ध्यान के बारे मे (कब, क्या, क्यों और कैसे)
Meditation Process
MEDITATION TECHNIQUES
11/25/20241 मिनट पढ़ें
1. ध्यान क्या है ?
ध्यान एक विधि है , जिसके द्वारा मानव की आत्मा परमात्मा से जुड़ती है । मानव आत्मा प्रतिदिन एक बार किसी भी समय प्रकृति प्रदत मिलन के द्वारा अपने आपको परमात्मा से जोड़ती है । यह समय ज़्यादातर गहरी नींद की अवस्था में होता है । इसी कारण बहुत सारे मानव इस क्रिया को जान या समझ नहीं पाते है । जब मानव आत्मा गहरी नींद की अवस्था के अतिरिक्त उस परमात्मा से होशपूर्ण या सजग रहकर जुड़ती है, इसी को ध्यान कहा गया है ।
2. ध्यान क्यों जरूरी है ?
मानव शरीर पाँच महाभूतों का प्रसार है। ये सभी महाभूत (भूमि, गगन, वायु, अग्नि, नीर ) शरीर का निर्माण स्थूल (Harware) रूप में करते है । इस स्थूल शरीर में पाँच महाभूतों को समानुपात में रखने के लिए दिन प्रतिदिन खाना पीना अनिवार्य है ।
जब कोई मानव अपनी संरचना को समझ कर, इसमें अपनी इच्छा अनुरूप कुछ बदलाव करना चाहता है । उसे ध्यान की विधियों का सहारा लेना पड़ता है । उदाहरण स्वरूप , आधुनिक कम्प्युटर , मोबाइल फोन जब कभी सही काम (हैंग) नहीं कर रहे होते है, इन्हें फिर से शुरू (reboot) किया जाता है और ये भली प्रकार से काम करने लगते है । ठीक इसी प्रकार जब मानव मन/शरीर सही काम करने में सक्षम नहीं होता है ,तब इसे भी ध्यान के द्वारा फिर से शुरू (reboot) किया जाता है ।
3. लोक और परलोक क्या है ?
लोक – ध्यान में मानव शरीर को ही लोक, लौकिक, शरीरी कहा गया है।
परलोक -मानव शरीर के जो परे है अर्थात जो शरीर से बाहर है, उसी को परलोक माना जाता है।
4. ध्यान के लिए क्या-क्या जरूरी है ?
Ø सर्वप्रथम साधक या ध्यानी को अपने अंदर ईर्ष्या कितनी है , किन-किन बातों से चिड़ बनती है, किस मानव या प्राणी से घृणा महसूस होती है, इसका पता लगाना होता है , और सजगता से समझना जरूरी है ।
Ø साधक को किसी नेता,अभिनेता, धर्मगुरु,कथावाचक और अन्य जैसे धर्म, संप्रदाय, जाति, रंग आदि का अनुसरण न करके स्वयं को ही अपना आदर्श मानना चाहिए। जैसे-जैसे आप साधना के शिखर की और बढ़ना शुरू करें, तब आप जिसको चाहे अपना आदर्श बना ले बाकी जरूरी नहीं है, आप स्वयं ही परमात्मा की विशिष्ट कृति है ।
Ø ध्यान के लिए किसी विशेष आयोजन,समय, स्थान और मुहूर्त की जरूरत नहीं होती है, जब चाहे, जिस समय,जहाँ कहीं भी ध्यान किया जा सकता है ।
Ø साधक को अपने शरीर के किसी भी हिस्से को सर्वश्रेष्ठ और निम्न नहीं मानना चाहिए । शरीर के सभी अंग महत्वपूर्ण है, मस्तिष्क, हाथ, पैर, हृदय, लिंग और योनि सभी समान है, सब का अपना-अपना कार्य निर्धारित है।
5. ज्ञान इंद्रियों का महत्व कितना है ?
