जॉर्ज इवानोविच गुरजिएफ़
चौथा आयाम
NEW CHETNA
10/18/20241 मिनट पढ़ें
जॉर्ज इवानोविच गुरजिएफ़ (G.I. Gurdjieff)
जॉर्ज इवानोविच गुरजिएफ़ (G.I. Gurdjieff) एक प्रसिद्ध रहस्यवादी, दार्शनिक, और आध्यात्मिक शिक्षक रहे है , जिन्होंने 20वीं सदी में आध्यात्मिकता और स्व-जागरूकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका पूरा नाम जॉर्ज इवानोविच गुरजिएफ़ था, और उनका जन्म 1866 या 1877 के आसपास रूस (अब अर्मेनिया) में हुआ था। गुरजिएफ़ ने मानवता की आत्मिक और मानसिक स्थिति को सुधारने के लिए कई विचार और सिद्धांत विकसित किए, जिन्हें वे चौथी दिशा (Fourth Way) कहते थे।
प्रमुख विचार:
गुरजिएफ़ का मानना था कि मनुष्य एक प्रकार की मशीन के रूप में कार्य करता है, जिसमें अधिकतर समय वह स्वचालित रूप से कार्य करता है और अपने जीवन का अनुभव पूरी तरह से जागरूक होकर नहीं करता। उनका विचार था कि लोग सचेत और जागरूक होने की क्षमता खो चुके हैं, और उन्हें अपने असली आंतरिक स्वभाव का पता नहीं है।
1. चौथी दिशा (Fourth Way):
यह गुरजिएफ़ का सबसे प्रसिद्ध सिद्धांत है। उन्होंने कहा कि मानवता के तीन पारंपरिक आध्यात्मिक मार्ग (शरीर का मार्ग, मन का मार्ग, और भावना का मार्ग) अपर्याप्त हैं। चौथी दिशा उन सभी मार्गों को मिलाकर एक नया मार्ग बनाता है, जो व्यक्ति को अपनी आंतरिक स्वतंत्रता और जागरूकता प्राप्त करने में सहायता करता है। इसे प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपने तीनों केंद्रों (शरीर, मन, और भावना) को संतुलित रूप से विकसित करना होता है।
गुरजिएफ़ ने चौथी दिशा को एक अनोखे मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया, जो पारंपरिक मार्गों से अलग था। उन्होंने कहा कि आत्म-प्राप्ति के तीन सामान्य मार्ग होते हैं:
- शारीरिक योग (The Way of the Fakir): यह मार्ग शरीर पर नियंत्रण और कठोर तपस्या के माध्यम से विकास की दिशा में बढ़ता है। इस मार्ग पर चलने वाले लोग अपनी इच्छाशक्ति और सहनशक्ति को बढ़ाने के लिए कठिन शारीरिक अनुशासन अपनाते हैं। गुरजिएफ़ के अनुसार, यह मार्ग केवल शरीर के केंद्र पर ध्यान केंद्रित करता है।
- भिक्षु का मार्ग (The Way of the Monk): यह मार्ग दिल और भावना के मार्ग पर आधारित होता है। इस मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति अपने भावनात्मक और आध्यात्मिक जीवन को पवित्रता और ईश्वर की भक्ति में लीन कर देते हैं। परंतु यह मार्ग केवल भावना के केंद्र पर जोर देता है।
- योगी का मार्ग (The Way of the Yogi): यह मार्ग बुद्धि और मन के विकास पर आधारित होता है। योगी अपने मानसिक और बौद्धिक स्तर पर काम करके जागरूकता और उच्च आत्मिक ज्ञान की खोज करते हैं। यह मार्ग मुख्य रूप से मन के केंद्र को संबोधित करता है।
चौथी दिशा का विशेष महत्व:
गुरजिएफ़ ने इन तीनों मार्गों को अलग-अलग और असंतुलित बताया। उनका मानना था कि इन मार्गों पर चलने वाले व्यक्ति केवल अपने जीवन के एक पहलू (शरीर, भावना, या मन) पर ध्यान देते हैं, जबकि चौथी दिशा इन तीनों पहलुओं का सामंजस्यपूर्ण विकास करती है। चौथी दिशा शरीर, भावना, और मन तीनों के संतुलन पर आधारित है, ताकि व्यक्ति को संपूर्ण आत्मिक जागरूकता प्राप्त हो सके।
2. "नींद" से जागरण:
गुरजिएफ़ का मानना था कि लोग एक तरह की आध्यात्मिक "नींद" में जी रहे हैं, और उन्हें जागने की आवश्यकता है। उनका शिक्षा पद्धति लोगों को अपनी आदतों, प्रतिक्रियाओं, और स्वचालित जीवन से बाहर निकालकर उन्हें सच्चे जागरण की ओर ले जाती है। उन्होंने ध्यान और आत्म-अवलोकन (Self-observation) की प्रक्रियाओं को इस जागरण के लिए महत्वपूर्ण माना।
गुरजिएफ़ का एक प्रमुख सिद्धांत यह था कि अधिकतर लोग "नींद" में जी रहे हैं। इस नींद का अर्थ भौतिक रूप से सोना नहीं, बल्कि एक मानसिक और आध्यात्मिक नींद है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन को स्वचालित रूप से जीता है। उन्होंने कहा कि हम अपने जीवन के अनुभवों और दैनिक कार्यों को बिना सोचे-समझे या जागरूकता के पूरा करते हैं।
