रमतै से राम फकीर

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10/11/20251 मिनट पढ़ें

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

चन्दन काट तेरा धूना लगवा दू जी, रंगमहल के बीच

कोए दिन याद रहोगे जी ।।1।।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

पाट पटनगड़ तेरी गुदड़ी सीला दू जी, हीरे जड़ा दू वां के बीच

कोए दिन याद रहोगे जी ।।2।।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

खीर खांड के बाबा भोजन बना दू जी, टोल जिमा दू महला बीच

कोए दिन याद रहोगे जी ।।3।।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

मैं तो जानू थी गुरु जी संग ले चलो जी, छोड़ गए अध बीच ।

कोए दिन याद रहोगे जी ।।4।।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

मीरा के रविदास गुरु है, पाछलै जन्म की हो म्हारी प्रीत ।

कोए दिन याद रहोगे जी ।।5।।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी ।

"रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी"
यह भजन भक्ति, विरह, और आत्मा की गुरु या ईश्वर के प्रति गहरी तड़प का प्रतीक है।
आइए इसे गहरे अर्थों में (भावार्थ + प्रतीकात्मक अर्थ) समझते हैं —

🌿 मुख्य भाव (सार)

यह एक भक्त का अपने गुरु या राम (परमात्मा) से संवाद है।
भक्त कहता है — “हे राम, हे फकीर (जो जगत से अलिप्त हैं), आप रमता फिरता जीवन जीते हैं,
लेकिन किसी दिन आपको मेरी याद आएगी…”
यह भजन “विरह भक्ति” की उस अनुभूति से भरा है जहाँ भक्त प्रेम से ईश्वर को पुकारता है —
कभी शिकायत की तरह, कभी समर्पण की तरह।

🩵 अंतः अर्थ और प्रतीकात्मक व्याख्या

🔹 रमतै से राम फकीर, कोए दिन म्हारे याद रहोगे जी।

"हे राम! आप तो फकीर हैं, रमता-जगता फिरते हैं,
पर एक दिन आपको भी हमारी याद आएगी।"

भावार्थ:
ईश्वर सर्वत्र है, लेकिन भक्त को लगता है कि भगवान उससे दूर चले गए हैं।
वह प्रेमपूर्वक कहता है — “आप भले ही रमता फिरिए, पर मेरा प्रेम आपको याद आएगा।”

प्रतीक अर्थ:
👉 “राम फकीर” — वह परमात्मा जो संसार में है पर आसक्त नहीं।
👉 “याद रहोगे जी” — भक्त का विश्वास कि उसका प्रेम ईश्वर तक पहुँचेगा।

🔹 चन्दन काट तेरा धूना लगवा दू जी, रंगमहल के बीच।

“मैं तेरा धूना (आसन) चन्दन से सजवा दूँ, रंगमहल के बीच रख दूँ।”

भावार्थ:
भक्त कहता है — “मैं तुझे सर्वोत्तम स्थान दूँगा, चन्दन और सुगंध से तेरी पूजा करूँगा।”
पर भीतर से उसका आशय बाहरी पूजा नहीं, अंतर-हृदय के मंदिर की सजावट है।

प्रतीक अर्थ:
👉 “चन्दन” = शुद्धता और सुगंध (अर्थात मन की निर्मलता)
👉 “धूना” = साधना की अग्नि
👉 “रंगमहल” = हृदय का मंदिर
➡️ भक्त कहता है: “मैं अपने मन-महल को सुगंधित करूँगा ताकि तू उसमें वास करे।”

🔹 पाट पटनगड़ तेरी गुदड़ी सीला दू जी, हीरे जड़ा दू वां के बीच।

“तेरी गुदड़ी मैं रेशमी कपड़े से सी दूँ, बीच में हीरे जड़ दूँ।”

भावार्थ:
भक्त का प्रेम इतना सरल और निष्कपट है कि वह अपने ईश्वर को गुदड़ीवाला फकीर समझकर भी उसकी सेवा में सर्वोत्तम वस्त्र अर्पित करना चाहता है।

प्रतीक अर्थ:
👉 “गुदड़ी” = साधारण तन या मन
👉 “हीरे” = भक्ति और प्रेम के रत्न
➡️ भक्त कहता है: “मैं तेरा आवरण प्रेम से सजाऊँगा — यह बाहरी नहीं, आंतरिक सज्जा है।”

