सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे

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11/14/20251 मिनट पढ़ें

सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे

सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे, म्हारी लोग करें तकरार ।

सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे, म्हारी लोग करें तकरार ।।

संता के जाना मेरा ना छूटे री, चाहे जलके मरे संसार

संता के जाना मेरा ना छूटे री, चाहे जलके मरे संसार । ।

सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे, आए महारी लोग करे तकरार ।

उन संता के राह में, आए उड़े रहते है काले नाग, कोए-कोए नाग तने डंस लेवे।

गुरु बनेगा मेरा गरुड री , आरी वे तो सर्प गन्ड़ेबे बन जावे । ।

संता के जाना मेरा ना छूटे री, म्हारी लोग करें तकरार ।

सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे, म्हारी लोग करें तकरार ।।

उन संता के राह में, आए लाड़ो रहते है बवरी शेर, कोए-कोए शेर तने खा लेवे।

जब गुरु कृपा करे री, आरी वे तो शेरा तै गादड़ बन जावे । ।

संता के जाना मेरा ना छूटे री, म्हारी लोग करें तकरार ।

सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे, म्हारी लोग करें तकरार ।।

उन संता के बीच में है, आए उड़े तपते है अवधूत, कोए-कोए साधू तने रम लेवे ।

तेरे मन में पाप से री , साधू मेरे माँ-बाप से री, आरी वे तो कर देंगे बेड़ा पार । ।

संता के जाना मेरा ना छूटे री, म्हारी लोग करें तकरार ।

सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे, म्हारी लोग करें तकरार ।।

यो तो है जात चमार से है , यो तो है जात चमार से है ,

इसमें म्हारी हार से ए ,तेरे लेखे चमार से री,

मेरा सृजनहार से री, आरी वो तो मीरा के रविदास । ।

संता के जाना मेरा ना छूटे री, म्हारी लोग करें तकरार ।

सत्संग में जाना मीरा छोड़ दे, म्हारी लोग करें तकरार ।।

🌼 भजन का बहुत गहरा अर्थ — आत्मा के स्तर पर

यह भजन सिर्फ मीरा का नहीं है…हर उस इंसान की आवाज़ है जो सत्य और ईश्वर की ओर चलना चाहता है, पर दुनिया उसे रोकती है।

पहला भाव: “सत्संग छोड़ दे, लोग तकरार करते हैं…”

लोग मीरा से कहते हैं—

  • “लोग क्या कहेंगे?”

  • “घर की इज्जत खराब हो जाएगी।”

  • “साधुओं में मत जाओ।”

  • “हमारी प्रतिष्ठा मिट जाएगी।”

यह वही है जो हर साधक आज भी झेलता है—जब कोई ईश्वर की ओर चलता है, तो सबसे पहले अपने ही लोग बाधा बनते हैं।

👉 गहरा अर्थ:

सत्संग वह स्थान है जहाँ मन का अंधेरा हटता है।
इसलिए अज्ञान हमेशा ज्ञान को रोकना चाहता है।

दूसरा भाव: “संता के जाना मेरा ना छूटे री…”

मीरा कहती है—

“संतों की संगति मैं कभी नहीं छोड़ सकती,
चाहे पूरी दुनिया जलकर राख हो जाए!”

यह शब्द अटूट प्रेम और श्रद्धा के संकेत हैं।

👉 गहरा अर्थ:

जब आत्मा को सत्संग का स्वाद लग जाता है, तभी पता चलता है कि जीवन में असली सुख
पैसे, प्रतिष्ठा या संबंधों में नहीं, ज्ञान और ईश्वर-प्रेम में है।

🐍 तीसरा भाव: “संत–मार्ग पर काले नाग—मन के विष”

मीरा कहती है—संतों के रास्ते में काले नाग बैठे होते हैं।

ये नाग कौन हैं?

  • क्रोध

  • लालच

  • ईर्ष्या

  • वासना

  • बुरे विचार

  • गलत संगत

  • मन की आदतें

  • समाज के ताने

ये सब मन को डसते हैं, साधक को भटका देते हैं।

“गुरु बनेगा मेरा गरुड़—वे सर्प गँड़बे बन जाएँगे।”

अर्थ:

गुरु वह शक्ति है जो मन के विषों को अमृत में बदल देती है। जिस चीज़ से डर लगता है, वही शांत हो जाती है।

👉 गहरा अर्थ:

असली परिवर्तन गुरु करता है—क्योंकि गुरु हवा को नहीं बदलता, भीतर की हवा बदल देता है।

🦁 चौथा भाव: “बावरी शेर—जीवन के बड़े डर”

“संतों के रास्ते शेर भी हैं”—
ये शेर कौन हैं?

