संत रामानुजाचार्य

SAINTS

11/26/20241 मिनट पढ़ें

संत रामानुजाचार्य

संत रामानुजाचार्य (Ramanujacharya) का जन्म 1017 ई. के आसपास तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर नामक स्थान पर हुआ था। वे वैष्णव धर्म के महान संत, विचारक और धार्मिक सुधारक थे। उन्होंने विशिष्टाद्वैत वेदांत (Vishishtadvaita Vedanta) दर्शन की स्थापना की, जो अद्वैत वेदांत से भिन्न था। वे विष्णु के परम भक्त थे और अपने जीवन में भगवान विष्णु के प्रति अपनी अपार भक्ति और समर्पण के कारण प्रसिद्ध हुए।

रामानुजाचार्य का जीवन परिचय:

1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

रामानुजाचार्य का जन्म श्रीपेरम्बदूर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम "इश्वरमित्र" था, और वे एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। वे बचपन से ही विद्वान और धार्मिक प्रवृत्तियों वाले थे। उन्होंने संस्कृत और वेदों की शिक्षा ली। वे विशेष रूप से वेदांत और उपनिषदों के गहरे ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे।

2. धार्मिक गुरू के रूप में रामानुजाचार्य का योगदान:

रामानुजाचार्य ने वैदिक साहित्य और दर्शन का गहन अध्ययन किया और उनके विचारों ने वेदांत के दर्शन को नया मोड़ दिया। उन्होंने शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत दर्शन को चुनौती दी और विशिष्टाद्वैत वेदांत का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें ईश्वर के साथ आत्मा की एकता के बजाय आत्मा और ईश्वर के बीच एक संबंध का विचार किया गया।

3. रामानुजाचार्य के दर्शन - विशिष्टाद्वैत वेदांत:

- विशिष्टाद्वैत का अर्थ है "विशिष्ट एकता", यानी यह दर्शन मानता है कि आत्मा और परमात्मा में एकता तो है, लेकिन वे एक-दूसरे से भिन्न भी हैं। इस दृष्टिकोण में ईश्वर को सर्वोच्च और अद्वितीय माना जाता है, जबकि आत्मा और माया (संसार) उनके गुण हैं।

- रामानुजाचार्य ने यह भी स्पष्ट किया कि ईश्वर की भक्ति और सेवा के माध्यम से आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। इस दर्शन में आत्मा का अस्तित्व हमेशा ईश्वर के साथ जुड़ा रहता है, लेकिन दोनों अलग-अलग होते हैं।

4. रामानुजाचार्य के प्रमुख कार्य और ग्रंथ:

रामानुजाचार्य ने कई महत्वपूर्ण धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों की रचना की। उनमें प्रमुख हैं:

- श्रीभाष्य: यह ग्रंथ वेदांत सूत्रों की टिप्पणी है, जो रामानुजाचार्य द्वारा रचित था। इसमें उन्होंने शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का खंडन करते हुए अपने विशिष्टाद्वैत वेदांत का प्रतिपादन किया।

- गद्यार्कमणि: इस ग्रंथ में रामानुजाचार्य ने भगवान विष्णु की भक्ति पर जोर दिया।

- रामानुजा दर्शन: इसमें रामानुजाचार्य ने धर्म, भक्ति और ईश्वर के प्रति आदर्श जीवन के बारे में उपदेश दिया।

5. रामानुजाचार्य का जीवन-निर्देशन:

रामानुजाचार्य ने अपने जीवन में समाज में समता, दया और भक्ति के संदेश को फैलाया। उन्होंने जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया और सभी वर्गों को भगवान की भक्ति में समान अधिकार दिया। वे विशेष रूप से मंदिरों में पूजा और आराधना की विधियों में सुधार करने के लिए प्रसिद्ध थे। उनके योगदान से भारतीय समाज में भक्ति के मार्ग को सरल और सुलभ बनाया गया।

6. रामानुजाचार्य की भक्ति:

रामानुजाचार्य ने भगवान विष्णु के प्रति अपनी असीम भक्ति और समर्पण के कारण भक्ति मार्ग को प्रमुखता दी। वे भगवान विष्णु को सर्वोच्च सत्ता मानते थे और उन्होंने भगवान की पूजा के लिए विशेष विधियाँ विकसित की। रामानुजाचार्य के अनुसार, भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति ही आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है।

7. रामानुजाचार्य का प्रभाव:

- आध्यात्मिक प्रभाव: रामानुजाचार्य के विचारों और शिक्षाओं ने पूरे भारत में विशेष रूप से दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया। उनके अनुयायी "रामानुजित वैष्णव" के नाम से प्रसिद्ध हुए और उन्होंने मंदिरों में पूजा के सही तरीकों का पालन किया।

- सामाजिक प्रभाव: उन्होंने भारतीय समाज में जातिवाद, भेदभाव और धार्मिक असमानता के खिलाफ संघर्ष किया। वे सभी को ईश्वर के साथ समान अधिकार देने के पक्षधर थे।

- धार्मिक सुधार: रामानुजाचार्य के विचारों ने भारतीय भक्ति और वेदांत के दर्शन को नया मोड़ दिया और समाज में धार्मिक जागरूकता को बढ़ावा दिया।

8. रामानुजाचार्य की मृत्यु और श्रद्धांजलि:

रामानुजाचार्य ने 1200 ई. के आसपास वैष्णव धर्म के प्रचार में योगदान करते हुए अपना जीवन समाप्त किया। उनकी मृत्यु के बाद, उनके अनुयायी उनके उपदेशों को फैलाते रहे और उनके द्वारा स्थापित श्रीविष्णु के मंदिरों में भक्ति की विधियाँ आज भी प्रचलित हैं। उनकी भक्ति और विचारधारा को आज भी भारत और दुनिया भर में सम्मान से याद किया जाता है।

संत रामानुजाचार्य भारतीय भक्ति और वेदांत दर्शन के महान आचार्य थे। उन्होंने भगवान विष्णु के प्रति अपनी गहरी भक्ति को प्रकट किया और विशिष्टाद्वैत वेदांत के सिद्धांत को स्थापित किया। उनका जीवन भक्ति, सेवा, समानता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक है। रामानुजाचार्य की शिक्षाएँ आज भी हमें धर्म, समाज और आध्यात्मिकता के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।

संत रामानुजाचार्य के जीवन से जुड़ी कई प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद कहानियाँ हैं, जो उनके भक्ति, ज्ञान और समाज सुधार के कार्यों को उजागर करती हैं। रामानुजाचार्य का जीवन पूरी तरह से भगवान विष्णु की भक्ति और समाज में समानता और धार्मिक जागरूकता फैलाने के लिए समर्पित था। इन कहानियों के माध्यम से उनके अद्वितीय चरित्र, उनके सिद्धांत और उनके संघर्ष को समझा जा सकता है।

1. रामानुजाचार्य और भगवान विष्णु की विशेष कृपा

रामानुजाचार्य का जीवन भगवान विष्णु के प्रति उनकी अपार भक्ति से प्रेरित था। एक बार रामानुजाचार्य अपने गुरु अलवंदार से शास्त्रों का अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे उन्हें दर्शन दें। एक दिन, जब रामानुजाचार्य मंदिर में पूजा कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनकी भक्ति से प्रभावित होकर उनके सामने प्रकट होने का निर्णय लिया।

भगवान विष्णु ने रामानुजाचार्य से कहा, "तुमने सच्ची भक्ति से मुझे स्मरण किया है, इसलिए मैं तुम्हारे सामने आकर तुमसे मिलना चाहता हूँ।" रामानुजाचार्य ने भगवान की उपस्थिति को महसूस किया और उनकी भक्ति में और भी गहरी समर्पण की भावना विकसित हुई। इस घटना ने रामानुजाचार्य के जीवन को एक नया मोड़ दिया और उनकी भक्ति की शक्ति और अधिक बढ़ गई।

2. रामानुजाचार्य और उनके गुरु की कहानी

रामानुजाचार्य के जीवन में उनके गुरु गुरु रामानुजाचार्य का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। एक बार जब रामानुजाचार्य अपने गुरु के पास शास्त्र अध्ययन कर रहे थे, तब उन्होंने गुरु से पूछा कि भगवान के सच्चे रूप को कैसे जाना जा सकता है। गुरु ने उत्तर दिया कि भगवान का सच्चा रूप तभी जाना जा सकता है जब व्यक्ति अपने भीतर सच्ची भक्ति और समर्पण की भावना जागृत करेगा।

रामानुजाचार्य ने गुरु के उपदेशों को आत्मसात किया और भगवान के प्रति अपनी भक्ति और सच्चे समर्पण की शक्ति को महसूस किया। उन्होंने यह समझा कि भगवान का दर्शन केवल शास्त्रों के माध्यम से नहीं, बल्कि सच्ची भक्ति और प्रेम के द्वारा होता है।

