संत मीराबाई
प्रेम संग भक्ति
SAINTS
10/22/20241 मिनट पढ़ें
मीरा बाई
मीरा बाई, भारतीय भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख संत और कृष्ण भक्त कवयित्री रही है। उनका जन्म राजस्थान के मेड़ता में 1498 ईस्वी के आसपास हुआ था। उनके पिता रतन सिंह राठौड़ मेड़ता के राजा थे, और वे राठौड़ राजवंश से संबंधित थीं। मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के राजा भोजराज के साथ हुआ था, लेकिन उनका मन सांसारिक जीवन में नहीं लगा और उनका सारा जीवन भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित हो गया।
प्रारंभिक जीवन और विवाह:
मीरा बाई का कृष्ण के प्रति प्रेम बचपन से ही गहरा था। एक कथा के अनुसार, मीरा ने अपने बचपन में एक साधु से श्रीकृष्ण की मूर्ति प्राप्त की और उसी समय से वे कृष्ण को अपना पति मानने लगीं। विवाह के बाद भी मीरा का कृष्ण भक्ति में ध्यान लगा रहा। उनका वैवाहिक जीवन अधिक समय तक नहीं चला क्योंकि उनके पति भोजराज की मृत्यु युद्ध में हो गई।
पति की मृत्यु के बाद, मीरा पर परिवार से दबाव पड़ा कि वह पति के साथ सती हो जाए, जो उस समय का एक प्रचलित रिवाज था। लेकिन मीरा ने इस प्रथा को अस्वीकार कर दिया और अपने शेष जीवन को भगवान कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया। उनके इस निर्णय से परिवार में और समाज में भी उनका विरोध हुआ, लेकिन मीरा अपनी भक्ति के मार्ग से विचलित नहीं हुईं।
भक्ति और काव्य रचना:
मीरा बाई का जीवन भगवान कृष्ण की आराधना और भक्ति में लीन था। उन्होंने अपने भक्ति भाव को अभिव्यक्त करने के लिए अनेक भजन और पद रचे, जो आज भी भक्ति साहित्य का एक अमूल्य हिस्सा हैं। उनके भजन और पदों में श्रीकृष्ण के प्रति उनकी अटूट भक्ति, प्रेम और समर्पण झलकता है। उनकी कविताओं में सजीवता और सरलता होती है, जिससे वे जनमानस के दिलों में जगह बना लेती हैं।
मीरा बाई की काव्य रचनाएँ भारतीय भक्ति साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनके काव्य में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम, भक्ति, समर्पण, और वैराग्य की अभिव्यक्ति होती है। मीरा बाई का काव्य मुख्य रूप से अवधी, ब्रज भाषा, और राजस्थानी भाषा में लिखा गया है, लेकिन इनकी लोकप्रियता ऐसी है कि इनके भजनों का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में भी किया गया है।
मीरा बाई के काव्य की विशेषताएँ:
1. भक्ति भावना का अद्वितीय स्वरूप:
मीरा बाई के काव्य में उनकी श्रीकृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम प्रकट होता है। उनके गीतों में भक्त और भगवान के बीच एक अत्यंत व्यक्तिगत और प्रेमपूर्ण संबंध को चित्रित किया गया है। वे श्रीकृष्ण को अपना पति, मित्र, और आराध्य मानती हैं। उनका प्रेम सांसारिक प्रेम से परे, एक दिव्य प्रेम है जिसमें वे अपने आप को श्रीकृष्ण में समर्पित कर देती हैं। उनके प्रसिद्ध पदों में से एक है:
"मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।"
इसमें मीरा बाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति अपना पूर्ण समर्पण व्यक्त करती हैं और कहती हैं कि उनके जीवन में कृष्ण के अलावा और कोई नहीं है।
2. सहज भाषा और शैली:
मीरा बाई के काव्य की भाषा सरल, सहज और भावपूर्ण है। उन्होंने अपनी कविताओं में ब्रज भाषा, अवधी और राजस्थानी का मिश्रण किया, जो आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता का कारण बना। उनकी भाषा इतनी सरल है कि एक आम व्यक्ति भी उनके भजनों को समझ सकता है और उसमें अपने आप को खो सकता है। उनकी कविता के भावों की गहराई के बावजूद, उसमें कोई जटिलता या कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं है। यह उनके काव्य को अधिक प्रभावी और सजीव बनाता है।