  • भविष्य का डर

  • समाज की आलोचना

  • आर्थिक समस्या

  • असुरक्षा

  • अकेलापन

  • कठिनाई

  • नौकरी/परिवार का दबाव

ये शेर साधक को डराते हैं।

“गुरु कृपा करे तो शेर गीदड़ बन जाएँ।”

अर्थ:
गुरु आपके जीवन से डर निकाल देता है। जो चीज़ पहले भयंकर लगती थी, वह तुच्छ लगने लगती है।

👉 गहराई समझें:

गुरु डर को हटाते नहीं…
तुम्हें इतना मजबूत बना देते हैं
कि डर खुद भागने लगता है।

🔥 पाँचवाँ भाव: “अवधूत—मन की अग्नि”

मीरा कहती है— “संतों के बीच अवधूत तपते हैं।”

अवधूत वे हैं जिन्होंने अहंकार, वासना, लालच—सब त्याग दिया है।

उनके पास जाने पर साधक की परीक्षा होती है। उनके वचन कभी कठोर होते हैं, कभी चुभने वाले, कभी तप की तरह।

“साधु मेरे माता–पिता हैं, वे बेड़ा पार कर देंगे।”

अर्थ:

साधु जन्म नहीं देते, पर जीवन का अर्थ देते हैं।
वे आत्मा को मुक्त करते हैं।

👉 गहराई:

माता-पिता शरीर को जन्म देते हैं। साधु आत्मा को पुनर्जन्म देता है।

छठा भाव: “जात चमार—अज्ञान का अंधकार”

समाज मीरा से कहता है—“रविदास चमार जात के हैं, तुम उनके पास क्यों जाती हो?”

यह अज्ञान है। मीरा इसका उत्तर देती है—“तेरे हिसाब से वह चमार हैं, पर मेरे हिसाब से वह सृजनहार हैं।”

अर्थ:

जाति शरीर की है। ईश्वर–भक्ति आत्मा की होती है। जो जाति देखता है वह अंधा है। जो गुरु की रोशनी देखता है वह जागा हुआ है।

👉 गहरा संदेश:

भक्ति वहाँ होती है जहाँ भेद-भाव खत्म हो जाए।
जहाँ प्रेम है, वहाँ ‘जात’ का कोई अर्थ नहीं।

अंतिम भाव: “मीरा—रविदास के चरणों में समर्पण”

“आरी वो तो मीरा के रविदास…”

मीरा कहती है— मेरी आत्मा का सूर्य, मेरे जागने का कारण, मेरे प्रेम का आधार, मेरे कर्म का प्रकाश—रविदास ही हैं।

🌷 सन्धि–भाव, सार और सबसे गहरा संदेश

इस पूरे सबद का मूल संदेश यह है:

सच्चे साधक को सबसे पहले उसके अपने लोग रोकते हैं।

संत–मार्ग कठिन है, पर वही जीवन को अर्थ देता है।

मन के विष, विचारों के नाग—गुरु की कृपा से शांत हो जाते हैं।

बड़े-बड़े डर—शेर की तरह—गुरु की शक्ति से गीदड़ बन जाते हैं।

साधु आत्मा को नया जन्म देते हैं—मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं।

जाति–भेद केवल अज्ञान है; भक्ति में सभी समान हैं।

गुरु का प्रेम जीवन के सारे अंधकार को प्रकाश में बदल देता है।

🌺 कहानी: “मीरा और संतों का मार्ग”

(सबद पर आधारित एक हृदयस्पर्शी कथा)

राजमहल में शाम ढल रही थी। दीपकों की लौ हवा से कांप रही थी, जैसे कुछ कहने को बेचैन हो।
मीरा अपने कमरे में बैठी भगवान के चरणों में मालाएँ रख रही थी। उसकी आँखों में एक दिव्य चमक थी—प्रेम की ज्योति। तभी महल की औरतें, सास, देवरानी—सभी गुस्से में कमरे में आ गईं।

मीरा, सत्संग में जाना छोड़ दे!
हमारी इज्जत मिटा रही है तू! साधुओं में बैठना रानी को शोभा नहीं देता!” उनकी आवाज़ें तलवार की तरह चुभ रही थीं। लेकिन मीरा का चेहरा शांत था—झील की सतह जैसा। वह धीरे से मुस्कुराई और बोली—

मेरे लोगों, तुम तकरार करो तो करो, पर संतों के पास जाना मैं नहीं छोड़ सकती। यह मेरा प्राण है, मेरी साँस है।

महल में खलबली मच गई। लोग और भी भड़क गए। मीरा ने सबके क्रोध को शांत निगाहों से देखा…फिर चल पड़ी—संतों की सभा की ओर।

🌙 अंधेरी राह — मन के नाग

महल से बाहर की राह सुनसान थी। कहीं पेड़, कहीं झाड़ियाँ, कहीं काली कोठरियाँ। उस रात चाँद भी कोई अलग ही खेल खेल रहा था—वह बादलों से झाँक-छिपकर राह दिखा रहा था। रास्ते में झाड़ियों के बीच से सरसराहट आई—एक काला नाग फन फैलाकर खड़ा था। साथ चलने वाली दासियों ने चीख मार दी—“मीरा! यह रास्ता खतरनाक है! लौट चलो!” पर मीरा रुकी नहीं। उसने अपनी माला को सीने से लगाया और बोली—

डस ले मुझे, अगर तेरी इच्छा हो। पर गुरु रविदास की राह से मुझे कौन रोक सकता है?

