ट्रैक्टेटस लॉजिको-फिलॉसॉफ़िकस (Tractatus Logico-Philosophicus) का व्यापक विश्लेषण
"लुडविग विट्गेन्स्टाइन"
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3/31/20251 मिनट पढ़ें
ट्रैक्टेटस लॉजिको-फिलॉसॉफ़िकस (Tractatus Logico-Philosophicus) का व्यापक विश्लेषण
लेखक: लुडविग विट्गेन्स्टाइन
1. प्रस्तावना (Preface)
विट्गेन्स्टाइन इस पुस्तक में यह दावा करते हैं कि उन्होंने उन सभी दार्शनिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर दिया है, जो तर्क और भाषा से संबंधित हैं। उनका मानना था कि उनकी इस पुस्तक के विचारों को सही समझने वाला पाठक दर्शन की मूल समस्याओं से "बाहर" निकल सकेगा।
यह पुस्तक बर्ट्रांड रसेल और गॉटलॉब फ्रेगे जैसे विचारकों के कार्यों से प्रभावित थी, लेकिन विट्गेन्स्टाइन ने इसमें अपनी मौलिक दृष्टि भी जोड़ी।
2. पुस्तक की संरचना और इसकी 7 मुख्य धारणाएँ
इस पुस्तक में 7 प्रमुख कथन (सूक्तियाँ) दिए गए हैं, और इन कथनों को आगे उप-कथनों में विभाजित किया गया है। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं।
1. संसार सब कुछ है जो घटित होता है। (The world is everything that is the case.)
यहाँ "संसार" का अर्थ केवल भौतिक वस्तुओं से नहीं है, बल्कि उन वस्तुओं के बीच संबंधों (relations) से भी है।
संसार केवल "वस्तुओं" (objects) का समूह नहीं है, बल्कि वह उन वस्तुओं के बीच घटित घटनाओं (states of affairs) से बनता है।
उदाहरण के लिए, "मेरी मेज पर एक किताब रखी है।"
इसमें "मेज" और "किताब" वस्तुएँ हैं।
लेकिन "किताब का मेज पर होना" एक घटना (state of affair) है।
इस प्रकार, दुनिया घटनाओं से बनती है, न कि सिर्फ़ वस्तुओं से।
2. जो कुछ घटित होता है, वह तथ्यों का समूह होता है, न कि केवल वस्तुओं का।
यथार्थ (reality) वस्तुओं से नहीं बनती, बल्कि उन वस्तुओं के आपसी संबंधों से बनती है।
वस्तुएँ अपने आप में कोई अर्थ नहीं रखतीं; उनका अर्थ तब बनता है जब वे एक विशेष तरीके से संगठित होती हैं।
उदाहरण:
"सूरज चमक रहा है।"
"पानी उबल रहा है।"
ये दोनों घटनाएँ हैं, और इन्हें मिलाकर हम तथ्यों का एक समूह बना सकते हैं।
3. तथ्यों का एक तार्किक चित्रण (Logical Picture of Facts) संभव है।
संसार का एक "चित्र" (picture) बनाया जा सकता है, और भाषा ही इस चित्र को बनाने का साधन है।
इसका अर्थ है कि हमारी भाषा वास्तविकता की एक "प्रतिबिंब" (reflection) प्रस्तुत करती है।
उदाहरण:
जब हम "पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है" कहते हैं, तो हम एक वास्तविकता का चित्र बना रहे होते हैं।
4. विचार, तार्किक रूप से निर्मित तथ्यों का चित्रण होता है।
जब हम किसी चीज़ के बारे में सोचते हैं, तो वास्तव में हम उस चीज़ की एक मानसिक छवि बना रहे होते हैं।
तर्कशास्त्र (logic) का उद्देश्य इन मानसिक छवियों को संरचित रूप में प्रस्तुत करना है।
यह विचार प्लेटो और अरस्तू की विचारधारा से मिलता-जुलता है, लेकिन विट्गेन्स्टाइन इसे आधुनिक तर्कशास्त्र के साथ जोड़ते हैं।
5. एक वाक्य वास्तविकता के किसी तथ्य को निरूपित करता है।
विट्गेन्स्टाइन ने "चित्रात्मक सिद्धांत" (Picture Theory of Language) प्रस्तुत किया।
इसका अर्थ यह है कि भाषा वास्तविकता का एक नक्शा (map) तैयार करती है।
उदाहरण:
मान लीजिए, आपके पास एक मानचित्र (map) है। यह नक्शा एक भौतिक क्षेत्र (physical territory) का प्रतिनिधित्व करता है।
उसी तरह, एक वाक्य वास्तविकता की एक छवि (picture) प्रस्तुत करता है।
6. तर्क, भाषा और वास्तविकता की सीमाएँ निर्धारित करता है।
तर्क (logic) यह तय करता है कि हम किन चीजों को भाषा के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं।
यदि कोई चीज़ तार्किक रूप से व्यक्त नहीं की जा सकती, तो उसके बारे में बोलना व्यर्थ है।
उदाहरण:
"क्या आत्मा का रंग नीला होता है?"
