संत मिलारेपा
हरी त्वचा मानव
SAINTS
11/8/20241 मिनट पढ़ें
संत मिलारेपा
संत मिलारेपा तिब्बती बौद्ध परंपरा के महान योगी, साधक और कवि रहे हैं । उनका जीवन कठिन तपस्या, आत्म-परिवर्तन, और गहन साधना की एक प्रेरणादायक कहानी है। वे 11वीं शताब्दी में तिब्बत में पैदा हुए थे और उनके जीवन का अधिकांश समय ध्यान, तप और ज्ञान की खोज में व्यतीत हुआ। मिलारेपा को विशेष रूप से उनकी बौद्धिक और आध्यात्मिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है, और वे आज भी तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों में आदर्श माने जाते हैं। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे आत्म-ज्ञान और सच्चे मार्ग पर चलकर हम अपने अतीत के पापों और गलतियों से मुक्त हो सकते हैं।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
मिलारेपा का जन्म तिब्बत के एक अमीर परिवार में हुआ था, लेकिन जब वे छोटे थे, उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके चाचा और चाची ने उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया और मिलारेपा, उनकी माँ और बहन को गुलामी जैसी स्थिति में रहने को मजबूर कर दिया। इस अन्याय और अत्याचार का मिलारेपा की माँ पर गहरा प्रभाव पड़ा, और उन्होंने अपने बेटे को काले जादू की शिक्षा लेने के लिए भेजा ताकि वे चाचा-चाची से बदला ले सकें।
मिलारेपा ने अपनी माँ के कहने पर काले जादू का अभ्यास किया और इस शक्ति से अपने चाचा-चाची और उनके परिवार को हानि पहुँचाई। लेकिन इन कार्यों के बाद, मिलारेपा को अपने कर्मों का अहसास हुआ, और वे इन बुरे कर्मों के कारण अपराध-बोध से भर गए। उन्हें समझ में आया कि उन्होंने नफरत और बदले की भावना में अपने जीवन को व्यर्थ कर दिया है। इसी समय, उनके भीतर आत्म-ज्ञान और मुक्ति की खोज की भावना जागृत हुई।
गुरु मारपा से भेंट
अपराध-बोध और पश्चाताप के कारण मिलारेपा ने अपने जीवन को सुधारने और सही मार्ग पर चलने का निर्णय किया। वे एक सच्चे गुरु की खोज में निकले और उनकी भेंट तिब्बती बौद्ध परंपरा के एक महान गुरु मारपा से हुई। मारपा एक महान योगी और शिक्षक थे और उन्होंने मिलारेपा की प्रार्थना को सुना, लेकिन उन्होंने मिलारेपा की परीक्षा लेने का निश्चय किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह सच्ची निष्ठा और समर्पण से साधना के लिए तैयार हैं।
मारपा ने मिलारेपा को कठोर परीक्षाओं से गुजारा। उन्होंने कई बार उनसे विशाल पत्थरों का ढेर उठवाया और उन्हें बिना किसी कारण के निर्माण कार्य करवाया। मिलारेपा ने गुरु के आदेशों को बिना किसी सवाल के पूरा किया और इस तरह अपनी भक्ति और समर्पण को साबित किया। मारपा ने अंततः उनकी निष्ठा को पहचाना और उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने मिलारेपा को योग और ध्यान की गहन शिक्षा दी।
कठोर तपस्या और साधना
मारपा के मार्गदर्शन में मिलारेपा ने कठोर तपस्या की। उन्होंने पर्वतों और गुफाओं में ध्यान करना प्रारंभ किया और लंबे समय तक एकांत में रहकर साधना की। वे साधारण जीवन जीते थे और अत्यंत साधारण भोजन का सेवन करते थे। उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि उनके शरीर का रंग हरा हो गया था, क्योंकि वे केवल जंगली जड़ी-बूटियों और घास पर निर्भर रहते थे।
