संत सहजोबाई

गुरू भक्ति

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11/16/20241 मिनट पढ़ें

संत सहजोबाई

सहजोबाई (या सहजाबाई) एक महान संत और भक्त कवियित्री रही हैं, जिन्होंने 18वीं सदी में भक्ति और ज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म राजस्थान में लगभग 1725 ईस्वी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सहजोबाई बचपन से ही भगवान के प्रति गहरी आस्था और भक्ति रखती थीं। वे संत चरणदास जी की प्रमुख शिष्या थीं, जो खुद एक उच्च कोटि के संत और विचारक थे। चरणदास जी के विचारों और शिक्षा ने सहजोबाई के जीवन को गहराई से प्रभावित किया, और उनकी भक्ति मार्ग में अग्रसर किया।

सहजोबाई का विवाह हुआ था, लेकिन सांसारिक जीवन में उनकी विशेष रुचि नहीं थी। उन्होंने गृहस्थ जीवन के बंधनों से परे जाकर भक्ति के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया। वे अपने गुरु चरणदास जी के साथ जुड़ी रहीं और उनके साथ समय बिताने लगीं। गुरु के मार्गदर्शन में सहजोबाई ने स्वयं को आत्म-साक्षात्कार और भक्ति के मार्ग में पूर्णतः समर्पित कर दिया। उनकी साधना और प्रेम ने उन्हें एक उच्च कोटि की भक्त और संत बना दिया।

सहजोबाई की रचनाएँ सरल भाषा में हैं और उनमें भक्ति, ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार के विचार गहरे रूप से व्यक्त होते हैं। उन्होंने अपनी कविताओं और भजनों के माध्यम से ईश्वर के प्रति अपनी प्रगाढ़ प्रेम और गुरु के प्रति समर्पण को दर्शाया है। उनके भजनों में अद्वैत वेदांत और भक्ति रस का सुंदर मिश्रण मिलता है। वे कहती हैं कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए साधारण और सरल साधना ही पर्याप्त है, और हमें अपने भीतर की ओर देखने की आवश्यकता है।

उनकी प्रमुख कृतियाँ “सहजो वाणी” और “सहजो के पद” हैं। इन रचनाओं में सहजोबाई ने ईश्वर के साथ सच्चे प्रेम का संदेश दिया है और बताया है कि मानव जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर की प्राप्ति है। उनके अनुसार, मनुष्य को अपने गुरु और ईश्वर में एकनिष्ठ होकर समर्पण करना चाहिए।

सहजोबाई का जीवन और उनकी रचनाएँ हमें सिखाती हैं कि सच्ची भक्ति के लिए बाहरी आडंबर और दिखावे की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को प्रेम, करुणा और आत्म-साक्षात्कार का मार्ग दिखाया।

सहजोबाई के जीवन से जुड़ी कुछ कहानियाँ उनके अटूट विश्वास, भक्ति और समर्पण को दर्शाती हैं। उनके जीवन में कई ऐसे प्रसंग हैं, जो उनकी आध्यात्मिकता और गुरु भक्ति की गहराई को उजागर करते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कहानियाँ दी गई हैं:

1. गुरु चरणदास जी के प्रति पूर्ण समर्पण

सहजोबाई ने अपने गुरु चरणदास जी में ईश्वर को ही देखा और उनके प्रति पूरी निष्ठा और समर्पण दिखाया। एक प्रसंग के अनुसार, सहजोबाई को एक दिन अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। उस समय वे अपने गुरु के सत्संग में थीं। जब किसी ने उन्हें इस दुखद समाचार के बारे में बताया, तो सहजोबाई ने कहा, "मेरा जीवन तो गुरु के चरणों में है। मेरे लिए संसार का यह रिश्ता अब मायने नहीं रखता।" इस प्रकार, उन्होंने सांसारिक बंधनों से स्वयं को मुक्त कर अपने गुरु में ही अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था।

2. ईश्वर की प्राप्ति के लिए साधारण जीवन का आदर्श

एक बार सहजोबाई के गुरु चरणदास जी ने उनसे पूछा कि वह ईश्वर की प्राप्ति के लिए क्या कर रही हैं। सहजोबाई ने उत्तर दिया, "गुरुदेव, मैं साधारण जीवन जीने का प्रयास कर रही हूँ और हर दिन अपने मन को शुद्ध करने की कोशिश कर रही हूँ।" गुरु ने कहा कि यही सच्चा साधना है, क्योंकि सच्चा आध्यात्मिक मार्ग कठिन तप या भव्य आडंबर में नहीं, बल्कि अपने मन को सरल और निर्मल बनाने में है। सहजोबाई का जीवन साधारण और संतोष से भरा था, और उनके इसी आदर्श ने उन्हें महान संत बना दिया।

