संत ज्ञानेश्वर

"ज्ञानेश्वरी "

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11/23/20241 मिनट पढ़ें

संत ज्ञानेश्वर

संत ज्ञानेश्वर (1275–1296) मध्यकालीन भारत के महान संत, कवि और दार्शनिक थे। वे महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के प्रमुख संतों में से एक थे और भक्ति आंदोलन के अग्रणी थे। उनकी अद्वितीय कृति "ज्ञानेश्वरी" (भगवद गीता पर मराठी टीका) और उनकी अलौकिक उपलब्धियाँ उन्हें भारतीय संत परंपरा में अमर बनाती हैं।

जीवन परिचय:

1. जन्म और परिवार पृष्ठभूमि

- संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 ई. में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के आपेगाँव में हुआ था।

- उनके पिता का नाम विठ्ठलपंत और माता का नाम रुक्मिणीबाई था।

- उनके परिवार का संबंध वैदिक ब्राह्मण परंपरा से था, लेकिन उनके पिता ने संन्यास ग्रहण कर लिया था।

- संन्यास के बाद परिवार को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा, जिससे ज्ञानेश्वर और उनके भाई-बहनों का जीवन संघर्षपूर्ण रहा।

2. भाई-बहन:

ज्ञानेश्वर के तीन भाई-बहन थे:

- निवृत्तिनाथ: उनके बड़े भाई और उनके गुरु।

- सोपानदेव: उनके छोटे भाई।

- मुक्ताबाई: उनकी छोटी बहन, जिन्हें उनकी आध्यात्मिक साधना के लिए जाना जाता है।

3. शिक्षा और साधना

- ज्ञानेश्वर ने अपने बड़े भाई निवृत्तिनाथ से दीक्षा प्राप्त की।

- उन्होंने वेदों, उपनिषदों और अन्य शास्त्रों का गहन अध्ययन किया।

- उन्हें बाल्यकाल से ही गहन आध्यात्मिक अनुभूतियाँ थीं।

4. सामाजिक बहिष्कार का अंत:

- ज्ञानेश्वर के परिवार को ब्राह्मण समुदाय से बहिष्कृत कर दिया गया था।

- उन्होंने अपने परिवार के पुनर्वास और सामाजिक मान्यता के लिए कई प्रयास किए।

- कहा जाता है कि उन्होंने पैठण में बड़े पंडितों से शास्त्रार्थ किया और अपने परिवार की पवित्रता को साबित किया।

प्रमुख योगदान:

1. ज्ञानेश्वरी (भावार्थ दीपिका)

- यह संत ज्ञानेश्वर द्वारा लिखित भगवद गीता की मराठी टीका है।

- इसे "ज्ञानेश्वरी" के नाम से जाना जाता है।

- यह 700 श्लोकों की गीता का मराठी में सरल और काव्यात्मक अनुवाद है।

- ज्ञानेश्वरी में उन्होंने गीता के गूढ़ रहस्यों को जनसामान्य के लिए सुलभ बनाया।

2. अमृतानुभव

- यह उनकी दूसरी प्रमुख रचना है।

- इसमें अद्वैत वेदांत और भक्ति के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है।

3. भक्ति आंदोलन में योगदान

- ज्ञानेश्वर ने भक्ति को एक साधारण और सच्चे मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया।

- उनके द्वारा प्रचारित वारकरी संप्रदाय ने समाज में भक्ति और समर्पण का संदेश फैलाया।

प्रमुख घटनाएँ:

1. भक्तिपूर्ण चमत्कार

- संत ज्ञानेश्वर को उनकी चमत्कारिक शक्तियों के लिए भी याद किया जाता है।

- एक प्रसिद्ध घटना के अनुसार, उन्होंने एक भैंस को वेद मंत्रों का उच्चारण करने के लिए प्रेरित किया।

- इस घटना ने उनकी आध्यात्मिक शक्ति और ज्ञान को सिद्ध किया।

2. आध्यात्मिक प्रवचन और तीर्थ यात्रा

- ज्ञानेश्वर ने अपने भाई-बहनों के साथ महाराष्ट्र और आसपास के क्षेत्रों में तीर्थ यात्राएँ कीं।

- उन्होंने विभिन्न स्थानों पर प्रवचन देकर भक्ति और ज्ञान का प्रचार किया।

दार्शनिक दृष्टिकोण:

