प्राण की नदी – गहरे स्तर पर
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8/26/20251 मिनट पढ़ें
प्राण की नदी – गहरे स्तर पर
हिमालय की घाटी में एक गुरु और शिष्य थे – गुरु वेदांत और शिष्य अर्जुन। अर्जुन का मन भटकता था, वह साधना में बैठता तो उसके विचार रुकते नहीं। एक दिन उसने पूछा,
"गुरुदेव, यह मन कब शांत होगा? क्या कोई ऐसा सूत्र है जो मुझे भीतर की स्थिरता दे?"
गुरु मुस्कुराए, उसकी आँखों में देखते हुए बोले,
"मन की लगाम प्राण में है। प्राण वह सूक्ष्म धारा है जो शरीर, मन और आत्मा को जोड़ती है। आओ, आज मैं तुम्हें प्राणायाम की यात्रा पर ले चलता हूँ।"
चार अंगों की गहराई
1. प्राण की अनुभूति – श्वास को देखना सीखो
गुरु अर्जुन को एक प्राचीन गुफा में ले गए। वहाँ मौन था, केवल हवा की हल्की सरसराहट। गुरु ने कहा,
"पहले श्वास को महसूस करो। यह केवल हवा का आवागमन नहीं है, यह चेतना का स्पंदन है। जिस क्षण तुम श्वास को देखोगे, तुम अपने भीतर की यात्रा शुरू कर दोगे।"
अर्जुन ने अनुभव किया कि हर श्वास के साथ उसका शरीर और मन अलग-अलग स्वर में गा रहे हैं।
2. पूरक – जीवन को भीतर भरना
गुरु बोले,
"पूरक का अर्थ है प्राण को भीतर आमंत्रित करना। गहरी श्वास लो, जैसे धरती पानी पीती है। हर श्वास के साथ कल्पना करो कि प्रकाश की एक धारा भीतर उतर रही है, अंग-अंग को ऊर्जा से भर रही है।"
अर्जुन ने आँखें मूँद लीं और महसूस किया कि हर श्वास एक प्रकाशमय तरंग है, जो हृदय को, मस्तिष्क को और आत्मा को छू रही है।
3. कुम्भक – ऊर्जा का संचित होना
गुरु बोले,
"जब जल को बाँधते हैं तो वह शक्ति बनता है। वैसे ही कुम्भक है – श्वास को रोककर उस ऊर्जा को भीतर स्थिर करना। इस क्षण में मन अपनी जड़ों में लौटता है, इन्द्रियाँ शांत हो जाती हैं।"
अर्जुन ने पाया कि कुम्भक में एक अद्भुत निस्तब्धता है – जैसे समय रुक गया हो। इस शून्य में विचार पिघलने लगते हैं।
4. रेचक – शुद्धि और त्याग
गुरु बोले,
"अब श्वास को धीरे-धीरे छोड़ो। हर रेचक केवल कार्बन-डाइऑक्साइड नहीं निकालता, यह मन के विष, तनाव, भय और भारीपन को भी बाहर ले जाता है।"
अर्जुन ने देखा, हर श्वास छोड़ने पर भीतर हल्कापन और शांति बढ़ रही है।
5. शून्यक – मौन का स्पर्श
गुरु ने अंत में कहा,
"अब कुछ क्षण बिना श्वास के रहो। न भीतर, न बाहर। यह शून्यक है – वह दरवाज़ा जहाँ आत्मा और ब्रह्मांड एक होते हैं। यहाँ न समय है, न विचार। बस अस्तित्व है।"
अर्जुन ने इस क्षण में अनुभव किया कि वह शरीर और मन नहीं, बल्कि एक असीम आकाश है।
गहरा संदेश:
प्राणायाम केवल श्वास का अभ्यास नहीं है। यह जीवन की धारा को देखने, उसे दिशा देने और अंत में उसमें विलीन हो जाने की कला है।
पूरक – भरना, स्वीकारना।
कुम्भक – रोकना, संचित करना।
रेचक – छोड़ना, शुद्ध करना।
शून्यक – मौन में विश्राम करना।
यह अभ्यास केवल स्वस्थ शरीर या शांत मन के लिए नहीं, बल्कि आत्मा के स्पर्श के लिए है।
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