सोवनिया उठ जाग रै

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10/17/20251 मिनट पढ़ें

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै |

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै ||

साहूकार की बरतै पूंजी, खुले तेरे ताले कुंजी |

साहूकार की बरतै पूंजी, खुले तेरे ताले कुंजी |

चोर रहे तेरे लाग रै, तेरा माल लूटै सै ||1||

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै |

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै ||

साहूकार का जब आवै हलकारा, मूल ब्याज देना सारा |

साहूकार का आवै हलकारा, मूल ब्याज देना सारा |

डिग्री आवै निरभाग, तेरा एक दिन रोज घटै सै ||2||

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै |

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै ||

उनका कहिए, हो पूर्ण खजाना, नियत से धन कमाना |

उनका कहिए, हो पूर्ण खजाना, नियत से धन कमाना ||

कटै चौरासी की लाग, जब वेद पढै सै ||3||

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै |

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै ||

रविदास कहै तेरी बुद्धि छोटी, न सिखा ज्ञान कसौटी |

रविदास कहै तेरी बुद्धि छोटी, न सिखा ज्ञान कसौटी ||

टोह ले सन्त समाज रै, जहां प्रेम बटै सै ||4||

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै |

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै ||

यह संत रविदास जी का एक गूढ़ भजन है — “सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै” जो आत्म-जागरण, कर्म का हिसाब, और आध्यात्मिक चेतना पर आधारित है।
आइए इसे पद दर पद (पंक्ति दर पंक्ति) भावार्थ, प्रतीक-अर्थ और आध्यात्मिक संदेश सहित विस्तार से समझते हैं
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🌅 मुख्य भाव: आत्म-जागरण का आह्वान

सोवनिया उठ जाग रै, तेरी गाँठ कटै सै
(ओ सोए हुए व्यक्ति! जाग जा, तेरी गठरी कट रही है।)

🔹 भावार्थ:

यहाँ “सोवनिया” अर्थात् सोया हुआ व्यक्ति — वह मनुष्य जो अज्ञान में डूबा हुआ है, जो संसार के मोह-माया, लोभ, अहंकार, और इंद्रियों के सुख में लिप्त है।
“गाँठ कटै सै” का अर्थ है — तेरी पुण्य-पूँजी, तेरी आत्मिक कमाई लुट रही है, और तुझे खबर नहीं।

🔹 प्रतीक अर्थ:

  • सोवनिया (सोया हुआ) = अज्ञानी जीव

  • गाँठ = जीवन की पूँजी, सत्कर्म और चेतना

  • कटना = अधर्म, लोभ और मोह से शक्ति का क्षय

👉 संदेश यह है कि मनुष्य अपने भीतर के दिव्य स्वरूप को भूल गया है, और जब तक जागेगा नहीं, उसकी आध्यात्मिक सम्पत्ति चोरी होती रहेगी।

💰 पहला पद:

साहूकार की बरतै पूंजी, खुले तेरे ताले कुंजी |
चोर रहे तेरे लाग रै, तेरा माल लूटै सै ||

🔹 भावार्थ:

यहाँ “साहूकार” परमात्मा है — जो सबको जीवन की पूँजी (आयु, अवसर, चेतना) देता है।
वह अपनी पूँजी (जीवन-शक्ति) हममें “बरत” रहा है। लेकिन मनुष्य ने अपने ताले (हृदय) को बंद कर लिया है, और मोह-माया के “चोर” उसके भीतर लूट मचा रहे हैं।

🔹 प्रतीक अर्थ:

  • साहूकार = परमात्मा

  • पूंजी = जीवन, चेतना

  • चोर = काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार

  • ताला और कुंजी = मन और विवेक

👉 संदेश: परमात्मा ने जो अमूल्य जीवन दिया है, उसे व्यर्थ न गँवाओ। मन के द्वार खोलो, भीतर का प्रकाश पहचानो।

📜 दूसरा पद:

साहूकार का जब आवै हलकारा, मूल ब्याज देना सारा |
डिग्री आवै निरभाग, तेरा एक दिन रोज घटै सै ||

