संस्कार कैसे बनते है?

संस्कार और चेतना

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10/8/20241 मिनट पढ़ें

यहाँ संस्कारों की उत्पत्ति और उनके परिवर्तन पर एक गहन और चिंतनशील दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। इस लेख के अनुसार, संस्कार किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा पूरी तरह से दिए गए नहीं होते, बल्कि यह आंतरिक रूप से स्वयं उत्पन्न होते हैं। इसका आधार हमारे द्वारा ग्रहण किया गया भोजन, मानसिक स्थिति, कोशिकाओं की स्मृति और जीवन के अनुभवों पर आधारित होता है।

यहाँ कुछ मुख्य बिंदु हैं जो आपके द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को सार्थक रूप से प्रस्तुत करते हैं:

1. संस्कारों की उत्पत्ति और उनका स्रोत:

- संस्कारों का उद्गम उस भोजन से भी जुड़ा हुआ है, जिसे हम ग्रहण करते हैं। यह विचार बहुत गहरे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक आधार पर टिका हुआ है, कि अन्न की कोशिकाएं अपने साथ एक स्मृति लेकर आती हैं। जिस प्रकार अनाज अपने परिवेश की जानकारी संगृहीत करता है, उसी प्रकार वह स्मृति मानव शरीर में संगृहीत होती है और यह संस्कारों के निर्माण में योगदान देती है।

2. इच्छाओं की उत्पत्ति और उनका जीवन में प्रभाव:

- जीवित रहने की इच्छा,

- इंद्रिय सुख की इच्छा,

- धन-वैभव की इच्छा—ये तीन इच्छाएँ मनुष्य के जीवन का प्रारूप तैयार करती हैं। मन इन इच्छाओं के अनुसार हमारे आदतों, विचारों, और कल्पनाओं का निर्माण करता है, जिससे हमारी दिनचर्या और कर्म प्रभावित होते हैं।

3. भाव, विचार, क्रिया और कर्म:

- संस्कारों का मूल भाव से शुरू होता है, जो विचार में बदलता है, फिर वह विचार क्रिया में परिणत होता है, और अंततः वह क्रिया कर्म का रूप ले लेती है। इस प्रकार, कर्मों के आधार पर पाप और पुण्य का निर्धारण होता है।

- यहाँ एक महत्वपूर्ण बात यह है कि पाप और पुण्य की अवधारणा हमारी मानसिक स्थिति पर आधारित होती है। हमें यह समझना होता है कि हमें किसे पाप मानना है और किसे पुण्य, क्योंकि यह बाहरी मान्यताओं पर आधारित न होकर आंतरिक जागरूकता पर आधारित होना चाहिए।

4. संस्कारों में परिवर्तन और ध्यान का महत्व:

- संस्कार जन्म लेते हैं, परन्तु ध्यान और जागरूकता के माध्यम से इन्हें बदला भी जा सकता है। ध्यान के माध्यम से मन की स्थिति में बदलाव लाना और अपने संस्कारों को पहचानकर, उन्हें सकारात्मक दिशा में मोड़ना संभव है। यह प्रक्रिया आत्म-विश्वास और आत्म-जागरूकता पर आधारित है।

5. मंत्र का प्रयोग और आत्म-जागरूकता:

- यहाँ "मैं हूँ" मंत्र का उल्लेख किया है, जो आत्म-साक्षात्कार और आत्म-शक्ति को जागृत करने का एक सरल और प्रभावशाली साधन है। जब हम अपने अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, तो हम अपनी आंतरिक शक्ति से पुनः जुड़ते हैं, जिससे जीवन में संतुलन और सकारात्मक आती है।

निष्कर्ष:

संस्कारों की उत्पत्ति को समझना और उनका नियंत्रण प्राप्त करना एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है। यह हमें अपने जीवन में आत्म-जागरूकता और आत्म-नियंत्रण की ओर ले जाता है। ध्यान और आत्म-प्रेरणा के माध्यम से हम अपने संस्कारों को सकारात्मक दिशा में बदल सकते हैं, जिससे जीवन में आनंद, शांति और संतुलन स्थापित होता है।