3. वैराग्य और त्याग का संदेश:
मीरा बाई का काव्य केवल भक्ति नहीं बल्कि वैराग्य और त्याग का भी संदेश देता है। उन्होंने संसारिक बंधनों, रीति-रिवाजों और समाज की मान्यताओं को त्यागकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति को सर्वोपरि माना। उनके कई पदों में संसार के मोह-माया से मुक्ति और केवल ईश्वर में लीन होने का संदेश मिलता है। उदाहरण के लिए, वे कहती हैं:
"मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरि के गुण गावे।"
इस प्रकार के पदों में वे बताती हैं कि उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य केवल भगवान की भक्ति को बनाया है और संसारिक वस्तुओं और संबंधों से स्वयं को मुक्त कर लिया है।
4. प्रेम और विरह का भाव:
मीरा बाई के काव्य में प्रेम और विरह का भी बहुत सुंदर चित्रण मिलता है। वे कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन करते हुए कई बार विरह की पीड़ा भी व्यक्त करती हैं। यह विरह सांसारिक प्रेम का विरह नहीं बल्कि भगवान के साथ एकत्व प्राप्त न कर पाने की पीड़ा है। उनके पदों में इस पीड़ा और कृष्ण से मिलन की आकांक्षा का गहरा चित्रण मिलता है। उदाहरण के लिए:
"नैना भीतर आवत नैनन में बिरह जतन।
सूरत ढूंढत श्याम की प्रान बिना तन।"
इसमें मीरा बाई अपने आराध्य कृष्ण की अनुपस्थिति से उत्पन्न पीड़ा और उनकी खोज में व्याकुलता को व्यक्त करती हैं।
5. समाज के बंधनों का विरोध:
मीरा बाई के काव्य में समाज के बंधनों और परंपराओं के प्रति विरोध भी दिखाई देता है। उन्होंने उस समय के सामाजिक नियमों, विशेष रूप से महिलाओं पर लगाए गए प्रतिबंधों को चुनौती दी। उनका यह विरोध उनकी भक्ति में स्पष्ट रूप से झलकता है, जहाँ वे कहते हैं कि समाज चाहे जो भी कहे, वे अपने भगवान से अलग नहीं होंगी। वे अपने काव्य में स्पष्ट रूप से व्यक्त करती हैं कि उनके लिए समाज की अपेक्षाओं से अधिक महत्वपूर्ण श्रीकृष्ण की भक्ति है:
"माई री, मैं तो लियो गोविन्द मोल।"
इस पद में मीरा बाई कहती हैं कि उन्होंने समाज की परवाह किए बिना श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार बना लिया है, और वे उनके बिना कोई और रास्ता नहीं देखतीं।
6. आध्यात्मिक एकता और मानवता का संदेश:
मीरा बाई का काव्य केवल धार्मिक या भक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें आध्यात्मिकता और मानवता का गहरा संदेश भी मिलता है। उन्होंने जाति, धर्म, लिंग, और वर्ग के बंधनों को दरकिनार कर सबको एक समान दृष्टि से देखा। उनके अनुसार, सच्चा प्रेम और भक्ति किसी भेदभाव को नहीं मानता, और उन्होंने इसे अपने काव्य में कई बार स्पष्ट किया है। उनके भजन में सर्वसमावेशी भक्ति का स्वर प्रमुख है, जिसमें सभी लोग एक ही ईश्वर की संतान हैं।
मीरा बाई के काव्य के प्रमुख विषय:
1. कृष्ण भक्ति: मीरा बाई का काव्य मुख्य रूप से कृष्ण भक्ति पर आधारित है, जिसमें उन्होंने श्रीकृष्ण को प्रेमी, पति, आराध्य और मित्र के रूप में देखा है।
2. विरह: भगवान कृष्ण के बिना मीरा का हृदय विरह की पीड़ा से भर जाता है, और यह उनकी कई रचनाओं में प्रकट होता है।
3. समर्पण: मीरा का सम्पूर्ण जीवन और काव्य भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण की भावना से ओत-प्रोत है।
4. सामाजिक प्रतिरोध: मीरा ने अपने काव्य के माध्यम से समाज की कुप्रथाओं और बंधनों का विरोध किया और उन्होंने अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और भगवान कृष्ण की भक्ति को सर्वोपरि माना।
