सहानुभूति, अनुभूति एवं करुणा

अनदेखा ज़हर , समरसता और प्रसाद

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9/25/20241 मिनट पढ़ें

रमेश , तुम आजकल ज्यादा आधुनिक होते जा रहे हो। क्या तुम्हें मालूम है, यह आधुनिकता तुम्हें एक दिन गर्त मे ले जाएगी , अच्छा तुम कई बार बातों -बातों मे कहते रहते हो , कि मै फलां -फलां के कारण बहुत परेशान हूँ । कभी तुमने यह जानने का प्रयास किया , कि सभी परेशानियों के मुख्य स्रोत तुम्ही हो ।

रमेश : नही -नही, ऐसा कैसे हो सकता है , मै कारण कैसे हो सकता हूँ ।

गुरुजी : थोड़ा ध्यान दो , जब घर परिवार मे कोई जाने- अनजाने मे गलती करता है , तब तुम्हारा व्यवहार कैसा होता है , और जब कोई बाहर इस तरह कि गलती जाने अनजाने मे करता है ,तब कैसा होता है । शायद क्षमा दान या फिर गुस्से वाला ।

तुम दूसरों को जो सहानुभूति दर्शाते हो, दरअसल वह न दिखने वाला एक जहर है । क्योकि सहानुभूति दूसरों कि कमियाँ दूर न करके , उनको सहारा देना है , यदि कोई व्यक्ति किसी काम के बिगड़ जाने पर, किसी दूसरे पर इसका आरोप लगाता है , और अपनी गलती स्वीकार नही करता है ,कि कार्य के बिगड़ने मे वह सहायक है । अब सोचो यदि तुम उससे मिलते हो , तब तुम्हारी दिलासा मे क्या यह नही जुड़ा रहता है । इसमे तेरा कोई दोष नही है , यह तुम्हारी किस्मत मे लिखा था, या यह ईश्वर कि इच्छा रही होगी । यही जहर हर किसी को कोई न कोई पिलाता रहता है , जिसके कारण व्यर्थ ही लोग आरोप अन्य पर मढ़ते रहते है । कोई न मिले तो फिर परमात्मा तो है ही । यही वह कारण है जिससे मानव गलती करके सुधारने का प्रयास नही करना चाहता है ।

रमेश : गुरुजी सहानुभूति और अनुभूति मे फिर अंतर क्या है ?

गुरुजी : जब कोई दो या इससे ज्यादा व्यक्ति किसी समस्या को स्वीकार न करके उसको किसी अन्य (किस्मत या ईश्वर ) पर थोपते है , वही सहानुभूति कहलाती है ।

अनुभूति - जब कोई व्यक्ति अपनी गलती स्वीकार करके दूर करने का प्रयास करता है, तब वह अनुभूति बन जाती है । अनु जो तुम्हारे अंतकरण मे महसूस हो रहा है, उसी के वशीभूत होकर , अनुकरण करना ही अनुभूति है । अनुभूति हृदय कि गहराइयों से निकलती है न कि मानसिक उपज है ।

गुरुजी : रमेश , क्या करुणा का कुछ अंदाजा है ?

रमेश : नही ! गुरुजी, मुझे सहानुभूति और अनुभूति का भी आप के बताने पर आभास हुआ है , कृपया करुणा के बारे मे भी बतायें ।

गुरुजी : थोड़ा रुक कर ................

करुणा ईश्वरीय प्रसाद है , जो किसी-किसी विशिष्ट परिस्थिति मे स्थित साधक को ही प्राप्त होता है , करुणा संयोगवश ही पैदा होता ही, कोई कोई विरला साधक ही इसको प्राप्त कर पता है , जिसको यह प्रसाद प्राप्त हो जाता है , उसमे ईश्वरीय गुणों का समावेश हो जाता है । जब कोई व्यक्ति साधना मे विभोर होकर सभी बंधनो से मुक्त हो जाता है , और समाधि को प्राप्त कर लेता है तब करुणा उदय होती है , और कह सकते है ईश्वरीय प्रेम कि वर्षा उस साधक पर बरसती है ।

रमेश : गुरुजी , क्या दैनिक कार्यो के साथ करुणामय हुआ जा सकता है ?

गुरुजी : हाँ , हो सकता है , जब कोई व्यक्ति सहनुभूति को समझकर , अनुभूति को गहराता जाता है , तब अचानक किसी दिन , यह प्रसाद प्राप्त हो सकता है । रमेश , तुम सजगता पर ध्यान बढ़ाते रहो , बाकी सब अपने आप, जुड़ता चला जाएगा ।