3. गुरु के प्रति निष्ठा और परीक्षा

एक अन्य प्रसंग के अनुसार, गुरु चरणदास जी ने सहजोबाई की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए उन्हें कठिन कार्य सौंपे। एक बार उन्होंने कहा कि उन्हें कठिनाई के बावजूद अपने मार्ग पर अडिग रहना होगा। सहजोबाई ने न केवल गुरु के सभी निर्देशों का पालन किया, बल्कि उनके कठिनतम आदेशों को भी बिना किसी सवाल के स्वीकार किया। उनके इस समर्पण ने उनके गुरु को यह सिखाया कि सहजोबाई का प्रेम सच्चा और पवित्र है, और वे किसी भी परीक्षा में सफल हो सकती हैं।

4. सहजोबाई का सेवा भाव

सहजोबाई न केवल भक्त थीं, बल्कि एक सच्ची समाजसेविका भी थीं। एक बार गांव में भयंकर बाढ़ आई और लोग अत्यधिक परेशानी में पड़ गए। सहजोबाई ने अपनी सभी सामर्थ्य से प्रभावित लोगों की सेवा की। वह स्वयं जाकर भूखे लोगों को खाना देतीं, बीमारों का इलाज करतीं और लोगों को सांत्वना देतीं। उनके इस सेवा भाव ने उनके प्रति लोगों का प्रेम और भी बढ़ा दिया, और उन्होंने अपने प्रेम और करुणा से गांव वालों के दिलों में विशेष स्थान बना लिया।

5. गुरु और शिष्य का गहरा प्रेम

एक बार सहजोबाई ने अपने गुरु से कहा कि वह उन्हें कभी छोड़ कर नहीं जाएँगी। गुरु चरणदास जी ने उत्तर दिया, "यह संसार अस्थायी है। जब मैं चला जाऊँगा, तब भी तुम मेरी वाणी और सिखावनों में मुझे पाओगी।" सहजोबाई ने यह सीख ली कि भले ही गुरु शारीरिक रूप से दूर हो जाएँ, उनका ज्ञान और प्रेम सदैव शिष्य के साथ रहता है। इसके बाद, सहजोबाई ने अपने गुरु की वाणी को अपनी आत्मा में बसाने का प्रयास किया और जीवनभर उनके उपदेशों का अनुसरण किया।

6. सहजोबाई की भक्ति का प्रभाव

एक बार सहजोबाई के गाँव में कुछ संदेही लोग आए और उन्होंने सहजोबाई के भक्ति पथ को गलत ठहराने की कोशिश की। सहजोबाई ने उनसे कहा कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए प्रेम और समर्पण ही पर्याप्त है। उन्होंने अपने प्रेमपूर्ण और आत्मीय उत्तरों से उन संदेहियों का मन बदल दिया और उन्हें भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इस प्रकार सहजोबाई की सादगी और ज्ञान ने बहुत से लोगों के जीवन को बदला।

7. गुरु वाणी में आत्म-लीनता

सहजोबाई अक्सर गुरु चरणदास जी के उपदेशों को ध्यान में रखते हुए साधना में लीन रहती थीं। एक दिन जब लोग उन्हें भोजन के लिए बुलाने आए, तो उन्होंने कहा कि उनकी भूख और प्यास तो गुरु के ज्ञान से शांत हो जाती है। सहजोबाई का यह समर्पण दर्शाता है कि उन्होंने अपने गुरु की शिक्षाओं को आत्मसात कर लिया था और उनके जीवन का केंद्र गुरु के वचनों में ही बसा था।

सहजोबाई की ये कहानियाँ उनके समर्पण, सेवा, करुणा और भक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। उनका जीवन साधना और गुरु भक्ति का अनुपम उदाहरण है, जो हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति केवल मन की पवित्रता और सरलता में होती है। उनके जीवन की प्रेरणाएँ आज भी भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर चलने वालों के लिए आदर्श मानी जाती हैं।

सहजोबाई का साहित्य भक्ति, आत्म-साक्षात्कार और अद्वैत वेदांत पर आधारित है। उनके पदों और कृतियों में गहरी आध्यात्मिकता, सरल भाषा, और ईश्वर के प्रति प्रेम का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। सहजोबाई ने अपने पदों में गुरु भक्ति, आत्मा और परमात्मा की एकता, जीवन के यथार्थ और माया के बंधनों से मुक्ति की बात कही है। उनके पद मुख्यतः संत परंपरा के आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं और भक्ति मार्ग की सादगी और सरलता को दर्शाते हैं।