नींद का स्वरूप:
- स्वचालित जीवन: गुरजिएफ़ के अनुसार, हम आदतों, प्रतिक्रियाओं और बाहरी परिस्थितियों के आधार पर अपना जीवन जीते हैं। हम वास्तविक जागरूकता और स्वचेतना से बहुत दूर होते हैं।
- विचारों का भ्रम: व्यक्ति का मन लगातार विचारों में उलझा रहता है, जो उसे वास्तविकता से दूर कर देता है। ये विचार अक्सर अवचेतन प्रतिक्रियाएं होते हैं जो अतीत की घटनाओं या भविष्य की चिंता पर आधारित होते हैं।
जागरण की आवश्यकता:
गुरजिएफ़ का मानना था कि मानवता के इस स्वचालित जीवन से बाहर निकलने और आत्म-जागरूकता प्राप्त करने के लिए एक गहन आंतरिक प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। इसके लिए आत्म-निगरानी (Self-Observation), ध्यान, और आत्म-अवलोकन महत्वपूर्ण हैं, ताकि व्यक्ति अपने भीतर की "नींद" से जाग सके और वास्तविक आत्मज्ञान प्राप्त कर सके।
3. आत्म-अवलोकन और ध्यान:
गुरजिएफ़ ने अपने अनुयायियों को सलाह दी कि वे लगातार अपने विचारों, भावनाओं और शारीरिक क्रियाओं का अवलोकन करें। यह आत्म-जागरूकता की ओर पहला कदम है। उनके अनुसार, यह आंतरिक अवलोकन एक व्यक्ति को उसकी स्वचालित प्रतिक्रियाओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
गुरजिएफ़ ने आत्म-अवलोकन को एक महत्वपूर्ण साधन माना जो व्यक्ति को अपनी स्वचालितता और अचेतन प्रतिक्रियाओं से मुक्ति दिला सकता है। उनका विचार था कि मनुष्य तब तक अपने जीवन को नियंत्रित नहीं कर सकता जब तक वह स्वयं को नहीं जानता। और स्वयं को जानने का सबसे अच्छा तरीका है आत्म-अवलोकन।
आत्म-अवलोकन की प्रक्रिया:
- अंतर्राष्ट्रीय अवलोकन: व्यक्ति को अपने विचारों, भावनाओं, और शारीरिक क्रियाओं का लगातार अवलोकन करना चाहिए। यह अवलोकन बिना किसी आलोचना के होना चाहिए। व्यक्ति को केवल देखना है कि क्या हो रहा है।
- निष्क्रियता नहीं, सक्रिय जागरूकता: गुरजिएफ़ ने जोर दिया कि आत्म-अवलोकन निष्क्रियता नहीं है। व्यक्ति को सक्रिय रूप से हर परिस्थिति में अपने भीतर होने वाले अनुभवों और प्रतिक्रियाओं को देखना चाहिए। यह जागरूकता ही आंतरिक विकास का आधार है।
ध्यान और जागरूकता:
गुरजिएफ़ ने पारंपरिक ध्यान पद्धतियों के साथ-साथ अपनी ध्यान प्रक्रियाएँ भी विकसित कीं। उनका ध्यान कर्मकांड से जुड़ा नहीं था, बल्कि जागरूकता को केंद्र में रखने पर था। व्यक्ति को ध्यान के माध्यम से अपनी मन की अवस्था को पहचानना और उसे स्थिर करना होता है।
1. आत्म-अवलोकन (Self-Observation)
यह गुरजिएफ़ की सबसे महत्वपूर्ण ध्यान विधियों में से एक थी। इस विधि का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को उसकी दैनिक गतिविधियों, विचारों, और भावनाओं के प्रति जागरूक बनाना है।
प्रक्रिया:- वर्तमान क्षण में जागरूक रहना: इस विधि में व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, और शारीरिक क्रियाओं का अवलोकन करता है, बिना उन्हें बदलने या उन पर निर्णय करने की कोशिश किए। इसका उद्देश्य यह देखना है कि व्यक्ति किन स्वचालित प्रतिक्रियाओं में फंसा हुआ है।
- बाहरी और आंतरिक अवलोकन: व्यक्ति न केवल अपने बाहरी कार्यों और गतिविधियों पर ध्यान देता है, बल्कि अपने आंतरिक विचारों और भावनाओं को भी ध्यानपूर्वक देखता है। यह जागरूकता धीरे-धीरे स्वचालितता को तोड़ने में मदद करती है।
- वस्तुनिष्ठ अवलोकन: आत्म-अवलोकन में व्यक्ति को अपनी प्रतिक्रिया, भावनाओं और विचारों को देखने के लिए "तटस्थ दृष्टिकोण" अपनाने की सलाह दी जाती है। इसे बिना किसी निर्णय या आलोचना के करना होता है।
2. स्मरण (Self-Remembering)
गुरजिएफ़ की ध्यान विधियों में से एक अन्य महत्वपूर्ण प्रक्रिया थी Self-Remembering, जिसे हम "स्व-स्मरण" के रूप में अनुवाद कर सकते हैं। इसका उद्देश्य व्यक्ति को यह याद दिलाना है कि वह कौन है और क्या कर रहा है।
