष्यों में स्वामी श्री युक्तेश्वर, पञ्चानन भट्टाचार्य और प्राणवानंद जैसे महान संत शामिल थे। बाद में, योगानंद परमहंस ने लाहिड़ी महाशय और उनके क्रिया योग के संदेश को पश्चिमी दुनिया में पहुँचाया।
जीवन का संदेश और सिद्धांत
लाहिड़ी महाशय का संदेश सरल था – वे कहते थे कि ईश्वर को पाने के लिए किसी बाहरी साधन की जरूरत नहीं, बल्कि मन को अंदर की ओर मोड़ना ही असली साधना है। वे मानते थे कि सभी लोग अपनी पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का पालन करते हुए भी आत्म-साक्षात्कार कर सकते हैं। उन्होंने लोगों को बताया कि भगवान हर व्यक्ति के भीतर ही मौजूद हैं, और क्रिया योग की साधना से इस आंतरिक भगवान का साक्षात्कार किया जा सकता है।
निधन और विरासत
लाहिड़ी महाशय का निधन 26 सितंबर 1895 को वाराणसी में हुआ। उनके अनुयायियों और शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ाया। लाहिड़ी महाशय ने आत्म-साक्षात्कार की राह पर चलने के लिए एक अनोखा मार्ग प्रस्तुत किया, जिसे क्रिया योग के रूप में जाना जाता है। आज भी उनकी शिक्षाओं को लाखों लोग पालन करते हैं और क्रिया योग का अभ्यास करते हैं। उनके जीवन और साधना ने उन्हें भारतीय योग परंपरा में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया है।
लाहिड़ी महाशय की यह साधारण लेकिन गहन शिक्षाएँ योग और ध्यान में रुचि रखने वाले हर व्यक्ति के लिए आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।
लाहिड़ी महाशय के जीवन में कई प्रेरणादायक, चमत्कारी और रहस्यमयी घटनाएँ हुईं, जो उनकी आध्यात्मिक महानता और ईश्वर से उनके गहरे संबंध को दर्शाती हैं। यहाँ उनके जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख घटनाएँ और कहानियाँ दी गई हैं:
1. महावतार बाबाजी से दिव्य मुलाकात
लाहिड़ी महाशय की आध्यात्मिक यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण घटना महावतार बाबाजी से उनकी मुलाकात थी। 1861 में, रानीखेत में एक सैन्य अधिकारी के रूप में काम करते समय, उन्हें एक रहस्यमयी आवाज़ ने पुकारा। उस आवाज़ का अनुसरण करते हुए वे एक ऊँची पहाड़ी पर पहुँचे, जहाँ उनकी मुलाकात बाबाजी से हुई। बाबाजी ने उन्हें पहचान लिया और बताया कि वे पिछले जन्म के शिष्य थे। इस मुलाकात में बाबाजी ने उन्हें क्रिया योग की दीक्षा दी और उन्हें उस ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने का निर्देश दिया। यह घटना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
2. अदृश्य रूप में सहायता
लाहिड़ी महाशय से जुड़ी एक घटना है कि कैसे उन्होंने एक शिष्य की आध्यात्मिक साधना में मदद की, जब वह उनसे कई मील दूर था। एक बार एक शिष्य गहरे ध्यान में डूबा था लेकिन वह अपनी साधना में अड़चन महसूस कर रहा था। उसने मन ही मन लाहिड़ी महाशय को सहायता के लिए पुकारा। तभी उसे अपने ध्यान में गुरु की उपस्थिति का अनुभव हुआ और उसने महसूस किया कि लाहिड़ी महाशय ने उसे मार्गदर्शन दिया। बाद में, उस शिष्य ने जब यह घटना लाहिड़ी महाशय को बताई, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उसे पुष्टि दी कि उन्होंने उसकी सहायता की थी।
3. हवन की अग्नि में समाधि
