सविकल्प और निर्विकल्प समाधि का विस्तृत विवरण

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3/24/20251 मिनट पढ़ें

सविकल्प और निर्विकल्प समाधि का विस्तृत विवरण

योग और ध्यान में समाधि को आत्मबोध की अंतिम अवस्था माना जाता है। समाधि अवस्था में साधक अपने चित्त को एकाग्र कर परम सत्य की अनुभूति करता है। समाधि के दो प्रमुख प्रकार होते हैं – सविकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि

1. सविकल्प समाधि (Savikalpa Samadhi)

अर्थ और परिभाषा:

सविकल्प समाधि वह अवस्था है जिसमें साधक अभी भी विचारों और रूपों के स्तर पर होता है, लेकिन वह इन विचारों से प्रभावित हुए बिना आत्मा के सत्य को अनुभव करता है। इसमें अभी भी "कल्प" यानी विकल्प (विचार) मौजूद रहते हैं, लेकिन वे शांत और नियंत्रित होते हैं।

विशेषताएँ:

  1. चेतना सक्रिय रहती हैसाधक को आत्मज्ञान तो होता है, लेकिन विचार, अनुभव और ध्यान की प्रक्रिया बनी रहती है।

  2. ध्यान का एक विषय होता हैसाधक किसी मंत्र, प्रकाश, किसी देवता, या किसी विचार पर ध्यान केंद्रित करता है।

  3. अहंभाव बना रहता हैसाधक को यह पता होता है कि "मैं ध्यान कर रहा हूँ"।

  4. आंतरिक शांति और आनंदइस अवस्था में आनंद, शांति और दिव्य अनुभूति का अनुभव होता है।

  5. मन और बुद्धि का प्रयोग होता हैसाधक अभी भी आत्मा और परमात्मा को बुद्धि के माध्यम से अनुभव कर रहा होता है।

उदाहरण:

जब कोई ध्यान में गहराई से डूब जाता है और एक दिव्य प्रकाश, मंत्र, या किसी विशेष विचार पर ध्यान केंद्रित करता है, तो वह सविकल्प समाधि की स्थिति में होता है।

2. निर्विकल्प समाधि (Nirvikalpa Samadhi)

अर्थ और परिभाषा:

निर्विकल्प समाधि योग का सबसे उच्चतम स्तर होता है, जिसमें साधक अपने सारे विचारों, अहंकार, और मानसिक गतिविधियों से परे चला जाता है। इसमें कोई भी "कल्प" (विचार या विकल्प) शेष नहीं रहता और केवल शुद्ध चेतना ही बचती है।

विशेषताएँ:

  1. पूर्ण विचारशून्यताइस अवस्था में साधक का चित्त पूरी तरह से शांत और विचारों से मुक्त हो जाता है।

  2. अहंकार का पूर्ण लय – "मैं" और "मेरा" का भाव समाप्त हो जाता है, और केवल ब्रह्म की अनुभूति होती है।

  3. समय और स्थान का बोध नहीं रहतासाधक को न तो शरीर की अनुभूति होती है, न ही कोई बाहरी दुनिया का ज्ञान।

  4. आत्मा और परमात्मा का मिलनसाधक को अहसास होता है कि वह स्वयं ही ब्रह्म है ("अहं ब्रह्मास्मि")।

  5. स्थायी आनंद और मोक्ष की अवस्थायह स्थायी शांति, आनंद और अनंत ज्ञान की अवस्था होती है।

उदाहरण:

योगियों और संतों की यह अंतिम अवस्था होती है, जहाँ वे बाहरी जगत से पूर्णत: विलीन होकर परमात्मा में लीन हो जाते हैं।

मुख्य अंतर

विशेषता सविकल्प समाधि निर्विकल्प समाधि

विचारों की उपस्थिति विचार रहते हैं लेकिन नियंत्रित होते हैं पूर्ण विचारशून्यता होती है

अहंकार की स्थिति "मैं ध्यान कर रहा हूँ" की अनुभूति बनी रहती है "मैं" का भाव विलीन हो जाता है

चेतना की अवस्था ध्यान का विषय रहता है केवल शुद्ध चेतना होती है

समय और स्थान की अनुभूति समय और स्थान की सीमाएं बनी रहती हैं समय और स्थान का बोध समाप्त हो जाता है

परम सत्य की अनुभूति ज्ञान का अनुभव होता है लेकिन पूर्ण विलय नहीं ब्रह्म से पूर्णत: एकत्व का अनुभव

लक्ष्य ध्यान की गहन अवस्था मोक्ष और पूर्ण आत्मसाक्षात्कार

निष्कर्ष

सविकल्प समाधि ध्यान का एक उन्नत स्तर है, जहाँ विचार और चेतना अभी भी सक्रिय रहते हैं। वहीं, निर्विकल्प समाधि अंतिम लक्ष्य होती है, जहाँ साधक स्वयं को ब्रह्म के रूप में अनुभव करता है और समस्त द्वंद्वों से मुक्त हो जाता है। योग और ध्यान के मार्ग में ये दोनों अवस्थाएँ महत्वपूर्ण हैं, और इनके माध्यम से साधक आत्मबोध तथा मोक्ष की ओर बढ़ता है।