1. अद्वैत वेदांत और भक्ति का समन्वय

- ज्ञानेश्वर ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को भक्ति के माध्यम से जनसामान्य के लिए सुलभ बनाया।

- उन्होंने कहा कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है, और हर व्यक्ति के भीतर उसे अनुभव किया जा सकता है।

2. सामाजिक समरसता का संदेश

- ज्ञानेश्वर ने जाति, पंथ और धर्म के भेदभाव का विरोध किया।

- उनके प्रवचनों ने सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया और सभी को भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

महासमाधि:

संत ज्ञानेश्वर ने मात्र 21 वर्ष की आयु में 1296 ई. में आलंदी (महाराष्ट्र) में स्वेच्छा से महासमाधि ले ली।

- उनकी महासमाधि को एक अद्वितीय घटना माना जाता है।

- आज भी आलंदी में उनकी समाधि पर वार्षिक मेले और भक्ति उत्सव आयोजित किए जाते हैं।

संत ज्ञानेश्वर की शिक्षाएँ:

1. ईश्वर सबके भीतर है:

उन्होंने सिखाया कि ईश्वर की प्राप्ति बाहरी पूजा से नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों में उतरने से होती है।

2. भक्ति का सरल मार्ग:

भक्ति के माध्यम से आत्मा और परमात्मा का मिलन संभव है।

3. सामाजिक समानता:

उन्होंने जाति और वर्ग भेदभाव को अस्वीकार किया और समाज में समानता का संदेश दिया।

4. प्रकृति और ईश्वर का संबंध:

प्रकृति के हर कण में ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करना उनकी शिक्षा का मुख्य भाग था।

संत ज्ञानेश्वर का जीवन आध्यात्मिकता, ज्ञान और भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है।

- उनकी शिक्षाएँ और रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और भक्ति आंदोलन में एक अमूल्य योगदान मानी जाती हैं।

- उनकी कृतियाँ और विचार न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे भारत में भक्ति और सामाजिक सुधार के प्रतीक हैं।

संत ज्ञानेश्वर के जीवन से जुड़ी कई प्रेरक और अद्भुत कहानियाँ हैं, जो उनके अलौकिक व्यक्तित्व, चमत्कारिक शक्तियों और आध्यात्मिक ज्ञान को उजागर करती हैं। ये कहानियाँ न केवल उनकी महिमा का वर्णन करती हैं, बल्कि भक्ति, करुणा और ईश्वर पर विश्वास का संदेश भी देती हैं।

1. भैंस का वेद पाठ करना

संत ज्ञानेश्वर के जीवन की सबसे प्रसिद्ध घटना यह है कि उन्होंने एक भैंस को वेदों का उच्चारण करने के लिए प्रेरित किया।

- यह घटना तब हुई जब वे अपने भाइयों और बहन के साथ पैठण गए थे।

- वहां के विद्वानों ने ज्ञानेश्वर के परिवार को सामाजिक बहिष्कार का पात्र मानते हुए उनका अपमान किया और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार छीनने की कोशिश की।

- जब ज्ञानेश्वर ने यह देखा, तो उन्होंने भक्ति और ईश्वर की शक्ति का प्रमाण देने के लिए एक भैंस को वेदों का उच्चारण करने की शक्ति दी।

- भैंस ने स्पष्ट रूप से वेदों के श्लोक उच्चारित किए, जिसे देखकर सभी विद्वान चकित हो गए।

- यह घटना दर्शाती है कि भक्ति और ज्ञान किसी जाति, वर्ग या प्राणी तक सीमित नहीं हैं।

2. दीवार पर सवारी करना

एक अन्य प्रसंग में संत ज्ञानेश्वर और उनके भाई-बहनों ने समाज को यह दिखाने के लिए चमत्कार किया कि आध्यात्मिक शक्ति से असंभव भी संभव हो सकता है।

- कहा जाता है कि एक व्यक्ति ने उनका उपहास उड़ाते हुए कहा कि यदि वे इतने महान संत हैं, तो वे एक दीवार पर सवार होकर चल सकते हैं।

- ज्ञानेश्वर ने विनम्रता से उसकी चुनौती स्वीकार की।

- उन्होंने दीवार को स्पर्श किया, और वह दीवार उनकी आज्ञा से चलने लगी।

- यह घटना यह बताती है कि जब आत्मा दिव्य ऊर्जा से जुड़ जाती है, तो वह प्रकृति के नियमों को भी पार कर सकती है।

