सूफी संत शम्स तबरेज़
तबरेज़
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11/12/20241 मिनट पढ़ें
सूफी संत शम्स तबरेज़
शम्स तबरेज़ सूफी संत और रूमी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे। उनका जीवन रहस्यमयी और गहराई से भरा हुआ था। शम्स का जीवन साधारण नहीं था, और वे पारंपरिक तरीकों से अलग, एक अनोखे दृष्टिकोण से ईश्वर की खोज में लगे हुए थे। रूमी से उनकी मुलाकात ने सूफी इतिहास को गहराई से प्रभावित किया। आइए उनके जीवन पर विस्तार से नज़र डालें।
प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक यात्रा
शम्स का जन्म 1185 के आसपास ईरान के तबरेज़ शहर में हुआ था, इसीलिए उन्हें "शम्स-ए-तबरेज़ी" कहा जाता है। उनके नाम का अर्थ "तबरेज़ का सूर्य" होता है। उनके शुरुआती जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वे बचपन से ही असामान्य और गहरे विचारों वाले थे। वे पारंपरिक शिक्षा से नहीं बल्कि अपनी आध्यात्मिक संवेदनाओं और ध्यान के अभ्यास से ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे।
शम्स ने कई सूफी संतों से मुलाकात की और उनसे शिक्षा ली। हालाँकि, वे एक स्थान पर अधिक समय नहीं रुकते थे और अपनी आत्मा की प्यास को बुझाने के लिए लगातार यात्रा करते रहे। शम्स के जीवन का उद्देश्य केवल बाहरी ज्ञान प्राप्त करना नहीं था, बल्कि वे आत्मा की गहराई में जाकर ईश्वर का साक्षात्कार करना चाहते थे।
आध्यात्मिकता और अनोखा दृष्टिकोण
शम्स तबरेज़ी के उपदेश और जीवन जीने का तरीका सामान्य धार्मिक मान्यताओं से बहुत अलग था। वे ईश्वर को केवल पूजा और उपदेशों में नहीं मानते थे; उनके लिए हर इंसान और हर जीव में ईश्वर की उपस्थिति थी। शम्स ने धार्मिक रीति-रिवाजों से हटकर प्रेम और करुणा को सबसे बड़ा धर्म माना।
उनका मानना था कि सच्चा सूफी वह है जो ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण रखता है और भौतिक संसार की सीमाओं से ऊपर उठ जाता है। शम्स का दृष्टिकोण समाज के लिए चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि वे सच्चाई और आत्मा की शुद्धता को प्राथमिकता देते थे। वे किसी भी प्रकार के पाखंड और धार्मिक दिखावे से दूर रहते थे और सभी को सलाह देते थे कि वे ईश्वर को अपने भीतर ही खोजें।
रूमी से मुलाकात
शम्स तबरेज़ के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना उनकी मुलाकात जलालुद्दीन रूमी से मानी जाती है। यह मुलाकात 1244 में कोन्या (तुर्की) में हुई थी। रूमी उस समय एक प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वान थे और अपनी धर्मशिक्षा में गहरे डूबे हुए थे। शम्स ने एक दिन रूमी से एक गहरा प्रश्न पूछा: "पैगंबर मुहम्मद और बायज़ीद बस्तामी में से कौन महान है?" रूमी ने पैगंबर मुहम्मद का नाम लिया, लेकिन शम्स ने उन्हें अपने सवाल की गहराई में ले जाकर दिखाया कि कैसे बायज़ीद की स्थिति भी भक्ति और प्रेम में ऊँची है। इस बातचीत ने रूमी के दिल में गहरी छाप छोड़ी।
