संत थिरुनीवक (Thirunavukkarasar)
थिरुनेवक्कल (Thirunevakkal) - 'अम्बलवार'
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11/28/20241 मिनट पढ़ें
संत थिरुनीवक
संत थिरुनीवक (Thirunavukkarasar) जिन्हें थिरुनेवक्कल (Thirunevakkal) या 'अम्बलवार' भी कहा जाता है, 7वीं शताब्दी के एक महान तमिल संत और अलवारों में से एक थे। वे भगवान शिव के प्रति अपनी निष्ठा और भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। संत थिरुनीवक का जीवन बहुत प्रेरणादायक था और उनकी भक्ति की शक्ति ने तमिलनाडु और दक्षिण भारत में एक नया धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन शुरू किया। उनका योगदान तमिल साहित्य, विशेष रूप से 'तेवराम' (Tevaram) काव्य में महत्वपूर्ण है, जो शिव भक्ति के गीतों का संग्रह है। आइए, उनके जीवन के बारे में विस्तार से जानते हैं:
1. प्रारंभिक जीवन और जन्म
संत थिरुनीवक का जन्म दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के 'उरई' नामक स्थान पर हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से संबंधित थे। उनके पिता का नाम मुरुंगन था, जो एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण थे। बचपन में ही थिरुनीवक का जीवन संघर्षपूर्ण था, लेकिन उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने शिव भक्ति को अपनाया।
2. धार्मिक परिवर्तन
संत थिरुनीवक का जीवन एक समय तक बौद्ध धर्म के अनुयायी था। वे एक कुशल बौद्ध भिक्षु थे और बौद्ध धर्म के तत्वों में विश्वास रखते थे। लेकिन एक दिन जब वे शिव मंदिर गए, तो उन्होंने भगवान शिव की दिव्य महिमा और शक्ति का अनुभव किया। यह अनुभव उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था। संत थिरुनीवक ने भगवान शिव की भक्ति को पूरी तरह से अपनाया और बौद्ध धर्म को त्याग दिया। उनके जीवन में यह बदलाव एक गहरी आध्यात्मिक जागृति का परिणाम था।
3. शिव भक्ति में समर्पण
संत थिरुनीवक ने भगवान शिव के प्रति अपनी निष्ठा को पूरी तरह से व्यक्त किया। उन्होंने शिव के विभिन्न मंदिरों का दौरा किया और वहां शिव के महिमामंडन के गीत गाए। उनका जीवन और भक्ति सिर्फ व्यक्तिगत निष्ठा का नहीं था, बल्कि समाज में शिव भक्ति के प्रचार का भी था। उन्होंने तमिल में भगवान शिव की महिमा का गान करने के लिए कई गीत लिखे, जिन्हें बाद में 'तेवराम' नामक काव्य में संकलित किया गया।
4. आध्यात्मिक संघर्ष और उनके विचार
संत थिरुनीवक के जीवन में एक समय ऐसा भी था जब उन्होंने अपने विचारों का विरोध किया था। एक बार उन्हें एक अन्य ब्राह्मण गुरु से शिव भक्ति को लेकर कठोर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन संत थिरुनीवक ने भक्ति के मार्ग पर डटे रहते हुए गुरु के अपमान का कोई प्रतिकार नहीं किया। वे जानते थे कि भक्ति एक गहरी आंतरिक प्रक्रिया है और बाहरी विवादों का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
5. प्रसिद्ध 'तेवराम' रचनाएँ
संत थिरुनीवक का मुख्य योगदान तमिल भक्ति साहित्य में था। उन्होंने भगवान शिव की भक्ति में गाए गए गीतों का एक विस्तृत संग्रह तैयार किया, जिसे 'तेवराम' कहा जाता है। इस काव्य में 3000 से अधिक पद होते हैं, जिनमें से हर पद भगवान शिव की महिमा और भक्तों के प्रति उनकी कृपा को व्यक्त करता है। इन गीतों में तीव्र भक्ति, समर्पण और प्रेम की भावना प्रकट होती है।
6. चमत्कारी घटनाएँ