प्रक्रिया:- मैं कौन हूँ?: व्यक्ति अपने वर्तमान क्षण में यह सवाल करता है कि "मैं कौन हूँ?" और "मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ?" यह सवाल व्यक्ति को उसके अस्तित्व की ओर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
- समानांतर जागरूकता: इस विधि में व्यक्ति अपने कार्यों और गतिविधियों को करता रहता है, लेकिन साथ ही यह भी जागरूक रहता है कि वह इन कार्यों को क्यों और कैसे कर रहा है। यह आंतरिक जागरूकता और बाहरी गतिविधियों का संतुलन है।
- आत्म-जागरूकता का विकास: जब व्यक्ति लगातार स्वयं को "स्मरण" करता है, तो वह अपनी स्वचालित प्रतिक्रियाओं और आदतों से मुक्त होकर अधिक जागरूक और सजीव हो जाता है।
3. गुरजिएफ़ मूवमेंट्स (Gurdjieff Movements)
गुरजिएफ़ ने अपने शिष्यों के लिए विशेष रूप से "मूवमेंट्स" या शारीरिक आंदोलनों की एक शृंखला विकसित की। ये मूवमेंट्स केवल शारीरिक व्यायाम नहीं थे, बल्कि ध्यान और जागरूकता के अभ्यास थे।
उद्देश्य:
- शरीर और मन का संतुलन: इन आंदोलनों का उद्देश्य शरीर, भावना, और मन के बीच तालमेल बैठाना था। यह ध्यान के दौरान शरीर की गतियों पर ध्यान केंद्रित करने की विधि थी, जिससे व्यक्ति पूरी तरह से जागरूक होता है।
- स्मरणशक्ति और समन्वय: इन मूवमेंट्स में जटिल शारीरिक क्रियाएं शामिल थीं, जिन्हें व्यक्ति को बिना गलती के करना होता था। इसके माध्यम से व्यक्ति की स्मरणशक्ति और समन्वय शक्ति का विकास होता है।
- संगीत और ताल: गुरजिएफ़ मूवमेंट्स अक्सर संगीत और ताल के साथ किए जाते थे, ताकि व्यक्ति अपने भीतर की लय और तालमेल को महसूस कर सके। यह लयात्मक ध्यान की एक विशेष विधि थी जो शारीरिक जागरूकता और मानसिक स्थिरता को बढ़ावा देती थी।
4. श्वास ध्यान (Breathing Exercises)
गुरजिएफ़ ने श्वास को ध्यान के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा। उनके अनुसार, श्वास के माध्यम से व्यक्ति अपनी आंतरिक ऊर्जा को नियंत्रित कर सकता है और जागरूकता की उच्च अवस्थाओं को प्राप्त कर सकता है।
प्रक्रिया:- जागरूक श्वास: व्यक्ति को अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह श्वास धीरे-धीरे और संतुलित होनी चाहिए। श्वास को नियमित और सुसंगठित रखना आवश्यक होता है, जिससे मन और शरीर शांत हो सके।
- प्राण और ऊर्जा का संतुलन: गुरजिएफ़ का मानना था कि श्वास व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा का स्रोत है। जब व्यक्ति अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करता है, तो वह अपने भीतर की ऊर्जा को नियंत्रित कर सकता है और मानसिक शांति प्राप्त कर सकता है।
5. साक्रे डांस (Sacred Dance)
गुरजिएफ़ ने पवित्र नृत्य या Sacred Dance को भी ध्यान और आत्म-जागरूकता का एक साधन माना। यह नृत्य केवल कला नहीं था, बल्कि यह एक गहन ध्यान विधि थी जो शरीर, मन और आत्मा को एकजुट करती थी।
उद्देश्य:
- शरीर और भावना की एकता: यह नृत्य व्यक्ति को शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी आंतरिक भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर देता था। इससे शरीर और भावना के बीच एक गहरा संबंध स्थापित होता है।
- संगीत और ताल के साथ समर्पण: पवित्र नृत्य संगीत और ताल के साथ किया जाता था। इसका उद्देश्य व्यक्ति को बाहरी दुनिया से हटाकर अपनी आंतरिक दुनिया में प्रवेश कराना था।
- सांकेतिक मुद्राएँ: इस नृत्य में विभिन्न मुद्राओं और संकेतों का उपयोग किया जाता था, जो व्यक्ति की आंतरिक यात्रा और आध्यात्मिकता का प्रतीक होते थे।
6. विचारों का संयम (Control of Thoughts)
गुरजिएफ़ ने ध्यान के दौरान विचारों को संयमित करने की विधियाँ भी सिखाईं। उन्होंने कहा कि मन में निरंतर चल रहे विचार व्यक्ति को जागरूकता से दूर ले जाते हैं। उनके अनुसार, विचारों का संयम व्यक्ति को मानसिक शांति और स्पष्टता की ओर ले जाता है।
प्रक्रिया:- विचारों का अवलोकन: व्यक्ति अपने विचारों को बिना किसी प्रतिक्रिया के केवल देखता है। वह उन्हें नियंत्रित करने या बदलने की कोशिश नहीं करता, बल्कि केवल उन्हें देखता है कि वे कैसे आते हैं और जाते हैं।