कठोर साधना के बाद मिलारेपा ने आत्म-ज्ञान प्राप्त किया और उनके अंदर गहरी शांति और संतोष का भाव जागृत हुआ। वे अब अपने पिछले कर्मों से पूरी तरह मुक्त हो चुके थे और उनका जीवन सत्य, करुणा और मुक्ति का प्रतीक बन गया था। उनके पदों में उनके अनुभव, साधना के रहस्य और ज्ञान की झलक मिलती है।
मिलारेपा के शिक्षण और संदेश
मिलारेपा ने अपने जीवन के अनुभवों और साधना से प्राप्त ज्ञान को गाने के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया। उनके पद और गीत आज भी तिब्बती बौद्ध धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। उनके संदेश निम्नलिखित हैं:
1. पश्चाताप और आत्म-परिवर्तन
- मिलारेपा का जीवन इस बात का उदाहरण है कि कोई भी व्यक्ति चाहे जितने भी पाप कर चुका हो, सही मार्ग पर चलकर आत्म-परिवर्तन कर सकता है। उन्होंने यह दिखाया कि आत्म-साक्षात्कार से ही मनुष्य अपने दोषों से मुक्ति पा सकता है।
2. गुरु के प्रति समर्पण
- मिलारेपा ने गुरु मारपा के प्रति अटूट श्रद्धा और समर्पण दिखाया। वे मानते थे कि गुरु ही आत्मा के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश प्रदान कर सकते हैं।
3. वैराग्य और साधना का महत्व
- उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि आत्म-ज्ञान प्राप्ति के लिए वैराग्य और तपस्या जरूरी हैं। उन्होंने अपने जीवन में साधारण भोजन और वस्त्रों का ही सहारा लिया और पूरी तरह सांसारिक सुखों से दूर रहे।
4. करुणा और अहिंसा
- आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के बाद मिलारेपा ने अपने जीवन में करुणा और अहिंसा के मूल्यों को अपनाया। उन्होंने हर प्राणी के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखा, चाहे वह उनके शत्रु ही क्यों न हों।
5. साधना का मार्ग कठिन लेकिन संभव है
- उन्होंने बताया कि साधना का मार्ग कठिन है, लेकिन यदि दृढ़ता और समर्पण के साथ इस मार्ग पर चला जाए तो आत्म-ज्ञान अवश्य प्राप्त होता है। उनकी शिक्षाएँ उन सभी के लिए प्रेरणादायक हैं जो साधना और ध्यान के मार्ग पर चलने के इच्छुक हैं।
मिलारेपा की विरासत
मिलारेपा का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी तिब्बत और दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। उनके जीवन पर आधारित "मिलारेपा की जीवनी" तिब्बती बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। उनके पद और कविताएँ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए साधना और तपस्या की प्रेरणा का स्रोत हैं।
उनकी शिक्षाएँ हमें यह सिखाती हैं कि सही मार्ग पर चलकर और गुरु के प्रति समर्पण रखकर आत्मा के अज्ञान को दूर किया जा सकता है। उनका जीवन और उनकी साधना एक आदर्श के रूप में देखे जाते हैं, और वे आज भी बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं।
संत मिलारेपा के जीवन से जुड़ी कई कहानियाँ हैं, जो उनके जीवन के संघर्ष, उनके अपराध-बोध, तपस्या और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। ये कहानियाँ उनके जीवन के बदलाव और आत्म-साक्षात्कार को दर्शाती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कहानियाँ दी जा रही हैं:
1. काले जादू का उपयोग और पश्चाताप
