समय विभाजन या मन विभाजन

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मानव मन सदियों से ही अस्थिर रहा है। कभी-कभी किसी-किसी जन ने इस को समझने का प्रयास किया है। मानव मन मुख्य: रूप से तीन आयामों में भ्रमण करता रहता है। जिसको आज भी समय का आकलन कहा जाता है। वर्तमान, भूतकाल और भविष्य काल इसकी समझने की कड़ी है।

भूतकाल - जो चला गया है। या बीत गया है। (जैसे यादें और स्मृतियाँ)

वर्तमान- जो बस अभी है। क्षणिक ! (पूर्ण सत)

भविष्य काल -आने वाला कल (कल्पनाएं )

उपरोक्त के हिसाब से प्राचीन मानव ने समय का वर्गीकरण मन के अनुरूप किया और मन को चार कल खंडो में विभाजित किया। यह प्रयास रहा होगा मानव मन की गतिविधियों को समझने का , इस कड़ी को जोड़ने के लिए या कहा जा सकता है, इसको विस्तार से समझने के लिए, समय का वर्गीकरण सतयुग , त्रेतायुग , द्वापर युग , और कलयुग रूप में किया।

-कलयुग - इस काल में मानव मुख्य रूप से, कल में ही जीता है, बिता हुआ या आने वाला कल, मानव मन भूतकाल की घटनाओं को आधार बनाकर या भविष्य की कल्पनाओं में जीवन जीता है। वर्तमान में भी इस कल में जीने वाला व्यक्ति कल में ही रहता है। आज भी ज्यादातर मानव मन कल पर ही आधारित है। जब मानव मन ज्यादातर भूतकाल और भविष्य काल में रहता है , वही मन कलयुग में जीता है।

कल ही कल है जीवन में , जिसके कारण कलह ही कलह है।

-द्वापर युग - इस काल में मानव मन दोहरा जीने का प्रयास करता है। कभी आज और कल (बीते हुए) के साथ, कभी आज और कल (आने वाले) के साथ।

कल -आज , आज -कल, इसी कारण से ज्यादातर मन लड़ाई झगड़ो में उलझे रहते है।

-त्रेता युग - इस कल में मानव मन तीनों, कल, आज और कल में जीता है। कुछ मानव मन भूतकाल में, कुछ भविष्य में और कुछ वर्तमान कल में जीते है।

कल -आज- कल

-सतयुग - इस युग की महिमा अपार है। इसमें कोई विरला ही मानव रह सकता है, क्योंकि यह युग केवल आज की ही बात करता है। न भूतों, न भविष्यता। सत का अर्थ है केवल आज, मानव दोनों कल से परे रहता है , और इसीलिए कल्याण मार्ग जीता है। कोई दुःख नहीं है इस युग में , जो है बस यही है।

उपरोक्त काल के वर्गीकरण में आप अपने मन की जाँच करके अनुमान लगा सकते है , आप किस युग में जी रहे है , और क्या आप इसमें जीकर खुश है , यह आप पर आधारित है आप कौन-सा जीवन जीना चाहते है। आप अपनी नियति खुद निर्धारित कर सकते है।