शम्स और रूमी के बीच गहरा आध्यात्मिक बंधन बन गया, और उन्होंने रूमी को आध्यात्मिकता की ओर एक नई दृष्टि दी। रूमी ने शम्स के प्रेम, उनकी गहराई और उनके दृष्टिकोण से प्रेरणा लेकर अपना संपूर्ण जीवन और अपने लेखन को पूरी तरह से बदल दिया। रूमी ने उनकी शिक्षाओं से प्रेरित होकर सूफी विचारधारा को अपनाया और अपनी आत्मा को ईश्वर की खोज में लगा दिया।
समाज का विरोध और शम्स का गायब हो जाना
शम्स तबरेज़ के और रूमी के संबंधों को समाज ने स्वीकार नहीं किया। रूमी के अनुयायी और परिवार के सदस्य इस बात से नाराज थे कि रूमी, जो पहले एक प्रतिष्ठित विद्वान थे, अब अपना अधिकांश समय शम्स के साथ बिताते थे और अपनी शिक्षा को छोड़कर उनके साथ साधना और प्रेम के मार्ग पर चलने लगे थे।
लगातार आलोचनाओं और विरोध के बाद, एक दिन अचानक शम्स तबरेज़ गायब हो गए। कई लोग मानते हैं कि उन्हें रूमी के अनुयायियों ने मार डाला या उन्होंने खुद को छिपा लिया ताकि रूमी की सामाजिक प्रतिष्ठा बची रह सके। उनके गायब हो जाने के बाद, रूमी बहुत दुखी हो गए और अपने दर्द को कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करने लगे। उनकी कई कविताएँ और रचनाएँ शम्स के प्रति उनके प्रेम, सम्मान और उनकी अनुपस्थिति के दर्द को दर्शाती हैं।
शम्स तबरेज़ के विचार और शिक्षाएँ
शम्स तबरेज़ की शिक्षाएँ प्रेम, समर्पण और आत्मा की शुद्धता पर आधारित थीं। उनके कुछ प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:
1. प्रेम ही ईश्वर है: शम्स के अनुसार, ईश्वर का वास्तविक अनुभव प्रेम के माध्यम से होता है। प्रेम को वे आत्मा की भाषा मानते थे और कहते थे कि प्रेम के बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती।
2. ईश्वर की उपस्थिति हर चीज़ में है: शम्स का मानना था कि ईश्वर सिर्फ एक निश्चित स्थान पर नहीं है, बल्कि हर चीज़ और हर व्यक्ति में ईश्वर की उपस्थिति है। उन्हें खोजने के लिए हमें खुद के भीतर झाँकना चाहिए।
3. पारंपरिक रीति-रिवाजों से परे: शम्स ने कहा कि ईश्वर को पाने के लिए पारंपरिक रीति-रिवाज और धार्मिक प्रक्रियाओं की कोई बाध्यता नहीं है। इसके बजाय, आत्मा की गहराई में जाना और सच्चे प्रेम का अनुभव करना आवश्यक है।
4. स्वतंत्रता: शम्स का मानना था कि सच्चा ज्ञान वही है जो व्यक्ति को अंदर से स्वतंत्र करता है। वह सभी सामाजिक और धार्मिक बंधनों से मुक्त होने की बात करते थे ताकि व्यक्ति ईश्वर के करीब पहुँच सके।
5. आध्यात्मिकता में गहराई: शम्स का जीवन साधारण ज्ञान और पुस्तकों से ऊपर था। वे व्यक्ति की आत्मा की गहराई में उतरने की बात करते थे और मानते थे कि आध्यात्मिकता का असली अनुभव व्यक्ति की स्वयं की आत्मा में है।
शम्स की मृत्यु और उनकी विरासत
शम्स तबरेज़ के गायब हो जाने के बाद, उन्हें फिर कभी नहीं देखा गया। उनकी मृत्यु के बारे में कोई पक्की जानकारी नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें मार दिया गया, जबकि कुछ लोग मानते हैं कि वे स्वयं कोन्या छोड़कर चले गए। उनकी मृत्यु को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं, लेकिन यह एक रहस्य ही बना हुआ है। उनके जाने के बाद, रूमी ने अपनी कविताओं में उन्हें जीवित रखा। रूमी ने उनके प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और प्रेम को "दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी" नामक काव्य संग्रह में समर्पित किया।