प्रमुख कृतियाँ

1. सहजो वाणी

"सहजो वाणी" उनकी प्रमुख कृति मानी जाती है, जिसमें उनकी आध्यात्मिक कविताएँ और पद संग्रहीत हैं। इस ग्रंथ में सहजोबाई ने अपने गुरु चरणदास जी के उपदेशों और उनके प्रति अपनी गहन भक्ति को व्यक्त किया है। सहजो वाणी में सहजोबाई ने जीवन की क्षणभंगुरता, माया के बंधनों, ईश्वर भक्ति, गुरु के महत्व और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति के बारे में बताया है। उनकी वाणी में सहजता, सरलता और विचारों की गहनता है।

2. सहजो के पद

"सहजो के पद" उनके भजन, पद और कविताओं का संकलन है। इन पदों में उन्होंने ईश्वर के प्रति प्रेम और एकनिष्ठ भक्ति को दर्शाया है। उनके पदों में साधना, साधक के मन की स्थिति, आत्मिक उत्थान और सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए आत्म-साक्षात्कार की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

सहजोबाई के पदों का विश्लेषण

1. गुरु भक्ति और गुरु महिमा

सहजोबाई के पदों में गुरु को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। उनके अनुसार, गुरु के बिना आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष संभव नहीं है। सहजोबाई अपने पदों में कहती हैं कि गुरु ही जीवन की अज्ञानता को दूर कर हमें सही मार्ग दिखाते हैं। गुरु को ही ईश्वर मानते हुए, उन्होंने लिखा है कि यदि किसी ने गुरु का अनुसरण कर लिया, तो उसे ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर किसी और चीज़ की आवश्यकता नहीं है।

2. आत्म-ज्ञान और अद्वैत

सहजोबाई के पदों में आत्म-ज्ञान का संदेश है। वे कहती हैं कि ईश्वर को बाहरी जगत में ढूंढ़ने की बजाय अपने भीतर तलाश करना चाहिए, क्योंकि ईश्वर हमारे ही भीतर हैं। उनका अद्वैत का दृष्टिकोण यह सिखाता है कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। उनके पदों में आत्मा और परमात्मा के बीच एकता की सुंदर व्याख्या की गई है और बताया गया है कि आत्म-साक्षात्कार के बिना सच्चा आनंद और मुक्ति प्राप्त नहीं होती।

3. माया और संसार की निस्सारता

सहजोबाई माया और संसार के बंधनों को भी अपने पदों में उजागर करती हैं। उनके अनुसार, सांसारिक चीज़ों में मोह-ममता रखने से मनुष्य ईश्वर से दूर हो जाता है। माया को उन्होंने एक जाल के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे मुक्त होकर ही आत्मा ईश्वर से जुड़ सकती है।

4. सहज साधना का मार्ग

सहजोबाई ने भक्ति के मार्ग को सरल और सहज बताया है। उनका मानना था कि किसी प्रकार की विशेष साधना, व्रत या कठोर तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। सच्ची भक्ति, साधारण जीवन और मन की शुद्धता में ही निहित है। वे कहती हैं कि आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें अपनी आंतरिक पवित्रता और सच्चे प्रेम की आवश्यकता होती है।

5. प्रेम और करुणा

उनके पदों में प्रेम और करुणा का संदेश भी मिलता है। सहजोबाई का कहना है कि ईश्वर को पाने के लिए हमें सभी के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखना चाहिए। उनके पदों में प्रेम की एकता और परोपकार की भावना स्पष्ट रूप से झलकती है।

सहजोबाई के पदों के कुछ उदाहरण

1. "सहज चलूं तो गुरु मिलें, कठिन कीजिए न काज।

भीतर बैठा राम तो, बाहर की क्यों लाज।"

इस पद में सहजोबाई कहती हैं कि यदि हम सरलता और सहजता से चलें, तो ईश्वर को पाना संभव है। गुरु के मार्ग पर चलने से ईश्वर की प्राप्ति होती है, इसलिए बाहरी दिखावे की जरूरत नहीं है।

2. "गुरु बिना कौन दिखावे, सच्चा है कौन प्रकाश।

सहजो गुरु की शरण बिना, कैसे होये मोहि रास।"

इसमें सहजोबाई कहती हैं कि गुरु ही एकमात्र वह मार्गदर्शक हैं, जो आत्म-ज्ञान का सच्चा प्रकाश दिखा सकते हैं। गुरु की शरण ही सच्ची भक्ति है।

सहजोबाई की साहित्यिक विशेषताएँ

- भाषा की सरलता: सहजोबाई के पदों में सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया गया है। उनके पदों में ब्रज भाषा, अवधी, और खड़ी बोली का मेल है, जिससे उनकी रचनाएँ सहजता से समझ में आती हैं।

