लाओत्से (महान ऋषि)
"लाओजी "
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12/6/20241 मिनट पढ़ें
लाओत्से (Lao Tzu)
लाओत्से, जिन्हें लाओज़ी (Laozi) भी कहा जाता है, प्राचीन चीन के महान दार्शनिक और ताओवाद (Daoism) के संस्थापक माने जाते हैं। वे छठी या पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में जन्मे थे, हालाँकि उनके जीवन के बारे में ऐतिहासिक जानकारी सीमित और किंवदंतियों से घिरी हुई है। उनकी शिक्षाएँ और दर्शन "ताओ ते चिंग" (Tao Te Ching) नामक ग्रंथ में संकलित हैं, जो चीन के सबसे प्रभावशाली ग्रंथों में से एक है।
प्रारंभिक जीवन
लाओत्से का जन्म प्राचीन चीन के झोऊ राजवंश (Zhou Dynasty) के दौरान हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म "ली एर" नाम के साथ हुआ था। उनके बारे में एक लोककथा यह बताती है कि वे अपनी माँ के गर्भ में 62 साल तक रहे और जन्म के समय बूढ़े व्यक्ति जैसे दिखते थे। इस कारण उन्हें "लाओत्से" कहा गया, जिसका अर्थ है "महान वृद्ध"।
वे झोऊ राजवंश के शाही पुस्तकालय के संरक्षक थे। वहाँ उन्होंने चीनी संस्कृति, इतिहास, और दर्शन के गहन अध्ययन में समय बिताया। यह अनुभव उनके गहन ज्ञान और दर्शन का आधार बना।
ताओवाद का जन्म
लाओत्से का मुख्य योगदान "ताओ" (Dao) के विचार में है। "ताओ" का अर्थ है "मार्ग" या "सहज प्रवाह"। उन्होंने सिखाया कि जीवन का उद्देश्य प्राकृतिक प्रवाह के साथ सामंजस्य बनाना है। उनका मानना था कि मानवता को "वू-वेई" (Wu Wei) यानी "अप्रयासपूर्ण क्रिया" के सिद्धांत का पालन करना चाहिए, जिसमें प्रकृति के साथ सामंजस्य रखते हुए कार्य करना शामिल है।
लाओत्से ने यह भी सिखाया कि सच्चा ज्ञान भीतर से आता है और बाहरी दुनिया की इच्छाएँ और संघर्ष केवल अशांति का कारण बनती हैं।
झोऊ साम्राज्य छोड़ने की कहानी
एक प्रसिद्ध कहानी के अनुसार, लाओत्से झोऊ साम्राज्य के नैतिक और राजनीतिक पतन से निराश होकर वहाँ से चले गए। उन्होंने घोड़े पर सवार होकर पश्चिम की ओर प्रस्थान किया।
चीन की एक सीमा चौकी पर, वहाँ के अधिकारी यिन शी ने उन्हें जाने से पहले अपना ज्ञान लिखने के लिए कहा। इस पर लाओत्से ने "ताओ ते चिंग" की रचना की, जिसमें उन्होंने ताओ और जीवन के प्राकृतिक नियमों पर अपने विचार संक्षेप में प्रस्तुत किए। ग्रंथ पूरा करने के बाद, लाओत्से ने सीमा पार की और फिर कभी दिखाई नहीं दिए।
"ताओ ते चिंग" के प्रमुख सिद्धांत
ताओ (Dao): ताओ जीवन का वह मार्ग है, जो हर प्राणी और हर वस्तु में व्याप्त है। यह अनदेखा और अनिर्वचनीय है, लेकिन इसे अनुभव किया जा सकता है।
वू-वेई (Wu Wei): प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए बिना प्रयास के क्रिया करना।
सादगी और विनम्रता: जीवन को सरल और विनम्रता से जीना ही सच्ची शांति का मार्ग है।
द्वंद्व (Duality): दुनिया में हर चीज़ में द्वंद्व है, जैसे दिन और रात, जीवन और मृत्यु। सच्ची समझ तब आती है, जब हम इन दोनों के बीच सामंजस्य को स्वीकार करते हैं।
नेतृत्व के गुण: सच्चे नेता वे होते हैं जो विनम्रता से नेतृत्व करते हैं और दूसरों को अपने स्वाभाविक गुणों को प्रकट करने की अनुमति देते हैं।
लाओत्से और कन्फ्यूशियस की मुलाकात
ऐसा माना जाता है कि कन्फ्यूशियस, जो लाओत्से के समकालीन थे, उनसे मिले थे। कन्फ्यूशियस ने लाओत्से को "महान ऋषि" कहा। इस मुलाकात ने कन्फ्यूशियस के विचारों को गहराई से प्रभावित किया।
लाओत्से की विरासत
लाओत्से के विचार ताओवाद के रूप में विकसित हुए, जो आज भी चीन और दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रचलित हैं। ताओवाद न केवल एक दर्शन है, बल्कि यह एक धार्मिक प्रणाली भी बन गई। इसका प्रभाव बौद्ध धर्म और कन्फ्यूशीवाद पर भी देखा जा सकता है।
लाओत्से का संदेश
लाओत्से ने सिखाया कि शांति और संतुलन पाने के लिए मनुष्य को प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। उन्होंने अति महत्वाकांक्षाओं और बाहरी दिखावे से बचने की शिक्षा दी।
उनके शब्द आज भी गूंजते हैं:
"एक हजार मील की यात्रा एक कदम से शुरू होती है।"
लाओत्से का जीवन और दर्शन हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा ज्ञान, शांति और शक्ति भीतर से आती है, और हमें अपनी ज़िंदगी सरलता और स्वाभाविकता के साथ जीनी चाहिए।
लाओत्से के जीवन से जुड़ी कहानियाँ और घटनाएँ उनकी विचारधारा और दर्शन को समझाने में सहायक होती हैं। उनके जीवन से संबंधित कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ हैं, जो उनके ज्ञान, तर्कशीलता, और आध्यात्मिक गहराई को दर्शाती हैं। नीचे उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ दी गई हैं:
1. "ताओ का सत्य"
एक बार एक शिष्य ने लाओत्से से पूछा, "ताओ क्या है?"
