ध्यान किसका करना है !
ध्यान करना है !
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10/9/20241 मिनट पढ़ें
एक नए साधक ने प्रश्न किया है कि ध्यान कैसे करें, किसका ध्यान करें?
ध्यान एक विशेष कला है, जो आपको आपके असली स्वरूप से मिलवाती है। यह कोई बाहरी वस्तु नहीं है, जिसे प्राप्त किया जा सके, न ही यह विज्ञान है जो आपको कुछ बनाकर देगा। ध्यान एक गहरी कला है, जो आपको सम्पूर्ण जगत में आपके अस्तित्व का अनुभव कराती है।
उपरोक्त बातों से यह तो स्पष्ट हो गया होगा कि ध्यान में किसी दूसरे का कोई योगदान नहीं है, इसमें आप स्वयं ही सब कुछ हैं। परन्तु जब आपने ध्यान के बारे में सुना या करने का प्रयास किया होगा, तो आप आँखें बंद करके कुछ न कुछ खोजने की कोशिश करते रहते हैं। यही प्रक्रिया ध्यान नहीं, बल्कि एकाग्रता होती है, जिसमें आप किसी एक बिंदु पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं।
ध्यान में आने वाली चुनौतियाँ
जब आप ध्यान के बारे में सुनते हैं या पढ़ते हैं, तो आपके मन में यह सवाल उठता है कि इसे कैसे किया जाए। परन्तु ध्यान किया नहीं जाता, इसमें होना होता है। इसका मतलब है कि आपको स्वयं में स्थित होना पड़ता है और अपने अंदर सजगता का विकास करना होता है।
ध्यान करते समय आप अक्सर अपने शरीर के चक्रों पर ध्यान केंद्रित करने की बात सुनते हैं, जैसे मूलाधार, तीसरी आँख, सहस्रार चक्र आदि। जब आप ध्यान में बैठते हैं, तो जो आपने सुना या पढ़ा होता है, वही बातें आपके दिमाग में घूमने लगती हैं। जैसे अगर आपने त्राटक ध्यान किया है, तो आप अपनी तीसरी आँख पर एकाग्रता बढ़ाने की कोशिश करते हैं। परन्तु अचानक आपके मन में रैदास, कबीर, नानक, मीरा, दादू, कृष्ण, राम या अन्य गुरु और देवता की छवियाँ दौड़ने लगती हैं। ऐसे में आप ध्यान के दौरान अपना केंद्र बदल देते हैं, और उस स्थिति में पहुँच जाते हैं जहाँ आप नहीं चाहते थे। इसी कारण से ध्यान में एकाग्रता नहीं हो पाती है।
ध्यान का सही स्वरूप
अब तक यह स्पष्ट हो गया होगा कि ध्यान के समय आप स्वयं को नहीं, बल्कि दूसरों को खोजने की कोशिश करते हैं। कभी कृष्ण, कभी कोई संत, दरवेश या गुरु की खोज आप ध्यान में करते रहते हैं। लेकिन ध्यान का असल उद्देश्य तो स्वयं की खोज करना है। ध्यान स्वयं की ओर जाने की यात्रा है, और जब आप इसका प्रयोग दूसरों को जानने के लिए करते हैं, तो यह विफल हो जाता है।
ध्यान वास्तव में स्वयं को जानने की कला है। शुरुआत में आप छोटी-छोटी बातों से इसकी शुरुआत कर सकते हैं, जैसे:
- अगर आप पानी पी रहे हैं, तो धीरे-धीरे पीएं।
- अगर खाना खा रहे हैं, तो जैसे ही आपको महसूस हो कि बस, अब और नहीं, तो वहीं खाना बंद कर दें।
- अगर आप अपने शरीर की बातें सुनने लगेंगे, तो 24 घंटे आप ध्यान में ही रहेंगे। परन्तु अक्सर लोग स्वयं की न सुनकर दूसरों का अनुसरण करते रहते हैं।
ध्यान के कुछ आवश्यक नियम
1. हर रोज कायस्थ (स्वासन) करें, विशेष रूप से सोते समय।
2. खाना जरूरत के हिसाब से खाएं, और हमेशा अपने शरीर की बात सुनें।
3. दिन में एक बार एक गिलास गरम पानी पिएं, जैसे चाय या कॉफी की तरह धीरे-धीरे।
4. अपने शरीर की सुनें — जैसे अगर जूता ज्यादा कसा हुआ है, तो उसे ढीला कर दें; अगर कमर में ज्यादा कसाव है, तो उसे आराम दें।
5. वजन उतना ही उठाएं, जितना आप आसानी से उठा सकते हैं।
ध्यान का असली उद्देश्य स्वयं सेवी बनना है — यानी अपने शरीर और मन की सुनना, न कि दूसरों का अनुसरण करना। आप जैसे हैं, वही सर्वश्रेष्ठ हैं। अपनी तुलना कभी दूसरों से न करें, और हर सुबह उठते ही यह संकल्प लें, "I am the best" (मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ)।
दिन में जब भी समय मिले, अपने मुक्के बनाएं और अपने भीतर चुम्बकत्व का अनुभव करें, जो आपको ध्यान के पिछले अध्यायों में सिखाया गया है। ध्यान में आप स्वयं को खोजें, न कि किसी देवता, गुरु या संत को। आप अपने गुरु स्वयं हैं। जब आप अपने शरीर की सुनना शुरू कर देंगे, तो पूरी सृष्टि आपके साथ जुड़ जाएगी, और आपका शरीर आपको सभी आवश्यक चीजों से परिचित कराते हुए आगे बढ़ता जाएगा।
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