शम्स तबरेज़ का जीवन एक रहस्य और प्रेरणा से भरा हुआ था। उनकी मुलाकात ने रूमी को एक नया जीवन और दिशा दी, और इसी के कारण रूमी का साहित्य सूफीवाद के अनमोल रत्नों में शामिल हुआ। शम्स की शिक्षाएँ आज भी सूफी परंपरा में जानी-पहचानी जाती हैं और लोगों को आत्म-ज्ञान और ईश्वर के प्रति प्रेम की राह पर प्रेरित करती हैं। उनके विचार प्रेम, ईश्वर के प्रति समर्पण, और आत्मा की स्वतंत्रता पर आधारित थे, जो कि समय और भौतिकता से परे हैं।
शम्स तबरेज़ का जीवन अनेक रहस्यमयी कहानियों और घटनाओं से भरा हुआ है। वे एक साधारण संत नहीं थे; उनका स्वभाव और जीवन जीने का तरीका अलग और चुनौतीपूर्ण था। उन्होंने अपने विचारों और दृष्टिकोण से हर किसी को आकर्षित किया, विशेषकर जलालुद्दीन रूमी को। यहाँ शम्स तबरेज़ के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक कहानियाँ दी गई हैं:
1. शम्स तबरेज़ और रूमी की पहली मुलाकात
रूमी से पहली मुलाकात का किस्सा बहुत प्रसिद्ध है। शम्स तबरेज़ ने रूमी को ध्यान में डूबा देखा और उनके पास जाकर एक गहरे प्रश्न पूछा: "पैगंबर मुहम्मद और बायज़ीद बस्तामी में कौन महान है?"
रूमी ने पैगंबर का नाम लिया, पर शम्स ने जवाब दिया कि बायज़ीद को अपनी भक्ति में इतनी गहराई तक जाने का अवसर मिला कि वे कह सके "महिमा हो मुझमें"। इसने रूमी को स्तब्ध कर दिया। यह प्रश्न उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। दोनों के बीच एक गहरा संबंध बन गया और शम्स ने रूमी की आध्यात्मिकता को नया दृष्टिकोण दिया। यह पहली मुलाकात उनकी दोस्ती और रूमी की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है।
2. शम्स का ज्ञान और चमत्कार
कहा जाता है कि शम्स तबरेज़ के पास अलौकिक शक्तियाँ थीं, और वे अपने आसपास के लोगों को चमत्कार दिखा सकते थे। एक दिन, उन्होंने अपने एक शिष्य को पानी में तैरने का निर्देश दिया। शिष्य को लगा कि वह डूब जाएगा, लेकिन शम्स ने कहा, "अगर तुम ईश्वर के प्रति विश्वास रखते हो, तो यह पानी तुम्हारे लिए बाधा नहीं बनेगा।"
शिष्य ने शम्स की बात मानी और पानी पर चलना शुरू किया, और वह वास्तव में पानी पर बिना डूबे चलने में सफल रहा। इस घटना ने शम्स के आसपास के लोगों में एक गहरा प्रभाव छोड़ा और उनके प्रति श्रद्धा को बढ़ा दिया।
3. ध्यान और आत्मा का ज्ञान
एक दिन, शम्स तबरेज़ किसी नदी के किनारे ध्यान में बैठे थे। वहाँ से गुजर रहे एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि वे वहाँ क्या कर रहे हैं। शम्स ने कहा, "मैं ईश्वर को अपने भीतर खोज रहा हूँ।" यह जवाब सुनकर उस व्यक्ति ने कहा कि ईश्वर तो मस्जिद में होता है। इस पर शम्स ने मुस्कुराते हुए कहा, "ईश्वर हर जगह है, और उसे अपने भीतर खोजना सबसे बड़ा सत्य है।"
यह घटना शम्स के दर्शन का परिचायक है कि वे ईश्वर को बाहरी स्थानों पर नहीं बल्कि व्यक्ति के अंदर मानते थे। वे कहते थे कि हर इंसान अपने भीतर ईश्वर को महसूस कर सकता है अगर वह अपने आप से जुड़े और अपने भीतर झाँके।
