सूफी संत जलालुद्दीन मुहम्मद रूमी
"रूमी"
SAINTS
11/10/20241 मिनट पढ़ें
सूफी संत जलालुद्दीन मुहम्मद रूमी
सूफी संत जलालुद्दीन मुहम्मद रूमी, जिन्हें रूमी के नाम से जाना जाता है, का जन्म 30 सितम्बर 1207 को बाल्ख (अफगानिस्तान में वर्तमान में स्थित) में हुआ था। उनका जीवन इस्लामी रहस्यवाद, सूफीवाद और प्रेम की गहराई को समझने और उसे जीवन में उतारने के लिए समर्पित था। रूमी ने अपने जीवन में धार्मिक ज्ञान प्राप्त किया और सूफी संतों के संपर्क में आने के बाद एक आध्यात्मिक और प्रेममयी जीवन का मार्ग चुना।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रूमी के पिता बहाउद्दीन वालद एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान थे और अपने समय के विद्वान एवं धार्मिक मार्गदर्शक माने जाते थे। मंगोलों के आक्रमण के कारण रूमी का परिवार बाल्ख से स्थानांतरित होकर, पहले कई स्थानों पर गया और अंततः तुर्की के कोन्या शहर में बस गया। यहाँ उन्होंने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की और धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र, गणित, खगोल विज्ञान, और साहित्य में भी गहरी रुचि दिखाई।
सूफीवाद की ओर झुकाव
रूमी का जीवन बदलने वाला पल तब आया जब वे 1244 में एक सूफी संत शम्स तबरेज़ से मिले। शम्स ने रूमी को एक नए प्रकार की आध्यात्मिकता और प्रेम की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनकी शिक्षाओं ने रूमी के भीतर प्रेम और भक्ति का गहरा ज्वार उत्पन्न किया। शम्स के साथ उनकी आध्यात्मिक मित्रता ने उन्हें जीवन में सूफीवाद की ओर प्रेरित किया।
काव्य और लेखन
रूमी का सबसे प्रसिद्ध काव्य संग्रह मसनवी है, जिसे "इस्लामी संसार का कुरान" कहा जाता है। इसमें 25,000 से अधिक पद हैं, जो प्रेम, जीवन, ईश्वर, और आत्मज्ञान के गहन पहलुओं पर लिखे गए हैं। रूमी का काव्य सरल और गहरे अर्थ वाला है, जिसमें प्रेम, ईश्वर, और आत्मा की एकता की बातें की गई हैं। उनके अन्य प्रमुख रचनाओं में दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी भी शामिल है, जो शम्स के प्रति उनकी श्रद्धांजलि है।
म्रृत्यु और विरासत
रूमी का निधन 17 दिसंबर 1273 को कोन्या में हुआ, और उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने उन्हें "मेवलवी" या "मेवलेवी" नाम दिया। आज भी रूमी का संदेश और उनकी कविताएँ पूरी दुनिया में प्रेम और शांति का संदेश फैलाती हैं। उनकी कविताओं ने उन्हें एक सार्वभौमिक कवि बना दिया है, और उन्हें पश्चिमी और पूर्वी दोनों दुनिया में समान रूप से सम्मानित किया जाता है।
रूमी के जीवन से जुड़ी कई अद्भुत और प्रेरणादायक कहानियाँ हैं, जो उनकी आध्यात्मिक गहराई, प्रेम, और जीवन के प्रति उनकी दृष्टि को दर्शाती हैं। कुछ प्रमुख कहानियाँ निम्नलिखित हैं:
1. शम्स तबरेज़ से मुलाकात
रूमी की सबसे महत्वपूर्ण कहानी उनकी मुलाकात शम्स तबरेज़ से जुड़ी है। एक दिन, कोन्या के एक बाज़ार में शम्स तबरेज़ ने रूमी को देखा और उनसे एक प्रश्न पूछा: "कौन बड़ा है – पैगंबर मुहम्मद या बायज़ीद बस्तामी?" रूमी ने उत्तर दिया कि पैगंबर सबसे महान हैं, लेकिन शम्स ने उन्हें चुनौती दी कि क्यों बायज़ीद ने कहा था, "मेरा मैं अल्लाह से भरा हुआ है," जबकि पैगंबर ने हमेशा ईश्वर से और अधिक ज्ञान की प्रार्थना की। इस प्रश्न ने रूमी को झकझोर दिया, और इस घटना ने उनके आध्यात्मिक यात्रा की दिशा बदल दी। दोनों में इतनी गहरी मित्रता हो गई कि शम्स के साथ समय बिताने के कारण रूमी ने अपने परिवार और अनुयायियों से दूरी बना ली।
