संत चरणदास

भक्ति, ध्यान और गुरु भक्ति का एक अनूठा मार्ग

SAINTS

11/5/20241 मिनट पढ़ें

संत चरणदास

संत चरणदास जी एक महान संत, समाज-सुधारक और आध्यात्मिक गुरु थे। 18वीं शताब्दी में दिल्ली में जन्मे चरणदास जी ने समाज को सच्चे धर्म, मानवता और आचरण की शिक्षा दी। उनके शिष्य मंडल में कई प्रसिद्ध संत और भक्त शामिल हुए, जिनमें सहजोबाई जैसे संतों ने उनके संदेशों का प्रचार-प्रसार किया। चरणदास जी ने भक्ति, ध्यान और गुरु भक्ति का एक अनूठा मार्ग प्रस्तुत किया, जिसमें सांसारिक माया से दूर रहते हुए आत्म-ज्ञान की प्राप्ति पर जोर दिया गया।

चरणदास जी का जीवन

प्रारंभिक जीवन

संत चरणदास का जन्म दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे सांसारिक सुखों और भौतिक वस्तुओं से विरक्त थे। उन्होंने बाल्यकाल से ही धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और साधुओं-संतों की संगति में रहे। उनका हृदय भक्ति और ध्यान की ओर अत्यंत झुका हुआ था। उनके भीतर ईश्वर और गुरु के प्रति समर्पण का भाव बहुत गहरा था।

गुरु की खोज और साधना

चरणदास जी को ज्ञान की ओर बहुत रुचि थी, और इसी कारण उन्होंने विभिन्न गुरुओं के संपर्क में आकर अध्यात्म की गहरी समझ प्राप्त की। उन्होंने अपने भीतर की शांति और ज्ञान प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की। अपनी साधना के दौरान वे विभिन्न तीर्थ स्थानों पर भी गए, जहां उन्होंने अपने ज्ञान का विस्तार किया और ध्यान में गहरी अनुभूति प्राप्त की।

भक्ति मार्ग और संतत्व

साधना में पारंगत होने के बाद, चरणदास जी ने अपना जीवन मानवता की सेवा और भक्ति के प्रचार में समर्पित कर दिया। उनके अनुसार, भक्ति एक ऐसा मार्ग है जिसमें अहंकार का त्याग कर, प्रेम और करुणा से परिपूर्ण होकर आत्मा की मुक्ति पाई जा सकती है। उन्होंने भक्ति को किसी भी तरह के बाहरी आडंबर और दिखावे से दूर रख कर सादगी और आत्म-ज्ञान का मार्ग माना। उन्होंने बताया कि सच्चा धर्म आंतरिक पवित्रता और गुरु के प्रति सच्चे समर्पण में निहित है।

शिक्षाएँ और उपदेश

1. गुरु भक्ति

- चरणदास जी ने गुरु को जीवन का मार्गदर्शक और मोक्ष का साधन माना। उनके अनुसार, गुरु के बिना सच्चे ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है। वे कहते थे कि गुरु के चरणों में सच्चा सुख और शांति मिलती है। उनके शिष्यों में सहजोबाई जैसी संत भी शामिल थीं, जिन्होंने गुरु के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा और भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया।

2. माया से मुक्ति और संसार से वैराग्य

- चरणदास जी ने संसार और माया के प्रति वैराग्य का संदेश दिया। उनका मानना था कि माया या भौतिक वस्तुएँ हमें ईश्वर से दूर ले जाती हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को समझाया कि माया के जाल से मुक्त होकर ही आत्म-ज्ञान और ईश्वर की प्राप्ति संभव है।

3. सच्चे धर्म का पालन

- चरणदास जी ने बताया कि धर्म केवल बाहरी आडंबर नहीं है। उनका मानना था कि सच्चा धर्म वह है जिसमें प्रेम, करुणा, और सत्य का भाव हो। उन्होंने जाति-पाँति, ऊँच-नीच के भेदभाव से ऊपर उठकर सभी को एक समान देखने की शिक्षा दी।