3. रामानुजाचार्य का सामाजिक सुधार कार्य

रामानुजाचार्य ने अपने समय में जातिवाद और धार्मिक असमानता का विरोध किया। उनके समय में उच्च और निम्न वर्गों के बीच भेदभाव था, और ब्राह्मणों को ही धार्मिक कार्यों में भाग लेने का अधिकार था। रामानुजाचार्य ने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि हर व्यक्ति को भगवान की भक्ति में समान अधिकार प्राप्त हो।

एक बार रामानुजाचार्य ने एक दलित भक्त को भगवान के मंदिर में पूजा करने का अधिकार दिया। यह देखकर मंदिर के अन्य पुजारी और ब्राह्मण वर्ग ने रामानुजाचार्य का विरोध किया। लेकिन रामानुजाचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा, "भगवान के दरबार में कोई भेदभाव नहीं है। जो सच्ची भक्ति से पूजा करता है, वह भगवान के निकट पहुंचता है।"

यह घटना रामानुजाचार्य के समाज सुधारक दृष्टिकोण को दर्शाती है और उनके लिए हर व्यक्ति की समानता की विचारधारा को मजबूत करती है।

4. रामानुजाचार्य और उनकी "श्रीभाष्य" की रचना

रामानुजाचार्य ने वेदांत के शास्त्रों पर अपनी प्रसिद्ध टिप्पणी "श्रीभाष्य" लिखी। इस ग्रंथ में उन्होंने शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत को चुनौती दी और अपनी विशिष्टाद्वैत वेदांत की परिभाषा दी। इस टिप्पणी को लिखने के दौरान रामानुजाचार्य को बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके विचारों से उस समय के कई बड़े विद्वान असहमत थे।

रामानुजाचार्य का दृढ़ विश्वास था कि भगवान विष्णु के साथ आत्मा का संबंध व्यक्तिगत और विशिष्ट होता है, और आत्मा और भगवान के बीच की भिन्नता को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने यह सिद्ध किया कि भगवान के साथ सच्ची भक्ति और समर्पण से ही आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।

5. रामानुजाचार्य और "पद्मावती" की भक्ति कथा

एक अन्य प्रसिद्ध कथा रामानुजाचार्य और एक भक्त पद्मावती से जुड़ी है। पद्मावती एक बहुत सच्ची और भक्ति भावना वाली महिला भक्त थीं। वह हमेशा भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति में लीन रहती थीं। एक दिन उन्होंने रामानुजाचार्य से पूछा, "मैं भगवान विष्णु को किस प्रकार पूरी तरह से जान सकती हूँ?" रामानुजाचार्य ने उन्हें उत्तर दिया, "भगवान के प्रति सच्ची भक्ति ही एकमात्र रास्ता है।"

इस घटना से रामानुजाचार्य ने यह शिक्षा दी कि भक्ति केवल बाहरी पूजा से नहीं, बल्कि दिल से भगवान के प्रति समर्पण और प्रेम से होती है।

6. रामानुजाचार्य और उनके अनुयायी

रामानुजाचार्य के अनेक अनुयायी थे, जिन्होंने उनके दर्शन और उपदेशों को फैलाया। रामानुजाचार्य ने हमेशा अपने अनुयायियों को यह समझाया कि धर्म केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली है। एक बार रामानुजाचार्य के एक अनुयायी ने उनसे पूछा, "आपके दर्शन के अनुसार, हम जीवन में किस तरह से ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करें?" रामानुजाचार्य ने उत्तर दिया, "आप अपने जीवन में हर कार्य को भगवान की सेवा समझकर करें।"

उनकी शिक्षा और भक्ति का प्रभाव आज भी भारतीय समाज और वैष्णव धर्म पर गहरा है। रामानुजाचार्य ने हमेशा अपने अनुयायियों को भगवान के प्रति सच्चे प्रेम और समर्पण का मार्ग दिखाया।

संत रामानुजाचार्य का जीवन धार्मिक, सामाजिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण था। उनके जीवन की कहानियाँ उनके गहरे भक्ति भाव, समाज सुधार, और ईश्वर के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती हैं। उनके उपदेशों ने भारतीय समाज में धार्मिक समता और भक्ति के मार्ग को नया दिशा दी।