जब मिलारेपा के पिता का निधन हो गया, तब उनके चाचा-चाची ने उनकी संपत्ति छीन ली और उनकी माँ और बहन के साथ दुर्व्यवहार किया। इस दुर्व्यवहार से आहत होकर उनकी माँ ने मिलारेपा से कहा कि वह काले जादू का अभ्यास कर उनके शत्रुओं से बदला लें। उन्होंने काले जादू की शिक्षा ली और इसका प्रयोग करते हुए अपने दुश्मनों को कष्ट पहुँचाया। किंतु इन बुरे कर्मों के बाद उन्हें बहुत पछतावा हुआ। इस पश्चाताप की भावना ने उन्हें साधना और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर प्रेरित किया।
2. गुरु मारपा की कठिन परीक्षाएँ
पश्चाताप की भावना से प्रेरित होकर मिलारेपा ने गुरु की तलाश शुरू की। उनकी भेंट एक महान योगी और शिक्षक मारपा से हुई। मिलारेपा ने मारपा से दीक्षा माँगी, लेकिन मारपा ने उन्हें तुरंत दीक्षा देने के बजाय कई कठिन परीक्षाएँ दीं। मारपा ने उनसे पत्थरों का ढेर उठवाया और कई बार घर बनाने और उसे गिराने का कार्य कराया। यह कार्य कठिन था और उन्होंने इसे बिना किसी प्रश्न के किया।
इन कठिनाइयों से मिलारेपा का आत्मबल और गुरु के प्रति निष्ठा और गहरी होती गई। आखिरकार, मारपा ने उनकी निष्ठा और तप को देखते हुए उन्हें ज्ञान की शिक्षा दी। इन कठिन परीक्षाओं से मिलारेपा ने यह समझा कि सच्चा आत्म-ज्ञान त्याग, सेवा, और सहनशीलता के द्वारा ही प्राप्त होता है।
3. अकेले गुफाओं में कठोर तपस्या
मारपा से शिक्षा प्राप्त करने के बाद, मिलारेपा ने पर्वतों और गुफाओं में जाकर साधना की। वे एकाकी जीवन जीने लगे और कठिन तपस्या करते हुए जीवन का अधिकांश समय ध्यान में बिताया। उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि वे केवल जंगली घास और जड़ी-बूटियाँ खाकर ही जीवित रहते थे। एक समय पर उनका शरीर इतना कमजोर हो गया कि उनकी त्वचा हरी पड़ गई थी।
उनके तप और साधना के कारण वे अपनी आत्मा के साथ गहरी पहचान करने में सक्षम हुए। उन्होंने समझा कि सभी प्राणियों के भीतर एक ही आत्मा है और इसी आत्म-ज्ञान से उन्हें परम शांति की प्राप्ति हुई।
4. शिष्य रीचुंगपा की शिक्षा
एक बार उनके शिष्य रीचुंगपा ने उनसे संसार के सुख और मोह को त्यागने की प्रेरणा चाही। मिलारेपा ने उसे कई शिक्षाएँ दीं, जिनमें उन्होंने साधक के लिए त्याग, आत्म-नियंत्रण और एकांतवास के महत्व पर जोर दिया। रीचुंगपा को उन्होंने जीवन के अस्थायित्व और माया के भ्रम को समझाया।
उन्होंने रीचुंगपा को एक दिन एकांत में ध्यान करने के लिए कहा। जब रीचुंगपा लौटे तो उन्हें अपने भीतर गहन शांति और प्रेम का अनुभव हुआ। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि गुरु के निर्देशों का पालन करते हुए साधना में लीन रहने से आत्मिक प्रगति संभव है।
5. स्वप्न में हड्डियों का टीला और ज्ञान प्राप्ति
एक दिन, मिलारेपा ने ध्यान करते हुए एक स्वप्न देखा जिसमें वे एक विशाल हड्डियों के टीले के ऊपर बैठे थे। इस स्वप्न से उन्होंने यह समझा कि संसार में हर एक व्यक्ति अंततः मृत्यु को प्राप्त होता है और सब कुछ नश्वर है। इस अनुभव ने उन्हें संसार के मोह से मुक्त कर दिया। उन्होंने अपने शिष्यों को यह शिक्षा दी कि जीवन क्षणभंगुर है और मृत्यु अपरिहार्य है, इसलिए सच्ची शांति की खोज में जीवन बिताना चाहिए।
6. शत्रुओं को क्षमा करने की शिक्षा
जब मिलारेपा आत्म-ज्ञान की ऊँचाइयों पर पहुँच गए, तब उनके उन शत्रुओं से सामना हुआ जिनके कारण उनका परिवार कष्ट में था। एक समय पर उनके पास बदला लेने का अवसर भी आया, लेकिन अब वे पूरी तरह से बदल चुके थे। उन्होंने अपने शत्रुओं को क्षमा कर दिया और उनके प्रति करुणा और दया का भाव रखा।
