मैं और मैं में अन्तर

अपने मै को पहचाने

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10/7/20241 मिनट पढ़ें

सभी साधकों के मन में समय-समय पर प्रश्न आते रहते होंगे, इसी तरह एक प्रश्न है कि सांसारिक मैं, और आध्यात्मिक मैं में क्या अन्तर रहता है। दोनों मैं में शरीर एक ही है, परन्तु सोचने-विचारने पर पता लगता है कि कौन-सा मैं क्या है।

सांसारिक (मैं)

1 . यह संसार (लौकिक) की यात्रा करवाता है।

  1. यह भौतिक वस्तुएँ के कारण पैदा होता है, जैसे धन, मान, यश इत्यादि।

  1. यह अहंकार को उत्पन्न करता है।

  1. इसके लिए सदैव दूसरों की आवश्यकता रहती है, दिखाने के लिए।

  2. यह आपको विनाश और पतन की ओर ले जाता है।

  1. इस मैं के कारण आपको संसार में आपके मित्र बहुत ज्यादा मिल जाते है।

  2. इस मैं में आपके पास दिखाने के लिए प्रमाण है जैसे पैसा, कपडा, गाडी, घर आदि।

  3. इस मैं में सभी सांसारिक रिश्ते आपके साथ है जैसे पत्नी/पति, भाई-बहन इत्यादि।

  4. यह अंतिम समय में अकेलापन महसूस करवाता है।

  1. यह अंतिम समय में परलोक की चिंता करता है और उसी में मर जाता है।

आध्यात्मिक (मैं)

1. यह मन (पारलौकिक) की यात्रा करवाता है।

  1. यह मानसिक क्रियाओं से उत्पन्न होता है, जैसे आनन्द, परमानंद इत्यादि।

  2. यह भक्ति को उत्पन्न करता है।

  3. इसमें स्वयं ही दृष्टा बना रहना होता है|

  4. यह आपको विकास और उत्थान की ओर ले जाता है।

  5. इस मैं में आप केवल अकेले और एकान्तवासी हो जाते है।

  6. इस मैं में आप कुछ नहीं दिखावा कर सकते है जैसे ध्यान, अनुभव आदि।

  7. इस मैं में आपके साथ ज्ञान, भक्ति और ध्यान रहते है।

  8. यह अंतिम समय में सभी का साथ प्रदान करता है।

  9. यह चिन्ता मुक्त होकर मुक्त हो जाता है।