Autobiography of a Yogi-Paramahansa Yogananda
"योगी कथामृत"
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11/19/20241 मिनट पढ़ें
Autobiography of a Yogi-Paramahansa Yogananda
"योगी कथामृत" (Autobiography of a Yogi) परमहंस योगानंद द्वारा लिखित एक आत्मकथात्मक पुस्तक है, जो भारतीय आध्यात्मिकता और योग के क्षेत्र में एक अमूल्य रचना मानी जाती है। यह पुस्तक 1946 में पहली बार प्रकाशित हुई और इसे विश्वभर में लाखों लोगों ने पढ़ा है। इसमें लेखक ने अपने जीवन, आध्यात्मिक अनुभवों और गुरुओं के साथ की गई यात्राओं का वर्णन किया है।
1. लेखक का बचपन और आध्यात्मिक झुकाव
- परमहंस योगानंद का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत में एक आध्यात्मिक परिवेश वाले परिवार में हुआ। उनका वास्तविक नाम मुकुंद लाल घोष था।
- उन्होंने अपने बचपन में कई ऐसी घटनाओं का अनुभव किया, जो उनकी आत्मा की गहराई और ईश्वर के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती हैं।
- उदाहरण के तौर पर, उन्होंने अपनी मां के स्वर्गवास के बाद अपने भीतर ईश्वर को ढूंढने की गहरी प्रेरणा महसूस की।
- उनका मन सांसारिक विषयों से अधिक आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित था। बचपन में ही उन्होंने संतों और साधुओं के साथ बैठकर ध्यान लगाने का अभ्यास शुरू कर दिया था।
2. गुरु से मुलाकात और प्रशिक्षण
- उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ उनकी मुलाकात उनके गुरु श्री युक्तेश्वर गिरि से हुआ। यह घटना उनके जीवन का आध्यात्मिक पथ निर्धारित करने वाली थी।
- श्री युक्तेश्वर ने योगानंद को न केवल योग की गहराई सिखाई, बल्कि उन्हें आत्मा और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में भी मदद की।
- गुरु और शिष्य के इस संबंध में विनम्रता, प्रेम, और आत्मा के विकास का महत्व स्पष्ट होता है।
- युक्तेश्वर जी ने उन्हें सिखाया कि आत्म-साक्षात्कार (Self-realization) जीवन का मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने योगानंद को बताया कि ईश्वर को जानना और उनके साथ एकत्व स्थापित करना ही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है।
3. योग और क्रिया योग का महत्व
- पुस्तक में क्रिया योग की विधियों का विशेष उल्लेख है।
- क्रिया योग को एक प्राचीन भारतीय ध्यान पद्धति के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसे ऋषि पतंजलि और अन्य महान संतों ने विकसित किया।
- यह योग साधना मनुष्य को अपनी आत्मा और ब्रह्मांड की अनंत शक्ति के साथ जोड़ने में मदद करती है।
- योगानंद ने कहा कि क्रिया योग के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन के सभी बंधनों से मुक्त होकर ईश्वर की अनुभूति कर सकता है।
- यह एक ऐसी तकनीक है, जो मनुष्य को अपनी आंतरिक शक्ति का अनुभव कराती है और उसे शांति, आनंद और मुक्ति की ओर ले जाती है।
4. पश्चिमी देशों में योग का प्रसार
- 1920 में, योगानंद को अमेरिका में एक अंतरराष्ट्रीय धर्म सम्मेलन (International Congress of Religious Liberals) में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया।
- यह उनके जीवन का वह दौर था, जब उन्होंने योग और भारतीय आध्यात्मिकता को पश्चिमी दुनिया में फैलाने का कार्य शुरू किया।
- उन्होंने Self-Realization Fellowship (SRF) की स्थापना की, जो आज भी विश्वभर में ध्यान और योग का प्रचार-प्रसार कर रही है।
- उन्होंने भारतीय योग और ध्यान को पश्चिमी समाज के आधुनिक जीवन से जोड़ा और दिखाया कि ये प्राचीन विधियां हर किसी के जीवन में उपयोगी हो सकती हैं।
- उनकी शिक्षाओं ने योग को केवल शारीरिक व्यायाम से आगे बढ़ाकर इसे आत्मा की मुक्ति का साधन बताया।
5. गुरुओं और संतों के अनुभव
- परमहंस योगानंद ने पुस्तक में अनेक भारतीय संतों और महापुरुषों का वर्णन किया है, जिनसे उन्होंने प्रेरणा प्राप्त की।
- लाहिड़ी महाशय: वे उनके गुरु युक्तेश्वर के गुरु थे और उन्होंने क्रिया योग को पुनः प्रचलित किया। उनका सरल जीवन और गहरी साधना प्रेरणादायक थी।
- महावतार बाबाजी: पुस्तक में बाबाजी को एक दिव्य योगी के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिन्होंने क्रिया योग को पुनर्जीवित किया।
- इन संतों के माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि भारत की योग परंपरा अनादि काल से चली आ रही है और यह आज भी प्रासंगिक है।
6. आध्यात्मिक चमत्कार और अनुभव
- पुस्तक में योगानंद ने अपने जीवन के कई चमत्कारिक अनुभव साझा किए हैं।
- उन्होंने ध्यान में दिव्य प्रकाश, ईश्वर के दर्शन, और भविष्य की घटनाओं का आभास होने जैसे अनुभवों का वर्णन किया है।
- उनका मानना था कि ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी चेतना को विस्तारित कर सकता है और ईश्वर से जुड़ सकता है।
- उनके अनुभव यह दिखाते हैं कि ध्यान और योग केवल शांति प्राप्त करने का साधन नहीं, बल्कि ईश्वर के साथ साक्षात्कार का माध्यम हैं।
7. पुस्तक का उद्देश्य और संदेश
- "योगी कथामृत" न केवल एक आत्मकथा है, बल्कि यह पाठकों को यह सिखाती है कि जीवन को गहराई और उद्देश्य के साथ कैसे जिया जाए।
- योगानंद ने इसे आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर के साथ एकत्व स्थापित करने की प्रेरणा देने के लिए लिखा।
- यह पुस्तक इस तथ्य को रेखांकित करती है कि सभी धर्मों की नींव एक ही है – प्रेम, करुणा और ईश्वर की खोज।
"योगी कथामृत" हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो अपने जीवन में आत्मिक विकास और ईश्वर का अनुभव करना चाहता है। परमहंस योगानंद का जीवन इस बात का उदाहरण है कि एक साधारण मनुष्य भी योग और ध्यान के माध्यम से दिव्यता को प्राप्त कर सकता है।
यह पुस्तक भारतीय योग और ध्यान परंपरा का एक अमूल्य ग्रंथ है, जो समय और स्थान की सीमाओं से परे जाकर हर पाठक के हृदय को छूती है।
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