उन्होंने इस बात को समझ लिया था कि बदले की भावना केवल दुख को बढ़ाती है। उनके शत्रु उनकी करुणा और क्षमा से प्रभावित हुए और उन्होंने मिलारेपा के सामने आत्म-समर्पण किया। इस घटना से मिलारेपा ने अपने शिष्यों को यह शिक्षा दी कि बदला लेना कभी समाधान नहीं होता; क्षमा और करुणा ही सच्चा धर्म है।
7. परमात्मा का साक्षात्कार
एक गुफा में साधना करते समय मिलारेपा को परमात्मा का साक्षात्कार हुआ। उन्होंने अपने भीतर शांति, आनंद और एकता का अनुभव किया। इस अनुभव के बाद उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि ईश्वर कोई बाहरी शक्ति नहीं है, बल्कि प्रत्येक जीव के भीतर विद्यमान है। उन्होंने कहा, "सच्चा ज्ञान अपने भीतर की शांति को खोजना है।" उनके इस संदेश ने उनके शिष्यों और अनुयायियों को अपने भीतर ही ईश्वर को खोजने के लिए प्रेरित किया।
8. आत्मज्ञान के बाद माया का परीक्षण
आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद भी मिलारेपा के सामने माया का परीक्षण आया। एक बार साधना के दौरान एक सुंदर स्त्री उनके सामने आई और उन्हें मोहक प्रस्ताव दिए। लेकिन मिलारेपा ने अपने ध्यान और वैराग्य में स्थिरता रखी और इन प्रलोभनों से दूर रहे। उन्होंने इसे माया का परीक्षण माना और खुद को इससे बचाया। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि आत्मज्ञान के बाद भी साधक को माया से सचेत रहना चाहिए।
मिलारेपा के जीवन की ये कहानियाँ उनके तप, साधना, और उनके जीवन की बदलाव यात्रा को दर्शाती हैं। वे सिखाती हैं कि कैसे बुरे कर्मों से पश्चाताप, आत्म-परिवर्तन, और साधना के माध्यम से मुक्ति पाई जा सकती है। उनका जीवन आज भी बौद्ध धर्म में भक्ति, साधना, और आत्म-ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
संत मिलारेपा का धार्मिक संदेश आत्म-ज्ञान, करुणा, और वैराग्य पर आधारित था। उन्होंने अपने जीवन और शिक्षाओं के माध्यम से यह संदेश दिया कि सच्चा ज्ञान भीतर से ही आता है और इसके लिए कठिन साधना, समर्पण और आंतरिक शुद्धता की आवश्यकता होती है। उनके धार्मिक संदेश तिब्बती बौद्ध परंपरा के महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं। मिलारेपा के मुख्य धार्मिक संदेशों में शामिल हैं:
1. आत्म-परिवर्तन और पश्चाताप
- मिलारेपा का जीवन इस बात का प्रमाण है कि चाहे व्यक्ति ने कितने भी बुरे कर्म किए हों, आत्म-ज्ञान और पश्चाताप के माध्यम से जीवन को बदलना संभव है। उन्होंने अपने पिछले कर्मों पर गहरा पछतावा किया और आत्मा की शुद्धि के लिए कठोर तपस्या का मार्ग चुना। उन्होंने बताया कि आत्म-परिवर्तन ही मुक्ति का मार्ग है।
2. गुरु भक्ति का महत्व
- मिलारेपा का मानना था कि गुरु के बिना आत्म-ज्ञान प्राप्त करना कठिन है। उनके अनुसार, गुरु वह प्रकाश है जो साधक को अज्ञान के अंधकार से निकालता है। उन्होंने गुरु मारपा के प्रति अटूट श्रद्धा और निष्ठा दिखाई और यह संदेश दिया कि गुरु के निर्देशों का पालन और उनकी शिक्षाओं पर विश्वास रखना ही भक्ति का मार्ग है।
3. वैराग्य और साधना का मूल्य
- उन्होंने सांसारिक मोह-माया से दूर रहने और तपस्या के माध्यम से सच्ची शांति प्राप्त करने पर जोर दिया। उनके अनुसार, भौतिक सुखों और ऐश्वर्य में स्थाई आनंद नहीं होता। आत्म-ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने के लिए साधक को त्याग, संयम और वैराग्य अपनाना चाहिए।
4. माया और संसार की निस्सारता