2. शम्स का अचानक गायब हो जाना
शम्स तबरेज़ और रूमी के गहरे संबंधों से रूमी के अन्य शिष्य और परिवार असंतुष्ट हो गए थे। एक दिन, शम्स अचानक गायब हो गए, और किसी ने उन्हें फिर कभी नहीं देखा। यह घटना रूमी के लिए बहुत पीड़ादायक थी। इस घटना के बाद रूमी ने अपने दर्द को कविता में उतारा और उन्हें यह समझ में आया कि ईश्वर के प्रति प्रेम की गहराई ने उन्हें शम्स के प्रेम में ढकेल दिया था। शम्स की अनुपस्थिति ने उन्हें ईश्वर की उपस्थिति का गहरा एहसास कराया, और इसी एहसास ने उनकी कविताओं में गहराई और प्रेम को जन्म दिया।
3. मौत का जश्न (उर्स)
रूमी जीवन में और मृत्यु में भी प्रेम और ईश्वर से मिलन के महत्व को मानते थे। उनके निधन के समय, उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था कि उनकी मृत्यु का शोक न मनाया जाए, बल्कि इसे एक जश्न के रूप में मनाया जाए क्योंकि यह दिन उनके लिए "प्रेमी से मिलन" का दिन होगा। इसे "उर्स" कहते हैं, जो आज भी रूमी की पुण्यतिथि पर उनके मकबरे पर मनाया जाता है। यह उनके जीवन की उस सोच को दर्शाता है जिसमें मृत्यु भी एक नई शुरुआत और परमात्मा से मिलन के रूप में देखी जाती है।
4. छात्र को आदर का पाठ
एक बार रूमी के पास एक विद्यार्थी आया और उनसे शिक्षा प्राप्त करने की विनती की। रूमी ने उसे पहले एक छोटी सी झोपड़ी बनाने को कहा और उसमें एक दीवार को अधूरी छोड़ देने के लिए कहा। जब उसने यह कार्य पूरा किया, तो रूमी ने उस छात्र से कहा, "जैसे इस दीवार में अधूरापन है, वैसे ही ज्ञान में भी एक अधूरापन होता है। जीवन में हमें हमेशा सीखते रहने की आवश्यकता है।" रूमी ने यह संदेश दिया कि हर व्यक्ति में कुछ नया सीखने और ग्रहण करने का स्थान होना चाहिए।
5. प्रेम की शक्ति की कहानी
रूमी प्रेम को परमात्मा का मार्ग मानते थे। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा, "प्रेम क्या है?" रूमी ने उसे कहा कि प्रेम का अनुभव केवल महसूस किया जा सकता है, समझाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा, "प्रेम एक ऐसी आग है जो हर चीज़ को मिटा देती है और केवल ईश्वर को ही छोड़ देती है।" रूमी ने जीवनभर प्रेम के संदेश को फैलाया और इसे ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिकता का आधार माना।
इन कहानियों के माध्यम से रूमी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ स्पष्ट होती हैं, जिनमें प्रेम, आध्यात्मिकता, और ईश्वर के प्रति समर्पण का संदेश है। उनकी कविताएँ और किस्से लोगों को जीवन के हर क्षण में प्रेम, सौहार्द, और आध्यात्मिकता की प्रेरणा देने के लिए आज भी पढ़े जाते हैं।
रूमी का धार्मिक संदेश, ध्यान की विधि, और उनकी रचनाएँ सूफीवाद के गहरे तत्वों को समझने में मदद करते हैं। रूमी का मुख्य संदेश प्रेम, आत्म-ज्ञान, और परमात्मा से एकता के इर्द-गिर्द घूमता है। उनका मानना था कि प्रेम ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सशक्त मार्ग है। आइए उनके संदेश, ध्यान विधि, और रचनाओं पर विस्तार से चर्चा करें।
1. रूमी का धार्मिक संदेश
रूमी का धार्मिक संदेश मुख्यतः प्रेम, ईश्वर के प्रति समर्पण, और जीवन की एकता पर आधारित था। उनके संदेश के मुख्य पहलू इस प्रकार हैं:
- ईश्वर से प्रेम और एकता: रूमी का मानना था कि ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध प्रेम का होता है। ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम व्यक्ति को हर प्रकार के भेदभाव, घृणा, और अहंकार से मुक्त कर देता है। रूमी ने यह संदेश दिया कि मनुष्य की आत्मा ईश्वर का ही अंश है और उसे अपने भीतर झांकने की आवश्यकता है।
- आत्म-ज्ञान: रूमी का यह भी मानना था कि आत्म-ज्ञान ईश्वर को समझने की कुंजी है। उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति अपने भीतर की ओर ध्यान लगाता है, तो उसे ईश्वर की उपस्थिति महसूस होती है। आत्म-ज्ञान और ध्यान से व्यक्ति अहंकार और भ्रम से मुक्त होकर एक सच्चा मार्ग पा सकता है।
- प्रेम और मानवता: रूमी ने प्रेम और करुणा को सबसे बड़ा धर्म माना। उनका कहना था कि सभी धर्मों और सभी लोगों के प्रति प्रेम रखना चाहिए, क्योंकि सच्चा प्रेम हमें सभी से जोड़ता है और ईश्वर के नजदीक ले जाता है।
- मृत्यु और पुनर्जन्म का दृष्टिकोण: रूमी के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा ईश्वर में विलीन हो जाती है। मृत्यु उनके लिए एक अंत नहीं बल्कि परमात्मा से मिलने का अवसर है। इसीलिए वे मृत्यु का जश्न मनाने की बात करते हैं, जिसे "उर्स" कहते हैं।
2. ध्यान विधि (ध्यान एवं मेवलेवी रिवाज)
रूमी ने ध्यान को आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण साधन माना। उनका ध्यान का तरीका एक अनोखा तरीका था, जिसमें संगीत और नृत्य का सहारा लिया जाता था। इसे "ध्यान नृत्य" या "मेवलेवी दरवेश नृत्य" कहा जाता है, जिसे "ध्यान नृत्य" भी कहते हैं।
- ध्यान नृत्य (समा): ध्यान नृत्य एक विशेष प्रकार का सूफी नृत्य है जिसमें भक्त गोल-गोल घूमते हैं। यह एक ध्यान की अवस्था होती है जिसमें संगीत के साथ घूमते-घूमते व्यक्ति एक गहरी ध्यान स्थिति में चला जाता है। इस प्रक्रिया में भक्त अपने चारों ओर के सारे विचार और इच्छाओं को त्याग देता है और अपने भीतर परमात्मा का अनुभव करता है।
- म्यूजिक (संगीत): रूमी और उनके शिष्य संगीत को ध्यान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते थे। संगीत और नृत्य के माध्यम से व्यक्ति की आत्मा उस स्थिति में पहुँचती है जहाँ वह ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण को महसूस कर सके।
- शरीर और आत्मा का संतुलन: ध्यान नृत्य के दौरान भक्त का शरीर और आत्मा एक संतुलित स्थिति में पहुँचते हैं। रूमी के अनुसार, इस नृत्य के माध्यम से व्यक्ति ईश्वर की ऊर्जा को अनुभव करता है, जिससे वह अपने भीतर की गहराई तक पहुँचता है।
3. रूमी की प्रमुख रचनाएँ
रूमी ने कई महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखी हैं, जो आज भी विश्वभर में पढ़ी और सराही जाती हैं। उनकी रचनाओं में आध्यात्मिकता, प्रेम, और भक्ति का संदेश गहराई से समाहित है। उनके प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित हैं:
- मसनवी-ए-मानवी: यह रूमी का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसे "मसनवी" के नाम से भी जाना जाता है। इसमें छह खंड हैं और इसे "इस्लामी संसार का कुरान" भी कहा जाता है। यह सूफी रहस्यवाद, जीवन के दर्शन और ईश्वर के प्रेम पर आधारित कविताओं का संग्रह है। मसनवी में 25,000 से अधिक पद हैं, और इसे सूफी साहित्य का एक उत्कृष्ट नमूना माना जाता है।
- दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी: यह काव्य संग्रह रूमी ने अपने प्रिय मित्र और गुरु शम्स तबरेज़ के प्रति समर्पित किया। इसमें रूमी की प्रेम, भक्ति और परमात्मा के प्रति उनकी गहरी संवेदनाओं का वर्णन है। दीवान में प्रेम की गहनता, आत्मा की पवित्रता, और ईश्वर के प्रति समर्पण के अनेक पहलू हैं।