- विचारों से दूरी बनाना: इस विधि में व्यक्ति अपने विचारों से दूरी बनाना सीखता है, ताकि वे उसकी मानसिक स्थिति पर हावी न हों। यह विचारों को नियंत्रित करने की दिशा में पहला कदम है।
4. कार्य के माध्यम से विकास:
गुरजिएफ़ ने जोर दिया कि केवल ध्यान और आत्म-अवलोकन पर्याप्त नहीं हैं। व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से कार्य करना चाहिए, विशेषकर कठिन परिस्थितियों में, ताकि वह अपनी सीमाओं को पहचान सके और अपने आप में परिवर्तन ला सके।
गुरजिएफ़ ने "काम" या "परिश्रम" को आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन माना। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति के आंतरिक विकास के लिए उसे शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक परिश्रम करना जरूरी है। इसका तात्पर्य केवल शारीरिक कार्य नहीं, बल्कि हर प्रकार के मानसिक और भावनात्मक संघर्ष से है जो व्यक्ति को उसकी कमजोरियों से उबरने में मदद करता है।
परिश्रम का महत्व:
- सीमाओं को पहचानना: कठिन परिस्थितियों और परिश्रम के माध्यम से व्यक्ति अपनी सीमाओं को पहचानता है। उसे समझ में आता है कि उसकी मानसिक और शारीरिक शक्तियाँ कितनी सीमित हैं, और यह जागरूकता उसे आत्म-सुधार की दिशा में प्रेरित करती है।
- संघर्ष और विकास: गुरजिएफ़ का मानना था कि संघर्ष, विशेषकर आंतरिक संघर्ष, व्यक्ति को विकसित करने में सहायक होता है। जब व्यक्ति अपनी आंतरिक कमजोरियों, स्वचालित प्रतिक्रियाओं, और आदतों के खिलाफ काम करता है, तो वह अपने आप को वास्तविक रूप से बदलने के योग्य बनता है।
"प्रकाश किरण" (Ray of Creation) और "अष्टक" (Enneagram) गुरजिएफ़ की शिक्षाओं के दो महत्वपूर्ण तत्व हैं। दोनों सिद्धांत उनके चौथी दिशा (Fourth Way) के व्यापक दर्शन का हिस्सा हैं और मानवता की आत्मिक और ब्रह्मांडीय समझ को विस्तार से समझाने का प्रयास करते हैं। आइए, इन दोनों अवधारणाओं का विस्तृत वर्णन करें।
1. प्रकाश किरण (Ray of Creation)
"प्रकाश किरण" गुरजिएफ़ का एक प्रमुख ब्रह्मांडीय मॉडल है, जो सृष्टि की उत्पत्ति और विकास के बारे में उनकी समझ को दर्शाता है। इस सिद्धांत के माध्यम से, उन्होंने समझाया कि ब्रह्मांड कैसे एक केंद्रीय स्रोत से उत्पन्न होता है और विभिन्न स्तरों पर बँटता है।
सृष्टि का आरंभ:
गुरजिएफ़ का मानना था कि सृष्टि एक उच्चतम स्रोत या "परम सत्ता" (Absolute) से प्रारंभ होती है, जिसे उन्होंने "ईश्वर" या "परम चेतना" का नाम दिया। यह परम सत्ता सर्वोच्च स्तर पर मौजूद है, जहाँ से ऊर्जा और चेतना नीचे की ओर कई स्तरों में विभाजित होती है।
स्तरों की श्रृंखला:
गुरजिएफ़ ने "प्रकाश किरण" के सिद्धांत के माध्यम से सृष्टि के विभिन्न स्तरों को समझाया, जो परम सत्ता से लेकर पृथ्वी तक की यात्रा को दर्शाता है। प्रत्येक स्तर एक अलग प्रकार की ऊर्जा और चेतना से युक्त होता है।
- परम सत्ता (Absolute): यह सर्वोच्च स्तर है, जहाँ से सब कुछ उत्पन्न होता है। यहाँ पूर्ण चेतना और ऊर्जा होती है।
- सभी आकाशगंगाएँ (All Galaxies): अगला स्तर उन सभी आकाशगंगाओं का होता है, जो परम सत्ता से उत्पन्न हुई हैं। यहाँ चेतना और ऊर्जा का स्तर थोड़ा कम होता है।
- हमारी आकाशगंगा (Milky Way): यह अगला स्तर है, जो हमारी आकाशगंगा को दर्शाता है। यहाँ चेतना और ऊर्जा का स्तर और भी कम हो जाता है।
- सौर मंडल (Solar System): इसके बाद हमारा सौर मंडल आता है, जहाँ ऊर्जा का स्तर और कम हो जाता है।
- पृथ्वी (Earth): इसके बाद पृथ्वी का स्तर आता है, जहाँ ऊर्जा सबसे कम होती है।
- चंद्रमा (Moon): अंतिम स्तर चंद्रमा का है, जिसे गुरजिएफ़ ने चेतना और ऊर्जा के सबसे निम्न स्तर के रूप में दर्शाया।
ऊर्जा का ह्रास और विकास:
"प्रकाश किरण" के सिद्धांत में, जैसे-जैसे सृष्टि परम सत्ता से पृथ्वी की ओर बढ़ती है, ऊर्जा और चेतना का स्तर धीरे-धीरे घटता जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि मानवता और अन्य प्राणी निम्न ऊर्जा स्तर पर होते हैं, और उन्हें जागरूकता और चेतना के उच्च स्तरों की ओर उन्नति करनी होती है।