सबसे पहले साधक को अपने शरीर की संरचना को भलीभाँति समझना जरूरी है। इस जगत के समस्त प्राणी एक दूसरे को जानने, जीवन के लिए सहायक अवयवों को ग्रहण करने के लिए ज्ञान इंद्रियों का प्रयोग करते है। मानव शरीर को चलाने के लिए मानव के पास पाँच ज्ञान इंद्रियाँ है जोकि मुख्य रूप से मानव मस्तिष्क के आस पास है, जैसे: आँख, कान, नाक, मुँह(जिह्वा) और त्वचा(गालों की) है।
पाँचों ज्ञान इंद्रियाँ अपने-अपने स्वभाव के अनुरूप कार्य करती रहती है, परंतु प्रत्येक शरीर में कोई एक प्रधान ज्ञान इंद्री का काम करती है। साधक को सर्वप्रथम प्रधान ज्ञान इंद्री का पता लगाना होता है।
Ø आँख- कोई साधक, यदि किसी वस्तु को एक बार देखकर ही याद रख लेता है, या अपनी स्मृति में संचित कर लेता है, उसके लिए प्रधान इंद्री आँख है।
Ø कान- कोई साधक, यदि किसी वस्तु को एक बार सुनकर ही याद रख लेता है, या अपनी स्मृति में संचित कर लेता है, उसके लिए प्रधान इंद्री कान है।
Ø नाक- कोई साधक, यदि किसी वस्तु को एक बार सूंघकर ही याद रख लेता है, या अपनी स्मृति में संचित कर लेता है, उसके लिए प्रधान इंद्री नाक है।
Ø मुंह(जिह्वा)- कोई साधक, यदि किसी वस्तु को एक बार चखकर ही याद रख लेता है, या अपनी स्मृति में संचित कर लेता है, उसके लिए प्रधान इंद्री मुंह(जिह्वा) है।
Ø त्वचा- कोई साधक, यदि किसी वस्तु को एक बार स्पर्श करके ही याद रख लेता है, या अपनी स्मृति में संचित कर लेता है, उसके लिए प्रधान इंद्री त्वचा है।
उपरोक्त पाँच इंद्रियों के हिसाब से जो साधक जिस इंद्री से सूचनाएँ स्मृति में एकत्रित करता है, साधक को उसी इंद्री से ध्यान शुरू करना चाहिए। ध्यान के द्वारा प्रारम्भ में अंतर्मन में संग्रहीत स्मृतियों को साफ किया जाता है। अर्थात जिस माध्यम से सूचनाएँ ग्रहण होती है, उसी से निवृत्त होती है।
दूसरा किसी साधक को दृश्य में, किसी को श्रवण में, किसी को सुगंध में, किसी को स्वाद में, और किसी को स्पर्श में अच्छा महसूस होता है। उसी इंद्री को प्रधान इंद्री जान सकते है।
6. आपको मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा और किसी अन्य धार्मिक स्थल पर अच्छा क्यों महसूस होता है?
जब किसी पूजा स्थल पर जाते है, वहाँ निम्नलिखित गतिविधियां दिखाई देंगी जो पाँच ज्ञान इंद्रियों को जोड़ने में सहायक रहती है।
Ø पूजा स्थल में किसी मूर्ति, पिंड, या किसी अन्य आकृति का निर्माण किया जाता है, सभी पूजा में सह भागीदार सज-धज कर आते है, जो आँख के लिए उत्तम होता है।
Ø पूजा स्थल पर कोई गीत, मंत्र, अजान या किसी अन्य वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है, जो कान के लिए उत्तम होता है।
Ø पूजा स्थल पर फूल, धूप, दीप, अगरबती, धूमणि, या अन्य खुशबूदार चीजों का प्रयोग होता है, जो नाक के लिए उत्तम होता है।
Ø पूजा स्थल पर किसी न किसी रूप में खाने की सामग्री सभी सह भागीदारों में वितरित की जाती है, जो मुंह (जिह्वा) के लिए उत्तम होती है।
Ø पूजा स्थल पर सभी आपसी भाई चारे के कारण एक दूसरे से हाथ मिलते है, गले मिलते है, जो त्वचा के लिए उत्तम होता है।
उपरोक्त कारणों से पूजा स्थल पर जाने से अच्छा महसूस होता है।
7. ध्यान कैसे शुरू करें ?
