Koi Sauda Le Lo
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10/9/20251 मिनट पढ़ें
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
जीनै-जीनै ये सौदा लिया वो सिर की करके साठ,
हरिहर सिर की करगे साठ ।
दसो इन्द्री बस में करके काल दिया था काट ।।1।।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
सौदा लिया था प्रहलाद भक्त नै, पिता रहे थे नाट ।
हरिहर पिता रहे थे नाट ।
होलिका लै गोडया मैं बैठी, कै घाली थी घाट ।।2।।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
सौदा लिया था हरिशचन्द्र नै, शमशाना के घाट ।
हरिहर शमशाना के घाट ।
लड़का, राजा-रानी बिकगै, कुनबा बाराबांट ।।3।।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
सौदा लिया था मोरधवज नै, संत लिये घर डाट ।
हरिहर संत लिये घर डाट ।
तन मन धन सब अर्पण करके, दिना लड़का काट ।।4।।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
सौदा लिया था मीरा बाई नै, गयी कुनबै तै पाट ।
हरिहर गयी कुनबै तै पाट ।
वृन्दावन मै घ लै झोपड़े, तजै थे अमीरी ठाठ ।।5।।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
सौदा लिया था धन्ना भक्त नै, कौम का था जाट ।
हरीहर कौम का था जाट ।
रस्ते में जो साधू मिलेंगे, बीज दिया था बाँट ।।6।।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
सौदा लिया था रविदास भक्त नै, चढ़ गए उलटी बाट ।
हरीहर चढ़ गए उलटी बाट ।
बिना भजन तेरा मुँह पिट जा रे, हो कोए मूलकी की लाट ।।7।।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट ।
यह भजन — "कोए सौदा ले लो खुली है धर्म की हाट" — एक अत्यंत गूढ़, प्रतीकात्मक और प्रेरणादायक संतवाणी है।
इसमें ‘धर्म की हाट (बाज़ार)’ का रूपक लेकर संत कवि ने बताया है कि सच्चा धर्म या भक्ति कोई सस्ता सौदा नहीं, बल्कि अपने “सिर” यानी अहंकार, शरीर, मन, और मोह-माया को दांव पर लगाने वाला सौदा है।
आइए इसे चरण-दर-चरण समझते हैं —
🌾 मुख्य भावार्थ:
“धर्म की हाट खुली है, जो लेना चाहे ले ले”
— अर्थात संसार रूपी बाजार में ‘सच्चा धर्म’ (भक्ति, सत्य, प्रेम, त्याग) अब भी उपलब्ध है, पर इसे खरीदने के लिए कीमत बड़ी चुकानी पड़ती है।
🔹 "जीनै-जीनै ये सौदा लिया, वो सिर की करके साठ"
जो भी व्यक्ति यह सौदा (धर्म, भक्ति, सत्य) करता है, उसे अपने सिर की बाज़ी लगानी पड़ती है।
यानी अहंकार, स्वार्थ, और सांसारिक आसक्तियों का त्याग करना पड़ता है।
🔹 "दसो इन्द्री बस में करके, काल दिया था काट"
जिसने अपनी दसों इन्द्रियों को वश में कर लिया, वह ही मृत्यु (काल) को परास्त कर पाता है।
यह आत्म-संयम और साधना की महिमा का संकेत है।
🪶 अब प्रत्येक उदाहरण का अर्थ:
1️ प्रह्लाद भक्त
“सौदा लिया था प्रहलाद भक्त नै, पिता रहे थे नाट।”
प्रह्लाद ने भक्ति का सौदा लिया — यानी परमात्मा से प्रेम किया।
पिता हिरण्यकशिपु उसके विरोधी थे, पर वह अडिग रहा।
होलिका की अग्नि में बैठा, पर प्रभु ने रक्षा की।
🔸 भावार्थ: सच्ची भक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं डगमगाती।
2️ हरिश्चंद्र
“सौदा लिया था हरिशचन्द्र नै, शमशाना के घाट।”
राजा हरिश्चंद्र ने सत्य का सौदा किया — यानी सत्य के मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा की।
उन्हें अपना राज्य, परिवार, सब खोना पड़ा, और वे श्मशान में काम करने लगे।
🔸 भावार्थ: धर्म का मूल्य बहुत ऊँचा है — सत्य के लिए सब त्यागना पड़ सकता है।
3️ मोरध्वज
“सौदा लिया था मोरधवज नै, संत लिये घर डाट।”
राजा मोरध्वज ने जब एक संत (श्रीकृष्ण) को प्रसन्न करने के लिए अपने पुत्र का बलिदान किया, तब भी विचलित नहीं हुए।
🔸 भावार्थ: परमात्मा के लिए तन, मन, धन सब अर्पित करना ही सच्चा धर्म है।
4️ मीरा बाई
“सौदा लिया था मीरा बाई नै, गयी कुनबै तै पाट।”
मीरा ने संसारिक वैभव, परिवार, और राजसी ठाठ-बाट सब छोड़ दिए।
केवल श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व माना।
🔸 भावार्थ: भक्ति का मार्ग सामाजिक बंधनों से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है।
5️ धन्ना जाट
“सौदा लिया था धन्ना भक्त नै, कौम का था जाट।”
साधारण किसान होते हुए भी, धन्ना ने सच्ची श्रद्धा से भगवान को पाया।
रास्ते में मिले साधु के कहने पर भक्ति-बीज बोया — और अनुभव किया कि भक्ति सरल हृदय में फलती है।
🔸 भावार्थ: ईश्वर-प्राप्ति के लिए जाति-पाति नहीं, श्रद्धा चाहिए।
6️ रविदास जी
“सौदा लिया था रविदास भक्त नै, चढ़ गए उलटी बाट।”
संत रविदास ने समाज के विपरीत चलकर सत्य का मार्ग चुना।
कहा, बिना भजन तेरे जीवन का मूल्य नहीं, चाहे तू कितना भी अमीर क्यों न हो।
🔸 भावार्थ: सच्चा धर्म वह है जो भक्ति और प्रेम से जुड़ा हो, न कि बाहरी दिखावे से।
🕉️ सारांश (निष्कर्ष):
यह सबद सिखाता है कि—
धर्म कोई वस्तु नहीं जो पैसे से खरीदी जाए,
बल्कि आत्म-बलिदान, सत्य, और प्रेम से अर्जित होती है।जो अपने “सिर की बाज़ी” लगाने को तैयार हैं —
वही सच्चे खरीदार हैं इस “धर्म की हाट” के।
✨ संक्षिप्त आधुनिक अर्थ:
“धर्म की हाट खुली है” — यानी अवसर है आत्म-उद्धार का।
पर यह सौदा केवल वही ले सकता है,
जो अहंकार, लोभ, और भय को त्याग कर सच्चे हृदय से भगवान या सत्य को अपनाए।
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