मीरा बाई के कुछ प्रमुख पद:
मीरा बाई के पद उनके गहन भक्ति भाव, श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और समाज के बंधनों से मुक्ति की भावना का जीवंत चित्रण करते हैं। उनके पद सरल, सहज, और भावपूर्ण हैं, जो आज भी भक्तों के हृदय में बसे हुए हैं। यहाँ कुछ प्रमुख पदों का वर्णन किया गया है:
1. पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
पद:
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।
जिन मिलिया मेरा मन हरषे, भयो सबेरा,
जुगल किशोर प्रभु दर्शन भयो, मोहि हरिप्रिय हृदय बसायो।
इस पद में मीरा बाई ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा और श्रीकृष्ण के रूप में पाए गए अनमोल धन का वर्णन किया है। वे इस पद में कहती हैं कि उन्होंने वह रत्न (भगवान कृष्ण) पा लिया है, जो अत्यंत मूल्यवान है और जिसे कोई बाहरी वस्तु नहीं छीन सकती। यह रत्न सतगुरु (सच्चे गुरु) की कृपा से मिला है। इस पद में उनकी भक्ति की गहराई, संतोष और आत्मिक शांति स्पष्ट रूप से प्रकट होती है। "राम रतन" यहाँ श्रीकृष्ण के प्रतीक के रूप में आया है, जो मीरा के जीवन का सबसे कीमती धन है।
2. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
पद:
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई,
छांड़ि दई कुल की कनक काया, लोकलाज खोई।
सांचो पिरत हमारो नंदलाल सोई।
इस प्रसिद्ध पद में मीरा बाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को अभिव्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि उनके जीवन में केवल गिरधर गोपाल (कृष्ण) ही हैं और कोई अन्य नहीं। वे अपने परिवार, समाज, और संसारिक बंधनों को त्याग चुकी हैं और अब केवल श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हैं। यह पद उनके सामाजिक बंधनों और परिवार से मुक्त होने के साहस को दर्शाता है, जहाँ वे सिर्फ कृष्ण को ही अपना पति, आराध्य और प्रिय मानती हैं।
3. माई री, मैं तो लियो गोविंद मोल
पद:
माई री, मैं तो लियो गोविंद मोल।
लोक लाज कुल कुल की कानी,
जग सों तोडि़यो डोल।
संतन ढिग बैठ बग लीन्यो,
छाडि दीन्यो बोल।
साधु संगत विप्रद अनूपा,
रतन न बीजै तोल।
अंधकार में दीपक बरे,
जिहि घट प्रेम अनोल।
इस पद में मीरा बाई श्रीकृष्ण को अपने जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु के रूप में प्रस्तुत करती हैं। वे कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण को "मोल" यानी खरीद लिया है और इसके लिए उन्होंने संसार की मान्यताओं, लोक लाज, और पारिवारिक संबंधों को छोड़ दिया है। मीरा यहाँ अपने प्रेम को अनमोल मानती हैं और उसे किसी भी सांसारिक वस्तु से बढ़कर बताती हैं। यह पद उनके साहस और कृष्ण भक्ति के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है, जहाँ वे समाज के सभी बंधनों को तोड़कर केवल ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाती हैं।
4. जो तुम तोड़ो पिया
पद:
जो तुम तोड़ो पिया, मैं नाहीं तोड़ूं रे।
तुम सांचो, मैं झूठी पिरती नाहीं तोड़ूं रे।
तुम बंधन काटो, मैं बंधी रहूं रे।
तुम साँची, मैं झूठी पिरती नाहीं तोड़ूं रे।
इस पद में मीरा बाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण से कहती हैं कि यदि वे भी उनका साथ छोड़ दें, तो भी मीरा उनका साथ नहीं छोड़ेंगी। यह उनके अडिग प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। पद में मीरा कहती हैं कि श्रीकृष्ण अगर संबंध तोड़ना चाहें, तो भी वे अपनी भक्ति में बंधी रहेंगी। इस पद में प्रेम की गहराई और निष्ठा का स्पष्ट वर्णन मिलता है, जहाँ मीरा भगवान के प्रति अपनी भक्ति को अटूट और अडिग बताती हैं।
