पेरियार ई. वी. रामास्वामी

NEW CHETNA

12/5/20241 मिनट पढ़ें

पेरियार ई. वी. रामास्वामी

पेरियार ई. वी. रामास्वामी (1879-1973) एक भारतीय समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, और नास्तिकतावादी विचारक थे, जिन्होंने तमिलनाडु में सामाजिक न्याय, समानता, और जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया। वे द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता थे और "पेरियार" का अर्थ "महान व्यक्ति" उन्हें उनके अनुयायियों ने सम्मान के रूप में दिया। उनका जीवन समाज में व्याप्त अन्याय, अंधविश्वास, और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है।

प्रारंभिक जीवन

पेरियार का जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के इरोड नामक गाँव में हुआ था। उनका परिवार वैष्णव धर्म को मानता था और आर्थिक रूप से सम्पन्न था। बचपन से ही उन्होंने जातिगत भेदभाव और धार्मिक पाखंड को देखा, जिससे उनके भीतर इन समस्याओं के खिलाफ विद्रोह की भावना जागृत हुई।

हालाँकि पेरियार को औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं मिल सकी, लेकिन वे एक प्रखर बुद्धिजीवी और समाज सुधारक बने।

धार्मिक यात्रा और विद्रोह

युवा अवस्था में पेरियार धार्मिक साधना की ओर आकर्षित हुए। वे वाराणसी (काशी) गए, जहाँ उन्होंने धार्मिक नेताओं और साधुओं द्वारा गरीबों और निचली जातियों के साथ होने वाले अन्याय को देखा। इस अनुभव ने उन्हें धर्म और उसकी सामाजिक असमानताओं के प्रति आलोचनात्मक बना दिया।
उन्होंने यह महसूस किया कि धर्म और जाति व्यवस्था शोषण का एक उपकरण हैं और इससे समाज को मुक्त करना आवश्यक है।

सामाजिक सुधार आंदोलन

पेरियार ने अपना जीवन ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई को समर्पित कर दिया। 1925 में उन्होंने "आत्मसम्मान आंदोलन" (Self-Respect Movement) की स्थापना की। इसका उद्देश्य निम्नलिखित था:

  1. जातिगत भेदभाव का उन्मूलन।

  2. महिलाओं को समान अधिकार दिलाना।

  3. धर्म और अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता फैलाना।

  4. द्रविड़ संस्कृति और भाषाओं को बढ़ावा देना।

द्रविड़ आंदोलन

1939 में पेरियार द्रविड़ कड़गम (Dravidar Kazhagam) नामक संगठन के प्रमुख बने। उन्होंने तमिलनाडु में द्रविड़ पहचान, सांस्कृतिक पुनरुत्थान, और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि भारत का ब्राह्मणवादी सामाजिक ढाँचा द्रविड़ों के शोषण का मुख्य कारण है।

महिला अधिकारों के लिए योगदान

पेरियार ने महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह, महिला शिक्षा, और दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। वे इस बात के प्रबल समर्थक थे कि महिलाएँ स्वतंत्रता और समानता के साथ अपना जीवन जी सकें।

नास्तिकता और तर्कवाद

पेरियार ने नास्तिकता और तर्कवाद को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि ईश्वर और धर्म के नाम पर समाज को धोखा दिया जाता है। उन्होंने मूर्ति पूजा, अंधविश्वास, और धार्मिक अनुष्ठानों का विरोध किया।

कृतियाँ और विचार

पेरियार ने अनेक लेख, भाषण, और पत्रिकाएँ लिखीं। उनकी प्रमुख रचनाओं में समाज सुधार और समानता के विषय प्रमुख हैं। उनकी पत्रिका कुदी अरसु (The Republic) ने सामाजिक न्याय के विचारों का प्रचार किया।

मृत्यु और विरासत

पेरियार का निधन 24 दिसंबर 1973 को हुआ। उनकी विरासत आज भी तमिलनाडु और पूरे भारत में जीवित है। द्रविड़ आंदोलन और तमिल राजनीति पर उनका प्रभाव अमिट है।

संदेश और प्रभाव

पेरियार का जीवन हमें यह सिखाता है कि सामाजिक न्याय, समानता, और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना अनिवार्य है। उनके विचार और कार्य आज भी भारत में सामाजिक सुधार के आंदोलनों को प्रेरित करते हैं।
वे न केवल तमिलनाडु बल्कि पूरे भारत में समानता और तर्कवाद के प्रतीक बने हुए हैं।

पेरियार ई. वी. रामास्वामी (1879-1973) के जीवन से जुड़ी कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ हैं, जो उनके साहस, सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता, और तर्कवादी दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। ये कहानियाँ उनके क्रांतिकारी विचारों और कार्यों का प्रतिबिंब हैं।

1. "मंदिर का भोजन और जातिगत भेदभाव"

जब पेरियार युवा थे, वे वाराणसी (काशी) गए। वहाँ उन्होंने एक मंदिर में "अन्नदान" (मुफ्त भोजन) का आयोजन देखा। लेकिन जब वे भोजन करने पहुँचे, तो उन्हें बताया गया कि यह केवल ब्राह्मणों के लिए है और अन्य जातियों को इसकी अनुमति नहीं।
इस भेदभाव से वे इतने आहत हुए कि उन्होंने भोजन ठुकरा दिया और इस घटना ने उनके भीतर सामाजिक असमानता के खिलाफ विद्रोह की भावना को प्रबल कर दिया।
काशी से लौटने के बाद उन्होंने जातिवाद के खिलाफ अपने जीवन को समर्पित करने का निश्चय किया।

