स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि
"द होली साइंस"
NEW CHETNA
11/20/20241 मिनट पढ़ें
स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि
स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि (10 मई 1855 – 9 मार्च 1936) एक महान भारतीय संत, योगी, और क्रिया योग के प्रचारक थे। उन्हें अपने शिष्य योगानंद परमहंस के गुरु के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर किया। युक्तेश्वर गिरि का जीवन ध्यान, योग और आध्यात्मिक विज्ञान का अद्भुत संगम था। उन्होंने भारतीय वेदांत, योग और पश्चिमी विज्ञान के बीच गहरा संबंध स्थापित करने का प्रयास किया और मानवता को आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
स्वामी श्री युक्तेश्वर का जन्म 10 मई 1855 को बंगाल के सेरामपुर (अब पश्चिम बंगाल) में हुआ। उनका मूल नाम प्रियनाथ करार था। उनका परिवार समृद्ध और धर्मपरायण था।
- उन्होंने किशोर अवस्था में ही वेद, उपनिषद, गीता, और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया।
- साथ ही, उन्होंने पश्चिमी विज्ञान और खगोल विज्ञान में गहरी रुचि ली।
- वे एक गहन जिज्ञासु और तार्किक व्यक्ति थे, जो प्राचीन और आधुनिक ज्ञान को जोड़ने का प्रयास करते थे।
आध्यात्मिक यात्रा
प्रियनाथ करार की आध्यात्मिक यात्रा महावतार बाबाजी के शिष्य लाहिड़ी महाशय से मिलने के बाद शुरू हुई।
- लाहिड़ी महाशय से मुलाकात:
लाहिड़ी महाशय से उनकी पहली मुलाकात उनके जीवन का निर्णायक मोड़ थी। उन्होंने प्रियनाथ को क्रिया योग की दीक्षा दी और उन्हें अपने आध्यात्मिक पथ पर चलने की प्रेरणा दी।
- संन्यास ग्रहण:
लाहिड़ी महाशय के निर्देशन में उन्होंने सन्यास लिया और उनका नया नाम स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि रखा गया।
- गुरु के रूप में भूमिका:
युक्तेश्वर गिरि अपने शिष्यों के प्रति कठोर लेकिन न्यायप्रिय थे। वे अपने शिष्यों को अनुशासन, ध्यान, और सेवा के माध्यम से आत्मिक विकास की शिक्षा देते थे।
प्रमुख शिक्षाएं और दर्शन
स्वामी युक्तेश्वर ने वेदांत, योग, और विज्ञान को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया। उनकी शिक्षाएं सरल और व्यावहारिक थीं, जिनका उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और ईश्वर का अनुभव करना था।
1. क्रिया योग:
उन्होंने क्रिया योग को आत्मा की शुद्धि और ईश्वर तक पहुंचने का सबसे प्रभावी साधन बताया।
2. ध्यान का महत्व:
वे नियमित ध्यान और आंतरिक शांति को आत्मज्ञान का आधार मानते थे।
3. विज्ञान और धर्म का समन्वय:
उन्होंने धार्मिक ग्रंथों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया।
4. प्रकृति और मानवता का सम्मान:
उन्होंने बताया कि हर जीव और प्रकृति के हर तत्व में ईश्वर का वास है।
श्री युक्तेश्वर की प्रमुख पुस्तक: "द होली साइंस"
स्वामी श्री युक्तेश्वर की यह पुस्तक उनके महान योगदानों में से एक है।
- पुस्तक का उद्देश्य:
यह पुस्तक धर्म और विज्ञान के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए लिखी गई थी।
इसमें वेदांत और बाइबिल के शिक्षाओं के बीच समानताओं को उजागर किया गया है।
- विषय:
पुस्तक में चार प्रमुख अध्याय हैं, जो मानव जीवन के भौतिक, मानसिक, बौद्धिक, और आध्यात्मिक पहलुओं की व्याख्या करते हैं।
- खगोल विज्ञान:
उन्होंने "महायुग" की व्याख्या की और खगोलशास्त्र के माध्यम से समय के चक्रों का वर्णन किया।
योगानंद परमहंस से संबंध
स्वामी श्री युक्तेश्वर योगानंद परमहंस के गुरु थे।
- उन्होंने योगानंद को 1910 में क्रिया योग की दीक्षा दी।
- वे अपने शिष्य को पश्चिम में योग और ध्यान का प्रचार करने के लिए प्रेरित करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे।
योगानंद ने अपनी पुस्तक "ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी" में श्री युक्तेश्वर का विस्तार से वर्णन किया है।
