स्थिरता का रहस्य
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8/24/20251 मिनट पढ़ें
स्थिरता का रहस्य
एक सुंदर, हरे-भरे गाँव में एक जिज्ञासु बालक आरव रहता था। आरव का मन हमेशा नई चीज़ों को जानने को बेचैन रहता। एक दिन उसने सुना कि गाँव के किनारे स्थित वन में एक वृद्ध योगी रहते हैं जो गहरे ध्यान में मग्न रहते हैं। कहते थे, उनके पास आंतरिक शांति का रहस्य है।
आरव उनसे मिलने पहुँचा। वह देखकर हैरान रह गया – वृद्ध योगी एक बड़े पीपल के पेड़ के नीचे एक चट्टान पर बैठे थे। उनकी आँखें बंद थीं, पर उनका चेहरा तेज से चमक रहा था। उनके आसपास पक्षियों का कलरव, हवा की सरसराहट और दूर बहती नदी की मधुर ध्वनि थी, फिर भी वे अचल बैठे थे।
आरव ने पूछा, “गुरुदेव, मैं ध्यान करना चाहता हूँ, पर बैठते ही मेरा शरीर दुखने लगता है, मन बेचैन हो जाता है। आप इतने स्थिर कैसे बैठ पाते हैं?”
योगी ने आँखें खोलीं और मुस्कराए, “आरव, ध्यान का द्वार शरीर से होकर ही खुलता है। यदि शरीर हिलता है तो मन भी हिलता है। पहले शरीर को स्थिर बनाना सीखो, फिर मन अपने आप शांत हो जाएगा। यही है आसन का रहस्य। पतंजलि ने कहा है – स्थिरसुखमासनम् – यानी जो आसन स्थिर और सुखद हो, वही सही है।”
योगी ने आरव को पास के तालाब के किनारे ले जाकर दिखाया – कमल के फूल की ओर इशारा करते हुए बोले,
“देखो, कमल कीचड़ में भी खिला है, उसकी डंडी पानी की लहरों में भी हिलती नहीं, उसका फूल सूर्य की ओर सीधा है। हमें भी ऐसा ही होना है – आसपास कितना भी शोर हो, मन और शरीर स्थिर रहें। तब ही आत्मा का सूरज दिखाई देता है।”
इसके बाद योगी ने आरव को कुछ आसन सिखाए –
पद्मासन (कमल मुद्रा)
सिद्धासन (साधक मुद्रा)
वज्रासन (ध्यान मुद्रा)
उन्होंने कहा, “शुरू में यह कठिन लगेगा, पर रोज कुछ समय बैठने का अभ्यास करो। रीढ़ सीधी रखो, हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखो, और सांसों को गिनो। शुरुआत में पाँच मिनट भी बहुत है। धीरे-धीरे तुम्हारा शरीर लचीला होगा, पीड़ा कम होगी, और मन स्थिर होगा। जब शरीर स्थिर हो जाएगा, तब तुम्हारा ध्यान गहराई में उतरने लगेगा।”
आरव ने वैसा ही किया। पहले दिन उसके पैर दुखने लगे, दूसरे दिन भी बेचैनी रही, लेकिन उसने हार नहीं मानी। तीसरे दिन उसे थोड़ी सहजता मिली। सप्ताह बीतते-बीतते उसका शरीर अधिक समय तक बैठने लगा। एक महीने बाद जब वह फिर योगी के पास पहुँचा तो उसके चेहरे पर भी एक हल्की शांति और आत्मविश्वास था। योगी ने मुस्कराकर कहा,
“याद रखो, आरव, स्थिर शरीर – स्थिर मन। यही ध्यान की पहली सीढ़ी है।”
मुख्य संदेश
आसन केवल व्यायाम नहीं, बल्कि ध्यान की तैयारी है।
स्थिर और सुखद मुद्रा में बैठने से शारीरिक तनाव मिटता है और मन गहराई में जाता है।
अभ्यास से ही लचीलापन और स्थिरता आती है।
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