अभिनवगुप्त
"त्रिक शैव दर्शन"
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12/1/20241 मिनट पढ़ें
अभिनवगुप्त
अभिनवगुप्त (950-1020 ई.) भारत के महानतम दार्शनिक, रहस्यवादी, और कश्मीरी शैव दर्शन (त्रिक शैव दर्शन) के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं। वे दर्शन, काव्यशास्त्र, नाट्यशास्त्र और तंत्रविद्या के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। अभिनवगुप्त कश्मीर के त्रिक शैव दर्शन के प्रतिनिधि और इसके सिद्धांतों के महान व्याख्याता थे।
जीवन परिचय:
जन्म और परिवार:
अभिनवगुप्त का जन्म कश्मीर में हुआ। उनका परिवार विद्वता और धर्मनिष्ठता के लिए प्रसिद्ध था।
उनके पिता का नाम नरसिंहगुप्त और माता का नाम विमला था। उनकी माता का देहांत उनकी छोटी आयु में ही हो गया था।
उनका परिवार शैव और वैदिक परंपराओं का पालन करता था, और यह वातावरण उनके ज्ञान के विकास में सहायक बना।
शिक्षा और गुरुओं का प्रभाव:
अभिनवगुप्त ने अपने जीवन में विभिन्न गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की।
उनके प्रमुख गुरु शंभुनाथ और लक्ष्मणगुप्त थे, जिन्होंने उन्हें त्रिक शैव दर्शन और तंत्र परंपरा में दीक्षित किया।
इसके अलावा, उन्होंने काव्यशास्त्र, नाट्यशास्त्र और संगीत का गहन अध्ययन किया।
दर्शन और योगदान:
त्रिक शैव दर्शन:
त्रिक शैव दर्शन कश्मीर शैववाद का प्रमुख अंग है, जो ब्रह्मांड को शिव, शक्ति और जीव के त्रिक (तीन) रूपों में समझता है।
यह दर्शन अद्वैतवादी है, जो यह मानता है कि ब्रह्मांड शिव (परम सत्य) की अभिव्यक्ति है।
प्रमुख रचनाएँ:
तंत्रालोक: यह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। इसमें तंत्र, योग और शैव दर्शन के सिद्धांतों को विस्तार से समझाया गया है।
अभिनवभारती: यह भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर टीका है, जिसमें रस सिद्धांत को नए दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया गया है।
ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी: इसमें उन्होंने प्रत्यभिज्ञा दर्शन की व्याख्या की है, जिसमें आत्मा और शिव के अभिन्न संबंध को समझाया गया है।
रस सिद्धांत में योगदान:
अभिनवगुप्त ने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के रस सिद्धांत को और गहराई दी। उन्होंने कहा कि "रस" एक आत्मानुभूति है, जो काव्य, नाटक और कला के माध्यम से अनुभव की जाती है।
उन्होंने इसे आत्मा और शिव के आनंदमय संबंध से जोड़ा।
तंत्र और योग:
उन्होंने तंत्र की रहस्यमयी विधियों को व्यवस्थित किया और उन्हें साधना की एक प्रभावी प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया।
उनके दर्शन में योग और ध्यान के माध्यम से आत्मा का शिव से मिलन प्रमुख उद्देश्य है।
अभिनवगुप्त की विशेषताएँ:
समग्रता: उन्होंने भारतीय दर्शन, तंत्र, और साहित्य के विभिन्न पहलुओं को समेटकर एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: उनके लेखन में तार्किकता और स्पष्टता की झलक मिलती है।
गहन साधना: अभिनवगुप्त केवल विचारक ही नहीं, बल्कि साधक भी थे।
अभिनवगुप्त का प्रभाव:
अभिनवगुप्त का प्रभाव केवल कश्मीर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने भारतीय दर्शन और कला परंपरा को नई दिशा दी। उनके विचार अद्वैत वेदांत, बौद्ध दर्शन, और जैन मत की धारणाओं को चुनौती देते हुए एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
उनकी शिक्षाएँ आज भी अध्ययन और साधना के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
अभिनवगुप्त की रचनाएँ भारतीय दर्शन, तंत्र, और काव्यशास्त्र के क्षेत्र में उत्कृष्ट मानी जाती हैं। उनकी कृतियाँ त्रिक शैव दर्शन, तंत्र, नाट्यशास्त्र और रस सिद्धांत को गहराई से समझने में महत्वपूर्ण हैं। यहाँ उनकी प्रमुख रचनाओं का विवरण दिया गया है:
1. तंत्रालोक (तंत्र का प्रकाश)
विवरण:
यह अभिनवगुप्त की सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रचना है। यह तंत्रशास्त्र का विश्वकोश है जिसमें त्रिक शैव दर्शन और तांत्रिक साधना के सिद्धांतों का वर्णन है।विषय:
इसमें तंत्र के सिद्धांतों, साधना पद्धतियों, मंत्र, ध्यान और योग के रहस्यों को विस्तार से समझाया गया है।प्रमुख विशेषताएँ:
37 अध्यायों में विभाजित।
तंत्र और योग के सिद्धांतों को व्याख्यायित करता है।
शिव और शक्ति के संबंध को साधना की प्रक्रिया में केंद्रीय स्थान दिया गया है।
2. अभिनवभारती (नाट्यशास्त्र पर टीका)
विवरण:
यह भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर अभिनवगुप्त की टीका है। यह काव्यशास्त्र और नाट्यशास्त्र का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।विषय:
इसमें रस सिद्धांत की गहराई से व्याख्या की गई है। अभिनवगुप्त ने भरतमुनि के विचारों को नया आयाम दिया।प्रमुख योगदान:
"रस" को आत्मानुभूति का माध्यम माना।
दर्शकों के अनुभव में "सहृदयता" (संवेदनशीलता) की भूमिका पर जोर दिया।
काव्य और नाट्य को आत्मा और शिव के आनंद से जोड़ा।
3. ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी
विवरण:
यह उनके गुरु उत्पलदेव द्वारा रचित ईश्वरप्रत्यभिज्ञाकारिका पर विस्तृत टीका है।विषय:
प्रत्यभिज्ञा दर्शन (जिसमें आत्मा और शिव की पहचान पर बल दिया गया है) को समझाने का प्रयास।प्रमुख योगदान:
इसमें कहा गया है कि आत्मा शिव का ही रूप है, और साधना के द्वारा शिव को "पुनः पहचानना" ही प्रत्यभिज्ञा है।
संसार को शिव की लीला के रूप में देखा गया है।
4. ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविवृति-विमर्शिनी
विवरण:
यह भी प्रत्यभिज्ञा दर्शन पर उनकी एक अन्य टीका है।विषय:
इसमें दर्शन को तार्किक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।विशेषता:
प्रत्यभिज्ञा सिद्धांत को गहराई से समझने में यह ग्रंथ सहायक है।
5. परात्रिशिका-विवरण
विवरण:
यह तंत्र आधारित दर्शन का गूढ़ ग्रंथ है।विषय:
शिव और शक्ति के योग पर आधारित। इसमें बताया गया है कि शिव को साधना के द्वारा कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
6. मालिनीविजयविवरण
विवरण:
यह मालिनीविजयतंत्र पर उनकी टीका है।विषय:
इसमें तंत्र के गूढ़ रहस्यों और साधनाओं को स्पष्ट किया गया है।प्रमुख योगदान:
साधक को तांत्रिक विधियों से शिवत्व प्राप्त करने का मार्ग दिखाया गया है।
7. भगवद्गीता पर टीका
विवरण:
उन्होंने भगवद्गीता पर भी टीका लिखी, जिसमें गीता के श्लोकों को शैव दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया।प्रमुख योगदान:
गीता के योग और ज्ञान को शिव और शक्ति के साथ जोड़ा।
8. ज्ञानालोक
विवरण:
यह एक लघु रचना है, जिसमें ज्ञान और साधना की प्रक्रियाओं को समझाया गया है।विषय:
आत्मज्ञान और ब्रह्मांड के स्वरूप की व्याख्या।
अभिनवगुप्त की रचनाओं का महत्व:
उनकी कृतियाँ दर्शन, तंत्र, और काव्यशास्त्र के क्षेत्र में अद्वितीय हैं।
उन्होंने भारतीय परंपरा के गूढ़ विषयों को व्यवस्थित और तार्किक रूप में प्रस्तुत किया।
उनके विचार आज भी भारतीय कला, दर्शन और साधना के क्षेत्र में प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
अभिनवगुप्त के जीवन से जुड़ी कई कहानियाँ और घटनाएँ उनके व्यक्तित्व, साधना, और अद्वितीय ज्ञान की गहराई को उजागर करती हैं। ये कहानियाँ उनके दार्शनिक और आध्यात्मिक जीवन के महत्व को समझने में मदद करती हैं।
1. अभिनवगुप्त की दिव्यता और साधना
अभिनवगुप्त का जीवन प्रारंभ से ही साधना और ज्ञान की खोज में समर्पित था। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी किशोरावस्था से ही संसार के मोह-माया से अलग होकर तंत्र और दर्शन की गहराइयों में गोता लगाया।
कहानी:
एक बार उनके गुरु ने उनसे पूछा कि साधना के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा क्या है। अभिनवगुप्त ने उत्तर दिया, "अज्ञान और आत्मा का शिव से संबंध न पहचानना ही सबसे बड़ी बाधा है।"
उनके गुरु ने उन्हें तंत्र और प्रत्यभिज्ञा दर्शन की गहन साधना का मार्ग दिखाया। उन्होंने कई वर्षों तक हिमालय की कंदराओं में साधना की और कहा जाता है कि वे शिव के साक्षात अनुभव तक पहुँच गए।
2. दिव्य साधक का जन्म
अभिनवगुप्त के जन्म से जुड़ी एक दिव्य कथा उनके परिवार में प्रचलित थी। उनके पिता नरसिंहगुप्त एक महान पंडित और शिवभक्त थे।
कहानी:
एक दिन नरसिंहगुप्त ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि उन्हें ऐसा पुत्र प्राप्त हो, जो केवल साधारण मनुष्य न होकर शिव के ज्ञान और शक्ति का वाहक बने। कहा जाता है कि शिव ने स्वयं प्रकट होकर आशीर्वाद दिया और अभिनवगुप्त का जन्म हुआ। उनके जन्म को एक दिव्य घटना के रूप में देखा गया, और उनके परिवार ने उन्हें "अभिनव" (नया) नाम दिया, जो उनकी अनूठी प्रतिभा को दर्शाता है।
3. गुरुओं के प्रति श्रद्धा
अभिनवगुप्त अपने गुरुओं के प्रति अत्यंत श्रद्धालु थे। उनके गुरु शंभुनाथ और लक्ष्मणगुप्त ने उन्हें त्रिक शैव दर्शन और तंत्र का ज्ञान दिया।
कहानी:
एक बार उनके गुरु शंभुनाथ ने उनसे कहा कि आत्मा का साक्षात्कार साधना के अंतिम चरण में होता है। अभिनवगुप्त ने इस बात को इतनी गंभीरता से लिया कि उन्होंने कई दिनों तक भोजन और जल का त्याग कर ध्यान और साधना की। जब उन्होंने आत्मा का अनुभव किया, तो उन्होंने अपने अनुभव को "तंत्रालोक" में लिपिबद्ध किया।
4. एकता का संदेश
अभिनवगुप्त ने हमेशा एकता और अद्वैत की शिक्षा दी। वे कहते थे कि सभी जीव और जगत शिव के ही अभिन्न रूप हैं।
कहानी:
एक बार एक विद्वान ने उनसे पूछा, "यदि शिव सर्वत्र हैं, तो दुःख और बंधन क्यों हैं?"