व्यक्तिगत गुण
स्वामी श्री युक्तेश्वर अपने स्पष्ट, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और कठोर अनुशासन के लिए प्रसिद्ध थे।
- वे प्रेम, करुणा, और ईश्वर के प्रति समर्पण के प्रतीक थे।
- वे कभी-कभी अपने शिष्यों के प्रति कठोर लगते थे, लेकिन उनका उद्देश्य उनके आध्यात्मिक विकास में मदद करना था।
निधन और आध्यात्मिक प्रभाव
स्वामी श्री युक्तेश्वर का निधन 9 मार्च 1936 को पुरी में हुआ। उनके शिष्यों ने उनकी मृत्यु को "महासमाधि" के रूप में देखा।
उनकी विरासत:
- योग और ध्यान का प्रचार:
उनकी शिक्षाएं आज भी "योगदा सत्संग सोसाइटी" और "सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप" के माध्यम से प्रचारित की जा रही हैं।
- धर्म और विज्ञान का समन्वय:
उनकी पुस्तक "द होली साइंस" धर्म और विज्ञान के बीच के संबंध को समझने वालों के लिए एक मार्गदर्शिका है।
स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि एक विलक्षण संत थे, जिन्होंने योग, ध्यान, और ज्ञान के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और आत्मसाक्षात्कार का मार्ग दिखाया। उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। वे आधुनिक युग के उन संतों में से एक हैं, जिन्होंने पूर्व और पश्चिम की आध्यात्मिकता को जोड़ने का अनमोल कार्य किया।
"द होली साइंस" (The Holy Science)
"द होली साइंस" (The Holy Science) स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि द्वारा लिखित एक अद्वितीय और गहन आध्यात्मिक पुस्तक है। यह 1894 में लिखी गई थी और इसे उनकी महानतम कृति माना जाता है। पुस्तक का उद्देश्य प्राचीन भारतीय वेदांत और पश्चिमी बाइबिल के बीच समानता को उजागर करना और धर्म तथा विज्ञान को एकीकृत करना है।
पुस्तक का उद्देश्य
स्वामी श्री युक्तेश्वर ने इस पुस्तक को मानवता के लिए एक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक मार्गदर्शिका के रूप में लिखा। उनके अनुसार, विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में निहित सत्य को वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत करना आवश्यक था ताकि सभी धर्मों और संस्कृतियों के बीच एकता स्थापित हो सके।
उन्होंने यह भी बताया कि आधुनिक युग में धर्म, विज्ञान, और आध्यात्मिकता का समन्वय आत्मा की उन्नति के लिए अत्यावश्यक है।
पुस्तक की संरचना
"द होली साइंस" चार मुख्य खंडों में विभाजित है, जो मानव जीवन के भौतिक, मानसिक, बौद्धिक, और आध्यात्मिक पहलुओं को संबोधित करते हैं।
1. धर्म (The Gospel)
- यह खंड आत्मा की प्रकृति और ईश्वर की वास्तविकता पर केंद्रित है।
- इसमें यह बताया गया है कि मनुष्य का परम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर के साथ एकात्मकता है।
- भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन का महत्व समझाया गया है।
2. क्रिया योग और साधना (The Goal)
- इस खंड में साधना, ध्यान, और योग के महत्व को बताया गया है।
- क्रिया योग को आत्मा को शुद्ध करने और ईश्वर तक पहुंचने का सबसे प्रभावी साधन बताया गया है।
- मन, बुद्धि और आत्मा के बीच के संबंध को समझाया गया है।
3. विज्ञान और युग चक्र (The Cycle of Time)
- इस खंड में स्वामी श्री युक्तेश्वर ने युगों के चक्र और ब्रह्मांडीय समय का वर्णन किया है।
- उन्होंने खगोल विज्ञान के आधार पर समय चक्रों की व्याख्या की और यह बताया कि मानव चेतना विभिन्न युगों में कैसे विकसित होती है।
- उनके अनुसार, द्वापर युग (वर्तमान युग) में विज्ञान और आध्यात्मिकता का एक नया सामंजस्य स्थापित हो रहा है।
4. आत्मिक अनुभूति और मुक्ति (The Revelation)
- यह खंड आत्मा की उच्चतम स्थिति, ब्रह्मांडीय चेतना, और ईश्वर के साथ एकत्व की अनुभूति पर केंद्रित है।
