सासरियै ना जाऊ मेरी माँ

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10/25/20251 मिनट पढ़ें

सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में ।

सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में । ।

ना चाहिए तेरे हार झालरे, काठ की माला पाऊ मेरी माँ ।

मेरा मन लगा फकीरी में । ।

सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में ।

ना चाहिए तेरी तील रेशमी, भगवा बाना पाऊ मेरी माँ ।

मेरा मन लगा फकीरी में । ।

सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में ।

ना चाहिए तेरी महल हवेली, झोपडी में समय बिताऊ मेरी माँ ।

मेरा मन लगा फकीरी में । ।

सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में ।

ना चाहिए तेरे पलंग निवारी, धरती में लेट लगाऊ मेरी माँ ।

मेरा मन लगा फकीरी में । ।

सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में ।

ना चाहिए तेरा हलवा-पूरी, बासी टुकड़ा खाऊ मेरी माँ ।

मेरा मन लगा फकीरी में , सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में ।

मीरा ने रविदास मिलै जी, गुरुवा के गुण गाऊ मेरी माँ ।

मेरा मन लगा फकीरी में ,सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में ।।

यह भजन “मीरा के विरक्त भाव” और “फकीरी (त्याग, भक्ति और आत्म-साक्षात्कार)” की भावना को गहराई से दर्शाता है। आइए इसके गूढ़ रहस्य (अंतरभावार्थ) को एक-एक परत में समझते हैं —

🌼 मुख्य भावार्थ (सारांश):

यह भजन एक ऐसी आत्मा (भक्त) की वाणी है जो संसारिक मोह-माया, भोग-विलास, और सामाजिक बंधनों से ऊपर उठकर ईश्वर-प्रेम और फकीरी (संतत्व) में लीन हो चुकी है।
वह कहती है —“अब मेरा मन संसार के बंधन में नहीं लगता, मेरा मन तो भक्ति, विरक्ति और फकीरी में रम गया है।”

🌸 पंक्ति-दर-पंक्ति गूढ़ रहस्य

1. “सासरियै ना जाऊ मेरी माँ, मेरा मन लगा फकीरी में।”
🔹 प्रतीक अर्थ:
“सासर” = सांसारिक जीवन, गृहस्थी, बंधन, जिम्मेदारियाँ।
“ना जाऊ” = अब उस जीवन की ओर लौटना नहीं चाहती।
“फकीरी” = आत्मिक स्वतंत्रता, ईश्वर की खोज, भक्ति का मार्ग।

👉 यह पंक्ति बताती है कि साधक ने संसार की चकाचौंध को त्याग दिया है।
वह अब आध्यात्मिक विवाह में बंध चुकी है — उसका पति अब परमात्मा है, न कि लौकिक जीवन।

2. “ना चाहिए तेरे हार झालरे, काठ की माला पाऊ मेरी माँ।”
🔹 प्रतीक अर्थ:
“हार-झालरे” = भौतिक आभूषण, दिखावा।
“काठ की माला” = साधु की सादगी, नाम-स्मरण का प्रतीक।

👉 भौतिक सौंदर्य का त्याग कर, साधक ने नाम-जप, भक्ति की सादगी को अपनाया है।
वह कहती है — “अब मुझे सोने-चाँदी का हार नहीं, प्रभु नाम की माला चाहिए।”

3. “ना चाहिए तेरी तील रेशमी, भगवा बाना पाऊ मेरी माँ।”
🔹 प्रतीक अर्थ:
“तील रेशमी” = ऐश्वर्य, रंगीन वस्त्र, विलासिता।
“भगवा बाना” = त्याग, साधुता, वैराग्य।

👉 साधक अब संसार के रंगों से हटकर त्याग के रंग (भगवा) में रंगी है।
यह मीरा का “रंग दे चुनरिया मेरो साँवरिया रंग दे” भाव ही है —
जहाँ वह कहती है — “अब मैं केवल तेरे रंग में रंगना चाहती हूँ, हे कृष्ण।”

4. “ना चाहिए तेरी महल हवेली, झोपड़ी में समय बिताऊ मेरी माँ।”
🔹 प्रतीक अर्थ:
“महल हवेली” = अहंकार, वैभव, स्थूल जीवन।
“झोपड़ी” = विनम्रता, साधकत्व, आत्म-संतोष।