एक बार लाहिड़ी महाशय ने एक धार्मिक अनुष्ठान के दौरान ध्यान की स्थिति में हवन कुंड की अग्नि में अपनी उंगली डाल दी, लेकिन उन्हें कोई दर्द या जलन महसूस नहीं हुई। उन्होंने अपनी उंगली को बिना किसी हानि के बाहर निकाल लिया। जब लोगों ने उनसे पूछा कि उन्हें दर्द क्यों नहीं हुआ, तो उन्होंने उत्तर दिया कि ध्यान की गहन अवस्था में व्यक्ति के शरीर का दर्द से संबंध नहीं रहता, और उन्होंने अपनी चेतना को उस समय परमात्मा में विलीन कर दिया था। यह घटना उनके ध्यान की गहराई और आत्म-नियंत्रण को दर्शाती है।
4. शिव मंदिर में महावतार बाबाजी का दर्शन
एक दिन लाहिड़ी महाशय अपने शिष्यों के साथ एक शिव मंदिर गए। वहाँ, अचानक से महावतार बाबाजी प्रकट हुए और मंदिर के प्रांगण में ही लाहिड़ी महाशय को अपने दिव्य आशीर्वाद और मार्गदर्शन दिए। यह घटना उनके शिष्यों के लिए एक दिव्य अनुभव था और बाबाजी के अस्तित्व को और भी पुख्ता करती है। बाबाजी का अचानक प्रकट होना और गायब हो जाना उनके अलौकिक रूप को दर्शाता है, और इस घटना ने लाहिड़ी महाशय के शिष्यों में विश्वास को और भी मजबूत किया।
5. मौत का पूर्वाभास और जीवन की अस्थायित्व पर सीख
लाहिड़ी महाशय का अपने जीवन और मृत्यु के प्रति गहरा ज्ञान था। उन्होंने अपनी मृत्यु का भी पूर्वानुमान कर लिया था। 1895 में, अपने अंतिम समय से कुछ दिन पहले, उन्होंने अपने परिवार और शिष्यों को बताया कि उनका शरीर छोड़ने का समय आ गया है। उन्होंने शांति से क्रिया योग करते हुए ध्यान में बैठकर अपने शरीर का त्याग किया। उनके इस शांतिपूर्ण तरीके से शरीर त्यागने से उनके अनुयायियों को जीवन की अस्थायित्व के बारे में एक महत्वपूर्ण शिक्षा मिली।
6. शिष्यों के प्रति अद्भुत सहनशीलता और दया
लाहिड़ी महाशय के जीवन से जुड़े कई किस्से उनके शिष्यों के प्रति उनकी दया और सहनशीलता को दर्शाते हैं। एक बार एक शिष्य उनके पास शराब के नशे में आया और उनका अपमान करने लगा। लाहिड़ी महाशय ने उसे कुछ नहीं कहा और शांतिपूर्वक उसकी हर बात सुनी। बाद में, उसी शिष्य ने अपनी गलती का पश्चाताप किया और गुरु से क्षमा मांगी। लाहिड़ी महाशय ने उसे माफ कर दिया और उसे प्रेमपूर्वक समझाया। उनका यह व्यवहार उनके सहनशीलता और करुणा की गहराई को दर्शाता है।
7. मृत्यु के समय आत्मा का प्रकट होना
लाहिड़ी महाशय के एक शिष्य के अंतिम समय में जब उनकी आत्मा निकलने वाली थी, तब लाहिड़ी महाशय ने अपने ध्यान में उस शिष्य की आत्मा को देखा और उसे ईश्वर के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शन दिया। उनके इस दिव्य दृष्टिकोण और उनके शिष्यों के प्रति इतनी गहरी भक्ति का उदाहरण उनके असीमित आध्यात्मिक शक्ति और महानता को दर्शाता है।
8. व्यवसाय और आध्यात्मिकता का समन्वय
लाहिड़ी महाशय अपने जीवन के अंतिम समय तक एक साधारण गृहस्थ जीवन जीते रहे और सरकारी नौकरी भी करते रहे। उन्होंने दिखाया कि ईश्वर प्राप्ति के लिए संसार त्यागने की आवश्यकता नहीं है। उनके अनुसार, व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी आध्यात्मिक ऊँचाई प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने अपने शिष्यों को यही सिखाया कि आध्यात्मिकता और व्यावसायिक जीवन एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं।