- फीही मा फीही: यह एक प्रकार की रूमी की शिक्षाओं का संकलन है, जिसे उनके शिष्यों ने तैयार किया। इसमें रूमी के उपदेशों और प्रवचनों को संकलित किया गया है। "फीही मा फीही" का अर्थ है "जो इसमें है, वह उसमें है," जो उनके गूढ़ ज्ञान और आध्यात्मिकता को दर्शाता है।
- मकतूबात: यह रूमी के पत्रों का संग्रह है, जो उन्होंने अपने अनुयायियों और मित्रों को लिखे थे। इन पत्रों में भी उनकी आध्यात्मिक दृष्टि और जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण देखा जा सकता है।
रूमी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ हमें प्रेम, आत्म-ज्ञान, और ईश्वर के प्रति समर्पण का मार्ग दिखाती हैं। उनके द्वारा बताए गए ध्यान नृत्य और उनकी रचनाओं के माध्यम से उनके विचार आज भी दुनिया भर में लोगों को प्रेरित करते हैं। रूमी की कविताएँ, उनके संदेश और उनका ध्यान का तरीका सब एक ही उद्देश्य की ओर इशारा करते हैं—प्रेम के माध्यम से परमात्मा को पाना और जीवन की एकता का अनुभव करना।
रूमी की कविताएँ प्रेम, आत्म-ज्ञान, और ईश्वर के प्रति समर्पण की गहराइयों में डूबी हुई हैं। उनके काव्य में सूफीवाद का तत्व है जो ईश्वर से एकात्मता और अनंत प्रेम को दर्शाता है। उनकी कविताओं का यह अनोखा मिश्रण उन्हें अद्वितीय बनाता है।
रूमी की कुछ प्रमुख कविताएँ और उनके भावार्थ इस प्रकार हैं:
1. प्रेम की गहराई
"मैंने अपने आप से पूछा,
'तू प्रेम का किस हद तक अनुभव कर सकता है?'
जवाब में मेरे दिल ने कहा,
'प्रेम तो गहराई का नाम है।
डूबने का नाम है।'
मैं बहे जा रहा हूँ, अपनी सीमाओं को भूल,
क्योंकि प्रेम कोई सीमा नहीं जानता।"
इस कविता में रूमी ने प्रेम की अनंतता और उसकी गहराई का उल्लेख किया है। वे प्रेम को एक नदी की तरह मानते हैं जिसमें पूरी तरह से डूबकर ही उसका असली अनुभव किया जा सकता है। प्रेम की यह भावना केवल मानव प्रेम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परमात्मा से प्रेम का प्रतीक है।
2. ईश्वर की खोज
"मैं मंदिर में गया, मस्जिद में गया, गिरजाघर में गया,
कहीं उसे पाया नहीं।
मैं अपने दिल में गया, और पाया,
वह मेरे भीतर ही मौजूद था।"
रूमी इस कविता में यह संदेश दे रहे हैं कि ईश्वर बाहरी स्थलों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर होता है। वे कहते हैं कि ईश्वर की खोज करने के लिए हमें अपने दिल में झाँकना चाहिए। सभी धार्मिक स्थलों के बजाय, वे हमें आत्म-जागरूकता और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाते हैं।
3. मैं कौन हूँ?
"मैं न ईसाई हूँ, न यहूदी, न हिन्दू, न बौद्ध।
न पूर्व हूँ, न पश्चिम, न समुद्र हूँ, न भूमि।
मैं सिर्फ प्रेम का हूँ,
और प्रेम ही मेरा सच्चा धर्म है।"
इस कविता में रूमी स्वयं को सभी धार्मिक और भौगोलिक सीमाओं से परे बताते हैं। वे कहते हैं कि उनकी असली पहचान प्रेम है, और प्रेम ही उनका धर्म है। यह कविता धार्मिकता और सीमाओं से परे जाकर प्रेम की सार्वभौमिकता को व्यक्त करती है।
4. ध्यान में डूबना
"खामोशी का संगीत सुनो,
इसमें परमात्मा की आवाज़ है।
हर लम्हा खामोशी में डूब जाओ,
क्योंकि ईश्वर वहाँ रहता है।"
रूमी खामोशी को ध्यान की एक गहरी स्थिति मानते हैं, जहाँ व्यक्ति अपने भीतर के ईश्वर से संपर्क कर सकता है। इस कविता में रूमी ने ध्यान और शांति की शक्ति को व्यक्त किया है। वे खामोशी में ईश्वर की उपस्थिति महसूस करते हैं और इसे परमात्मा के सबसे करीब जाने का साधन मानते हैं।