4. आत्म-ज्ञान और साधना

- चरणदास जी का मानना था कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं, और अपने भीतर की यात्रा करके ही हम इस सच्चाई को समझ सकते हैं। उन्होंने साधना और ध्यान को आत्म-ज्ञान प्राप्ति का मार्ग बताया।

5. नैतिक आचरण और समाज सुधार

- चरणदास जी ने नैतिकता और आचरण में सुधार की शिक्षा दी। उन्होंने समाज में फैली बुराइयों जैसे अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव, और अन्य सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। उनके अनुसार, एक सच्चा संत वही है जो समाज को दिशा प्रदान करता है और नैतिक आचरण का पालन करता है।

चरणदास जी की वाणी और साहित्य

चरणदास जी ने भक्ति और अध्यात्म के मार्ग को सरल बनाने के लिए कई भजन, पद और शिक्षाएँ दीं। उनके उपदेशों को उनके शिष्यों ने संगृहीत किया, और उन्हें "चरणदास वाणी" के रूप में जाना गया। इस वाणी में उनके जीवन, भक्ति, गुरु महिमा, साधना और आत्मा के मार्गदर्शन की शिक्षाएँ संग्रहीत हैं। उनका साहित्य आज भी संत परंपरा के अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।

चरणदास जी की विरासत और योगदान

संत चरणदास जी का योगदान केवल भक्ति और गुरु भक्ति के प्रचार तक ही सीमित नहीं था, बल्कि वे समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने धार्मिकता को सच्चे प्रेम और सद्भाव में देखा, और यही कारण है कि उनके शिष्यों ने उन्हें एक संत और गुरु के रूप में गहरा सम्मान दिया। उनकी शिक्षाओं ने कई संतों और भक्तों को जीवन का मार्ग दिखाया, और उनकी वाणी आज भी संत परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

चरणदास जी का प्रभाव

चरणदास जी का प्रभाव सहजोबाई, सुंदरोबाई और अन्य संतों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। सहजोबाई ने चरणदास जी के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा व्यक्त की और उनके उपदेशों को अपनी वाणी में शामिल किया। चरणदास जी का भक्ति और साधना का मार्ग उनके शिष्यों के माध्यम से आगे बढ़ा और आज भी उनका योगदान भारतीय संत परंपरा में याद किया जाता है।

चरणदास जी का जीवन सादगी, करुणा, और प्रेम का उदाहरण था। उनके उपदेश आज भी भक्ति और आत्म-ज्ञान के पथ पर चलने वाले लोगों के लिए प्रेरणादायक बने हुए हैं।

संत चरणदास जी के जीवन से जुड़ी कई कहानियाँ हैं, जो उनकी करुणा, भक्ति, समाज सेवा और संतत्व का परिचय देती हैं। ये कहानियाँ उनकी शिक्षा और समाज के प्रति उनके अद्वितीय दृष्टिकोण को उजागर करती हैं। उनके जीवन से जुड़ी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ निम्नलिखित हैं:

1. गुरु भक्ति का आदर्श

एक बार संत चरणदास जी के पास उनके शिष्य सहजोबाई पहुँचीं। सहजोबाई को उनके प्रति गहरी श्रद्धा थी और वे उनके हर उपदेश को गंभीरता से सुनती थीं। एक दिन सहजोबाई ने चरणदास जी से पूछा कि गुरु का महत्व कितना है। चरणदास जी ने उत्तर दिया कि "गुरु ईश्वर से भी बढ़कर हैं, क्योंकि गुरु ही हमें ईश्वर से मिलाते हैं।" उन्होंने समझाया कि अगर साधक में गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण है, तो उसे भक्ति का असली अर्थ समझ में आ जाता है। सहजोबाई ने इसे गहराई से आत्मसात किया और अपने पदों में गुरु के प्रति इसी समर्पण को व्यक्त किया।

