मानव शरीर
चक्र एवं नाड़ियाँ
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11/18/20241 मिनट पढ़ें
मानव शरीर का विस्तृत वर्णन: सभी नाड़ियों और चक्रों के साथ
मानव शरीर केवल भौतिक शरीर तक सीमित नहीं है; यह ऊर्जा और चेतना का भी केंद्र है। भारतीय योग और आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में अनेक नाड़ियां (ऊर्जा मार्ग) और चक्र (ऊर्जा केंद्र) होते हैं, जो हमारे जीवन और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
1. मानव शरीर का भौतिक पक्ष
मुख्य अंग प्रणाली (Organ Systems):
1. मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र (Nervous System):
- मस्तिष्क, मेरुदंड और नाड़ी तंत्र शरीर को नियंत्रित करते हैं।
- सोचने, समझने और कार्य करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
2. हृदय और परिसंचरण तंत्र (Circulatory System):
- हृदय रक्त को पूरे शरीर में पंप करता है।
- रक्त वाहिकाएं (धमनियां और शिराएं) ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को पहुंचाती हैं।
3. श्वसन तंत्र (Respiratory System):
- फेफड़े शरीर को ऑक्सीजन प्रदान करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं।
4. पाचन तंत्र (Digestive System):
- पेट, आंत, और यकृत भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
5. मूत्र तंत्र (Urinary System):
- गुर्दे और मूत्राशय अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालते हैं।
6. प्रजनन तंत्र (Reproductive System):
- जीवन की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार।
7. हड्डी और मांसपेशी तंत्र (Skeletal & Muscular System):
- हड्डियां शरीर को आकार और सहारा देती हैं।
- मांसपेशियां गति प्रदान करती हैं।
2. नाड़ियां (Energy Channels)
नाड़ियां ऊर्जा के वह मार्ग हैं, जिनके माध्यम से प्राण शक्ति (Life Force Energy) पूरे शरीर में प्रवाहित होती है।
मुख्य नाड़ियां:
1. इडा नाड़ी (Ida Nadi):
- चंद्रमा की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है।
- बाईं ओर स्थित है और ठंडी, शांत ऊर्जा प्रदान करती है।
- मानसिक और भावनात्मक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण।
2. पिंगला नाड़ी (Pingala Nadi):
- सूर्य की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है।
- दाईं ओर स्थित है और गर्म, सक्रिय ऊर्जा देती है।
- शारीरिक और मानसिक सक्रियता के लिए आवश्यक।
3. सुषुम्ना नाड़ी (Sushumna Nadi):
- इडा और पिंगला के बीच स्थित है।
- यह मेरुदंड से होकर गुजरती है और चक्रों को जोड़ती है।
- आध्यात्मिक जागरण का मार्ग।
अन्य नाड़ियां:
- योग शास्त्र के अनुसार, शरीर में 72,000 नाड़ियां हैं।
- इनमें से 14 नाड़ियां प्रमुख मानी जाती हैं, लेकिन इडा, पिंगला, और सुषुम्ना सबसे महत्वपूर्ण हैं।
3. चक्र (Energy Centers)
चक्र शरीर में ऊर्जा के वह केंद्र हैं, जहां नाड़ियां मिलती हैं। प्रत्येक चक्र का अपना महत्व, गुण, और प्रभाव है।
सात मुख्य चक्र और उनका वर्णन:
1. मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra):
- स्थान: रीढ़ के सबसे निचले हिस्से में।
- तत्व: पृथ्वी।
- गुण: सुरक्षा, स्थिरता, और जीवन ऊर्जा।
- मंत्र: "लं"।