4. रूमी के प्रति शम्स का समर्पण और एकता का प्रतीक
शम्स तबरेज़ के साथ बिताए गए समय के दौरान, रूमी ने अपनी सांसारिक प्रतिष्ठा और विद्वता को छोड़कर सूफी साधना का मार्ग अपना लिया। शम्स ने एक दिन रूमी से कहा, "अगर तुम सच्चे साधक हो, तो हर भौतिक चीज़ का त्याग करो।" रूमी ने बिना हिचकिचाए अपनी सारी संपत्ति और पुस्तकें दान कर दीं और शम्स के साथ एक साधारण जीवन बिताने लगे।
इस त्याग ने रूमी के प्रति शम्स का प्रेम और रूमी के आत्मसमर्पण का परिचय दिया। शम्स के द्वारा दी गई यह चुनौती रूमी को भक्ति की गहरी यात्रा पर ले गई, जहाँ से उन्होंने "दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी" जैसी अमूल्य काव्य रचनाएँ कीं।
5. अचानक गायब हो जाना
शम्स और रूमी के संबंधों को देखकर रूमी के शिष्य और परिवार के लोग नाराज हो गए थे। उन्हें लगता था कि शम्स ने रूमी पर जादू कर दिया है और उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहा है। एक दिन, अचानक शम्स गायब हो गए।
इसके बारे में कई कहानियाँ हैं। एक मान्यता है कि रूमी के कुछ शिष्यों ने शम्स को मार डाला, क्योंकि वे शम्स की उपस्थिति से असहज थे। दूसरी कहानी यह कहती है कि शम्स ने स्वयं कोन्या छोड़ दिया ताकि रूमी अपनी साधारण जीवन में वापस लौट सकें। इस घटना ने रूमी को गहरे दुःख में डाल दिया, और उन्होंने शम्स की अनुपस्थिति में कविताओं के माध्यम से उनके प्रति अपने प्रेम और सम्मान को अभिव्यक्त किया।
6. शम्स का प्रेम और अध्यात्म का संदेश
शम्स का कहना था कि सच्चा प्रेम वह है जो व्यक्ति को उसकी आत्मा से जोड़ता है और उसे ईश्वर के करीब ले जाता है। एक बार, एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि वे इस संसार को किस दृष्टि से देखते हैं। शम्स ने उत्तर दिया, "यह संसार एक आईना है, और उसमें तेरा प्रतिबिंब तू ही देखता है।"
इस बात का अर्थ यह है कि व्यक्ति जो भी सोचता है या महसूस करता है, वही उसे संसार में दिखाई देता है। यह एक गहरा आध्यात्मिक संदेश है कि व्यक्ति अपने भीतर की शुद्धता पर ध्यान दे ताकि उसे बाहर भी वही शांति और प्रेम दिख सके।
7. कूड़े के ढेर में पुस्तकें डालना
एक और प्रचलित घटना में, शम्स ने एक बार एक विद्वान की पुस्तकें कूड़े में डाल दीं। जब लोगों ने उनसे इसका कारण पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया, "यदि ये किताबें सच में मूल्यवान होतीं, तो इनकी अहमियत ज्ञान के भीतर होती, न कि पन्नों में।"
इस घटना ने यह स्पष्ट किया कि शम्स बाहरी ज्ञान को बहुत महत्व नहीं देते थे। उनके लिए असली ज्ञान वह था जो व्यक्ति के भीतर होता है और उसे उसके ईश्वर से जोड़ता है।
शम्स तबरेज़ का जीवन प्रेरणादायक घटनाओं से भरा था। उनके विचार और शिक्षाएँ समाज की पारंपरिक मान्यताओं से बहुत अलग थे, और उन्होंने प्रेम, आत्मा की खोज और ईश्वर के प्रति समर्पण पर बल दिया। उनके जीवन के रहस्य और घटनाएँ सूफी आध्यात्मिकता में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शम्स का प्रभाव न केवल रूमी के जीवन में रहा बल्कि उनकी शिक्षाएँ आज भी सूफी प्रेमियों के बीच प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके जीवन की ये घटनाएँ और कहानियाँ हमें प्रेम, करुणा, और ईश्वर के प्रति सच्चे समर्पण का महत्व सिखाती हैं।