🔹 खीर खांड के बाबा भोजन बना दू जी, टोल जिमा दू महला बीच।

“मैं खीर-खांड (मिठास) का भोजन बना दूँ और महलों में जिमा दूँ।”

भावार्थ:
भक्त अपने प्रभु के लिए सर्वोत्तम भोग बनाना चाहता है। परंतु इसका भी अर्थ प्रतीकात्मक है —
वह अपने मीठे विचारों, मधुर वाणी और पवित्र कर्मों से प्रभु को अर्पण करना चाहता है।

प्रतीक अर्थ:
👉 “खीर-खांड” = पवित्र भावनाएँ
👉 “भोजन” = साधना और सेवा
👉 “महल” = हृदय का शुद्ध प्रदेश
➡️ यह बाहरी भोग नहीं, अंतर-प्रेम की भेंट है।

🔹 मैं तो जानू थी गुरु जी संग ले चलो जी, छोड़ गए अध बीच।

“मैं तो समझी थी गुरुजी मुझे संग ले चलेंगे, पर वे बीच में ही छोड़ गए।”

भावार्थ:
यह पंक्ति विरह का शिखर है —
भक्त को लगता है गुरु या राम उसे जीवन-मार्ग पर साथ लेकर चलेंगे,
पर अब वे मौन हैं, अनुपस्थित हैं।
यहाँ “अध बीच छोड़ जाना” आत्मा की उस अवस्था को दिखाता है जब
साधना अधूरी रह जाती है, और भीतर शून्यता भर जाती है।

प्रतीक अर्थ:
👉 “गुरुजी” = दिव्य चेतना, मार्गदर्शक
👉 “अध बीच छोड़ना” = आत्म-विकास की परीक्षा की घड़ी
➡️ यहाँ ईश्वर परीक्षा ले रहा है — क्या भक्त प्रेम में स्थिर रहेगा बिना किसी प्रतिफल के?

🔹 मीरा के रविदास गुरु है, पाछलै जन्म की हो म्हारी प्रीत।

“जैसे मीरा के गुरु रविदास थे, वैसे ही हमारी प्रीत भी पिछले जन्म से है।”

भावार्थ:
भक्त अपने प्रेम को जन्म-जन्मांतर का बताता है —
यह कोई क्षणिक भावना नहीं, यह आत्मा का सनातन संबंध है।

प्रतीक अर्थ:
👉 “मीरा और रविदास” = शिष्य-गुरु की अमर भक्ति का उदाहरण
👉 “पाछलै जन्म की प्रीत” = आत्मा और परमात्मा का सनातन बंधन
➡️ भक्त कहता है: “हमारा यह मिलन कोई नया नहीं, यह युगों-युगों से चला आ रहा प्रेम है।”

🕊️ समग्र अर्थ (गहरी अनुभूति)

यह भजन भक्त की उस यात्रा का प्रतीक है जहाँ —

  • भक्ति सेवा से समर्पण तक जाती है,

  • प्रेम श्रृंगार से विरह तक पहुँचता है,

  • और गुरु-शिष्य का बंधन देह से आत्मा तक विस्तृत होता है।

भजन के “कोए दिन याद रहोगे जी” में
एक मीठी विरह की तान है — जैसे कोई प्रेमिका अपने प्रिय से कहे —
“तुम चाहे चले जाओ, पर मेरी याद तुम्हें कभी न भूल पाएगी।”

🪔 ध्यान-मनन के प्रश्न (Spiritual Reflection)

1. क्या मेरा “राम” मेरे भीतर का शांत, अलिप्त साक्षी नहीं है?

2. क्या मैं भी जीवन में “रमता फकीर” की तरह संसार में रहते हुए आसक्त नहीं हो सकता?

3. क्या मेरी साधना “चन्दन के धूने” जैसी सुगंधित है — या अभी उसमें धुआँ अधिक है?

4. जब ईश्वर या गुरु मौन हो जाएँ, तब क्या मैं अपने प्रेम में अडिग रह सकता हूँ?

5. क्या मेरा “प्रेम और भक्ति” भी किसी पिछले जन्म की निरंतरता है?