5. शम्स तबरेज़ के प्रति प्रेम
"तू आया, और मेरे भीतर का सूनापन भर गया।
तू गया, और मेरी आत्मा में एक खालीपन छोड़ गया।
पर मैं जानता हूँ, यह प्रेम सिर्फ शरीर का नहीं है,
यह प्रेम आत्माओं का है, जो कभी समाप्त नहीं होगा।"
यह कविता रूमी के प्रिय मित्र और मार्गदर्शक शम्स तबरेज़ के प्रति उनकी गहरी भावनाओं को दर्शाती है। शम्स के साथ बिताए गए क्षणों ने रूमी को अपने भीतर प्रेम का स्रोत खोजने में मदद की। यह प्रेम शरीर के परे है और आत्मा की एकता को दर्शाता है।
6. मेरा प्रेम अनंत है
"तू जब मुझे नहीं देखता, तब भी मैं तेरा हूँ।
तू जब मुझसे दूर होता है, तब भी मैं तेरा हूँ।
मेरा प्रेम, मेरी आत्मा की तरह अमर है,
इसे कोई दूरी नहीं तोड़ सकती।"
इस कविता में रूमी का प्रेम की अनंतता और निस्वार्थता के प्रति दृष्टिकोण दिखाई देता है। उनका मानना है कि सच्चा प्रेम किसी भौतिक दूरी या समय से प्रभावित नहीं होता है। यह प्रेम हमारी आत्मा का हिस्सा है और हमेशा के लिए बना रहता है।
7. असली आत्मा की खोज
"जो कुछ तू समझता है कि तू है, उसे छोड़ दे।
असली तू वही है जो नहीं समझा जा सकता।
यह शरीर और यह सोच, सब तेरा आवरण है,
असली आत्मा तो शाश्वत है।"
रूमी इस कविता में आत्मज्ञान का संदेश देते हैं। वे कहते हैं कि हमारे विचार, हमारी पहचान, और यह शरीर केवल बाहरी आवरण हैं। सच्ची आत्मा इन सबसे परे है और इसे अनुभव करने के लिए हमें अपने भीतर झाँकना होता है।
रूमी की कविताएँ प्रेम, आत्म-ज्ञान, और ईश्वर के प्रति समर्पण का संदेश देती हैं। वे हमारे भीतर प्रेम और करुणा की भावना को जागृत करती हैं और हमें अपने भीतर की यात्रा पर ले जाती हैं। उनकी कविताओं में प्रेम और ध्यान की गहराई हमें जीवन के हर पहलू में ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव कराती है।
दरवेश नृत्य, जिसे "समा" या "ध्यान नृत्य" भी कहा जाता है, सूफी परंपरा का एक अद्भुत ध्यान तकनीक है। इस नृत्य का आरंभ रूमी और उनके अनुयायियों ने किया था। समा नृत्य का उद्देश्य आत्मा को ईश्वर से जोड़ना और उस परमानंद की स्थिति तक पहुँचना है, जहाँ व्यक्ति अपने सारे भौतिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। यह नृत्य एक प्रकार का ध्यान है जिसमें संगीत, शांति और नृत्य का अद्भुत संगम होता है।
दरवेश नृत्य की विधि इस प्रकार है:
1. तैयारी और परिधान
- नृत्य आरंभ करने से पहले सभी दरवेश सफेद लम्बा वस्त्र पहनते हैं, जिसे "तन्युरा" कहा जाता है, और सिर पर एक लंबी टोपी पहनते हैं जिसे "सिक्के" कहते हैं।
- सफेद वस्त्र जीवन के अंत का प्रतीक माना जाता है, जबकि टोपी कब्र के पत्थर का प्रतीक होती है। यह इस बात का प्रतीक है कि नृत्य के दौरान व्यक्ति अपनी सांसारिक पहचान को छोड़कर आध्यात्मिकता में प्रवेश करता है।
2. मंत्र का उच्चारण और प्रार्थना
- नृत्य की शुरुआत "फातेहा" (प्रारंभिक प्रार्थना) से होती है। यह प्रार्थना सूफियों के लिए आशीर्वाद की प्राप्ति का प्रतीक होती है।
- इसके बाद, सभी दरवेश एक गोले में खड़े होते हैं और गुरु की ओर झुककर सम्मान प्रकट करते हैं। यह समर्पण और अनुशासन का प्रतीक होता है।
3. संगीत और ताल का आरंभ
- समा में ढोल, बाँसुरी (नेय), और तानपुरा जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है। इन वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनि भक्तों को ईश्वर की ओर ले जाती है।