शम्स तबरेज़ के धार्मिक संदेश प्रेम, समर्पण, आत्मज्ञान और सच्चे ईश्वर को पाने की तीव्र इच्छा पर आधारित थे। उनके उपदेश और शिक्षाएँ पारंपरिक सूफी विचारधारा से गहरी प्रभावित थीं, लेकिन उनके दृष्टिकोण में एक खास क्रांतिकारी और चुनौतीपूर्ण पहलू था। शम्स का जीवन और उनके उपदेश, दोनों ही उनके शिष्य और महान सूफी कवि जलालुद्दीन रूमी पर एक अमिट छाप छोड़ गए, जिनकी रचनाओं में शम्स का प्रभाव स्पष्ट रूप से झलकता है।
शम्स तबरेज़ का धार्मिक संदेश
1. प्रेम ही ईश्वर है:
- शम्स तबरेज़ का मानना था कि प्रेम के बिना ईश्वर तक पहुँच पाना असंभव है। प्रेम की इस गहराई में व्यक्ति अपनी आत्मा से जुड़ जाता है और अपने अहंकार और आत्म-प्रशंसा से ऊपर उठ जाता है। उनके अनुसार, ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल और प्रभावशाली तरीका प्रेम है।
- शम्स के अनुसार, प्रेम मात्र किसी से लगाव नहीं है बल्कि यह एक ऐसी शक्ति है जो आत्मा को शुद्ध करती है और ईश्वर से सीधे जोड़ती है। उन्होंने प्रेम को सबसे ऊँचा धर्म माना और कहा कि अगर आप ईश्वर से प्रेम करते हैं, तो वह प्रेम स्वयं ही आपके भीतर पवित्रता और सच्चाई की अनुभूति लाएगा।
2. हर चीज़ में ईश्वर की उपस्थिति:
- शम्स के उपदेशों में ईश्वर की सर्वव्यापकता का संदेश था। वे मानते थे कि ईश्वर किसी एक स्थान या व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हर जगह और हर चीज़ में है। उनके अनुसार, ईश्वर को खोजने के लिए व्यक्ति को अपने बाहर नहीं बल्कि अपने भीतर देखना चाहिए।
- शम्स का मानना था कि बाहरी दुनिया में ईश्वर की खोज केवल भ्रम है, असली सत्य हमारे भीतर है। उनके विचारों में यह भी था कि हर प्राणी, हर वस्तु, और हर भाव में ईश्वर का अंश है। इसलिए, हमें दूसरों के प्रति प्रेम, करुणा और सहानुभूति से पेश आना चाहिए।
3. अहंकार का त्याग:
- शम्स तबरेज़ का मानना था कि अहंकार और आत्म-मोह व्यक्ति को ईश्वर से दूर कर देता है। जब तक व्यक्ति अपने अहंकार को नहीं छोड़ता, तब तक सच्चे ईश्वर का अनुभव नहीं कर सकता।
- वे कहते थे कि जिस तरह एक मिट्टी का बर्तन आग में तप कर अपनी सभी अशुद्धियाँ छोड़ देता है, उसी तरह आत्मा भी तपस्या और भक्ति के माध्यम से शुद्ध हो जाती है।
4. धार्मिक पाखंड का विरोध:
- शम्स तबरेज़ धार्मिक पाखंड और दिखावे से दूर रहते थे। उनका मानना था कि ईश्वर को पाने के लिए बाहरी पूजा और धार्मिक रिवाजों का दिखावा नहीं होना चाहिए। वे किसी भी तरह के पाखंड के सख्त विरोधी थे और सच्चाई को ही सर्वोपरि मानते थे।
- वे साधारण दिखने वाले मनुष्यों में भी ईश्वर की खोज करना सिखाते थे और उनके लिए सभी के प्रति समान प्रेम और करुणा रखना महत्वपूर्ण था।
5. स्वयं में आत्मज्ञान का अनुभव:
- शम्स का मानना था कि ईश्वर का अनुभव बाहरी साधनों से नहीं बल्कि आत्मज्ञान से होता है। वे अक्सर अपने अनुयायियों को स्वयं में झाँकने की सलाह देते थे और कहते थे कि सच्चा ज्ञान और ईश्वर का वास्तविक अनुभव हमारे भीतर ही है।