यह वाक्य अर्थहीन है, क्योंकि "आत्मा" के लिए "रंग" जैसा गुण लागू नहीं किया जा सकता।
7. "जिसके बारे में हम बात नहीं कर सकते, उसके बारे में हमें चुप रहना चाहिए।"
यह विट्गेन्स्टाइन का सबसे प्रसिद्ध कथन है।
उनके अनुसार, यदि कोई चीज़ भाषा के माध्यम से स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं की जा सकती, तो उसके बारे में चर्चा करना निरर्थक है।
जैसे—
ईश्वर, आत्मा, नैतिकता, सौंदर्य आदि पर बहस करना व्यर्थ है, क्योंकि ये चीजें तार्किक रूप से व्यक्त नहीं की जा सकतीं।
धर्म, दर्शन, और कला पर चर्चा करने की बजाय हमें केवल वही कहना चाहिए जो स्पष्ट और सत्य हो।
3. इस पुस्तक का प्रभाव और आलोचना
(A) प्रभाव:
इस पुस्तक ने विश्लेषणात्मक दर्शन (Analytical Philosophy) और भाषा दर्शन (Philosophy of Language) की नींव रखी।
बर्ट्रांड रसेल और लॉजिक पोज़िटिविज़्म (Logical Positivism) आंदोलन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।
वैज्ञानिक और गणितीय तर्क (Mathematical Logic) को समझने के लिए यह पुस्तक महत्वपूर्ण साबित हुई।
(B) आलोचना:
विट्गेन्स्टाइन ने बाद में अपनी ही पुस्तक की कई धारणाओं को खारिज कर दिया और अपने बाद के कार्य "फिलॉसॉफिकल इन्वेस्टिगेशंस" (Philosophical Investigations) में भाषा के प्रति एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
"चित्रात्मक सिद्धांत" (Picture Theory of Language) को पूरी तरह से सही नहीं माना गया, क्योंकि भाषा केवल तथ्यात्मक चित्रण तक सीमित नहीं है—यह भावनाओं, आदेशों, प्रश्नों, और अन्य जटिल विचारों को भी व्यक्त करती है।
4. निष्कर्ष
"ट्रैक्टेटस लॉजिको-फिलॉसॉफ़िकस" बीसवीं सदी की सबसे प्रभावशाली दार्शनिक पुस्तकों में से एक है। यह भाषा, तर्क और वास्तविकता के आपसी संबंधों की पड़ताल करती है। विट्गेन्स्टाइन का मूल संदेश यह है कि भाषा की सीमाएँ ही हमारे सोचने की सीमाएँ हैं। यदि कोई चीज़ भाषा में स्पष्ट रूप से नहीं कही जा सकती, तो उसके बारे में चर्चा करने का कोई लाभ नहीं है।
संक्षेप में:
दुनिया तथ्यों से बनी है, न कि सिर्फ वस्तुओं से।
भाषा वास्तविकता का एक चित्रण प्रस्तुत करती है।
तर्कशास्त्र भाषा और वास्तविकता की सीमाएँ निर्धारित करता है।
जिन चीज़ों को शब्दों में नहीं कहा जा सकता, उनके बारे में चुप रहना ही बेहतर है।
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