गुरजिएफ़ के अनुसार, व्यक्ति को जागरूक होने और अपनी चेतना को ऊंचे स्तर तक ले जाने के लिए स्वयं पर काम करना आवश्यक है। यह आंतरिक संघर्ष और आत्म-विकास के माध्यम से संभव होता है।
2. अष्टक (Enneagram)
अष्टक या एनिएग्राम गुरजिएफ़ का एक और महत्वपूर्ण उपकरण है, जो मानव मनोविज्ञान और ब्रह्मांडीय चक्रों को समझने का एक प्रतीकात्मक मॉडल है। यह एक नौ-संख्या वाली ज्यामितीय आकृति है, जो व्यक्ति के विकास और आत्म-जागरूकता की प्रक्रियाओं को दर्शाती है।
एनिएग्राम की संरचना:
एनिएग्राम एक गोलाकार प्रतीक है, जिसमें नौ बिंदु होते हैं। ये नौ बिंदु किसी चक्र की अलग-अलग अवस्थाओं या पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। गुरजिएफ़ के अनुसार, यह प्रतीक जीवन के विभिन्न चक्रों, प्रक्रियाओं और व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों को समझाने में मदद करता है। यह प्रतीक हर चीज़ में चक्रीय पैटर्न को दर्शाता है।
- नौ बिंदु: एनिएग्राम के नौ बिंदु विभिन्न जीवन स्थितियों, प्रक्रियाओं या व्यक्तित्व प्रकारों का प्रतीक हैं।
- आंतरिक रेखाएँ: इन नौ बिंदुओं के बीच कई रेखाएँ होती हैं, जो इन बिंदुओं के बीच के संबंधों और प्रभावों को दर्शाती हैं। ये रेखाएँ यह दिखाती हैं कि कैसे एक अवस्था या स्थिति से दूसरी अवस्था में परिवर्तन होता है।
एनिएग्राम और चेतना:
गुरजिएफ़ का मानना था कि एनिएग्राम न केवल व्यक्तिगत विकास का प्रतीक है, बल्कि ब्रह्मांडीय प्रक्रियाओं का भी प्रतीक है। उन्होंने इसे "सार्वभौमिक नियम" (Universal Law) के रूप में प्रस्तुत किया, जो सृष्टि और मानवता के हर पहलू में लागू होता है। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक प्राकृतिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया एनिएग्राम के चक्र के माध्यम से गुजरती है।
दो मूल सिद्धांत:
गुरजिएफ़ ने एनिएग्राम के माध्यम से दो प्रमुख ब्रह्मांडीय नियमों को समझाया:
1. तीन का नियम (Law of Three): यह नियम सृष्टि के हर पहलू में तीन बलों के मौजूद होने का सिद्धांत है — सक्रिय (Active), निष्क्रिय (Passive), और तटस्थ (Neutral)। इन तीन बलों की सहभागिता से किसी भी घटना या वस्तु की उत्पत्ति होती है।
2. सात का नियम (Law of Seven): यह नियम सृष्टि की सात अवस्थाओं या चरणों को दर्शाता है। यह नियम यह समझाता है कि कैसे कोई प्रक्रिया या चक्र सात विभिन्न चरणों से गुजरती है, और यह कैसे एक चक्रीय रूप में काम करता है। गुरजिएफ़ ने इसे संगीत के सात स्वरों के रूप में भी समझाया, जहाँ प्रत्येक स्वर एक अलग अवस्था या प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है।
एनिएग्राम का व्यावहारिक उपयोग:
गुरजिएफ़ ने एनिएग्राम को एक ऐसा उपकरण बताया, जो व्यक्ति को आत्म-समझ और आत्म-परिवर्तन में मदद करता है। इसका उद्देश्य यह था कि व्यक्ति अपने आंतरिक चक्रों, प्रतिक्रियाओं, और मानसिक अवस्थाओं को समझ सके, और आत्म-विकास के रास्ते पर आगे बढ़ सके। एनिएग्राम से व्यक्ति अपनी कमजोरियों और अचेतन आदतों को पहचान सकता है और उन्हें सुधारने की दिशा में काम कर सकता है।
5. गुरजिएफ़ की शिक्षाओं का प्रभाव
गुरजिएफ़ की शिक्षाओं का पश्चिमी समाज और रहस्यवाद पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने ध्यान, योग, और आत्म-ज्ञान के परंपरागत मार्गों में नया दृष्टिकोण दिया। उनकी चौथी दिशा ने कई आधुनिक योग और ध्यान पद्धतियों को प्रभावित किया। उनके अनुयायियों ने उनके सिद्धांतों को पश्चिमी दुनिया में फैलाया, और उनकी शिक्षाएं आज भी आध्यात्मिकता और मनोविज्ञान के क्षेत्रों में गहरी समझ और प्रेरणा देती हैं।
संगीत और नृत्य के माध्यम से ध्यान:
गुरजिएफ़ ने ध्यान और आत्म-अवलोकन के साधन के रूप में संगीत और नृत्य को भी महत्व दिया। उन्होंने "Gurdjieff Movements" के रूप में एक खास प्रकार का नृत्य विकसित किया, जो व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक संतुलन प्राप्त करने में मदद करता है। यह नृत्य उनकी चौथी दिशा के सिद्धांतों का व्यावहारिक रूप है, जिसमें शरीर, भावना, और मन के बीच सामंजस्य स्थापित किया जाता है।
गुरजिएफ़ की शिक्षाओं का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को उसकी आत्म-ज्ञान की यात्रा में मदद करना था, ताकि वह अपनी "नींद" से जाग सके और एक अधिक जागरूक और पूर्ण जीवन जी सके।
गुरजिएफ़ ने ध्यान और आत्म-जागरूकता की प्राप्ति के लिए कई विधियों और तकनीकों का विकास किया। उनकी ध्यान विधियाँ पारंपरिक ध्यान की तुलना में थोड़ी भिन्न थीं, क्योंकि वे व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक पहलुओं को संतुलित रूप से विकसित करने पर आधारित थीं। गुरजिएफ़ का ध्यान आंतरिक जागरूकता और आत्म-अवलोकन पर केंद्रित था, जो उनकी चौथी दिशा (Fourth Way) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ कुछ प्रमुख ध्यान विधियाँ और प्रक्रियाएँ दी गई हैं जिन्हें गुरजिएफ़ ने सिखाया:
गुरजिएफ़ के प्रभाव:
गुरजिएफ़ का प्रभाव पश्चिमी रहस्यवाद और आध्यात्मिकता में गहरा रहा है। उनके शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य मानवता के आंतरिक विकास के लिए एक व्यावहारिक मार्ग दिखाना था। उन्होंने "अंतर्राष्ट्रीय हारमोनिक ऑर्केस्ट्रा" के माध्यम से भी लोगों को संगीत के माध्यम से आत्मिक विकास के तरीकों का अनुभव कराया।
उनकी शिक्षाएं आज भी जीवित हैं और कई लोग उनके सिद्धांतों का अनुसरण करते हैं। उनके प्रमुख शिष्यों में पी.डी. ऑस्पेन्स्की और थॉमस डी हार्टमैन जैसे लोग शामिल हैं, जिन्होंने गुरजिएफ़ की शिक्षाओं को दुनिया भर में फैलाने का कार्य किया।
गुरजिएफ़ की पुस्तकें:
गुरजिएफ़ की कई पुस्तकों में उनके विचार और सिद्धांत विस्तृत रूप से दर्ज हैं, जैसे:
1. "Beelzebub's Tales to His Grandson" - इसमें मानवता और सृष्टि के रहस्यों पर विचार किया गया है।
2. "Meetings with Remarkable Men" - यह उनकी आत्मकथा है, जिसमें उनके जीवन और यात्राओं का वर्णन है।
3. "Life is Real Only Then, When ‘I Am’" - यह किताब उनके अंतिम विचारों और शिक्षाओं का निचोड़ है।
गुरजिएफ़ ने अपनी तीन प्रमुख पुस्तकों में मानवता, सृष्टि, और आत्म-जागरूकता के रहस्यों पर गहरा विचार व्यक्त किया है। इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों, आध्यात्मिक यात्रा, और शिक्षाओं को साझा किया। चलिए इन तीन पुस्तकों पर विस्तार से चर्चा करते हैं:
1. "Beelzebub's Tales to His Grandson" (बीएलजेबब की कथाएँ उसके पोते को)
परिचय: "Beelzebub's Tales to His Grandson" गुरजिएफ़ की सबसे महत्वपूर्ण और जटिल पुस्तक मानी जाती है। यह उनकी तीन-खंडीय पुस्तक श्रृंखला "All and Everything" का पहला भाग है। इस पुस्तक का उद्देश्य मानवता की गहरी समस्याओं, उसके मूल स्वभाव, और ब्रह्मांडीय रहस्यों की व्याख्या करना है।
पुस्तक की विषयवस्तु:
यह पुस्तक बीएलजेबब नामक एक काल्पनिक चरित्र के दृष्टिकोण से लिखी गई है, जो गुरजिएफ़ के अनुसार, एक प्राचीन दानव है जिसे अपने पुराने पापों के लिए ब्रह्मांड में निर्वासन का सामना करना पड़ता है। बीएलजेबब अपनी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अपने पोते को विभिन्न विषयों पर शिक्षित करता है। इन कथाओं के माध्यम से गुरजिएफ़ ने मानवता की मूलभूत त्रुटियों, उसके स्वभाव और सृष्टि के नियमों के बारे में गहन और प्रतीकात्मक विचार प्रस्तुत किए हैं।
प्रमुख विषय:
- मानवता की अज्ञानता और यांत्रिकता: गुरजिएफ़ का मानना था कि मानवता अधिकतर स्वचालित तरीके से कार्य करती है, बिना किसी आत्म-जागरूकता के। बीएलजेबब की कथाओं के माध्यम से उन्होंने मानव जाति की इन आदतों पर प्रश्न उठाया और आत्म-जागरूकता के महत्व को उजागर किया।