लाहिड़ी महाशय के जीवन की ये कहानियाँ उनके असाधारण व्यक्तित्व, अद्वितीय साधना और गुरु की करुणा को दर्शाती हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि साधारण दिखने वाली जीवनशैली में भी दिव्यता प्राप्त की जा सकती है। उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों साधकों को मार्गदर्शन और प्रेरणा देती हैं।
लाहिड़ी महाशय के धार्मिक संदेश और ध्यान विधियाँ उनकी साधना और गहन आत्मिक ज्ञान का आधार थीं। उन्होंने एक साधारण जीवन जीते हुए आध्यात्मिकता के उच्चतम स्तर को प्राप्त किया और इसे सरल और व्यावहारिक तरीके से अपने शिष्यों के साथ साझा किया। उनका मुख्य उद्देश्य था कि व्यक्ति संसार में रहते हुए भी ईश्वर से मिलन कर सकता है, इसके लिए संन्यास लेना आवश्यक नहीं। उनके संदेश और ध्यान विधियाँ निम्नलिखित हैं:
1. क्रिया योग की साधना
लाहिड़ी महाशय का मुख्य संदेश क्रिया योग पर आधारित था, जो महावतार बाबाजी से उन्हें प्राप्त हुआ था। क्रिया योग एक विशेष ध्यान विधि है, जिसमें श्वास-प्रश्वास और ध्यान की विशिष्ट तकनीकों का अभ्यास किया जाता है। यह साधना आत्मा की शुद्धि और ईश्वर के साथ मिलन का मार्ग मानी जाती है। क्रिया योग का अभ्यास साधक के शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करता है, और ध्यान की गहराई में जाकर उसे आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
2. संसार में रहकर साधना का सिद्धांत
लाहिड़ी महाशय का मानना था कि आध्यात्मिकता और सांसारिक जीवन एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को यह सिखाया कि गृहस्थ जीवन और नौकरी करते हुए भी ईश्वर की साधना की जा सकती है। वे स्वयं एक गृहस्थ और सरकारी कर्मचारी थे, और इसी साधारण जीवन में रहकर उन्होंने आध्यात्मिकता की ऊँचाइयों को प्राप्त किया। उनका यह सिद्धांत उनके शिष्यों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक था।
3. प्रार्थना और ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करना
लाहिड़ी महाशय का मुख्य संदेश था कि ईश्वर को पाने के लिए किसी विशेष स्थान या मंदिर की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अपने शिष्यों को सिखाया कि वे जहाँ हैं, वहीं पर ध्यान और प्रार्थना कर सकते हैं। ईश्वर की उपस्थिति हर जगह होती है, और सच्चा साधक कहीं भी ईश्वर का अनुभव कर सकता है। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि ध्यान करते समय मन को ईश्वर पर केंद्रित रखना चाहिए और शुद्ध भावनाओं से प्रार्थना करनी चाहिए।
4. गुरु की महत्ता और आत्मसमर्पण
लाहिड़ी महाशय गुरु की महत्ता को बहुत महत्व देते थे। उनका मानना था कि गुरु के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण और विश्वास से साधक की साधना में गति आती है। उन्होंने कहा कि गुरु ही साधक को उसकी आंतरिक शक्ति से परिचित कराते हैं और उसे ईश्वर के मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायक होते हैं। वे मानते थे कि गुरु की कृपा और मार्गदर्शन के बिना आध्यात्मिकता की गहराई तक पहुँचना कठिन होता है।
5. ध्यान की विधि (क्रिया योग)