- मिलारेपा ने संसार को माया और भ्रम बताया। उनके अनुसार, यह संसार अस्थायी है, और जो भी इसमें रचा-बसा है वह अंततः समाप्त हो जाता है। उन्होंने अपने शिष्यों को शिक्षा दी कि इस क्षणिक संसार में मोह को छोड़कर ईश्वर की खोज में ध्यान लगाना चाहिए।
5. करुणा और क्षमा
- आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के बाद, मिलारेपा ने अपने जीवन में करुणा और क्षमा का भाव अपनाया। उन्होंने अपने शत्रुओं को क्षमा कर दिया और अपने शिष्यों को भी यह शिक्षा दी कि क्रोध और बदला न केवल स्वयं को दुखी करता है, बल्कि हमारी आत्मा को भी अशांत करता है। उन्होंने कहा कि सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखना सच्ची साधना है।
6. भीतर के ईश्वर की खोज
- मिलारेपा का एक प्रमुख संदेश यह था कि ईश्वर या परमात्मा कोई बाहरी शक्ति नहीं है, बल्कि वह हमारे भीतर ही विद्यमान है। उन्होंने सिखाया कि आत्म-ज्ञान और ध्यान के माध्यम से ही हम अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को आंतरिक शांति को पाने और भीतर के ईश्वर को खोजने की प्रेरणा दी।
7. प्रकृति के प्रति सम्मान और सामंजस्य
- मिलारेपा अपने जीवन के अधिकांश समय गुफाओं, पर्वतों और प्रकृति के बीच बिताते थे। उनके संदेशों में प्रकृति के प्रति आदर और उसके साथ सामंजस्य बनाकर चलने का भी संकेत मिलता है। उन्होंने साधना के लिए प्राकृतिक स्थानों को चुना और यह माना कि प्रकृति स्वयं आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है।
8. साधना का मार्ग कठिन परंतु संभव है
- उन्होंने बताया कि साधना का मार्ग आसान नहीं है; इसमें समर्पण, त्याग और सहनशीलता की आवश्यकता होती है। उन्होंने अपने जीवन में कठोर तपस्या और गुरु की कठिन परीक्षाओं को सहन किया और इसी मार्ग पर चलकर आत्म-ज्ञान प्राप्त किया। उनके अनुसार, दृढ़ता और समर्पण के साथ इस मार्ग पर चलकर आत्मिक शांति प्राप्त की जा सकती है।
9. मृत्यु और अस्थायित्व का बोध
- मिलारेपा ने अपने शिष्यों को मृत्यु की अनिवार्यता का ज्ञान दिया और बताया कि जीवन अस्थायी है। उन्होंने सिखाया कि मृत्यु का बोध हमें अपने जीवन को आध्यात्मिकता और साधना की ओर मोड़ने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि मृत्यु से पहले ही आत्म-ज्ञान की प्राप्ति करना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।
10. स्वयं पर नियंत्रण और आंतरिक शक्ति का विकास
- मिलारेपा का मानना था कि व्यक्ति को अपने मन, इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए। आत्म-ज्ञान के लिए आत्म-नियंत्रण और आंतरिक शक्ति का विकास आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मन के भटकाव से बचने और स्थिरता बनाए रखने से ही साधक अपनी साधना में सफल हो सकता है।
निष्कर्ष
संत मिलारेपा के धार्मिक संदेश हमें आत्म-परिवर्तन, करुणा, वैराग्य, और गुरु भक्ति के महत्व को समझाते हैं। उनके अनुसार, जीवन का असली लक्ष्य आत्म-ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करना है। उनकी शिक्षाएँ आज भी तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों और साधकों को प्रेरित करती हैं। उनके संदेशों में शांति, प्रेम, और आत्मिक प्रगति का सार निहित है, जो किसी भी साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाने में सहायक हैं।
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