संत बसवेश्वर (बासवन्ना)

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12/10/20241 मिनट पढ़ें

बसवेश्वर (बासवन्ना)

बसवेश्वर (बासवन्ना) कर्नाटक के महान संत, समाज सुधारक, और लिंगायत धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। उनका जीवन जातिवाद, अंधविश्वास, और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष और समानता, भक्ति, और नैतिकता के संदेश से भरा हुआ है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

  • जन्म: 1134 ईस्वी (अनुमानित)

  • जन्मस्थान: बागेवाड़ी, बीजापुर जिला, कर्नाटक

  • पारिवारिक पृष्ठभूमि: बासवन्ना एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन उन्होंने बचपन से ही जातिवाद और सामाजिक अन्याय को नकारा।

  • शिक्षा: उन्होंने कुडल संगम नामक स्थान पर वेद, शास्त्र और तर्कशास्त्र का अध्ययन किया।

सामाजिक और आध्यात्मिक विचार

बासवन्ना ने धार्मिक कट्टरता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई।

  • उन्होंने कहा कि "कर्म ही पूजा है" (कायाकवे कैलासा), जिसका अर्थ है कि मेहनत और ईमानदारी से किया गया कार्य भगवान की सेवा के समान है।

  • वे भगवान शिव के परम भक्त थे और लिंगायत धर्म के माध्यम से उन्होंने शिव की भक्ति का प्रचार किया।

कार्य और योगदान

  1. लिंगायत धर्म की स्थापना:

    • उन्होंने "इष्टलिंग" (एक प्रतीकात्मक शिवलिंग) की पूजा को बढ़ावा दिया।

    • उन्होंने यह सिखाया कि हर व्यक्ति के लिए भगवान शिव तक पहुँचने का मार्ग समान है।

  2. जातिवाद और सामाजिक समानता:

    • बासवन्ना ने समाज में व्याप्त जातिवाद और भेदभाव को नकार दिया।

    • उन्होंने समाज में महिलाओं और निम्न जातियों के लिए समान अधिकारों की वकालत की।

  3. अनुभव मंडप:

    • उन्होंने "अनुभव मंडप" नामक एक सभा स्थापित की, जहाँ सभी जाति और धर्म के लोग एकत्रित होकर धर्म, नैतिकता और समाज सुधार पर विचार-विमर्श करते थे।

    • यह सभा लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित थी और समाज सुधार की दिशा में एक बड़ी पहल थी।

  4. वचन साहित्य:

    • बासवन्ना ने "वचन" नामक कन्नड़ भाषा में छोटी-छोटी कविताएं लिखीं।

    • ये कविताएं सरल और गहन हैं, जो भक्ति और समाज सुधार का संदेश देती हैं।

जीवन के संघर्ष

  • बासवन्ना को उनके सुधारवादी विचारों के कारण विरोध का सामना करना पड़ा।

  • उनके समय के शासक और पारंपरिक ब्राह्मणवादी समाज उनके खिलाफ थे।

  • उनके विचार क्रांतिकारी थे, और उन्होंने न केवल धार्मिक परंपराओं को बदला, बल्कि सामाजिक ढांचे को भी चुनौती दी।

निधन

  • निधन: 1167 ईस्वी (अनुमानित)

  • उनका जीवन संघर्ष और सुधारों का प्रतीक रहा।

विरासत

  1. लिंगायत धर्म का प्रसार:

    • उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लिंगायत अनुयायियों द्वारा मान्य हैं।

    • लिंगायत समुदाय कर्नाटक और आसपास के क्षेत्रों में मुख्य रूप से पाया जाता है।

  2. बसव जयंती:

    • हर साल बसवन्ना की जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।

  3. प्रेरणा स्रोत:

    • बासवेश्वर की शिक्षाएं आज भी सामाजिक न्याय, समानता और भक्ति के लिए प्रेरणा देती हैं।

    • 2015 में, उनकी प्रतिमा को ब्रिटेन की संसद के सामने स्थापित किया गया, जो उनकी वैश्विक पहचान का प्रतीक है।

बासवन्ना का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि धर्म का उद्देश्य मानवता, समानता और सेवा है। उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था।

बसवेश्वर (बासवन्ना) के जीवन से जुड़ी कई प्रेरक और शिक्षाप्रद कहानियां हैं, जो उनकी आध्यात्मिकता, सामाजिक न्याय की भावना, और मानवता के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती हैं। ये कहानियां उनके चरित्र और विचारों की गहराई को समझने में मदद करती हैं।

1. "सोने की छड़ी" की कहानी

प्रसंग:
एक बार बासवन्ना ने देखा कि राजा के खजाने से एक सोने की छड़ी गायब हो गई है। खजाना संभालने वाले कर्मचारियों पर चोरी का संदेह किया गया।