2. माया का भेद समझाना

एक अन्य अवसर पर, एक व्यक्ति चरणदास जी के पास आया और पूछने लगा, "महाराज, माया क्या है और यह हमें कैसे बांधती है?" चरणदास जी ने उस व्यक्ति से कहा, "तुम्हारे पास जो वस्त्र हैं, क्या वे तुम्हारी असल पहचान हैं?" व्यक्ति ने कहा, "नहीं, ये तो मेरे बाहरी वस्त्र हैं।" चरणदास जी बोले, "जिस तरह ये वस्त्र तुम्हारी पहचान नहीं हैं, उसी तरह माया भी हमारी आत्मा का असली स्वरूप नहीं है। यह एक आवरण है, जो हमें हमारे सच्चे आत्मस्वरूप से दूर रखती है।" इस प्रकार चरणदास जी ने सरल शब्दों में माया के बारे में समझाया।

3. भिक्षा में दान का अद्वितीय दृष्टिकोण

चरणदास जी एक बार अपने शिष्यों के साथ भिक्षा माँगने निकले। एक अमीर व्यक्ति ने उन्हें दान के रूप में सोने के सिक्के देने चाहे, लेकिन चरणदास जी ने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा, "भिक्षा का अर्थ केवल धन प्राप्त करना नहीं है, बल्कि यह जीवन के असली उद्देश्य की खोज का माध्यम है। जो व्यक्ति अपनी मेहनत से अर्जित अन्न का दान करता है, वही सच्चे अर्थों में भिक्षा देता है।" उनके इस उत्तर से वह व्यक्ति प्रभावित हुआ और उसने अपनी संपत्ति के बजाय सच्चे मन से भोजन का दान किया।

4. वैराग्य की परीक्षा

एक दिन चरणदास जी का एक शिष्य उन्हें छोड़कर संसार में लौटने का विचार करने लगा। चरणदास जी ने उसके मन की बात जान ली और उसे बुलाकर कहा, "यदि तुम्हारा मन संसार की ओर जा रहा है, तो जाओ। लेकिन एक बात याद रखना, जो भी तुम पाओगे वह अस्थायी होगा।" कुछ समय बाद, वह शिष्य वापस लौट आया और चरणदास जी से क्षमा मांगते हुए बोला कि संसार में शांति नहीं मिल सकी। चरणदास जी ने उसे माया और मोह के बंधनों से मुक्त होकर आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग अपनाने का संदेश दिया।

5. भक्तों के प्रति करुणा

एक बार चरणदास जी एक गाँव में प्रवास कर रहे थे। वहाँ की एक गरीब महिला ने उनके लिए भोजन का प्रबंध करने का प्रयास किया, परंतु उसके पास पर्याप्त सामग्री नहीं थी। फिर भी उसने श्रद्धा के साथ थोड़े से अन्न और फल का भोजन बनाया और चरणदास जी को अर्पित किया। चरणदास जी ने भोजन ग्रहण कर उस महिला को आशीर्वाद दिया और कहा, "तेरी श्रद्धा ने इस भोजन को अमृत बना दिया है।" चरणदास जी ने उसे बताया कि सच्चे भक्त का दिल, उसकी भक्ति और श्रद्धा का भाव ही सबसे बड़ा प्रसाद है।

6. समाज सुधार की भावना

एक बार किसी गाँव में चरणदास जी ने देखा कि जातिगत भेदभाव के कारण लोग एक-दूसरे से दूरी बनाकर रहते थे। चरणदास जी ने उस गाँव में सबको एक साथ बैठाकर भजन-कीर्तन कराया और उन्हें सिखाया कि "ईश्वर सबके अंदर समान रूप से विद्यमान हैं, और हमें सबके प्रति समान प्रेम रखना चाहिए।" उनके इस संदेश ने गाँव के लोगों में जागरूकता लाई, और उन्होंने जाति-धर्म के बंधनों को तोड़कर एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव अपनाया।