🔹 भावार्थ:

जब परमात्मा (साहूकार) बुलावेगा — यानी जब मृत्यु का समय आएगा — तब हर मनुष्य को अपने कर्मों का हिसाब देना होगा
“मूल ब्याज” = जितनी पूँजी दी गई (जीवन और अवसर) और जितना ब्याज बढ़ा (कर्मों के फल)।
“डिग्री आवै निरभाग” का अर्थ है — समय समाप्त होने पर कोई भाग नहीं बचेगा; प्रत्येक दिन तेरे जीवन की पूँजी घटती जा रही है।

🔹 प्रतीक अर्थ:

  • हलकारा = मृत्यु का बुलावा

  • मूल ब्याज देना = कर्मों का फल भोगना

  • डिग्री = भाग्य का हिसाब

  • दिन घटना = जीवन का समय कम होना

👉 संदेश: मृत्यु निश्चित है — इसलिए अभी से सजग हो जा। अच्छे कर्म कर, समय का सदुपयोग कर।

📖 तीसरा पद:

उनका कहिए, हो पूर्ण खजाना, नियत से धन कमाना |
कटै चौरासी की लाग, जब वेद पढै सै ||

🔹 भावार्थ:

वे लोग ही “पूर्ण खजाना” वाले हैं जो ईमानदारी और नियत से धन कमाते हैं और ज्ञान की साधना करते हैं।
जो व्यक्ति सत्य मार्ग पर चलता है, वेद और शास्त्रों के ज्ञान से स्वयं को प्रकाशित करता है, उसकी चौरासी लाख योनियों की यात्रा समाप्त होती है — अर्थात् वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।

🔹 प्रतीक अर्थ:

  • पूर्ण खजाना = आत्म-संतोष और सत्य

  • नियत से धन कमाना = धर्मपूर्वक कर्म

  • वेद पढ़ना = आत्मज्ञान प्राप्त करना

  • चौरासी की लाग कटना = मोक्ष प्राप्ति

👉 संदेश: सच्चा धन वह नहीं जो संसार में है, बल्कि वह जो आत्मज्ञान से प्राप्त होता है।

🕊️ चौथा पद:

रविदास कहै तेरी बुद्धि छोटी, न सिखा ज्ञान कसौटी |
टोह ले सन्त समाज रै, जहां प्रेम बटै सै ||

🔹 भावार्थ:

संत रविदास कहते हैं — मनुष्य की बुद्धि छोटी है क्योंकि उसने ज्ञान की कसौटी पर अपने जीवन को परखा ही नहीं
वह संसार के झूठे मापदंडों में फँसा है। इसलिए वे कहते हैं — संत समाज में जाओ, जहाँ प्रेम और भक्ति का आदान-प्रदान होता है, वही सच्चा ज्ञान है।

🔹 प्रतीक अर्थ:

  • ज्ञान कसौटी = सत्य की परीक्षा, विवेक

  • सन्त समाज = सत्संग, आध्यात्मिक मार्ग

  • प्रेम बंटना = ईश्वर से मिलन की अवस्था

👉 संदेश: सच्चा ज्ञान केवल पुस्तकों में नहीं, बल्कि संतों के संग और प्रेममय जीवन में है।

🪔 ध्यान-मनन के प्रश्न:

1. क्या मैं अपने भीतर के “सोवनिया” को पहचान पा रहा हूँ?

2. कौन-से “चोर” (वासनाएँ या विकार) मेरी पूँजी लूट रहे हैं?

3. क्या मैं अपनी “पूंजी” (जीवन, समय, ऊर्जा) सही दिशा में खर्च कर रहा हूँ?

4. क्या मैं “सन्त समाज” — यानी ज्ञान, भक्ति और प्रेम के संग — में रह पा रहा हूँ?

सारांश:

यह भजन हमें यह याद दिलाता है कि —
“जीवन एक धरोहर है, इसे सोकर मत गँवाओ।
परमात्मा का हिसाब चुकाना ही है —
इसलिए जागो, सजग बनो, और प्रेममय जीवन जियो।”