- सरल शैली: सहजोबाई ने अपने विचारों को सरल और स्पष्ट शब्दों में व्यक्त किया है। उनकी शैली में सहजता और भावुकता का मेल देखने को मिलता है।

- आध्यात्मिकता और भक्ति का मिश्रण: उनके पदों में भक्ति, आत्म-साक्षात्कार और अद्वैत वेदांत के गहरे विचार समाहित हैं।

सहजोबाई के पद और कृतियाँ आज भी भक्तों और साधकों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। उनका साहित्य भक्ति और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होने का सटीक मार्गदर्शन देता है। उनके पद आज भी संत परंपरा के अनुयायियों के लिए ज्ञान, प्रेम, और भक्ति की अमूल्य धरोहर बने हुए हैं।

सहजोबाई का धार्मिक संदेश गहरी भक्ति, आत्म-साक्षात्कार, और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण पर आधारित है। उनका मानना था कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए किसी बाहरी दिखावे या कठिन तप की आवश्यकता नहीं है; सच्चे प्रेम, सरलता, और गुरु की शरण में रहने से ही जीवन का असली अर्थ समझा जा सकता है। उनके संदेश का मुख्य उद्देश्य भक्तों को भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना और उन्हें आत्मिक शांति और मुक्ति का मार्ग दिखाना था।

सहजोबाई के प्रमुख धार्मिक संदेश

1. गुरु का महत्व

- सहजोबाई के अनुसार, गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति असंभव है। गुरु ही साधक को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं और उन्हें अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में लाते हैं। वे कहती हैं, “गुरु बिना कौन दिखावे, सच्चा है कौन प्रकाश।”

2. आत्म-साक्षात्कार और अद्वैत

- सहजोबाई का मानना था कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत का समर्थन करते हुए यह कहा कि हमारे भीतर ही ईश्वर का वास है। बाहरी संसार में ईश्वर को खोजने के बजाय, हमें अपने भीतर ही उसकी खोज करनी चाहिए।

3. माया और संसार से मुक्ति

- सहजोबाई संसार को माया का जाल मानती थीं, जो व्यक्ति को ईश्वर से दूर ले जाता है। वे कहती हैं कि सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर ही व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर की निकटता को पा सकता है। उनके अनुसार, माया केवल अज्ञान का प्रतीक है, और इसे त्यागकर ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।

4. सहज भक्ति का मार्ग

- सहजोबाई का मानना था कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए किसी कठोर तपस्या की आवश्यकता नहीं है। भक्ति एक सरल और सहज साधना है, जिसमें व्यक्ति अपने मन को शुद्ध करता है और ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम और समर्पण के भाव से जुड़ता है। उन्होंने बताया कि ईश्वर तक पहुँचने के लिए कोई जटिल साधना नहीं, बल्कि सरलता और प्रेम की भावना ही काफी है।

5. सच्ची भक्ति और प्रेम

- सहजोबाई ने प्रेम को भक्ति का आधार माना। उनके अनुसार, जब हम सभी के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखते हैं, तो हमारे भीतर ईश्वर का वास होता है। उन्होंने कहा कि प्रेम और सेवा का भाव ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है।

6. धर्म का असली स्वरूप

- सहजोबाई के अनुसार, धर्म बाहरी आडंबर में नहीं बल्कि मन की शुद्धता में है। वे कहती हैं कि धर्म का उद्देश्य हमें ईश्वर से जोड़ना है और इसमें बाहरी रीति-रिवाजों का ज्यादा महत्व नहीं है। उन्होंने जीवन के हर कार्य में ईश्वर के प्रति प्रेम और सेवा के भाव को प्रमुख माना।

सहजोबाई के संदेश का सार

सहजोबाई का संदेश आत्म-ज्ञान, गुरु भक्ति, और सहज भक्ति पर आधारित था। उनके अनुसार, हमें बाहरी वस्तुओं और संसारिक भोगों में सुख तलाशने के बजाय, अपने भीतर के ईश्वर से जुड़ने का प्रयास करना चाहिए। गुरु के मार्गदर्शन में रहकर साधना करना और सच्चे प्रेम से सभी के प्रति करुणा का भाव रखना ही सच्ची भक्ति है।

सहजोबाई के धार्मिक संदेश में यह शिक्षा मिलती है कि प्रेम, सरलता और ईश्वर के प्रति समर्पण ही व्यक्ति को उसकी आत्मिक शांति की ओर ले जाता है और माया के बंधनों से मुक्त कर सकता है।

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