सूरता हो ले चालन ने तैयार

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10/27/20251 मिनट पढ़ें

सूरता हो ले चालन ने तैयार, शब्द खड़ा बांट में ।

सूरता हो ले चालन ने तैयार, शब्द खड़ा बांट में ।

तन मन बाज़ी लिए ला, गुरु का वचन पुगा दिए, हे सूरता ।

हे देखे, तेरे हो जागा प्रकाश, गुरु का ज्ञान पा के । । 1। ।

सूरता हो ले चालन ने तैयार, शब्द खड़ा बांट में ।

सतगुरु देवे ऐसा नाम, दे गिरे हुए ले साम, हे सूरता ।

छोड़ दिए तू तो काम, रहगी सदा ठाठ में । । 2। ।

सूरता हो ले चालन ने तैयार, शब्द खड़ा बांट में ।

इंगला पिगला लिए टोह, महल में सोध कै , हे सूरता ।

आगे हाजिर खड़े भगवान, त्रिवेणी के घाट पे । । 3। ।

सूरता हो ले चालन ने तैयार, शब्द खड़ा बांट में ।

हमने गुरु मिले रविदास, अगम के ताले खोल दिए, हे सूरता।

चरण कमल में यो लाग्या ध्यान, यो सौदा पाया हाट में । । 4। ।

सूरता हो ले चालन ने तैयार, शब्द खड़ा बांट में ।

“सूरता हो ले चालण ने तैयार, शब्द खड़ा बाट में”
संतमत (खासकर रविदास पंथ, नाद योग और अद्वैत साधना) की अत्यंत गूढ़ रचना है।
यह भजन बाहरी यात्रा की नहीं, बल्कि “अंतर यात्रा”आत्मा की ईश्वर से मिलन यात्रा — का गीत है।
इसमें हर शब्द एक रहस्यपूर्ण संकेत (symbolic code) की तरह है।
आइए, इसे पंक्ति-दर-पंक्ति खोलते हैं।

🌼 मुख्य सूत्र:

यह भजन आत्मा (सूरता) को जाग्रत कर गुरु के शब्द (शब्द-नाद या वाणी) के मार्ग पर चलने का आह्वान है।
यह वही “अंतर नाद”, “शब्द-साधना”, या “अनहद ध्वनि” है, जिसका उल्लेख उपनिषदों और संत साहित्य (कबीर, रविदास, नानक) में मिलता है।

🕉️ पंक्ति-दर-पंक्ति गूढ़ अर्थ और रहस्य

🌸 (मुख्य पंक्ति)

“सूरता हो ले चालण ने तैयार, शब्द खड़ा बाट में।”

🔹 शब्दार्थ:

  • सूरता (सुरता) = चेतना, आत्मिक जागरूकता

  • चालन = यात्रा, गति, आगे बढ़ना

  • शब्द खड़ा बाट में = “शब्द” अर्थात् गुरु का नाद, वाणी, या आत्मज्ञान का द्वार, जो रास्ते में खड़ा है।

🔹 गूढ़ भाव:
संत कह रहे हैं —

“हे चेतना! अब जाग जा, अपने भीतर की यात्रा शुरू कर।
गुरु का शब्द — सत्य का नाद — तेरा मार्गदर्शक बनकर खड़ा है।”

यह चेतावनी है — “मनुष्य जीवन मिला है, अब अंतरयात्रा में विलंब मत कर।”

✳️ पहला अंतरा

तन मन बाजी लिए ला, गुरु का वचन पुगा दिए, हे सूरता।
हे देखे, तेरे हो जागा प्रकाश, गुरु का ज्ञान पा के।

🔹 अर्थ:

  • “तन मन बाजी” = शरीर और मन का पूर्ण समर्पण

  • “गुरु का वचन पुगा दिए” = गुरु के वचन को पूरा करना — यानी शिष्य का आज्ञापालन

  • “प्रकाश” = आत्मज्ञान, अंतर्बोध

🔹 गूढ़ भाव:
जब साधक तन-मन की बाजी लगाकर गुरु के आदेश पर चलता है, तब उसके भीतर ज्ञान का प्रकाश हो जाता है।
यहाँ “प्रकाश” किसी बाहरी रोशनी का नहीं, बल्कि अहंकार के अंधकार के मिटने का प्रतीक है।

यह “अज्ञान से ज्ञान” की अवस्था है।

✳️ दूसरा अंतरा

सतगुरु देवे ऐसा नाम, दे गिरे हुए ले साम, हे सूरता।
छोड़ दिए तू तो काम, रहगी सदा ठाठ में।