7. सच्चे धर्म का अर्थ

एक दिन एक व्यक्ति चरणदास जी के पास आया और कहने लगा कि वह कई वर्षों से कठिन तप कर रहा है, लेकिन उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। चरणदास जी ने उससे पूछा, "तुमने अपने आसपास के लोगों से प्रेम किया है? उनकी मदद की है?" व्यक्ति ने उत्तर दिया, "नहीं, मैंने केवल अपने तप पर ध्यान दिया है।" चरणदास जी ने उसे समझाया कि "सच्चा धर्म अपने अंदर प्रेम, करुणा और दूसरों की सेवा का भाव रखना है। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अपने मन को निर्मल और दूसरों के प्रति दयालु बनाओ।"

इन कहानियों के माध्यम से यह समझ में आता है कि संत चरणदास जी ने समाज में प्रेम, सेवा, समानता और साधारण जीवन की शिक्षा दी। उनका दृष्टिकोण आध्यात्मिक था, लेकिन उन्होंने समाज की समस्याओं को भी ध्यान में रखा। उनके उपदेशों में सच्ची भक्ति, गुरु की महिमा, आत्म-ज्ञान, माया से मुक्ति और समाज के कल्याण का संदेश समाहित है। उनके जीवन और शिक्षाएँ आज भी संत परंपरा में आदर्श मानी जाती हैं और भक्ति पथ पर चलने वालों को प्रेरणा देती हैं।

संत चरणदास जी ने अपने जीवन में भक्ति, ज्ञान और आत्मबोध पर आधारित कई पद और रचनाएँ लिखीं। उनकी रचनाओं का संग्रह "चरणदास वाणी" के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें उन्होंने भक्ति, साधना, आत्म-ज्ञान और गुरु महिमा का वर्णन किया है। उनकी रचनाएँ संत साहित्य के क्षेत्र में एक अमूल्य योगदान मानी जाती हैं। उनके पदों में सरलता, गहराई और आध्यात्मिकता का अनोखा संगम देखने को मिलता है।

चरणदास जी की प्रमुख कृतियाँ और उनके पदों के मुख्य विषय

1. गुरु महिमा

चरणदास जी के पदों में गुरु की महिमा का वर्णन प्रमुखता से किया गया है। उनके अनुसार, गुरु ही साधक को अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाते हैं। वे मानते थे कि बिना गुरु के ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। गुरु के प्रति उनकी श्रद्धा को उनके पदों में बार-बार व्यक्त किया गया है।

उदाहरण पद:

"गुरु बिना मोको कौन दिखावे, कौन उबारे मम भव सिंधु।

गुरु बिन दरसन कौन करावे, गुरु बिन जीवन ज्यों जल बिंदु।"

इस पद में चरणदास जी गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गुरु ही जीवन के अंधकार को मिटाते हैं और गुरु के बिना जीवन पानी की बूँद के समान नश्वर है।

2. आत्म-ज्ञान और अद्वैत का संदेश

चरणदास जी ने अपने पदों में आत्म-ज्ञान और अद्वैत वेदांत का भी उल्लेख किया है। उनका मानना था कि आत्मा और परमात्मा का भेद केवल अज्ञान के कारण होता है, और आत्म-साक्षात्कार के बाद यह भेद समाप्त हो जाता है।

उदाहरण पद:

"अहं ब्रह्मास्मि यह जान लीजै, साधक मन में ठान लीजै।

अजर-अमर आत्मा का भेद, हरि सम देख सब जान लीजै।"

इस पद में चरणदास जी बताते हैं कि आत्मा और परमात्मा का कोई भेद नहीं है। उन्होंने साधक को अपने भीतर ईश्वर को पहचानने का संदेश दिया है।

3. माया और संसार की निस्सारता

माया को उन्होंने एक भ्रम और जीव के लिए बंधन के रूप में दर्शाया है। उनके अनुसार, माया के प्रभाव से ही व्यक्ति सांसारिक मोह में फंसता है और वास्तविक सत्य से दूर हो जाता है।