- असंतुलन: भय, असुरक्षा, और शारीरिक कमजोरी।
2. स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthana Chakra):
- स्थान: नाभि के नीचे।
- तत्व: जल।
- गुण: सृजनात्मकता, कामुकता, और भावनात्मक संतुलन।
- मंत्र: "वं"।
- असंतुलन: भावनात्मक अशांति और संबंध समस्याएं।
3. मणिपुर चक्र (Manipura Chakra):
- स्थान: नाभि के ऊपर।
- तत्व: अग्नि।
- गुण: आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति, और शक्ति।
- मंत्र: "रं"।
- असंतुलन: आत्म-संदेह और पाचन समस्याएं।
4. अनाहत चक्र (Anahata Chakra):
- स्थान: हृदय के पास।
- तत्व: वायु।
- गुण: प्रेम, करुणा, और सामंजस्य।
- मंत्र: "यं"।
- असंतुलन: अकेलापन और संबंधों में समस्या।
5. विशुद्ध चक्र (Vishuddha Chakra):
- स्थान: गले के पास।
- तत्व: आकाश।
- गुण: अभिव्यक्ति, संचार, और सत्य।
- मंत्र: "हं"।
- असंतुलन: संवाद की कमी और गले की समस्याएं।
6. आज्ञा चक्र (Ajna Chakra):
- स्थान: भौंहों के बीच।
- तत्व: मन।
- गुण: अंतर्ज्ञान, आत्मज्ञान, और मानसिक स्पष्टता।
- मंत्र: "ओम"।
- असंतुलन: भ्रम और मानसिक तनाव।
7. सहस्रार चक्र (Sahasrara Chakra):
- स्थान: सिर के शीर्ष पर।
- तत्व: ब्रह्मांडीय ऊर्जा।
- गुण: आत्मज्ञान, ब्रह्मांड से जुड़ाव।
- मंत्र: मौन।
- असंतुलन: आध्यात्मिकता की कमी।
4. नाड़ियां और चक्रों का समन्वय
- नाड़ियां चक्रों के माध्यम से ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करती हैं।
- जब चक्र संतुलित होते हैं, तो व्यक्ति स्वस्थ, शांत, और ऊर्जावान महसूस करता है।
- चक्रों का असंतुलन शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक समस्याएं उत्पन्न करता है।
5. ऊर्जा संतुलन के उपाय:
1. ध्यान (Meditation):
- चक्र ध्यान द्वारा ऊर्जा का प्रवाह सुधारा जा सकता है।
2. प्राणायाम (Breathing Exercises):
- नाड़ियों की सफाई और चक्रों को सक्रिय करने के लिए।
3. मंत्र जाप (Mantra Chanting):
- प्रत्येक चक्र के मंत्र का जाप करना।
4. योगासन (Yoga Asanas):
- चक्रों को संतुलित करने के लिए विशेष आसन।
5. आहार और जीवनशैली (Diet and Lifestyle):
- सात्विक भोजन और सकारात्मक जीवनशैली।
मानव शरीर न केवल भौतिक, बल्कि ऊर्जा और चेतना का भी केंद्र है। नाड़ियों और चक्रों का ज्ञान हमारे जीवन में शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक संतुलन लाने में मदद करता है। इनका अभ्यास व्यक्ति को पूर्णता की ओर ले जाता है।
मानव शरीर के अंगों और नाड़ियों का संबंध
योग और तंत्र शास्त्र के अनुसार, मानव शरीर में नाड़ियां प्राण ऊर्जा के संवाहक हैं। इनका सीधा संबंध शरीर के विभिन्न अंगों और प्रणालियों से होता है। हर नाड़ी शरीर के विशिष्ट हिस्सों पर प्रभाव डालती है और उनके सही कार्य को सुनिश्चित करती है।
1. इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का अंगों से संबंध
(i) इड़ा नाड़ी (Ida Nadi):
- स्थान: शरीर के बाईं ओर।
- संबंधित अंग:
- बाईं आंख, बायां कान, बायां हाथ और पैर।
- मस्तिष्क का दायां भाग (रचनात्मक और भावनात्मक पक्ष)।
- प्रभाव:
- ठंडी ऊर्जा प्रदान करती है।
- मानसिक और भावनात्मक संतुलन में मदद करती है।
(ii) पिंगला नाड़ी (Pingala Nadi):
- स्थान: शरीर के दाईं ओर।