3. मुक्ताबाई का घड़ा भरना

ज्ञानेश्वर की छोटी बहन मुक्ताबाई को एक बार नदी में जल भरने के दौरान कुछ लोगों ने ताना मारा और उनके परिवार की सामाजिक स्थिति पर कटाक्ष किया।

- इस घटना से मुक्ताबाई बहुत आहत हुईं।

- ज्ञानेश्वर ने उन्हें सांत्वना दी और कहा कि जो लोग दूसरों का अपमान करते हैं, वे ईश्वर से दूर हो जाते हैं।

- इसके बाद, उन्होंने अपनी बहन को यह अनुभव कराया कि जल भरना केवल बाहरी कार्य नहीं, बल्कि भक्ति का आंतरिक अभ्यास भी हो सकता है।

- यह घटना करुणा, धैर्य और आध्यात्मिक दृढ़ता का पाठ सिखाती है।

4. गधे के कान में संस्कार देना

एक और दिलचस्प कथा है जिसमें संत ज्ञानेश्वर ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास और जाति प्रथा पर कटाक्ष किया।

- एक व्यक्ति ने कहा कि वे केवल उच्च जाति के लोगों को शिक्षा दे सकते हैं।

- ज्ञानेश्वर ने उत्तर दिया कि ज्ञान किसी के लिए भी हो सकता है, चाहे वह कोई भी हो।

- यह कहते हुए उन्होंने एक गधे के कान में "गायत्री मंत्र" का पाठ किया।

- आश्चर्यजनक रूप से, गधा शांत हो गया और उसके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई दिया।

- इस कहानी का संदेश है कि ज्ञान और भक्ति का प्रभाव किसी भी प्राणी पर हो सकता है।

5. मृत गाय को जीवित करना

कहा जाता है कि एक बार ज्ञानेश्वर के गाँव में एक मृत गाय के लिए शोक मनाया जा रहा था।

- ग्रामीणों ने संत ज्ञानेश्वर से गाय को पुनः जीवित करने की प्रार्थना की।

- ज्ञानेश्वर ने ईश्वर से प्रार्थना की और गाय को पुनः जीवनदान दिया।

- इस चमत्कार ने उनके प्रति लोगों के विश्वास और श्रद्धा को और भी बढ़ा दिया।

- यह कहानी उनकी करुणा और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है।

6. वारकरी संतों का मार्गदर्शन

संत ज्ञानेश्वर अपने वारकरी संप्रदाय के प्रवचनों और तीर्थयात्राओं के लिए प्रसिद्ध थे।

- एक कथा के अनुसार, उन्होंने एक बार अपने भक्तों के साथ पंढरपुर की यात्रा की।

- मार्ग में उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।

- उनके नेतृत्व और आध्यात्मिक शक्ति ने उनके अनुयायियों को प्रेरणा दी और वे निर्भीक होकर यात्रा पूरी कर सके।

- इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि सच्चा संत अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन हर स्थिति में करता है।

7. महासमाधि का पूर्वज्ञान

ज्ञानेश्वर को अपनी मृत्यु का पूर्वज्ञान था।

- उन्होंने अपने भाई-बहनों और शिष्यों को बताया कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा पूर्ण हो चुकी है और अब वे महासमाधि लेंगे।

- मात्र 21 वर्ष की आयु में, उन्होंने आलंदी में स्वयं को समाधिस्थ किया।

- यह घटना उनकी आध्यात्मिक गहराई और आत्मा की स्वतंत्रता को दर्शाती है।

इन कहानियों का महत्व:

- आध्यात्मिक शिक्षाएँ: संत ज्ञानेश्वर की कहानियाँ हमें भक्ति, ज्ञान, और करुणा का महत्व समझाती हैं।

- सामाजिक सुधार: उन्होंने जाति, वर्ग और भेदभाव के खिलाफ खड़े होकर समानता और समरसता का संदेश दिया।

- चमत्कार और प्रेरणा: उनकी चमत्कारिक घटनाएँ दर्शाती हैं कि ईश्वर के प्रति समर्पण से असंभव भी संभव हो सकता है।

संत ज्ञानेश्वर के जीवन की ये कहानियाँ उनके महान व्यक्तित्व को उजागर करती हैं और आज भी हर भक्त और साधक के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।