स्थूल शरीर, भौतिक शरीर, पार्थिव शरीर

सप्त शरीर

MEDITATION TECHNIQUES

9/24/20241 मिनट पढ़ें

स्थूल शरीर प्रकृति द्वारा सृजित एक ऐसा बहुमूल्य रत्न है, जो बाकी सभी हीरे-जवाहरातों से कहीं ज्यादा गुणकारी और मूल्यवान है। इस शरीर की रचना मुख्यतः माता-पिता के मेल से हुई है, इसका रूप-रंग सब मानवीय है; परंतु इसे संचारित करने वाली शक्ति माता-पिता नहीं, बल्कि आप स्वयं है।

इस यात्रा पर चलते रहें, तो स्वयं ही समझ में आ जाएगा कि संचालक स्वयं आप हैं। स्थूल शरीर या मानव देह पृथ्वी तत्व से बनी है, जो भोजन-पानी से निर्मित होती है। जब यह ज्ञात है कि भोजन-पानी ही इसका संचालक है, तब यह भी ज्ञात होना चाहिए कि क्या खाना है, कब खाना है, और कैसे खाना है।

बाहर स्थूल शरीर है, फिर सूक्ष्म शरीर, फिर मानसिक शरीर, और सबसे केंद्र में चेतन शरीर है। तीन (5, 6, और 7) शरीर चेतन शरीर में समाहित हैं, जो आगे किसी भाग में वर्णित मिल जाएंगे। फिलहाल स्थूल शरीर के बारे में जानेंगे।

जब तक स्थूल शरीर को जागृत नहीं किया जाता, तब तक बाकी शरीर जागृत नहीं हो सकते। स्थूल शरीर के जागृत होने पर सूक्ष्म शरीर को संकेत पहुँचता है, सूक्ष्म के जाग्रत होने पर मानसिक शरीर को संकेत मिलता है, और मानसिक शरीर जाग्रत होने के बाद ही चेतन शरीर को संकेत मिलता है। चेतन में सहज, ब्रह्म, और निर्वाण शरीर समाहित हैं। ऐसा हो सकता है कि किसी पर परमात्मा या सतगुरु की कृपा हो जाए तो चारों में से अंतिम शरीर का भी आभास हो जाए, परंतु वह कोई विरला ही हो सकता है।

यह ज्ञात है कि खाना दो ही प्रकार का होता है: शाकाहार और मांसाहार। पहले चार शरीरों की यात्रा में कोई भी खाना प्रयोग कर सकते हैं। यदि यात्रा के शुरू में मांसाहार का प्रयोग करते हैं, तो आगे बढ़ना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, और यदि यात्रा के शुरू में ही शाकाहार का प्रयोग करते हैं, तो सातों शरीरों को जानना आसान हो जाता है।

पहले तीन शरीर का विकास शाकाहार/मांसाहार दोनों से समान होता है, परंतु चौथे शरीर में खाने-पीने के अनुसार दैवीय शक्ति और राक्षसी शक्ति का विस्तार होने लगता है। यह साधक पर निर्भर करता है कि वह दैवीय और राक्षसी में किसका विस्तार चाहता है। यहाँ एक प्रश्न यह भी उठता है कि पहले ये खाते थे, वो खाते थे, तो उसकी बात नहीं है; यह यात्रा पर चलने के दौरान की बात है, शायद समझ गए होंगे।

हाँ, यदि इस यात्रा पर आगे नहीं बढ़ना चाहते हैं, तो फिर कुछ भी खाएं-पीयें, कोई रोक नहीं है। इससे पढ़कर भूल जाएं और आगे के पृष्ठों को न पढ़ें, क्योंकि फिर बिना अनुभव के विद्वान होंगे, जो पहले से ही संसार में बहुतायत में हैं। उनकी संख्या को और बढ़ा देंगे। अनुरोध यह है कि अपने को धोखा न दें। अगर खाने-पीने की विधि के अनुसार नहीं कर पाए, तो यात्रा के बारे में भूल जाएं। यही सभी के लिए बेहतर होगा।

अब ध्यान दें, खाने-पीने में क्या-क्या सावधानियां बरतनी हैं:

1. जब भी कोई तरल पदार्थ ग्रहण करें, जैसे पानी, दूध, कॉफी, चाय, जूस आदि, तो इनका सेवन घूंट-घूंट करके ही करें।

2. खाना जब भी खाएं, तो खाने को जितना हो सके चबा-चबाकर खाएं, ताकि दांतों का काम आंतों को न करना पड़े और खाने को पचाने के लिए लार संयुक्त रूप से खाने के साथ मिलकर पेट में पहुंचे।

3. खाना जब भी खाएं, भूख से थोड़ा कम खाएं और खाना खाते समय टीवी, समाचारपत्र, किताब आदि से दूर रहें, अर्थात खाने के समय केवल खाना ही हो। खाना हो सके तो जमीन पर या फर्श पर बैठकर ही खाएं।

4. दिन में किसी भी समय दो काली मिर्च लें और दो-तीन घंटे तक इन्हें मुँह में रखें और बीच-बीच में हल्की चबाएं, ताकि आपकी पाचन क्रिया दुरुस्त रहे।

5. सप्ताह में दो बार नीम की दो हरी पत्तियाँ, दो-तीन घंटे मुंह में रखें, और बीच-बीच में हल्की चबाएं।

भूख को न देखकर, समय देखकर खाना खाने की आदत को तुरंत बदल लें, अन्यथा आधुनिक बीमारियों के लिए तैयार रहें, जैसे मधुमेह (शुगर), बी. पी., तनाव आदि। इसका प्रयोग करने पर आपको कुछ दिन अटपटा लगेगा , परंतु यदि इसे समाहित कर लेते हैं, तो स्वयं ही अनुभव करने लगेंगे कि क्या थे और अब क्या हैं। यदि उपरोक्त नियमों का पालन नहीं कर पा रहे हैं, तो आगे न बढ़ें।