👉 यहाँ झोपड़ी प्रतीक है मन के उस आश्रम का, जहाँ भक्ति की शांति बसती है।
भक्त को अब वैभव की आवश्यकता नहीं, उसे बस प्रभु की उपस्थिति चाहिए।

5. “ना चाहिए तेरे पलंग निवारी, धरती में लेट लगाऊ मेरी माँ।”
🔹 प्रतीक अर्थ:
“पलंग” = आराम, सुख।
“धरती” = विनम्रता, सरल जीवन, प्राकृतिक अवस्था।

👉 सच्चा फकीर धरती पर सोता है — वह बताता है कि अब सुख-सुविधा नहीं,
प्रकृति की गोद और ईश्वर की शांति ही मेरा आसन है।

6. “ना चाहिए तेरा हलवा-पूरी, बासी टुकड़ा खाऊ मेरी माँ।”
🔹 प्रतीक अर्थ:
“हलवा-पूरी” = स्वाद, इंद्रिय-सुख।
“बासी टुकड़ा” = तृप्ति का त्याग, संयम, संतोष।

👉 फकीर का भोजन प्रेम से भरा होता है, न कि स्वाद से।
यहाँ संदेश है — “जब मन का भूख (मोह) मिट गया, तब पेट की भूख भी छोटी लगती है।”

7. “मीरा ने रविदास मिलै जी, गुरुवा के गुण गाऊ मेरी माँ।”
🔹 प्रतीक अर्थ:
यहाँ मीरा का आत्म-प्रतीक है — वह स्वयं को उस भक्त के रूप में देखती है,
जिसे गुरु रविदास का संग मिला।
गुरु का सान्निध्य ही उसे फकीरी के मार्ग पर ले गया।

👉 गुरु = आत्मजागरण का माध्यम।
“गुरु के गुण गाना” = उस मार्ग का अनुसरण करना जो मुक्ति की ओर ले जाए।

🌺 आध्यात्मिक रहस्य (गूढ़ अर्थ):

यह भजन केवल गृह-त्याग की बात नहीं करता —
बल्कि “अहंकार-त्याग”, “माया-विमुक्ति” और “भक्ति के मार्ग में पूर्ण आत्मसमर्पण” का गीत है।

  • “सासर” = संसार और उसके बंधन

  • “माँ” = माया (जो बाँधती है)

  • “फकीरी” = उस अवस्था का नाम जहाँ ‘मैं’ मिट जाता है, केवल ‘वह’ रह जाता है

👉 यह भजन वास्तव में आत्मा की पुकार है —
“अब मैं संसार की बेटी नहीं, ईश्वर की दासी हूँ।”

🕊️ ध्यान-मनन के प्रश्न:

1. क्या मैंने अपने जीवन में कभी “फकीरी का स्वाद” चखा है — जब मन किसी वस्तु से नहीं बंधा?

2. क्या मैं अपने जीवन की “माँ” (माया) से मुक्ति के लिए तैयार हूँ?

3. क्या मेरी “माला” दिखावे की है या नाम-स्मरण की?

4. क्या मेरा मन अभी भी महलों की चाह में है या झोपड़ी की शांति में?

🌼 कहानी – “मीरा की फकीरी की राह”

🌸 1. सांसारिक दुल्हन — पर आत्मा की प्यास

एक गाँव में एक युवती रहती थी — मीरा
घर में सब कहते — “अब बड़ी हो गई है, ब्याह का समय आ गया है।”
माँ ने सोने की चूड़ियाँ, रेशमी चुनरी और सुहाग का सामान सजाया।

पर मीरा का मन अजीब था।
वह खिड़की से दूर क्षितिज को देखती और कहती —

“माँ, मुझे मत भेजो सासर (संसार) — मेरा मन कहीं और लगा है।”

माँ हँसकर कहती —

“कहाँ लगी है तेरा मन?”

और मीरा मुस्कुरा देती —

“फकीरी में, माँ — उस रास्ते में जहाँ सब कुछ छोड़कर भी सब मिल जाता है।”

🕊️ 2. भोग की जगह भक्ति

माँ ने हार, झालर, और रेशमी साड़ी सामने रखी।
मीरा ने उन्हें देखा और धीरे से कहा —

“माँ, ये सब छोड़ दे।
मुझे तो बस काठ की माला दे — मैं उसी से नाम जपूँगी।”

उसकी आँखों में चमक थी,
जैसे उसने दुनिया के सौंदर्य से ऊपर किसी और सौंदर्य को देख लिया हो।