- इसमें बताया गया है कि ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा कैसे अपनी दिव्यता का अनुभव कर सकती है।
- यह खंड ईश्वर के सार्वभौमिक स्वरूप को प्रस्तुत करता है।
प्रमुख विषय और शिक्षाएं
1. धर्म और विज्ञान का समन्वय
- श्री युक्तेश्वर ने धर्म और विज्ञान को विरोधी नहीं, बल्कि एक दूसरे के पूरक के रूप में प्रस्तुत किया।
- उन्होंने यह बताया कि योग और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति न केवल आत्मा की उन्नति कर सकता है, बल्कि भौतिक और वैज्ञानिक जीवन में भी प्रगति कर सकता है।
2. महायुग चक्र की अवधारणा
- स्वामी जी ने युगों के चक्र को विस्तार से समझाया और बताया कि यह चक्र चार मुख्य युगों में विभाजित है:
- सतयुग (सत्य का युग)
- त्रेतायुग (मानसिक शक्तियों का युग)
- द्वापर युग (वैज्ञानिक और विद्युत शक्तियों का युग)
- कलियुग (अज्ञानता का युग)
- उन्होंने बताया कि हम वर्तमान में द्वापर युग के प्रारंभिक चरण में हैं, जब मानव चेतना विज्ञान और आध्यात्मिकता को समझने में उन्नति कर रही है।
3. आत्मिक विकास के चार चरण
- स्वामी जी ने आत्मा की उन्नति को चार चरणों में बांटा है:
1. धर्म (आत्मा का जागरण)
2. अर्थ (जीवन का अर्थ समझना)
3. काम (ईश्वर के प्रति प्रेम)
4. मोक्ष (आत्मा का ईश्वर से मिलन)
4. ध्यान और क्रिया योग का महत्व
- उन्होंने बताया कि ध्यान और क्रिया योग आत्मा को शुद्ध करने और ब्रह्मांडीय चेतना को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य हैं।
- क्रिया योग, सांस और प्राण के नियंत्रण के माध्यम से आत्मा को ईश्वर की अनुभूति तक पहुंचाता है।
"द होली साइंस" में बाइबिल और वेदांत का तुलनात्मक अध्ययन
स्वामी श्री युक्तेश्वर ने बाइबिल और भारतीय वेदांत के शाश्वत सत्य को एक समान पाया।
- उन्होंने "प्रभु यीशु मसीह" और "भगवान कृष्ण" के संदेशों के बीच समानता का वर्णन किया।
- उनके अनुसार, सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं।
पुस्तक की भाषा और शैली
"द होली साइंस" एक सरल और वैज्ञानिक भाषा में लिखी गई है।
- इसका प्रत्येक खंड तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।
- यह पुस्तक केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विज्ञान पर आधारित है।
पुस्तक का प्रभाव
1. अध्यात्म और विज्ञान के बीच पुल:
- यह पुस्तक उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शिका है जो आध्यात्मिकता और विज्ञान को साथ लेकर चलना चाहते हैं।
2. योग के प्रति जागरूकता:
- "द होली साइंस" ने योग और ध्यान को एक वैज्ञानिक पद्धति के रूप में स्थापित करने में मदद की।
3. पश्चिमी पाठकों के लिए:
- पश्चिमी दुनिया में इसे वेदांत और योग का परिचय कराने वाली महत्वपूर्ण कृति माना जाता है।
निष्कर्ष
"द होली साइंस" एक सार्वभौमिक और कालजयी पुस्तक है, जो धर्म, विज्ञान, और आध्यात्मिकता के गहरे रहस्यों को उजागर करती है। स्वामी श्री युक्तेश्वर ने इसे एक विश्व धर्म के निर्माण की दिशा में उठाया गया कदम बताया।यह पुस्तक आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है जो आत्मा की गहराई में उतरना चाहते हैं और जीवन के गहन अर्थ को समझना चाहते हैं।
हमारा उद्देश्य केवल सजगता बढ़ाना है ,हम जन साधारण को संतो, ध्यान विधियों ,ध्यान साधना से संबन्धित पुस्तकों के बारे मे जानकारी , इंटरनेट पर मौजूद सामग्री से जुटाते है । हम किसी धर्म ,संप्रदाय ,जाति , कुल ,या व्यक्ति विशेष की मान मर्यादा को ठेस नही पहुंचाते है । फिर भी जाने अनजाने , यदि किसी को कुछ सामग्री सही प्रतीत नही होती है , कृपया हमें सूचित करें । हम उस जानकारी को हटा देंगे ।
website पर संतो ,ध्यान विधियों , पुस्तकों के बारे मे केवल जानकारी दी गई है , यदि साधकों /पाठकों को ज्यादा जानना है ,तब संबन्धित संस्था ,संस्थान या किताब के लेखक से सम्पर्क करे ।
© 2024. All rights reserved.