महात्मा _बुद्ध
सिद्धार्थ _गौतम
SAINTS
10/16/20241 मिनट पढ़ें
1. जन्म और प्रारंभिक जीवन
- जन्म: महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान में नेपाल) में हुआ था। उनका जन्म शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन और माता महामाया के यहाँ हुआ था। उनके जन्म का नाम सिद्धार्थ रखा गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धि प्राप्त करेगा"।
- राजकुमार जीवन: सिद्धार्थ का बचपन और युवा अवस्था राजकुमार के रूप में बहुत सुख-सुविधाओं में बीता। उनके पिता ने उन्हें जीवन के दुखों से बचाने के लिए महल के भीतर ही रखा, ताकि वह कभी संसार के कष्टों का सामना न करें। उन्होंने सिद्धार्थ की शादी यशोधरा नामक राजकुमारी से की, और उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया।
2. चार महादर्शन (चार दृश्य)
सिद्धार्थ की जीवन दिशा तब बदली जब उन्होंने महल से बाहर निकलने पर चार दृश्य देखे:
1. वृद्ध व्यक्ति: उन्होंने पहली बार एक बूढ़े व्यक्ति को देखा और जाना कि वृद्धावस्था अटल है।
2. बीमार व्यक्ति: एक बीमार व्यक्ति को देखकर उन्हें यह समझ में आया कि बीमारी भी जीवन का हिस्सा है।
3. मृत व्यक्ति: एक शव देखकर उन्हें मृत्यु के सत्य का बोध हुआ।
4. सन्यासी: एक संत को देखकर उन्हें यह अनुभव हुआ कि संसार में दुखों से मुक्ति का मार्ग हो सकता है।
इन चार दृश्यों ने सिद्धार्थ के मन में गहरे प्रश्न उठाए और उन्होंने अपने जीवन के सुख-भोगों को त्यागकर सत्य की खोज करने का निर्णय लिया।
3. सन्यास और ज्ञान की खोज
- सन्यास ग्रहण: 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ ने अपनी पत्नी, पुत्र और राजसी जीवन का त्याग कर सन्यास का मार्ग अपनाया। उन्होंने एक साधारण जीवन जीना शुरू किया और जंगलों में जाकर योगियों और तपस्वियों से ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया।
- अत्यधिक तपस्या: उन्होंने अत्यधिक कठोर तपस्या की, लेकिन उन्हें यह समझ में आया कि केवल शरीर को कष्ट देकर ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके बाद उन्होंने 'मध्यम मार्ग' (अति भोग और अति तपस्या दोनों से बचने का मार्ग) अपनाने का निश्चय किया।
4. ज्ञान प्राप्ति
- बोधगया में ज्ञान प्राप्ति: 35 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ गया (बिहार) पहुँचे और वहां एक पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठ गए। उन्होंने प्रण किया कि जब तक उन्हें पूर्ण ज्ञान नहीं प्राप्त होता, वे वहाँ से नहीं उठेंगे। कई दिनों तक ध्यान और आत्मनिरीक्षण करने के बाद, उन्होंने वैशाख पूर्णिमा के दिन 'बोधि' या पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया। इस घटना के बाद, उन्हें महात्मा बुद्ध (अर्थ: "जाग्रत" या "प्रबुद्ध") कहा गया।
- चार आर्य सत्य: ज्ञान प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्य (चार Noble Truths) की खोज की, जो उनके उपदेशों का आधार बने:
1. दुख का सत्य (दुःख सत्य): जीवन में दुख अनिवार्य है।
2. दुख के कारण का सत्य (समुदय सत्य): दुख का कारण तृष्णा (इच्छा) है।
3. दुख के निरोध का सत्य (निरोध सत्य): तृष्णा को समाप्त करने से दुख का अंत हो सकता है।
4. दुख निरोध के मार्ग का सत्य (मार्ग सत्य): दुख को समाप्त करने का मार्ग अष्टांगिक मार्ग (आठ अंगों वाला मार्ग) है।
5. अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path)
महात्मा बुद्ध ने दुखों से मुक्ति पाने के लिए अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी। इस मार्ग के आठ अंग निम्नलिखित हैं:
1. सम्यक दृष्टि: संसार के वास्तविक स्वरूप को समझना।
2. सम्यक संकल्प: सच्चाई और अहिंसा की भावना से संकल्प लेना।
3. सम्यक वाक्: सदाचरण युक्त वाणी बोलना।
4. सम्यक कर्मांत: सही कार्य करना और हिंसा, चोरी आदि से दूर रहना।
5. सम्यक आजीविका: धर्म के अनुकूल आजीविका अर्जित करना।
6. सम्यक व्यायाम: आत्म-संयम और बुरे विचारों को रोकने के प्रयास करना।
7. सम्यक स्मृति: मन को सतर्क और जागरूक रखना।
8. सम्यक समाधि: ध्यान के द्वारा मन की एकाग्रता प्राप्त करना।
6. धर्म प्रचार
- सारनाथ में पहला उपदेश: ज्ञान प्राप्ति के बाद, महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया। इसे 'धर्मचक्र प्रवर्तन' कहा जाता है, जिसका अर्थ है "धर्म का चक्र चलाना"। उनके पहले पाँच शिष्य थे, जो पहले तपस्वी थे और जिन्होंने उनकी तपस्या के समय उन्हें देखा था।
- उपदेशों का प्रसार: अगले 45 वर्षों तक महात्मा बुद्ध ने भारत के विभिन्न भागों में घूम-घूमकर अपने उपदेशों का प्रचार किया। उन्होंने धर्म का प्रचार किया, जिसमें अहिंसा, करुणा, सहिष्णुता और ध्यान के महत्व पर बल दिया। उनके शिष्य उन्हें तथागत (वह जो सत्य को प्राप्त कर चुका है) के नाम से संबोधित करते थे।
7. महापरिनिर्वाण
- मृत्यु: 80 वर्ष की आयु में महात्मा बुद्ध ने कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में अपने जीवन की अंतिम यात्रा की। उन्होंने वहाँ अपने शिष्यों को अंतिम उपदेश दिया और निर्वाण प्राप्त किया, जिसे महापरिनिर्वाण कहा जाता है। उनके महापरिनिर्वाण के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने उनके उपदेशों को संरक्षित किया और आगे फैलाया।
8. महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का प्रभाव
- बौद्ध धर्म: महात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ बौद्ध धर्म का आधार बनीं, जो आज दुनिया के कई देशों में प्रचलित है, विशेष रूप से दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में।
- अहिंसा: महात्मा बुद्ध की अहिंसा की शिक्षा ने बाद में महात्मा गांधी जैसे कई नेताओं को प्रेरित किया।
- ध्यान और योग: बुद्ध ने ध्यान को जीवन में मानसिक शांति और आत्म-निरीक्षण का महत्वपूर्ण साधन माना। आज भी बौद्ध ध्यान पद्धतियाँ जैसे विपश्यना और ज़ेन ध्यान बहुत प्रचलित हैं।
- सार्वभौमिकता और सहिष्णुता: बुद्ध की शिक्षाओं ने जाति, धर्म, और वर्ग के भेदभाव को समाप्त करने और सहिष्णुता का प्रचार किया।
महात्मा बुद्ध ने मानवता को सत्य की खोज और दुखों से मुक्ति पाने का मार्ग दिखाया। उनकी शिक्षाएँ न केवल उनके समय में बल्कि आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। उनका जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे आत्मनिरीक्षण, करुणा, और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को सच्चाई और शांति के मार्ग पर ला सकता है। महात्मा बुद्ध की विरासत आज भी जीवंत है और उनके उपदेश दुनिया भर में शांति, अहिंसा, और ध्यान के प्रतीक बने हुए हैं।
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