5. उठो री सखी आज हरि आयो
पद:
उठो री सखी आज हरि आयो।
सुमिरो सुमिरो श्याम रंग प्यालो,
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
सोई तो अब आयो।
इस पद में मीरा बाई अपने सखियों से कहती हैं कि वे जाग जाएँ, क्योंकि श्रीकृष्ण उनके द्वार पर आ चुके हैं। यह पद उनके उस उल्लास और आनंद का प्रतीक है, जो भगवान के आगमन के प्रतीक रूप में प्रकट होता है। इसमें मीरा बाई ने अपने आराध्य के स्वागत की प्रसन्नता और हर्ष को बेहद भावुक तरीके से व्यक्त किया है। यहाँ श्याम रंग, यानी श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबने का संदेश मिलता है, जो मीरा के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।
संघर्ष और समाज द्वारा विरोध:
मीरा बाई का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था। उनके भक्ति के मार्ग और उनके सामाजिक बंधनों को तोड़ने के निर्णय से उनका परिवार और समाज उनके विरोध में हो गए। कहा जाता है कि मीरा के परिवार ने कई बार उन्हें कृष्ण भक्ति के मार्ग से हटाने की कोशिश की, लेकिन वे कभी भी विचलित नहीं हुईं। एक कथा के अनुसार, मीरा को जहर तक दिया गया था, लेकिन उन्होंने कृष्ण की कृपा से उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया और वे सुरक्षित रहीं।
अंतिम जीवन और मृत्यु:
मीरा बाई ने अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्ष वृंदावन और द्वारका में बिताए। कहा जाता है कि उनका भगवान श्रीकृष्ण के साथ आध्यात्मिक मिलन हुआ, और वे कृष्ण में ही लीन हो गईं। उनकी मृत्यु का सही समय और स्थान अनिश्चित है, लेकिन यह माना जाता है कि उन्होंने 1547 ईस्वी के आसपास अपना देह त्याग दिया।
मीरा बाई की भक्ति और विरासत:
मीरा बाई को उनकी कृष्ण भक्ति और उनके भजन-गीतों के लिए आज भी आदर के साथ याद किया जाता है। वे भारतीय भक्ति आंदोलन की सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध कवयित्रियों में से एक मानी जाती हैं। उनके जीवन ने यह संदेश दिया कि सच्ची भक्ति में कोई सामाजिक बंधन, जाति, लिंग या वर्ग की सीमा नहीं होती। उनके भजन आज भी भारत और दुनिया भर में गाए जाते हैं और उनकी भक्ति की गहराई से लोगों को प्रेरणा मिलती है।
मीरा बाई का जीवन प्रेम, त्याग और समर्पण की मिसाल है। उनका संघर्ष और समाज द्वारा अस्वीकार किए जाने के बावजूद, उन्होंने अपने मार्ग को नहीं छोड़ा और पूरी निष्ठा से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करती रहीं।
यह सामग्री इंटरनेट के माध्यम से तैयार की गयी है, ज्यादा जानकारी के लिए, उपरोक्त से संबन्धित संस्थान से सम्पर्क करें ।
उपरोक्त सामग्री व्यक्ति विशेष को जानकारी देने के लिए है, किसी समुदाय, धर्म, संप्रदाय की भावनाओं को ठेस या धूमिल करने के लिए नहीं है ।
हमारा उद्देश्य केवल सजगता बढ़ाना है ,हम जन साधारण को संतो, ध्यान विधियों ,ध्यान साधना से संबन्धित पुस्तकों के बारे मे जानकारी , इंटरनेट पर मौजूद सामग्री से जुटाते है । हम किसी धर्म ,संप्रदाय ,जाति , कुल ,या व्यक्ति विशेष की मान मर्यादा को ठेस नही पहुंचाते है । फिर भी जाने अनजाने , यदि किसी को कुछ सामग्री सही प्रतीत नही होती है , कृपया हमें सूचित करें । हम उस जानकारी को हटा देंगे ।
website पर संतो ,ध्यान विधियों , पुस्तकों के बारे मे केवल जानकारी दी गई है , यदि साधकों /पाठकों को ज्यादा जानना है ,तब संबन्धित संस्था ,संस्थान या किताब के लेखक से सम्पर्क करे ।
© 2024. All rights reserved.