उदाहरण पद:

"माया महा ठगिनी हम जानी, तिरगुन फांस लिए कर डोले।

कहूं फकीरा, कहूं संन्यासी, सब को नचावे अपने बोले।"

इस पद में चरणदास जी माया को "ठगिनी" के रूप में वर्णित करते हैं, जो किसी को भी अपने जाल में फंसा सकती है।

4. भक्ति और प्रेम का संदेश

चरणदास जी का भक्ति मार्ग सादगी और प्रेम पर आधारित था। वे मानते थे कि सच्ची भक्ति का मार्ग सरलता, प्रेम, और करुणा में निहित है। उन्होंने अपने पदों में बिना आडंबर के सच्चे हृदय से ईश्वर की भक्ति करने पर जोर दिया।

उदाहरण पद:

"प्रेम गली अति सांकरी, जा में दुई न समाय।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।"

इस पद में वे बताते हैं कि प्रेम और भक्ति का मार्ग इतना संकीर्ण है कि उसमें अहंकार और द्वैत का स्थान नहीं है। जब भक्ति का भाव आता है, तो "मैं" का भाव समाप्त हो जाता है।

5. साधना और जीवन का उद्देश्य

चरणदास जी की रचनाओं में साधना और आत्म-साक्षात्कार के महत्व को भी दर्शाया गया है। वे साधकों को अपने भीतर की यात्रा करने और सच्चे आत्म-ज्ञान को प्राप्त करने का संदेश देते हैं।

उदाहरण पद:

"भीतर देखो मीत प्यारे, बाहर का भ्रम सब छोड़ो।

काया में ही राम बसे हैं, मंदिर में ना खोजो।"

इस पद में चरणदास जी बताते हैं कि ईश्वर हमारे अंदर ही है, और बाहरी आडंबर से दूर होकर भीतर की ओर देखने से ही आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है।

6. वैराग्य और संतोष का संदेश

उनके पदों में वैराग्य और संतोष का महत्व भी दर्शाया गया है। उनका मानना था कि सांसारिक इच्छाएँ और लालच इंसान को दुख के मार्ग पर ले जाती हैं, जबकि वैराग्य और संतोष से आत्मिक शांति प्राप्त होती है।

उदाहरण पद:

"जो चाहिए सो संतोष में पाइए, लोभ में लख चौरासी पाई।

जो त्याग करे मोह और ममता, वही हरि पद निज ठौर पाई।"

इस पद में चरणदास जी समझाते हैं कि संतोष ही असली सुख है, जबकि लोभ और मोह के त्याग से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।

7. सच्चे साधक का स्वरूप

चरणदास जी ने अपने पदों में एक सच्चे साधक का स्वरूप भी बताया है। उनके अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे मन से गुरु की शरण में रहकर आत्म-ज्ञान की प्राप्ति करता है, वही सच्चा साधक होता है।

उदाहरण पद:

"साधक वही जो साधना सांचे, ध्यान धरै निज घट के भीतर।

बाहरी आडंबर छोड़ि करै, हरि से करै अपने मन की बातें।"

इस पद में वे कहते हैं कि सच्चा साधक वही है जो बाहर के दिखावे को छोड़कर अपने मन से ईश्वर का ध्यान करता है।

चरणदास जी की रचनाओं का महत्व

संत चरणदास जी की वाणी सरल, स्पष्ट और प्रेम से ओतप्रोत है। उनकी कृतियों का मुख्य उद्देश्य साधकों को आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर ले जाना और गुरु भक्ति के महत्व को समझाना है। उनकी वाणी आज भी उनके अनुयायियों के लिए मार्गदर्शक है और भारतीय संत परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उनकी कृतियाँ संत साहित्य की धरोहर हैं और साधकों को भक्ति, गुरु भक्ति, आत्म-ज्ञान और संसार से वैराग्य के मार्ग पर प्रेरित करती हैं।

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