- सृष्टि के नियम और ब्रह्मांड: पुस्तक में सृष्टि और ब्रह्मांडीय व्यवस्थाओं की गहराई से चर्चा की गई है। गुरजिएफ़ ने विभिन्न ब्रह्मांडीय नियमों और ऊर्जा चक्रों की व्याख्या की है, जो सृष्टि और मनुष्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- मानव विकास की त्रुटियाँ: पुस्तक में मानवता के पतन और उसकी प्रगति के अवरोधों पर चर्चा की गई है। गुरजिएफ़ ने यह दिखाया कि कैसे अज्ञानता और स्वचालितता ने मानवता को अपने उच्चतम विकास से दूर कर दिया है।
शैली और प्रभाव: यह पुस्तक बहुत ही जटिल भाषा और प्रतीकों से भरी है, जिसमें पाठक को कई परतों के माध्यम से गुरजिएफ़ के विचारों को समझने की आवश्यकता होती है। यह सामान्य पाठकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन जो व्यक्ति गहरे रूप में मानवता और सृष्टि के रहस्यों को समझने के लिए तैयार हैं, उनके लिए यह एक अमूल्य ग्रंथ है।
2. "Meetings with Remarkable Men" (अद्भुत व्यक्तियों के साथ मुलाकातें)
परिचय: "Meetings with Remarkable Men" गुरजिएफ़ की आत्मकथा का दूसरा भाग है। इसमें गुरजिएफ़ ने अपने जीवन के प्रारंभिक चरणों, उनकी यात्राओं, और उन अद्भुत व्यक्तियों का वर्णन किया है, जिनसे उन्होंने जीवन में मुलाकात की। यह पुस्तक गुरजिएफ़ के व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास की यात्रा को दर्शाती है।
पुस्तक की विषयवस्तु:
इस पुस्तक में गुरजिएफ़ ने अपने शुरुआती जीवन, शिक्षा, और उन लोगों का वर्णन किया है जिन्होंने उनके विचारों और शिक्षाओं को आकार दिया। यह उनकी आंतरिक खोज और ज्ञान प्राप्ति की यात्रा का वृत्तांत है।
प्रमुख व्यक्तित्व और मुलाकातें:
- पिता: गुरजिएफ़ ने अपने पिता को एक महत्वपूर्ण आदर्श माना। उनके पिता ने उन्हें बचपन में नैतिकता, धैर्य, और जीवन के गहरे अर्थों के बारे में सिखाया।
- अद्भुत व्यक्ति: पुस्तक में ऐसे कई व्यक्तियों का वर्णन किया गया है जिन्हें गुरजिएफ़ ने "अद्भुत" कहा। ये व्यक्ति अपने ज्ञान, चरित्र, और जीवन के प्रति दृष्टिकोण के लिए विशिष्ट थे। इन व्यक्तियों से गुरजिएफ़ ने जीवन के गहरे रहस्यों को समझने के तरीके सीखे।
- यात्राएँ और खोज: गुरजिएफ़ ने अपने जीवन में कई देशों की यात्रा की, जैसे तिब्बत, भारत, मध्य एशिया आदि। इन यात्राओं के दौरान, उन्होंने प्राचीन ज्ञान, आध्यात्मिक सिद्धांतों, और रहस्यमय शिक्षाओं की खोज की। यह पुस्तक इन यात्राओं के दौरान उनके अनुभवों और खोजों का विवरण है।
प्रमुख संदेश:
- आध्यात्मिक खोज: यह पुस्तक आत्म-खोज और ज्ञान की प्यास का एक आदर्श उदाहरण है। गुरजिएफ़ की यात्राएँ केवल बाहरी नहीं थीं, बल्कि एक आंतरिक यात्रा भी थीं, जो उन्हें आत्म-जागरूकता और आत्म-विकास की दिशा में ले गईं।
- ज्ञान की तलाश: गुरजिएफ़ ने इस पुस्तक के माध्यम से दिखाया कि कैसे ज्ञान की खोज कभी समाप्त नहीं होती। अद्भुत व्यक्तियों के साथ उनकी मुलाकातें यह दर्शाती हैं कि जीवन में सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को निरंतर सीखने और विकसित होने की आवश्यकता होती है।
शैली और प्रभाव:
"Meetings with Remarkable Men" गुरजिएफ़ की सरल और रोचक भाषा में लिखी गई है। इसमें जीवन के अनुभवों, मुलाकातों, और आत्मिक शिक्षाओं का वर्णन है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए प्रेरणादायक हो सकती है जो जीवन में आत्म-विकास और ज्ञान की खोज कर रहे हैं।
3. "Life is Real Only Then, When ‘I Am’" (जीवन वास्तविक तभी होता है, जब 'मैं हूँ')
परिचय: "Life is Real Only Then, When ‘I Am’" गुरजिएफ़ की तीसरी और अंतिम पुस्तक है। यह उनकी अंतिम शिक्षाओं और विचारों का निचोड़ है, जिसे उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में लिखा था। यह पुस्तक गुरजिएफ़ की गहन आत्म-जागरूकता और अस्तित्व के मर्म पर केंद्रित है।
पुस्तक की विषयवस्तु:
इस पुस्तक में गुरजिएफ़ ने जीवन के वास्तविक उद्देश्य, आत्म-जागरूकता, और 'स्वयं के होने' के रहस्यों पर चर्चा की है। उन्होंने अपने विचारों को बहुत ही व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत किया है, जहाँ उन्होंने आत्म-जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया है।