🔹 अर्थ:

  • “सतगुरु देवे ऐसा नाम” = सच्चे गुरु का नाम (आत्मज्ञान या मंत्र) जो जीव को उठाता है।

  • “गिरे हुए ले साम” = जो गिरे हुए को भी थाम ले — यानी पतित को भी मुक्त कर दे।

  • “ठाठ में रहना” = आनंद और शांति की अवस्था में रहना।

🔹 गूढ़ भाव:
गुरु का दिया हुआ नाम (ज्ञान, शब्द) आत्मा को उठाता है।
जब मन संसार के काम (मोह, लालच, अहंकार) छोड़ देता है,
तो भीतर “ठाठ” यानी शांत, अडोल, आनंदमय स्थिति प्राप्त होती है।

यह वही “सहज समाधि” है — जहाँ कुछ पाने या खोने की इच्छा नहीं रहती।

✳️ तीसरा अंतरा

इंगला पिंगला लिए टोह, महल में सोध कै, हे सूरता।
आगे हाजिर खड़े भगवान, त्रिवेणी के घाट पे।

🔹 यह सबसे गूढ़ और योगिक पंक्ति है।
यहाँ संत “हठयोग” या “सुखमना नाड़ी” के रहस्य की ओर इशारा करते हैं।

  • इंगला = बाईं ऊर्जा नाड़ी (चंद्र नाड़ी)

  • पिंगला = दाईं ऊर्जा नाड़ी (सूर्य नाड़ी)

  • महल = शरीर रूपी मंदिर

  • त्रिवेणी = जहाँ इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना मिलती हैं (आज्ञा चक्र)

🔹 गूढ़ भाव:
संत कह रहे हैं —

“अपनी चेतना को इंगला-पिंगला के मध्य (सुषुम्ना नाड़ी) में केंद्रित कर — अपने भीतर के महल (हृदय या आज्ञा केंद्र) में प्रभु को खोजो।”

जब साधक का ध्यान संतुलित हो जाता है (ना वाम, ना दक्षिण, केवल केंद्र में),
तो भीतर त्रिवेणी संगम होता है —
वहीं “भगवान” (परम चेतना) का साक्षात्कार होता है।

✳️ चौथा अंतरा

हमने गुरु मिले रविदास, अगम के ताले खोल दिए, हे सूरता।
चरण कमल में यो लाग्या ध्यान, यो सौदा पाया हाट में।

🔹 अर्थ:

  • “अगम के ताले” = रहस्यपूर्ण लोक या चेतना की गहराई — जो सामान्य मन से नहीं पहुँचा जा सकता।

  • “चरण कमल” = गुरु के प्रेम, शरण, विनम्रता का प्रतीक।

  • “हाट में सौदा” = जीवन रूपी बाज़ार में मिला सच्चा खज़ाना — आत्मज्ञान।

🔹 गूढ़ भाव:
संत रविदास के कृपा से साधक को वह ज्ञान प्राप्त हुआ जो “अगम” (अकल्पनीय) था।
गुरु के चरणों में ध्यान लगाकर उसने जीवन के “हाट” में — जहाँ सब माया के सौदे करते हैं —
वहीं मोक्ष का सौदा पा लिया।

यह कहता है: “जहाँ लोग धन खरीदते हैं, मैंने वहाँ आत्मा को बेचकर परमात्मा पाया।”

🌺 संपूर्ण रहस्य (अद्वैत भाव में):

प्रतीक अर्थ

सूरता आत्मा या चेतना

शब्द नाद-ब्रह्म, गुरु-वाणी, दिव्य संकेत

गुरु ज्ञान का स्रोत, ईश्वर का प्रतिनिधि

त्रिवेणी देह-मन-आत्मा का संगम

महल हृदय या सूक्ष्म शरीर

हाट संसार (जीवन की परीक्षा-भूमि)

अगम के ताले गूढ़ चेतना के द्वार

प्रकाश आत्मबोध

👉 इस भजन का मर्म यह है:

“हे चेतना! तू इस संसार में सोई हुई है। गुरु का शब्द तेरे द्वार पर खड़ा है।
उठ, यात्रा कर, नाड़ियों को संतुलित कर, भीतर के त्रिवेणी में डूब जा —
वहीं तुझे भगवान साक्षात् मिलेगा।”

🪷 ध्यान के लिए सारांश पंक्ति:

“सूरता हो ले चालण ने तैयार, शब्द खड़ा बाट में।”
जब चेतना जागती है, तो गुरु का शब्द मार्ग दिखाता है — और भीतर ही भगवान प्रकट हो जाता है।