- संबंधित अंग:
- दाईं आंख, दायां कान, दायां हाथ और पैर।
- मस्तिष्क का बायां भाग (तर्क और सक्रियता)।
- प्रभाव:
- गर्म ऊर्जा प्रदान करती है।
- शारीरिक सक्रियता और जागरूकता बढ़ाती है।
(iii) सुषुम्ना नाड़ी (Sushumna Nadi):
- स्थान: रीढ़ की हड्डी के केंद्र में।
- संबंधित अंग:
- मेरुदंड, मस्तिष्क, और पूरे शरीर की ऊर्जा प्रणाली।
- प्रभाव:
- आध्यात्मिक ऊर्जा को सक्रिय करती है।
- कुंडलिनी जागरण और चेतना का विस्तार करती है।
2. अन्य प्रमुख नाड़ियां और उनके अंगों से संबंध
(iv) गांधारी नाड़ी (Gandhari Nadi):
- स्थान: बाईं आंख से जुड़ी।
- संबंधित अंग: बाईं आंख।
- प्रभाव: दृष्टि शक्ति को नियंत्रित करती है।
(v) हस्तिजिह्वा नाड़ी (Hastijihva Nadi):
- स्थान: दाईं आंख से जुड़ी।
- संबंधित अंग: दाईं आंख।
- प्रभाव: नेत्र स्वास्थ्य को संतुलित करती है।
(vi) पूषा नाड़ी (Pusha Nadi):
- स्थान: दाएं कान से संबंधित।
- संबंधित अंग: दायां कान।
- प्रभाव: सुनने की क्षमता और श्रवण स्वास्थ्य।
(vii) यशस्विनी नाड़ी (Yashaswini Nadi):
- स्थान: बाएं कान से संबंधित।
- संबंधित अंग: बायां कान।
- प्रभाव: श्रवण शक्ति और संतुलन।
(viii) अलंबुषा नाड़ी (Alambusha Nadi):
- स्थान: मुख से लेकर मलाशय तक।
- संबंधित अंग: पाचन तंत्र और मलाशय।
- प्रभाव: अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन को नियंत्रित करती है।
(ix) कुहू नाड़ी (Kuhu Nadi):
- स्थान: प्रजनन अंगों से जुड़ी।
- संबंधित अंग: गर्भाशय, अंडाशय, और अन्य प्रजनन अंग।
- प्रभाव: प्रजनन और यौन स्वास्थ्य।
(x) शंखिनी नाड़ी (Shankhini Nadi):
- स्थान: गले और मलाशय के बीच।
- संबंधित अंग: गला, फेफड़े, और मलाशय।
- प्रभाव: गले का स्वास्थ्य और शरीर के तरल संतुलन।
(xi) वरुणा नाड़ी (Varuna Nadi):
- स्थान: शरीर के जल तत्व को नियंत्रित करती है।
- संबंधित अंग: त्वचा और रक्त प्रवाह।
- प्रभाव: त्वचा की नमी और जल संतुलन।
(xii) विष्वोघा नाड़ी (Vishwodara Nadi):
- स्थान: यह ऊर्जा का बाहरी विस्तार करती है।
- संबंधित अंग: पूरे शरीर की ऊर्जा प्रणाली।
- प्रभाव: आत्मा का जागरण और बाहरी चेतना।
(xiii) ब्रह्मा नाड़ी (Brahma Nadi):
- स्थान: सुषुम्ना के भीतर।
- संबंधित अंग: मस्तिष्क और मेरुदंड।
- प्रभाव: कुंडलिनी शक्ति का उदय और आध्यात्मिक ज्ञान।
3. चक्रों और नाड़ियों का संबंध अंगों से
मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra):
- संबंधित अंग: रीढ़ की हड्डी, मलाशय।
- नाड़ी: सुषुम्ना।
स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthana Chakra):
- संबंधित अंग: प्रजनन अंग, मूत्राशय।
- नाड़ी: कुहू।
मणिपुर चक्र (Manipura Chakra):
- संबंधित अंग: नाभि, पाचन तंत्र।
- नाड़ी: अलंबुषा।
अनाहत चक्र (Anahata Chakra):
- संबंधित अंग: हृदय, फेफड़े।
- नाड़ी: शंखिनी।
विशुद्ध चक्र (Vishuddha Chakra):
- संबंधित अंग: गला, स्वर तंत्र।
- नाड़ी: वरुणा।
आज्ञा चक्र (Ajna Chakra):
- संबंधित अंग: मस्तिष्क, आंखें।
- नाड़ी: गांधारी, हस्तिजिह्वा।
सहस्रार चक्र (Sahasrara Chakra):
- संबंधित अंग: मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र।
- नाड़ी: ब्रह्मा।




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