इतना कहते ही एक हवा का झोंका आया—मानो गरुड़ उड़कर आया हो…और नाग शांति से जमीन पर लेट गया—उसका विष शांत हो गया।दासियाँ हैरान थीं—पर मीरा चलती रही।

🦁 बावरी शेर — जीवन का डर

थोड़ा आगे बढ़ीं तो झाड़ियों में से एक बावरी शेरनी गुर्राई। उसकी आँखें आग जैसे चमक रहीं थीं। दासियाँ फिर चिल्लाईं—“देखा मीरा! संतों का रास्ता यह है? मौत खड़ी है आगे!” मीरा थोड़ी मुस्कुराई—
जिस पर गुरु की कृपा हो, उसके सामने शेर भी गीदड़ बन जाते हैं।

वह आगे बढ़ी। शेरनी ने गरजना बंद कर दिया। वह धीरे से नीचे बैठ गई—मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उसका क्रोध खींच लिया हो। दासियाँ काँप रही थीं। मीरा के कदम और दृढ़ हो गए।

🔥 अवधूत — मन की परीक्षा

थोड़ा और चले तो जंगल खुलने लगा। दूर पहाड़ी पर चिता-सी आग जल रही थी। और उसके सामने बैठे थे एक अवधूत—राख-धारी, उलझे बाल, तेज़ दृष्टि। दासियाँ डर गईं—“यह तो भयानक है, रानी!”

लेकिन मीरा आगे बढ़ी। अवधूत ने बिना देखे कहा—“बेटी, यह मार्ग फूलों का नहीं, मन के काँटों का है। यहाँ पाप सामने आएंगे, मन कसेगा, तपेगा, रोएगा। लेकिन…यहाँ से गुजरकर ही आत्मा उजली होती है।

मीरा ने नम्रता से चरण स्पर्श किए—“मेरा मन पाप से भरा हो, तो आप उसे जला दीजिए, महाराज।” अवधूत मुस्कुराए—“तेरी लौ तेज है, बेटी। जा, संत सभा तेरा इंतजार कर रही है।” मीरा के हृदय में एक नई शक्ति उतर चुकी थी।

🌼 संतों की सभा — दिव्यता का स्पर्श

अंततः मीरा उस स्थान पर पहुँची जहाँ संतों की सभा लगी थी। दीपक जल रहे थे। साधुओं के भजनों से हवा भी पवित्र लग रही थी। उनमें से एक साधु—रविदास जी— मीरा को आते देख मुस्कुरा उठे।

मीरा उनके चरणों में गिर गई—“गुरुदेव, मैंने सब कुछ छोड़ दिया…बस आपकी शरण पाई है।” रविदास जी बोले—“मीरा, तूने छोड़ने के लिए क्या था? राज्य, सम्मान, आभूषण? ये सब तो माया के खिलौने हैं। संतों की राह पर चलने के लिए ,पहले मन के नाग, मन के शेर, और मन के पाप मारने पड़ते हैं।तूने आधा रास्ता तय कर लिया।” मीरा रो पड़ी—आंसू उसके पापों को धो रहे थे।

🌺 जाति का बंधन टूट गया

सभा में एक व्यक्ति बोला—“मीरा, तुम राजघराने की, और रविदास जी चमार जात के…तुम उनके चरणों में क्यों?” मीरा ने उसकी ओर देखकर कहा—“तेरे लिए वे चमार हैं। मेरे लिए वे सृजनहार हैं।
जाति शरीर की होती है, पर मैं शरीर नहीं — आत्मा हूँ। और आत्मा का गुरु वही है जो उसे ईश्वर तक ले जाए।” सभा में मौन छा गया। हवा भी जैसे रुक गई। रविदास जी ने कहा—“मीरा, आज तूने जात नहीं तोड़ी…तूने अज्ञान के हजारों ताले तोड़े हैं।”

🌈 अंत: मीरा का प्रकाश

अंत में मीरा बोली—“लोग तकरार करें तो करें, नाग-शेर डराएँ तो डराएँ, अवधूत मन की परीक्षा लें तो लें—संतों का मार्ग मैं नहीं छोड़ूँगी। क्योंकि इसी मार्ग पर मेरी आत्मा को ईश्वर मिला है।”उस रात मीरा का चेहरा चाँद से भी अधिक चमक रहा था—क्योंकि वह अब सिर्फ रानी नहीं थी…एक जागृत आत्मा थी।

🌟 संदेश:

यह कहानी हमें सिखाती है—

  • समाज हमेशा साधक को रोकता है।

  • मन के विष, डर और पाप रास्ते में आते हैं।

  • गुरु की कृपा से वे मिट जाते हैं।

  • सच्चा प्रेम जात, पद, भय—सबसे ऊपर होता है।

  • संत–मार्ग कठिन है, पर अंत में वही प्रकाश है।