🌺 कहानी — “सूरता की यात्रा”

🌅 प्रारंभ : नींद में सोई चेतना

बहुत समय पहले एक नगर था — “मनोपुरी”।
उस नगर में एक युवती रहती थी — सूरता
सूरता बहुत सुंदर थी, बुद्धिमान भी, पर हमेशा किसी अजीब बेचैनी में रहती थी।
सब कुछ होते हुए भी — महल, वस्त्र, स्वादिष्ट भोजन — उसके भीतर कोई खालीपन था।

हर रात वह आकाश की ओर देखती और सोचती —

“क्या मेरा कोई घर और भी है?
यह जीवन क्या बस इतना ही है?”

पर कोई उत्तर नहीं मिलता।
वह सो जाती, और हर सुबह फिर वही दिनचर्या — काम, बातें, इच्छाएँ, थकान।

🌙 अचानक हुआ जागरण

एक दिन नगर में एक संत रविदास आए।
उनकी आँखों में एक अजीब शांत चमक थी।
लोग कहते — “उनके शब्द पत्थर को भी जगा देते हैं।”

सूरता उनके पास गई और बोली —

“गुरुजी, मुझे कुछ समझ नहीं आता। सब कुछ है, फिर भी कुछ खोया हुआ लगता है।”

संत मुस्कुराए और बोले —

“सूरता, तू सोई नहीं है, पर जागी भी नहीं।
तेरे द्वार पर शब्द खड़ा बाट में — यानी सत्य की आवाज़ — पर तूने उसे सुना नहीं।”

सूरता ने पूछा — “कैसा शब्द?”
संत ने आँखें बंद कीं और कहा —

“जब तू अपने मन को शांत करेगी,
तेरे भीतर एक नाद बजेगा — वह ही गुरु का शब्द है।
उसी के सहारे यात्रा शुरू करना।”

🌾 यात्रा की तैयारी

सूरता ने उस रात तय किया — “अब मैं अपनी भीतर की यात्रा करूँगी।”
उसने अपने तन और मन की बाज़ी लगा दी — सब इच्छाओं को शांत कर, एकांत में बैठी।

धीरे-धीरे, उसके भीतर का शोर थमने लगा।
एक दिन उसे लगा — जैसे भीतर कोई घंटी सी बज रही हो,
मधुर, अनंत, बिना रुकावट — जैसे कोई बुला रहा हो।

वह चौंकी नहीं — वह जान गई —

“यही तो शब्द है जो बाट में खड़ा था।”

उसके भीतर एक नई यात्रा शुरू हुई।

🔥 गुरु का नाम और रूपांतरण

संत रविदास ने उसे दीक्षा दी —

“नाम वह नहीं जो जीभ बोले,
नाम वह है जो मन को पवित्र करे।”

सूरता ने हर सांस में वही नाम बसाया।
धीरे-धीरे उसका मन शांत हो गया, कामनाएँ गलने लगीं।
वह कहती —

“अब मैं गिरी हुई नहीं,
गुरु के नाम ने मुझे थाम लिया।”

वह अब सदा ठाठ में रहने लगी —
बाहर साधारण झोपड़ी, पर भीतर आनंद का महल।

🕉️ त्रिवेणी का रहस्य

एक रात ध्यान में उसे लगा —
जैसे उसके भीतर दो धाराएँ बह रही हों —
एक ठंडी, एक गरम —
एक दाईं ओर, एक बाईं ओर।
फिर बीच में एक तीसरी धारा उठी —
शांत, उज्ज्वल, सुनहरी —
जो सीधी उसके सिर के मध्य से ऊपर जा रही थी।

उसे लगा —

“यह वही त्रिवेणी घाट है,
जहाँ देह, मन और आत्मा मिलते हैं।”

वहीं उसे भगवान का साक्षात्कार हुआ —
ना बाहर कोई मूर्ति, ना कोई आकाश से आवाज़ —
बस भीतर से आती ज्योति और मौन का आलिंगन।

🌼 सौदा हाट में

जब वह लौटी, लोग बोले —

“सूरता, तू तो बदल गई! अब तेरे चेहरे पर प्रकाश है।”

वह मुस्कुरा दी और बोली —

“हाँ, मैंने जीवन के हाट में सबसे बड़ा सौदा कर लिया —
सब बेच दिया, बस गुरु के चरणों का ध्यान खरीद लिया।”

अब वह जान चुकी थी —

“अगम के ताले खोल दिए गए हैं।”
जो सत्य मुझे बाहर खोजता था, वही तो भीतर बैठा था।