- उनकी शिक्षा में यह भी था कि हमें अपनी आत्मा से जुड़ना चाहिए और अपने भीतर की आवाज़ को सुनना चाहिए। यह आत्मज्ञान ही है जो हमें सच्चे ईश्वर से मिलाता है।
शम्स तबरेज़ की रचनाएँ और उनके प्रभाव
शम्स तबरेज़ के पास शायद कोई लिखित रचनाएँ नहीं हैं, लेकिन उनके विचार और शिक्षाएँ उनके शिष्य रूमी के काव्य में जीवित हैं। रूमी ने उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर कई कविताएँ और काव्य रचनाएँ लिखीं। "दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी" उनकी महान रचना मानी जाती है, जिसे रूमी ने शम्स के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा में लिखा था।
दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी:
- रूमी की यह काव्य रचना शम्स तबरेज़ के प्रति उनके गहरे प्रेम और भक्ति को व्यक्त करती है। इस संग्रह में शम्स के विचारों का बहुत गहरा प्रभाव है और हर कविता में ईश्वर की प्राप्ति, आत्मा की खोज, और प्रेम का संदेश मिलता है।
- रूमी की इस कृति में सूफी परंपरा के अनुसार ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव बहुत गहराई से व्यक्त किया गया है। इसमें रूमी ने शम्स के विचारों और उपदेशों को अपने शब्दों में ढालकर कविताओं के रूप में प्रस्तुत किया।
शम्स के विचारों का रूमी पर प्रभाव:
- शम्स की शिक्षाओं ने रूमी के दृष्टिकोण को पूरी तरह बदल दिया। पहले जहाँ रूमी केवल इस्लामी धर्मशास्त्र के विद्वान थे, वहीं शम्स से मिलने के बाद वे एक सूफी संत बन गए।
- शम्स ने रूमी को प्रेम, आत्मज्ञान और ध्यान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी, जो रूमी के साहित्य और उनकी आध्यात्मिकता में स्पष्ट रूप से झलकता है। रूमी की प्रसिद्ध रचनाएँ "मसनवी" और "फीही मा फीही" भी शम्स के विचारों से प्रभावित हैं।
ध्यान और ध्यान के माध्यम से ईश्वर से मिलन:
- शम्स के अनुसार, ध्यान और साधना ईश्वर से मिलन का सबसे सटीक माध्यम है। उनका मानना था कि हर व्यक्ति अपने भीतर गहरी तल्लीनता में जाए और अपनी आत्मा के माध्यम से ईश्वर का अनुभव करे।
- उन्होंने रूमी को भी इस साधना और ध्यान का मार्ग दिखाया, जिससे रूमी ने दरवेश नृत्य (समा) का अभ्यास शुरू किया, जिसे रूमी के शिष्यों द्वारा आज भी किया जाता है। इस नृत्य में आत्मा का गहरा तल्लीनता और परमात्मा से मिलन होता है, जो शम्स के उपदेशों की गहरी प्रतीकात्मकता है।
शम्स तबरेज़ का धार्मिक संदेश प्रेम, करुणा, आत्मज्ञान और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण पर आधारित था। उनकी शिक्षाएँ न केवल उनके समय में, बल्कि आज भी सूफी साधकों और प्रेमियों को प्रेरित करती हैं। उनके उपदेशों ने रूमी की रचनाओं को नया आयाम दिया और उनकी कविताओं के माध्यम से शम्स का संदेश आज भी जीवित है। शम्स तबरेज़ का धर्म सत्य, प्रेम, और आत्मा की शुद्धि का मार्ग था, जो न केवल सूफियों के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो ईश्वर से सच्चे प्रेम का अनुभव करना चाहता है।
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