अभिनवगुप्त ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "दुःख तब होता है जब हम अपनी आत्मा को शिव से अलग समझते हैं। शिव को पहचानो, और दुःख स्वतः समाप्त हो जाएगा।"
इस उत्तर से वह विद्वान इतना प्रभावित हुआ कि वह अभिनवगुप्त का शिष्य बन गया।
5. तंत्र की शिक्षा के लिए अंतिम यात्रा
अभिनवगुप्त के जीवन का सबसे प्रसिद्ध प्रसंग उनकी अंतिम यात्रा से जुड़ा है।
कहानी:
ऐसा कहा जाता है कि जब अभिनवगुप्त ने अपनी आध्यात्मिक साधना का अंतिम चरण पूरा किया, तो उन्होंने अपने शिष्यों को एक विशेष साधना का निर्देश दिया। उन्होंने कश्मीर में स्थित "भीमगुप्त गुफा" (आज की भीमगुफा) में प्रवेश किया। वे अपने 120 शिष्यों के साथ गुफा में गए और ध्यान की अवस्था में प्रवेश कर गए।
ऐसा माना जाता है कि वे अपनी चेतना को शिव में विलीन कर अमर हो गए। आज भी वह गुफा उनके अदृश्य समाधि स्थल के रूप में जानी जाती है।
6. रस सिद्धांत और नाट्यशास्त्र की व्याख्या
अभिनवगुप्त ने "अभिनवभारती" में भरतमुनि के नाट्यशास्त्र की व्याख्या की।
कहानी:
एक बार कश्मीर के राजा ने उन्हें दरबार में बुलाया और पूछा, "रस क्या है?"
अभिनवगुप्त ने कहा, "रस वही है जो आत्मा को शिव के आनंद से जोड़ता है।"
उन्होंने नाट्य और काव्य के माध्यम से आत्मा की अनुभूति और आनंद के सिद्धांत को समझाया। राजा उनके उत्तर से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें राजगुरु का दर्जा देने का प्रस्ताव किया। लेकिन अभिनवगुप्त ने विनम्रता से कहा, "मेरा कर्तव्य केवल ज्ञान बांटना है, सत्ता से नहीं जुड़ना।"
7. कला और साधना का संगम
अभिनवगुप्त ने कला, दर्शन और साधना को एक साथ जोड़ा।
कहानी:
उनके शिष्यों ने एक बार पूछा, "आप साधक हैं, फिर आप नाटक और काव्य में क्यों रुचि रखते हैं?"
उन्होंने उत्तर दिया, "काव्य और नाटक आत्मा को वही आनंद देते हैं, जो साधना देती है। यह शिव का ही एक रूप है।"
8. शिव और शक्ति की पहचान
अभिनवगुप्त शिव और शक्ति के अद्वैत स्वरूप को समझाने में माहिर थे।
कहानी:
एक बार उनके शिष्यों ने पूछा, "शक्ति का क्या महत्व है?"
अभिनवगुप्त ने उत्तर दिया, "शिव बिना शक्ति के शून्य हैं। शिव और शक्ति एक ही हैं, जैसे अग्नि और उसकी ज्वाला। जब साधक इस एकता को समझ लेता है, तो वह शिव को पहचान लेता है।"
निष्कर्ष:
अभिनवगुप्त का जीवन केवल दर्शन और ज्ञान का ही नहीं, बल्कि एक आदर्श साधक और गुरु का प्रतीक भी है। उनकी कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि आत्मा और शिव का संबंध केवल साधना और आत्मचिंतन के माध्यम से ही समझा जा सकता है। उनका जीवन दिव्यता, तपस्या और एकता का उदाहरण है।
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