क्रिया योग ध्यान की एक गहन तकनीक है, जिसमें श्वास-प्रश्वास को नियंत्रित करके साधक अपनी चेतना को एकाग्र करता है। इसमें विभिन्न चरण होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण: क्रिया योग में साँस की लयबद्धता महत्वपूर्ण होती है। विशेष श्वास-प्रश्वास की तकनीकों से मन और शरीर शुद्ध होते हैं।
- चक्रों का ध्यान: इस साधना में साधक अपनी ऊर्जा को अपने शरीर के चक्रों पर केंद्रित करता है, जिससे ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होता है।
- मन की शुद्धि: ध्यान की इस अवस्था में साधक अपने मन के विचारों को शुद्ध करने का प्रयास करता है। इससे ध्यान गहरा होता है और व्यक्ति आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है।
- सहज समाधि की अवस्था: नियमित क्रिया योग के अभ्यास से साधक एक ऐसी अवस्था में पहुँच सकता है, जिसे समाधि कहा जाता है। इसमें साधक का मन और आत्मा ईश्वर में लीन हो जाते हैं।
6. ध्यान की महत्ता और नियमितता
लाहिड़ी महाशय अपने शिष्यों को ध्यान की नियमितता का महत्व बताते थे। उन्होंने कहा कि साधना को प्रतिदिन नियमित रूप से करना चाहिए, चाहे वह कितना भी समय हो। ध्यान में नियमितता साधक के मन को शांत और संतुलित रखती है और उसे ईश्वर के प्रति एकाग्र बनाए रखती है।
7. प्रेम और करुणा का संदेश
लाहिड़ी महाशय का जीवन प्रेम, करुणा और सहानुभूति से परिपूर्ण था। उन्होंने अपने शिष्यों को सिखाया कि साधना का असली उद्देश्य अपने भीतर प्रेम और करुणा को बढ़ाना है। उनके अनुसार, सच्चा साधक वही है जो दूसरों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखता है। उन्होंने सिखाया कि प्रेम और करुणा से ही व्यक्ति ईश्वर के करीब पहुँच सकता है।
8. पवित्रता और ईमानदारी का जीवन
लाहिड़ी महाशय अपने शिष्यों से पवित्रता और ईमानदारी से जीवन जीने की अपेक्षा करते थे। उन्होंने यह सिखाया कि व्यक्ति को सत्य और धार्मिकता के मार्ग पर चलना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में अपनी नैतिकता से समझौता नहीं करना चाहिए। उनका मानना था कि पवित्रता और ईमानदारी से व्यक्ति का मन और आत्मा शुद्ध होती है, जिससे ध्यान में सफलता मिलती है।
9. समर्पण और धैर्य
लाहिड़ी महाशय का एक महत्वपूर्ण संदेश था कि साधना में धैर्य और समर्पण होना चाहिए। उन्होंने अपने शिष्यों को सिखाया कि साधना एक लंबी यात्रा है और इसमें सफलता पाने के लिए धैर्य आवश्यक है। उन्होंने कहा कि साधक को हर परिस्थिति में ईश्वर पर विश्वास बनाए रखना चाहिए और आत्मसमर्पण की भावना से साधना करनी चाहिए।
लाहिड़ी महाशय के ये संदेश और ध्यान विधियाँ जीवन के हर पहलू में संतुलन और ईश्वर के प्रति प्रेम को बढ़ावा देती हैं। उनके सिद्धांत यह दर्शाते हैं कि आध्यात्मिकता और सांसारिक जीवन के बीच संतुलन बनाना ही असली साधना है। उनके सादगी और समर्पण से परिपूर्ण जीवन ने लाखों साधकों को प्रेरित किया है और आज भी उनके संदेश दुनिया भर में अनुकरणीय हैं।
क्रिया योग, लाहिड़ी महाशय द्वारा प्रसारित एक गहन योग प्रणाली है, जो आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर से मिलन का एक शक्तिशाली साधन मानी जाती है। यह योगिक विधि साधक को शरीर, मन और आत्मा के स्तर पर शुद्धि प्रदान करती है और उसे ध्यान की गहराई में ले जाकर आत्मज्ञान की ओर ले जाती है। क्रिया योग में श्वास-प्रश्वास, चक्र ध्यान, और ऊर्जा नियंत्रण की तकनीकें शामिल हैं। यह साधना मन को शांत करती है और साधक को परमात्मा से जोड़ने में सहायता करती है।
आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
1. क्रिया योग का अर्थ और मूल सिद्धांत
- क्रिया का अर्थ है "कार्रवाई" या "प्रक्रिया," और योग का अर्थ है "मिलन" या "एकता"। क्रिया योग का उद्देश्य साधक के भीतर आत्मा और परमात्मा के मिलन की प्रक्रिया को सक्रिय करना है।
- इस साधना का मूल सिद्धांत यह है कि सांसों का नियंत्रण करके, मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को एकत्रित किया जा सकता है, जिससे साधक का मन एकाग्र हो जाता है और उसे आत्मज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
2. क्रिया योग का उद्देश्य
- इसका उद्देश्य साधक की आंतरिक ऊर्जा को नियंत्रित करना और उसे शरीर के भीतर मौजूद विभिन्न चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) के माध्यम से परमात्मा की ओर बढ़ाना है।
- यह आत्मा को सांसारिक चीज़ों से मुक्त कर, साधक को ध्यान के गहरे अनुभव में लाने में सहायक होता है। इससे साधक का मन और आत्मा शुद्ध होती है, और उसे ईश्वर के अस्तित्व का सीधा अनुभव प्राप्त होता है।
3. मुख्य चरण और विधियाँ
(i) श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण (प्राणायाम)
- क्रिया योग में साँस की लयबद्धता और गति को नियंत्रित किया जाता है, जिसे प्राणायाम कहा जाता है। प्राणायाम का अर्थ है प्राण (जीवन ऊर्जा) और आयाम (नियंत्रण)।
- प्राणायाम के माध्यम से साधक अपनी सांसों को नियंत्रित करके शरीर और मस्तिष्क को शुद्ध करता है, जिससे ध्यान की गहराई बढ़ती है। श्वास-प्रश्वास को नियमित और शांत करके मन की चंचलता को कम किया जाता है।
(ii) ऊर्जा को जाग्रत करना और उसे चक्रों में प्रवाहित करना
- क्रिया योग के अंतर्गत साधक अपनी ऊर्जा को मस्तिष्क से लेकर रीढ़ की हड्डी तक स्थित चक्रों के माध्यम से संचालित करता है। इन चक्रों में प्रमुख हैं - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार चक्र।
- ऊर्जा को इन चक्रों में प्रवाहित करने के लिए श्वास के साथ ध्यान और मानसिक एकाग्रता का प्रयोग किया जाता है, जिससे प्रत्येक चक्र में संचित ऊर्जा सक्रिय होती है और साधक की चेतना को जाग्रत करती है।
(iii) क्रिया योग की मुख्य क्रिया: ऊर्ध्वगति (उर्ध्वरेता साधना)
- साधक अपनी चेतना को ऊर्ध्वगामी बनाने के लिए अपनी ऊर्जा को मूलाधार से सहस्रार तक चढ़ाता है। यह ऊर्ध्वगति क्रिया योग का एक मुख्य हिस्सा है।
- इस क्रिया के दौरान साधक अपनी सांसों के साथ, अपने चक्रों पर ध्यान केंद्रित करता है और ऊर्जा को रीढ़ की हड्डी के आधार से मस्तिष्क के शीर्ष तक ले जाने का प्रयास करता है। यह प्रक्रिया साधक के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बीच एक अद्वितीय ऊर्जा प्रवाह स्थापित करती है।
(iv) ब्रह्मरंध्र ध्यान
- क्रिया योग में सहस्रार चक्र (जो मस्तिष्क के शीर्ष पर स्थित है) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिसे ब्रह्मरंध्र भी कहते हैं। इसे भगवान का द्वार माना जाता है।