लाओत्से ने मुस्कुराते हुए कहा, "ताओ को समझने के लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं। यह पानी की तरह है। पानी बहता है, न रुकता है, और हर बाधा को पार कर लेता है। लेकिन यह नम्र है, सदा नीचे की ओर बहता है।"
शिष्य ने फिर पूछा, "लेकिन ताओ को महसूस कैसे करें?"
लाओत्से ने उत्तर दिया, "ताओ को महसूस करने के लिए मन की शांति और सादगी आवश्यक है। जैसे पानी को देखने के लिए शांत झील चाहिए, वैसे ही ताओ को समझने के लिए शांत मन चाहिए।"
2. "कठिनाई और सरलता"
एक दिन, लाओत्से के पास एक व्यक्ति आया और बोला, "मेरा जीवन कठिनाईयों से भरा है। क्या कोई उपाय है जिससे मैं सुखी हो सकूँ?"
लाओत्से ने उत्तर दिया, "तुम पेड़ को देखो। जब वह बड़ा होता है, तो भारी आँधियों का सामना करता है। परंतु उसकी जड़ें इतनी मजबूत होती हैं कि वह डगमगाता नहीं। जीवन में कठिनाईयाँ जड़ों को मजबूत करने का साधन हैं। जो व्यक्ति सरलता से हर कठिनाई को स्वीकार करता है, वही सुखी हो सकता है।"
3. "कछुआ और जीवन का मूल्य"
एक बार लाओत्से नदी के किनारे बैठे हुए थे। एक मछुआरे ने उन्हें एक कछुए के बारे में बताया, जो सौ साल पुराना था और जिसकी खाल को राजमहल में पूजा के लिए ले जाया जा रहा था।
लाओत्से ने पूछा, "क्या कछुए को यह पसंद होता?"
मछुआरे ने कहा, "नहीं। वह तो नदी में स्वतंत्र रहना चाहेगा।"
तब लाओत्से ने कहा, "मनुष्य को भी वही चाहिए। जबरदस्ती किए गए सम्मान से अच्छा है कि वह अपनी स्वतंत्रता में जी सके।"
4. "सत्य का मूल्य"
लाओत्से की प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने उन्हें अपने दरबार का मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया।
लाओत्से ने मना कर दिया और कहा, "सत्य का मूल्य सुनहरी गद्दी पर बैठकर नहीं जाना जा सकता। जो अपनी सादगी में सत्य को खोजता है, वही वास्तविकता के करीब पहुँचता है।"
यह कहानी बताती है कि लाओत्से ने हमेशा सत्ता और धन से दूर रहकर सादगी और ज्ञान का मार्ग अपनाया।
5. "अज्ञान की महिमा"
एक दिन एक व्यक्ति लाओत्से के पास आया और बोला, "मैं बहुत बुद्धिमान हूँ। मैंने कई ग्रंथ पढ़े हैं और तर्कशास्त्र में पारंगत हूँ। फिर भी, मैं जीवन में शांति नहीं पा सका।"
लाओत्से ने उत्तर दिया, "अज्ञान कभी-कभी ज्ञान से बड़ा है। जब हम स्वीकार करते हैं कि हम सब कुछ नहीं जानते, तो हमारा मन सीखने के लिए खुला हो जाता है। शांति ज्ञान से नहीं, बल्कि विनम्रता से आती है।"
6. "ताओ का अभ्यास"
एक दिन, एक राजा ने लाओत्से से पूछा, "ताओ का अनुसरण कैसे करें?"
लाओत्से ने राजा से पानी का घड़ा माँगा।
उन्होंने उसे उल्टा कर दिया और पानी बहने लगा। फिर बोले, "पानी की तरह बनो। वह अपने मार्ग में आने वाली हर बाधा को सहजता से पार कर लेता है,और वह हर जगह पहुँचता है, बिना किसी अहंकार के।"
राजा ने इस उदाहरण से ताओ के मार्ग को समझ लिया।
7. "शक्ति और विनम्रता"
लाओत्से ने एक बार अपने शिष्यों को पेड़ों के एक बगीचे में ले जाकर कहा, "देखो, कौन-सा पेड़ सबसे मजबूत है?"
शिष्यों ने कहा, "वह जो सबसे बड़ा और सीधा है।"
तब लाओत्से ने एक आँधी का इंतजार किया। आँधी में सीधा पेड़ गिर गया, लेकिन झुकने वाला पेड़ बच गया।
तब लाओत्से ने समझाया, "शक्ति विनम्रता में है। जो झुकता है, वही स्थिर रहता है। जो कठोर है, वह टूट जाता है।"
8. "प्रसिद्धि का तिरस्कार"
जब लाओत्से ताओ ते चिंग लिखने के बाद कहीं गायब हो गए, तो उनके शिष्यों ने उन्हें ढूँढने की कोशिश की।
जब उन्हें एक गाँव में पाया गया, तो शिष्यों ने पूछा, "आपने हमें क्यों छोड़ दिया?"
लाओत्से ने उत्तर दिया, "तुम्हें मेरी आवश्यकता नहीं, बल्कि ताओ की आवश्यकता है। जो प्रसिद्धि और पहचान की ओर भागता है, वह ताओ से दूर हो जाता है।"
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