माँ बोली — “बेटी, तू तो दीवानी हो गई है।”
मीरा ने कहा —

“हाँ माँ, अब मेरा दीवानापन भक्ति का है।
तेरे सोने-चाँदी के हार की जगह अब प्रभु नाम का हार पहनूँगी।”

🌺 3. रेशमी वस्त्रों से भगवे बाने तक

अगले दिन माँ ने नई साड़ी दी — लाल रेशमी तिलकारी वाली।
मीरा बोली —

“माँ, अब मेरा श्रृंगार भगवे में है।
अब मैं किसी मनुष्य की दुल्हन नहीं, उस अनदेखे प्रेमी की दासी हूँ —
जिसका नाम हर कण में गूँजता है।”

उसने साड़ी उतारी और एक सादा भगवा वस्त्र पहन लिया।
माँ के आँसू बह निकले —

“बेटी, लोग क्या कहेंगे?”
मीरा ने शांत स्वर में कहा —
“लोग कहेंगे मीरा पागल है, पर मैं जानती हूँ — अब मैं मुक्त हूँ।”

🌻 4. महल छोड़कर झोपड़ी की शांति

माँ ने कहा — “बेटी, तेरा महल तैयार है, तेरे लिए रेशमी बिस्तर है।”
मीरा हँसकर बोली —

“माँ, मुझे झोपड़ी दे दे — वहाँ शांति है, वहाँ मैं खुद को सुन सकती हूँ।”

वह कच्ची झोपड़ी में बैठकर वीणा बजाने लगी।
बाजार के लोग उसे देखकर कहते — “राजकुमारी झोपड़ी में क्यों?”
वह मुस्कुराती —

“क्योंकि महलों में नींद नहीं, झोपड़ी में शांति है।”

🌾 5. धरती बिछौना, आकाश ओढ़ना

मीरा अब ज़मीन पर सोती थी।
उसका तकिया मिट्टी था और चादर आकाश।
कभी-कभी वह तारों को देखकर कहती —

“देखो, ये सब मेरे साथी हैं।
यहाँ पलंग की ज़रूरत नहीं — धरती ही साक्षात् माँ है।”

उसके भीतर का अहंकार अब गल चुका था।
वह “मैं कौन हूँ” की खोज में डूबी रहती।

🍞 6. हलवा-पूरी नहीं, प्रेम का टुकड़ा

माँ कभी उसे हलवा-पूरी लाकर देती।
मीरा मुस्कुरा देती और कहती —

“माँ, अब मुझे बस एक टुकड़ा रोटी दे दे।
वह भी अगर प्रेम से मिले तो अमृत है।”

उसे अब स्वाद नहीं चाहिए था —
उसने प्रेम का स्वाद पा लिया था, जो कभी पुराना नहीं होता।

🔱 7. रविदास का मिलन और आत्मा की जागृति

एक दिन जब मीरा गली में भजन गा रही थी,
वहीं से संत रविदास गुज़रे।
उन्होंने कहा —

“बेटी, तेरी फकीरी सच्ची है, अब तेरी राह पूर्ण होगी।”

रविदास ने उसे ज्ञान दिया —

“संसार को त्यागना नहीं,
उसे देखकर भी उससे ऊपर उठ जाना सीख।”

मीरा ने चरण छुए और बोली —

“गुरुजी, अब मुझे सब समझ में आ गया।
यह जगत न बुरा है, न अच्छा — बस एक मेला है।
और मैं अब माया की बेटी नहीं, ईश्वर की दासी हूँ।”

वह गाने लगी —

“मीरा ने रविदास मिलै जी, गुरुवा के गुण गाऊ मेरी माँ।”

🌺 8. अंत — फकीरी का परम सुख

अब मीरा नगर में नहीं, अपने भीतर रहती थी।
वह लोगों से कहती —

“फकीरी कोई गरीबी नहीं है, यह आत्मा की अमीरी है।”
“जिसे कुछ न चाहिए, उसे सब मिल जाता है।”

माँ अब चुप थी।
वह जान गई थी —

“मीरा अब सासर की नहीं, उस असीम के घर की हो गई है।”

🌻 अंतिम संदेश:

“फकीरी का अर्थ है — जब आत्मा अपनी असली संपत्ति पहचान ले।”
“जब तू कहती है ‘सासरियै ना जाऊ मेरी माँ’,
तो तू कह रही होती है — अब मैं संसार की बेटी नहीं,
परमात्मा की प्रेमिका हूँ।”