2. "देवताओं का सच"

एक बार पेरियार ने पूछा, "यदि ईश्वर है, तो वह केवल ऊँची जातियों का ही पक्ष क्यों लेता है?"
लोगों ने जवाब दिया कि भगवान उन लोगों की मदद करते हैं जो मंदिर में पूजा करते हैं और दान देते हैं।
तब पेरियार ने कहा, "यदि ईश्वर केवल उन्हीं की मदद करता है जिनके पास धन है, तो वह गरीबों और दलितों का ईश्वर कैसे हो सकता है? यह स्पष्ट है कि ईश्वर का यह विचार केवल शोषण का माध्यम है।"
यह घटना उनके नास्तिक विचारों और मूर्ति पूजा के विरोध का आधार बनी।

3. "विवाह समारोह का विद्रोह"

पेरियार ने समाज में महिला अधिकारों और समानता को बढ़ावा देने के लिए दहेज प्रथा और ब्राह्मणवादी रीति-रिवाजों का विरोध किया।
एक बार, एक शादी समारोह में, उन्होंने देखा कि पंडित और अन्य लोग दूल्हे के परिवार से अत्यधिक दहेज और उपहारों की माँग कर रहे थे।
पेरियार ने उस शादी को रोक दिया और सार्वजनिक रूप से कहा, "यह विवाह नहीं, बल्कि एक व्यापार है।"
उन्होंने उस परिवार को बिना पंडित और रीति-रिवाजों के विवाह संपन्न करने की सलाह दी।

4. "समानता का पाठ"

एक सभा के दौरान, पेरियार ने लोगों को पानी से भरे दो घड़े दिखाए। उन्होंने एक पर "ब्राह्मण" और दूसरे पर "दलित" लिखा।
फिर उन्होंने दोनों घड़ों से पानी निकालकर लोगों को पीने के लिए कहा।
लोगों ने कहा कि दोनों घड़ों का पानी एक समान है।
तब पेरियार ने समझाया, "यदि पानी और हवा में कोई जाति नहीं है, तो इंसानों में जाति का भेद क्यों? यह भेदभाव मानवता के लिए घातक है और इसे समाप्त करना आवश्यक है।"

5. "मंदिर प्रवेश आंदोलन"

1920 के दशक में, पेरियार ने तमिलनाडु में "मंदिर प्रवेश आंदोलन" का नेतृत्व किया। यह आंदोलन उन लोगों के लिए था जिन्हें जाति के आधार पर मंदिरों में प्रवेश करने से वंचित किया जाता था।
एक बार, जब पेरियार ने दलितों के साथ मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की, तो ब्राह्मणों और उनके अनुयायियों ने इसका विरोध किया।
तब पेरियार ने कहा, "यदि ईश्वर केवल ब्राह्मणों का है, तो हमें उसकी कोई आवश्यकता नहीं। हमारा ईश्वर समानता और न्याय का प्रतीक होना चाहिए।"

6. "संपत्ति दान की घटना"

पेरियार ने अपनी संपत्ति और धन को द्रविड़ आंदोलन और सामाजिक सुधारों के लिए दान कर दिया।
जब लोगों ने उनसे पूछा कि वे अपनी संपत्ति अपने परिवार को क्यों नहीं देते, तो उन्होंने कहा, "संपत्ति समाज की भलाई के लिए है, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए। मेरा परिवार पूरा समाज है, न कि केवल कुछ लोग।"
यह उनकी निःस्वार्थता और समर्पण का उदाहरण है।

7. "मूर्ति तोड़ने की घटना"

एक बार पेरियार ने कहा, "ईश्वर की मूर्तियाँ केवल मनुष्य के दिमाग को गुलाम बनाने का साधन हैं।"
उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि मूर्तियाँ तोड़कर समाज को अंधविश्वास से मुक्त किया जाना चाहिए।
उनके इस विचार को लेकर विवाद हुआ, लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि "यदि मूर्ति सचमुच ईश्वर है, तो उसे अपनी रक्षा स्वयं करनी चाहिए।"
यह घटना उनके तर्कवादी दृष्टिकोण और अंधविश्वास के विरोध को स्पष्ट करती है।

8. "पेरियार और महिला समानता"

एक बार एक व्यक्ति ने पेरियार से कहा कि महिलाएँ केवल घर की शोभा होती हैं।
पेरियार ने उत्तर दिया, "यदि महिलाएँ केवल घर की शोभा हैं, तो समाज को बनाने और चलाने का कार्य कौन करेगा? महिलाएँ पुरुषों के बराबर हैं और उन्हें हर अधिकार मिलना चाहिए।"
इसके बाद उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, रोजगार, और स्वतंत्रता के लिए कई अभियान चलाए।

9. "धर्मग्रंथों का सवाल"

एक सार्वजनिक सभा में पेरियार ने पूछा, "क्या किसी ने यह देखा है कि वेदों और धर्मग्रंथों को ईश्वर ने स्वयं लिखा है?"
लोगों ने कहा, "नहीं।"
तब पेरियार ने कहा, "अगर ये धर्मग्रंथ मनुष्यों द्वारा ही लिखे गए हैं, तो इन्हें बदलना भी मनुष्यों का काम है। हमें ऐसे ग्रंथों को स्वीकार नहीं करना चाहिए जो असमानता और शोषण को बढ़ावा दें।"