- इस ध्यान विधि में साधक अपनी चेतना को सहस्रार पर एकत्र करता है और अपने भीतर ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करता है। यह स्थिति गहरी ध्यानावस्था में साधक को ब्रह्मांडीय चेतना का अनुभव देती है।
(v) ओम ध्यान (ध्वनि साधना)
- साधक को अपनी चेतना को उस ध्वनि पर केंद्रित करना सिखाया जाता है, जिसे ओम कहा जाता है। ओम ध्यान से साधक को ईश्वर की दिव्यता का अनुभव होता है।
- यह ध्वनि मस्तिष्क में उत्पन्न होती है और ध्यान के दौरान साधक इस ध्वनि को सुनता है, जो उन्हें भीतर की गहराई में ले जाती है।
4. क्रिया योग का अभ्यास कैसे करें
प्रारंभिक तैयारी
- एक शांत और पवित्र स्थान चुनें जहाँ आपको कोई व्यवधान न हो। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए ध्यान की मुद्रा में बैठें।
- धीरे-धीरे श्वास को नियंत्रित करें, इसे गहरा और धीमा बनाते हुए मन को शांत करें।
चरणबद्ध प्रक्रिया
1. प्राणायाम का अभ्यास करें: पहले गहरी सांस लें और धीरे-धीरे छोड़ें। इससे मस्तिष्क और शरीर में प्राण शक्ति प्रवाहित होती है और मन एकाग्र होता है।
2. ऊर्जा प्रवाह पर ध्यान दें: श्वास-प्रश्वास के साथ-साथ अपनी चेतना को मूलाधार से लेकर सहस्रार चक्र तक ऊपर की ओर ले जाने का प्रयास करें।
3. चक्रों का ध्यान करें: हर चक्र पर थोड़ी देर के लिए ध्यान केंद्रित करें। इसके लिए अपनी चेतना को चक्र पर केंद्रित करें और महसूस करें कि ऊर्जा वहाँ प्रवाहित हो रही है।
4. सहस्रार पर ध्यान केंद्रित करें: अंत में सहस्रार (मस्तिष्क के शीर्ष) पर ध्यान केंद्रित करें। यहाँ पर चेतना को केंद्रित करने से ध्यान की गहराई बढ़ती है और साधक का ईश्वर से संपर्क मजबूत होता है।
5. ध्वनि ध्यान (ओम) का अभ्यास करें: मन में ओम की ध्वनि का अनुभव करें और उसमें खो जाएँ। यह ध्वनि ध्यान में गहराई लाता है।
5. क्रिया योग के लाभ
- मानसिक शांति: यह मन को शांत करता है और मानसिक अशांति को दूर करता है।
- शारीरिक स्वास्थ्य: शरीर के हर अंग और तंत्रिका तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जिससे स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: साधक के भीतर चेतना का विस्तार होता है, जो उसे आत्मज्ञान और ईश्वर के अनुभव की ओर ले जाता है।
- चक्र जागरण: चक्रों के जागरण से ऊर्जा संतुलित होती है, जिससे साधक के भीतर आंतरिक शक्ति बढ़ती है।
- समाधि की प्राप्ति: निरंतर अभ्यास से साधक समाधि की अवस्था प्राप्त कर सकता है, जिसमें आत्मा और परमात्मा के बीच कोई अंतर नहीं रहता।
6. क्रिया योग के अभ्यास में सावधानियाँ
- क्रिया योग का अभ्यास योग्य गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए, क्योंकि इसमें ध्यान और ऊर्जा का गहन अनुभव होता है।
- नियमितता और संयम का पालन करना आवश्यक है। इस साधना में धैर्य और अनुशासन बनाए रखना जरूरी है।
- किसी प्रकार का नकारात्मक विचार या भावना साधना में बाधा बन सकता है, इसलिए मन को सकारात्मक बनाए रखें।
क्रिया योग न केवल ध्यान की एक विधि है बल्कि आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर से मिलन की एक उत्कृष्ट साधना है। लाहिड़ी महाशय ने इस साधना को आम जन तक पहुँचाया ताकि हर व्यक्ति अपने जीवन में आत्मिक शांति, आंतरिक शुद्धि और ईश्वर का अनुभव प्राप्त कर सके।
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