कौन या वजूद
मै कौन हूँ ?
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10/15/20241 मिनट पढ़ें
जब भी 'कौन' के संदर्भ में सोचना शुरू किया जाता है, यह शब्द हमेशा एक नए प्रारूप में उभरकर सामने आता है। 'कौन' शब्द दुनिया के सबसे निराले शब्दों में से एक है, जो व्यक्ति को उसके 'होने' और 'न होने' दोनों का एकसाथ अनुभव करवा सकता है। यह अकेला शब्द व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व को एक झटके में उजागर कर देता है।
प्रश्न है: मैं कौन हूँ?
यह प्रश्न आध्यात्मिक जगत का सबसे मूलभूत प्रश्न है, जो साधक के विकास के लिए एक मंत्र की तरह काम करता है। यदि कोई साधक बार-बार अपने आप से यह प्रश्न करता है और अपने भीतर सही भाव से झांकता है, तो उसे कई उत्तर प्राप्त होते हैं, जैसे:
- मैं एक आत्मा हूँ।
- मैं परमात्मा की संतान हूँ।
- मैं सभी जीवधारियों में श्रेष्ठ हूँ।
- मैं पिता, पुत्र, माँ, बेटी हूँ।
अनेकों सामाजिक रिश्ते और पहचानें उभरकर सामने आती हैं। साधक को ध्यान देना चाहिए कि वह किस उत्तर से संतुष्ट होता है। जितनी गहरी साधना होगी, उतना ही गहरा उत्तर मिलेगा।
परंतु, यदि इस प्रश्न में थोड़ा बदलाव कर दिया जाए, तो व्यक्ति के वजूद पर एक गहरी चोट हो सकती है।
प्रश्न है: कौन हूँ मैं ?
यह प्रश्न व्यक्ति की 'हैसियत' को झकझोर कर रख देता है और उसे सोचने पर विवश कर देता है कि उसकी वास्तविकता क्या है। व्यक्ति यह समझने लगता है कि उसकी व्यक्तिगत पहचान कोई विशेष महत्व नहीं रखती।
अब यदि आप इन दोनों प्रश्नों में 'मैं' के स्थान पर अपना नाम रखें और विचार करें, तो आपको स्वयं यह अनुभव होगा कि यह प्रश्न कितने गहरे और विचारणीय हैं।
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