- संगीत धीरे-धीरे बढ़ता है और फिर स्थिर हो जाता है, ताकि दरवेश ध्यान की स्थिति में प्रवेश कर सकें।
4. घूमना और ध्यान की स्थिति
- दरवेश अपने दाएँ हाथ को ऊपर की ओर खोलते हैं, जैसे वे ईश्वर से ऊर्जा प्राप्त कर रहे हों, और बाएँ हाथ को नीचे की ओर रखते हैं, जो इस ऊर्जा को पूरे विश्व में बाँटने का प्रतीक है।
- इस मुद्रा में दरवेश एक ही स्थान पर खड़े-खड़े घूमना शुरू करते हैं। यह नृत्य गोल-गोल घूमते हुए चलता है, और इस दौरान दरवेश अपनी सांसों और हर घूम के प्रति जागरूक रहते हैं।
- नृत्य के दौरान दरवेश धीरे-धीरे अपनी गति बढ़ाते हैं और गहरे ध्यान की अवस्था में प्रवेश कर जाते हैं।
5. भौतिकता से परे जाना
- नृत्य के दौरान दरवेश बाहरी दुनिया को भूल जाते हैं और अपनी आत्मा के गहरे तल पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- दरवेश मानते हैं कि इस स्थिति में पहुँचने पर, उनके सारे भ्रम और अहंकार समाप्त हो जाते हैं और वे ईश्वर के करीब महसूस करते हैं।
6. अंतिम चरण और शांत स्थिति
- जब दरवेश नृत्य की चरम स्थिति में पहुँच जाते हैं, तो संगीत धीरे-धीरे बंद हो जाता है। सभी दरवेश रुक जाते हैं और अपने स्थान पर खड़े हो जाते हैं।
- वे कुछ क्षणों के लिए खामोशी में खड़े रहते हैं, ताकि उस शांतिपूर्ण और दिव्य स्थिति को महसूस कर सकें जो नृत्य के दौरान उन्होंने पाई।
- यह समय ध्यान का एक विशेष क्षण होता है, जिसमें दरवेश अपनी आत्मा में परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव करते हैं।
दरवेश नृत्य का महत्व
- ईश्वर से मिलन: दरवेश नृत्य का मुख्य उद्देश्य ईश्वर से मिलन और आत्मा की शुद्धि है।
- अहंकार का त्याग: नृत्य के दौरान दरवेश अपनी पहचान और अहंकार को छोड़कर, आत्मा की गहराई में प्रवेश करते हैं।
- दिव्य प्रेम का अनुभव: इस नृत्य में दरवेश ईश्वर के प्रति प्रेम को अपने पूरे शरीर और आत्मा से अनुभव करते हैं।
- मनोवैज्ञानिक और शारीरिक लाभ: नृत्य के माध्यम से वे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी प्राप्त करते हैं, क्योंकि यह नृत्य ध्यान की एक अवस्था है जो तनाव और चिंता को दूर करती है।
दरवेश नृत्य केवल एक भक्ति की क्रिया नहीं है, बल्कि एक ध्यान की उच्चतम स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपने मन, शरीर और आत्मा को परमात्मा के प्रेम में पूर्णतः खो देता है।
यह सामग्री इंटरनेट के माध्यम से तैयार की गयी है, ज्यादा जानकारी के लिए, उपरोक्त से संबन्धित संस्थान से सम्पर्क करें ।
उपरोक्त सामग्री व्यक्ति विशेष को जानकारी देने के लिए है, किसी समुदाय, धर्म, संप्रदाय की भावनाओं को ठेस या धूमिल करने के लिए नहीं है ।
हमारा उद्देश्य केवल सजगता बढ़ाना है ,हम जन साधारण को संतो, ध्यान विधियों ,ध्यान साधना से संबन्धित पुस्तकों के बारे मे जानकारी , इंटरनेट पर मौजूद सामग्री से जुटाते है । हम किसी धर्म ,संप्रदाय ,जाति , कुल ,या व्यक्ति विशेष की मान मर्यादा को ठेस नही पहुंचाते है । फिर भी जाने अनजाने , यदि किसी को कुछ सामग्री सही प्रतीत नही होती है , कृपया हमें सूचित करें । हम उस जानकारी को हटा देंगे ।
website पर संतो ,ध्यान विधियों , पुस्तकों के बारे मे केवल जानकारी दी गई है , यदि साधकों /पाठकों को ज्यादा जानना है ,तब संबन्धित संस्था ,संस्थान या किताब के लेखक से सम्पर्क करे ।
© 2024. All rights reserved.