संत थिरुनीवक के जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी घटनाएँ भी जुड़ी हुई हैं। एक प्रसिद्ध घटना के अनुसार, एक बार संत थिरुनीवक ने एक शिव मंदिर में गाने के लिए एक विशेष गीत गाया। इस गीत के गाने के बाद, मंदिर का शिखर टूटकर गिर गया और वहाँ शिव का दिव्य प्रकाश दिखाई देने लगा। यह घटना उनके जीवन में भगवान शिव की असीम कृपा का प्रतीक मानी जाती है।
7. समाज में सुधार और धार्मिक योगदान
संत थिरुनीवक ने न केवल धार्मिक साधना की, बल्कि वे समाज सुधारक भी थे। उन्होंने समाज के हर वर्ग को अपनी भक्ति में समान रूप से शामिल किया और जातिवाद और अन्य सामाजिक असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाई। वे मानते थे कि भक्ति में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
8. निधन और उत्तराधिकारी
संत थिरुनीवक का निधन एक वृद्धावस्था में हुआ। वे अपने जीवन के अंतिम वर्षों में शिव भक्ति और साधना में समर्पित रहे। उनके निधन के बाद, उनके शिष्य और भक्त उनकी शिक्षाओं का प्रचार करते रहे। उनकी शिक्षाओं ने तमिल भक्ति आंदोलन को और अधिक मजबूती प्रदान की।
संत थिरुनीवक का जीवन भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति, समाज सुधार और साहित्य के प्रति असीम प्रेम का प्रतीक था। उनके जीवन और रचनाएँ आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं, विशेष रूप से भक्ति मार्ग पर चलने और समाज में समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए। उनकी 'तेवराम' काव्य रचनाएँ शिव भक्ति की प्रमुख काव्य धारा का हिस्सा हैं और तमिल साहित्य का अमूल्य धरोहर हैं।
संत थिरुनीवक (Thirunavukkarasar) के जीवन से जुड़ी कई प्रेरणादायक और चमत्कारी कहानियाँ हैं, जो उनकी गहरी भक्ति, साधना और समाज में सुधार की इच्छा को दर्शाती हैं। वे तमिलनाडु के महान भक्ति संतों में से एक थे, जिनका जीवन भगवान शिव के प्रति असीम भक्ति से प्रेरित था। संत थिरुनीवक के जीवन में कई घटनाएँ ऐसी थीं, जिन्होंने उनके महान व्यक्तित्व और शिव भक्ति को उजागर किया। यहाँ कुछ प्रमुख कहानियाँ दी जा रही हैं, जो उनके जीवन से जुड़ी हैं:
1. संत थिरुनीवक का बौद्ध धर्म से शिव भक्ति की ओर परिवर्तन
संत थिरुनीवक का जीवन एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब वे एक बौद्ध भिक्षु के रूप में जीवन जी रहे थे। वे बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और उनके जीवन का अधिकांश समय बौद्ध साधना में ही व्यतीत हुआ था। एक दिन वे भगवान शिव के मंदिर में गए, जहाँ उन्होंने शिवलिंग को देखा और एक दिव्य अनुभव हुआ। उन्होंने भगवान शिव की महिमा को महसूस किया और अपने जीवन को पूरी तरह से बदलने का निर्णय लिया। यह घटना उनके जीवन का एक निर्णायक पल था, जब उन्होंने बौद्ध धर्म को त्याग दिया और शिव भक्ति में अपने जीवन को समर्पित कर दिया।
2. भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति का उदाहरण
संत थिरुनीवक की भगवान शिव के प्रति भक्ति बहुत गहरी थी। एक बार, वे एक शिव मंदिर में पहुंचे और वहां एक विशेष गीत गाने का निर्णय लिया। वे शिव के महिमा गीत 'तेवरम' गाने लगे। तभी मंदिर का शिखर अचानक गिर पड़ा और मंदिर के भीतर से दिव्य प्रकाश उत्पन्न हुआ। यह घटना भगवान शिव की अनुकंपा का प्रतीक मानी जाती है। संत थिरुनीवक का मानना था कि भगवान शिव उनके साथ हैं और वे हमेशा उनकी भक्ति में सहायक रहते हैं।
3. शिव के आशीर्वाद से धन्य हुए संत थिरुनीवक