प्रमुख विचार:
- आत्म-जागरूकता ('I Am'): गुरजिएफ़ का मानना था कि जीवन वास्तविक तभी होता है जब व्यक्ति अपनी अस्तित्व की वास्तविकता के प्रति जागरूक हो। 'मैं हूँ' की भावना केवल शब्दों में नहीं, बल्कि व्यक्ति के संपूर्ण अस्तित्व में होती है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को हर क्षण में अपनी चेतना को जागरूक और सजीव बनाए रखना चाहिए।
- आध्यात्मिक संघर्ष: गुरजिएफ़ के अनुसार, आत्म-जागरूकता की प्राप्ति कोई सरल कार्य नहीं है। इसके लिए व्यक्ति को निरंतर संघर्ष और आंतरिक प्रयास करना पड़ता है। यह संघर्ष व्यक्ति को उसकी यांत्रिक जीवन शैली से मुक्त करता है।
- सच्चाई का अन्वेषण: गुरजिएफ़ ने इस पुस्तक में सत्य की खोज पर जोर दिया है। उन्होंने दिखाया कि जीवन का सत्य केवल बाहरी घटनाओं में नहीं, बल्कि व्यक्ति के आंतरिक जीवन में पाया जाता है।
प्रमुख संदेश:
- अस्तित्व का वास्तविक अनुभव: गुरजिएफ़ ने कहा कि ज्यादातर लोग जीवन को स्वचालित रूप से जीते हैं, बिना यह महसूस किए कि वे वास्तव में क्या हैं। 'मैं हूँ' की भावना का अनुभव व्यक्ति को जीवन के वास्तविक अर्थ से परिचित कराता है।
- आत्म-साक्षात्कार का महत्व: इस पुस्तक में गुरजिएफ़ ने यह स्पष्ट किया है कि आत्म-साक्षात्कार ही जीवन की सर्वोच्च प्राप्ति है। यह व्यक्ति को उसकी सच्ची पहचान से मिलाता है और उसे यांत्रिक जीवन से बाहर निकालता है।
शैली और प्रभाव:
यह पुस्तक गुरजिएफ़ की गहरी आंतरिक चिंतन और आत्म-विश्लेषण की परिणति है। यह उनके अंतिम विचारों और शिक्षाओं का संग्रह है और उन लोगों के लिए अत्यधिक मूल्यवान है जो आत्म-जागरूकता और अस्तित्व के गहरे सवालों के उत्तर खोज रहे हैं।
गुरजिएफ़ की तीन प्रमुख पुस्तकें "Beelzebub's Tales to His Grandson", "Meetings with Remarkable Men", और "Life is Real Only Then, When ‘I Am’" उनकी शिक्षाओं और दृष्टिकोण का गहरा अवलोकन प्रस्तुत करती हैं। ये पुस्तकें आत्म-जागरूकता, आत्म-विकास, और ब्रह्मांडीय सिद्धांतों की व्याख्या करती हैं। उनका उद्देश्य यह दिखाना था कि मानवता को केवल बाहरी घटनाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि अपने भीतर की गहराई में उतरकर जीवन के वास्तविक अर्थ की खोज करनी चाहिए
गुरजिएफ़ की शिक्षाओं का उद्देश्य यह था कि व्यक्ति अपने जीवन को एक उच्च उद्देश्य और समझ के साथ जी सके। उनके विचार आज भी योग, ध्यान, और आत्म-साक्षात्कार की कई पद्धतियों में दिखते हैं। गुरजिएफ़ के विचार और शिक्षाएं गहरे आध्यात्मिक रहस्यों और मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित थीं। उन्होंने आत्म-जागरूकता और मानवता की आंतरिक विकास की क्षमता पर विशेष जोर दिया। आइए उनके प्रमुख सिद्धांतों और उनके पीछे के तात्त्विक पहलुओं का और विस्तार से अध्ययन करें।
यह सामग्री इंटरनेट के माध्यम से तैयार की गयी है, ज्यादा जानकारी के लिए, उपरोक्त से संबन्धित संस्थान से सम्पर्क करें ।
उपरोक्त सामग्री व्यक्ति विशेष को जानकारी देने के लिए है, किसी समुदाय, धर्म, संप्रदाय की भावनाओं को ठेस या धूमिल करने के लिए नहीं है ।
हमारा उद्देश्य केवल सजगता बढ़ाना है ,हम जन साधारण को संतो, ध्यान विधियों ,ध्यान साधना से संबन्धित पुस्तकों के बारे मे जानकारी , इंटरनेट पर मौजूद सामग्री से जुटाते है । हम किसी धर्म ,संप्रदाय ,जाति , कुल ,या व्यक्ति विशेष की मान मर्यादा को ठेस नही पहुंचाते है । फिर भी जाने अनजाने , यदि किसी को कुछ सामग्री सही प्रतीत नही होती है , कृपया हमें सूचित करें । हम उस जानकारी को हटा देंगे ।
website पर संतो ,ध्यान विधियों , पुस्तकों के बारे मे केवल जानकारी दी गई है , यदि साधकों /पाठकों को ज्यादा जानना है ,तब संबन्धित संस्था ,संस्थान या किताब के लेखक से सम्पर्क करे ।
© 2024. All rights reserved.