घटना:
बासवन्ना ने कहा, "कर्मचारी पर संदेह करने के बजाय हम भगवान शिव से प्रार्थना करें। अगर कोई दोषी है, तो भगवान खुद इसे उजागर करेंगे।"
उन्होंने भगवान शिव के नाम पर एक जलता हुआ दीपक रखा और घोषणा की कि जो भी दोषी है, वह इस दीपक के पास नहीं टिक पाएगा।
गुनहगार ने अपनी गलती स्वीकार कर ली, और बासवन्ना ने उसे क्षमा कर दिया, यह कहते हुए कि "गलती करना स्वाभाविक है, लेकिन उसे सुधारना महानता है।"

संदेश:
यह कहानी सिखाती है कि न्याय और दया के साथ समाज को सही दिशा में ले जाया जा सकता है।

2. "गरीब महिला की भक्ति"

प्रसंग:
एक गरीब महिला बासवन्ना से मिलने आई। वह चाहती थी कि वह शिवलिंग के लिए दूध का दान करें, लेकिन उसके पास देने के लिए कुछ नहीं था।

घटना:
महिला ने अपने घर की दीवार को तोड़ा और उसमें छिपे एक बर्तन में रखा दूध लाकर बासवन्ना को दिया। बासवन्ना ने कहा, "तुम्हारी भक्ति और त्याग भगवान के लिए सबसे बड़ा दान है।"
उन्होंने दूध को शिवलिंग पर अर्पित किया और महिला को आशीर्वाद दिया।

संदेश:
यह कहानी भक्ति की सच्चाई और त्याग की महानता को दिखाती है।

3. "कर्म ही पूजा है" (कायाकवे कैलासा)

प्रसंग:
बासवन्ना के एक अनुयायी ने उनसे पूछा कि भगवान की सेवा का सबसे अच्छा तरीका क्या है।

घटना:
बासवन्ना ने उस अनुयायी से पूछा कि वह क्या काम करता है।
जब उसने जवाब दिया कि वह एक किसान है, तो बासवन्ना ने कहा, "अपने खेत को इस प्रकार देखो जैसे वह कैलाश पर्वत हो, और जो काम तुम करते हो, वह भगवान की पूजा हो।"
उन्होंने सिखाया कि मेहनत और ईमानदारी से किया गया कार्य ही सच्ची पूजा है।

संदेश:
कर्म को भगवान की पूजा मानने की शिक्षा ने समाज में श्रम के महत्व को उजागर किया।

4. "लिंग का महत्व"

प्रसंग:
एक बार एक व्यक्ति ने बासवन्ना से पूछा कि "इष्टलिंग" का क्या महत्व है।

घटना:
बासवन्ना ने एक साधारण पत्थर लिया और उसे व्यक्ति को दिया।
उन्होंने कहा, "इस पत्थर को अपना इष्टलिंग मानो और इसे अपने साथ रखो।"
कुछ समय बाद, व्यक्ति ने कहा कि अब वह पत्थर उनके लिए पवित्र बन गया है। बासवन्ना ने समझाया कि भगवान को देखने का तरीका आंतरिक भक्ति से होता है, न कि बाहरी दिखावे से।

संदेश:
यह कहानी दिखाती है कि सच्ची भक्ति बाहरी पूजा नहीं, बल्कि आंतरिक श्रद्धा है।

5. "जातिवाद का अंत"

प्रसंग:
बासवन्ना के समय में जातिगत भेदभाव बहुत प्रचलित था।

घटना:
एक बार बासवन्ना ने देखा कि एक दलित व्यक्ति मंदिर में प्रवेश नहीं कर पा रहा है।
उन्होंने कहा, "भगवान के लिए सभी समान हैं। अगर मंदिर में दलित नहीं आ सकता, तो मंदिर का कोई महत्व नहीं।"
उन्होंने सभी जातियों को "अनुभव मंडप" में आमंत्रित किया और उन्हें बराबर स्थान दिया।

संदेश:
यह कहानी सिखाती है कि समानता और भाईचारे का आदर्श हर समाज के लिए आवश्यक है।

6. "अनुभव मंडप में चर्चा"

प्रसंग:
बासवन्ना द्वारा स्थापित अनुभव मंडप एक ऐसा स्थान था, जहाँ समाज के सभी वर्गों के लोग धर्म, भक्ति, और जीवन के बारे में चर्चा करते थे।

घटना:
एक दिन एक धनी व्यक्ति ने अनुभव मंडप में गरीबों के साथ बैठने से इनकार कर दिया।
बासवन्ना ने कहा, "अगर तुम्हारी दौलत तुम्हें दूसरों के साथ बैठने से रोकती है, तो यह दौलत तुम्हारे लिए बेकार है।"
उस व्यक्ति ने अपनी गलती समझी और सभी के साथ बैठने के लिए तैयार हो गया।

संदेश:
यह कहानी दिखाती है कि घमंड का त्याग और समानता का आदर ही सच्चे धर्म का मार्ग है।

7. "वचन के माध्यम से शिक्षा"

बासवन्ना के वचन सरल लेकिन गहरे अर्थ वाले होते थे।

  • एक वचन में उन्होंने लिखा:
    "जो दूसरों का सम्मान नहीं करता, वह भगवान का सम्मान कैसे करेगा?"
    इस वचन ने समाज में मानवता और परस्पर सम्मान के महत्व को सिखाया।