एक बार संत थिरुनीवक ने शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की इच्छा की, लेकिन उनके पास आवश्यक धन नहीं था। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की और उसी समय एक चमत्कारी घटना घटी। एक व्यक्ति उन्हें कुछ सोने के सिक्के देकर गया, जिससे संत थिरुनीवक ने दूध चढ़ाने का उपाय किया। यह घटना भगवान शिव की कृपा और संत की भक्ति का प्रमाण थी। यह कहानी यह सिखाती है कि जब व्यक्ति भगवान की सच्ची भक्ति करता है, तो भगवान उसकी मदद करते हैं।
4. संत के जीवन में गुरु की भूमिका
संत थिरुनीवक के जीवन में उनके गुरु का बहुत बड़ा योगदान था। जब वे बौद्ध भिक्षु थे, तो उनके गुरु ने उन्हें भगवान शिव के महत्व का समझाया और उन्हें शिव भक्ति की राह दिखाई। संत थिरुनीवक के जीवन में गुरु के मार्गदर्शन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। एक बार उनके गुरु ने उन्हें भगवान शिव के मंदिर में जाने का आदेश दिया, जहाँ उन्होंने शिव के मंत्रों का जाप किया और भगवान की उपासना की। गुरु की शिक्षाओं से संत थिरुनीवक ने अपने जीवन का उद्देश्य पहचाना और शिव भक्ति की राह पर चल पड़े।
5. शिव भक्तों के प्रति निष्कलंक प्रेम
संत थिरुनीवक का जीवन केवल आत्मभक्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि वे समाज के हर वर्ग से प्रेम करते थे। वे मानते थे कि शिव की भक्ति में सभी समान हैं। एक बार, संत थिरुनीवक ने एक शूद्र भक्त से भगवान शिव का मंत्र लिया और उसे गाया। कई अन्य भक्तों ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन संत थिरुनीवक ने उन्हें समझाया कि भगवान के प्रति सच्ची भक्ति ही सबसे महत्वपूर्ण है। इस घटना से यह सिद्ध होता है कि संत थिरुनीवक ने धर्म और भक्ति में जाति-पाति के भेद को नकारा था और हर व्यक्ति को भगवान शिव की भक्ति में समान माना।
6. तेवरम की रचना
संत थिरुनीवक ने भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को व्यक्त करने के लिए 'तेवरम' (Tevaram) नामक भक्ति काव्य की रचना की। इस काव्य में शिव के महिमा गीतों का संग्रह है, जो तमिल साहित्य का एक अमूल्य धरोहर माने जाते हैं। 'तेवरम' में 3,000 से अधिक गीत होते हैं, जो शिव भक्ति को प्रकट करते हैं। यह काव्य आज भी तमिल भक्ति साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और भगवान शिव की भक्ति को गाने का एक महत्वपूर्ण तरीका बना हुआ है।
7. दिव्य अनुभव और चमत्कारी घटनाएँ
संत थिरुनीवक के जीवन में कई चमत्कारी घटनाएँ घटीं, जो उनकी भक्ति और भगवान शिव के प्रति उनके अडिग विश्वास का प्रमाण थीं। एक बार, संत ने भगवान शिव से एक विशेष वरदान मांगा, और भगवान ने उन्हें अपनी कृपा से आशीर्वाद दिया। उस समय एक चमत्कारी प्रकाश हुआ और संत ने देखा कि भगवान शिव स्वयं उनके सामने प्रकट हो गए। यह घटना उनके जीवन की सबसे महान चमत्कारी घटना मानी जाती है, जो उनके भक्ति मार्ग की शक्ति को दर्शाती है।
संत थिरुनीवक का जीवन भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति, साधना और समाज सुधार की मिसाल है। उनकी भक्ति की शक्ति और उनके जीवन से जुड़ी चमत्कारी घटनाएँ यह दिखाती हैं कि जब व्यक्ति सच्चे हृदय से भगवान की भक्ति करता है, तो भगवान उसकी मदद करते हैं और उसे जीवन में सफलता और शांति प्रदान करते हैं। संत थिरुनीवक का जीवन आज भी लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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