Ø ध्यान के लिए साधक को सबसे पहले अपने शरीर का ध्यान रखना है, न ज्यादा खाना है, न काम खाना है। प्यास लगे, पानी पीना, भूख लगे, खाना खाना, यदि शरीर के किसी अंग में खिंचाव महसूस हो, उसको दूर करना। शरीर पर धारण वस्त्रों, जूते, चपल के कारण यदि कोई कसाव है, उसको दूर करना।
Ø ध्यान प्रारम्भ में छोटी-छोटी ध्यान विधियों से शुरू करना चाहिए, जैसे यदि बैठे है, पैरो को ढीला छोड़े, सारा खिंचाव हटा दे।
Ø चलते हुये अपनी चल पर ध्यान दे, पहले तेज चले, ध्यान दे । एक बार धीरे चलने पर ध्यान दे। माध्यम गति से चले और ध्यान दे। तीनों को अच्छे से देखें और महसूस करें। ऐसा करने पर आपको एक अलग अनुभूति प्राप्त होगी।
Ø सांस लेने और छोड़ने के समय पेट से सारी हवा को, जहाँ तक संभव हो, पेट को स्वयं पिचकाकर बाहर निकाल दें। अर्थात हवा को बाहर छोड़ने पर ध्यान रखें न की सांस लेने पर।
Ø साधक को अपने अनुरूप ध्यान विधि का चयन करना है, जो विधि साधक आराम से कर ले, उसी विधि का प्रयोग करें। यदि किसी विधि के करने से तनाव बढ़ता है, तब वह विधि साधक के अनुकूल नहीं है, उसे छोड़ दे।
Ø उत्तम ध्यान करने के लिए निम्नलिखित को प्रयोग करे:
1. अपनी पसंद के 2-3 गाने सुने, ध्यान रखे, गाने के साथ गुनगुनाना नहीं है।
2. आराम से बैठकर या लेटकर आँखें बंद करें, ज्यादा ज़ोर नहीं लगाना है।
3. धीरे-धीरे हल्की-हल्की मुस्कान होंठों पर लाए और मुस्कान को बढ़ाते रहे।
4. अब आप अपनी दोनों आँखों के मध्यम भाग (जोकि नासिका का अग्र भाग भी कहलाता है) पर ध्यान दे, और इसमें आये खिंचाव को महसूस करें, तथा धीरे-धीरे इसको ढ़ीला छोड़े।
उपरोक्त 4 बिन्दु आपको किसी भी ध्यान विधि के प्रारम्भ करने से 2-3 दिन पहले जरूर करना है ।
8. ध्यान के बारे में मिथ्या बातें क्या-क्या है ?
Ø ध्यान के दौरान एकांत का होना जरूरी है।
Ø नशा करने वाले ध्यान नहीं कर सकते है।
Ø मांस खाने वाले ध्यान नहीं कर सकते है।
Ø ज्यादा काम वासना वाले ध्यान नहीं कर सकते है।
Ø ध्यान करने के लिए किसी विशेष धर्म, संप्रदाय या जाति का होना जरूरी है।
Ø ध्यान करने वाला परिवार छोड़ देता है।
Ø ध्यान करने से कोई पागल हो जाता है।
Ø ध्यान करने वाला अमर हो जाता है।
Ø ध्यान करने से दूसरों को काबू किया जा सकता है।
Ø ध्यान करने के लिए किसी साथी या गुरु की जरूरत होती है।
Ø ध्यान करने से धन, खजाना हासिल होता है।
Ø ध्यान करने से गरीबी दूर होता है।
उपरोक्त सभी निराधार बातें है, इन सभी को ध्यान में न रखे।
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