संत जोसफ वाज़
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12/24/20241 मिनट पढ़ें
संत जोसफ वाज़
संत जोसफ वाज़ की जीवन कथा अत्यंत प्रेरणादायक और महान सेवा व समर्पण का उदाहरण है। उन्होंने 17वीं सदी में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया और जरूरतमंदों की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनकी कहानी इस प्रकार है:
प्रारंभिक जीवन
जन्म: संत जोसफ वाज़ का जन्म 21 अप्रैल 1651 को गोवा के बेनौलिम गाँव में एक धार्मिक कोंकणी ईसाई परिवार में हुआ था।
शिक्षा: उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में ही प्राप्त की और बाद में गोवा के सेंट पॉल कॉलेज में पढ़ाई की। वे बहुत ही मेधावी छात्र थे और धर्मशास्त्र (Theology) में उनकी विशेष रुचि थी।
ईश्वर से लगाव: छोटी उम्र से ही जोसफ वाज़ का मन ईश्वर की सेवा और मानवता की भलाई के लिए प्रेरित था।
पुजारी बनने की यात्रा
जोसफ वाज़ ने 1676 में गोवा में एक पुजारी के रूप में दीक्षा ली।
उन्होंने अपने धर्मोपदेश और सेवा के माध्यम से जल्दी ही ख्याति अर्जित की।
वे न केवल चर्च की गतिविधियों में शामिल थे, बल्कि गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
मिशनरी कार्य और श्रीलंका की यात्रा
चुनौतीपूर्ण समय: उस समय श्रीलंका (जिसे तब "सिलोन" कहा जाता था) में कैथोलिक चर्च पर प्रतिबंध थे। डच शासन ने कैथोलिक धर्म पर अत्याचार किए और इसे प्रतिबंधित कर दिया।
श्रीलंका मिशन: 1687 में जोसफ वाज़ ने श्रीलंका में गुप्त रूप से प्रवेश किया। उन्होंने डच अधिकारियों से बचते हुए कैथोलिक समुदाय को पुनर्गठित किया।
समर्पण: वे अपने प्रचार कार्य में बहुत जोखिम उठाते थे। वे जंगलों और पहाड़ों में यात्रा करते हुए धर्म का प्रचार करते और चर्च की स्थापना करते।
भाषा और संस्कृति: उन्होंने श्रीलंका की स्थानीय भाषा सींहला सीखी और स्थानीय लोगों के साथ गहरी आत्मीयता बनाई।
संकट और सेवा का समय
जब श्रीलंका में सूखा पड़ा और लोग कठिनाई में थे, संत जोसफ वाज़ ने प्रार्थना और सेवा के माध्यम से लोगों की मदद की।
कहा जाता है कि उनकी प्रार्थनाओं से सूखा समाप्त हुआ और बारिश हुई, जिसके कारण स्थानीय लोग उन्हें "पवित्र व्यक्ति" मानने लगे।
जीवन का अंत
संत जोसफ वाज़ ने 23 जनवरी 1711 को कैंडी, श्रीलंका में अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु तक वे अपने मिशनरी कार्यों में सक्रिय रहे।
उनके कार्यों और समर्पण के कारण वे श्रीलंका के ईसाई समुदाय के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गए।
संत घोषित होना
जोसफ वाज़ को 1995 में पोप जॉन पॉल II ने धन्य (Blessed) घोषित किया।
14 जनवरी 2015 को पोप फ्रांसिस ने उन्हें संत घोषित किया।
विरासत
संत जोसफ वाज़ को "गोवा का प्रकाश" और "श्रीलंका का प्रेरित" कहा जाता है।
उनके द्वारा स्थापित चर्च और उनके प्रेरणादायक कार्य आज भी गोवा और श्रीलंका में याद किए जाते हैं।
संत जोसफ वाज़ की कहानी मानवता की सेवा, कठिनाई में साहस और धर्म के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है। उनकी प्रेरणा हमें दूसरों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित करने की सीख देती है।
संत जोसफ वाज़ के जीवन से जुड़ी कहानियाँ उनके साहस, करुणा और अटूट विश्वास का अद्भुत चित्रण करती हैं। यहाँ उनके जीवन की कुछ प्रेरणादायक घटनाएँ प्रस्तुत हैं:
1. भूख और सूखे के समय प्रार्थना से बारिश
जब श्रीलंका में भयानक सूखा पड़ा, तब लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे।
संत जोसफ वाज़ ने भगवान से प्रार्थना की और स्थानीय लोगों को ईश्वर पर विश्वास बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने सार्वजनिक रूप से प्रार्थना की, जिसके बाद चमत्कारिक रूप से बारिश हुई।
यह घटना न केवल उनके अनुयायियों के लिए बल्कि अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी उनकी दिव्यता का प्रमाण बन गई।
2. दुश्मनों के बीच विश्वास का प्रचार
डच शासन ने श्रीलंका में कैथोलिक चर्च पर प्रतिबंध लगा दिया था और उन्हें पकड़ने की कोशिश की।
जोसफ वाज़ जंगलों और पहाड़ों में छिपकर गुप्त रूप से धर्म का प्रचार करते थे।
एक बार उन्हें डच सैनिकों ने पकड़ लिया, लेकिन उनकी शालीनता और धर्मनिष्ठा से प्रभावित होकर सैनिकों ने उन्हें छोड़ दिया।
यह घटना दिखाती है कि उनका जीवन दूसरों को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त था।
3. एक गुलाम के रूप में काम किया
जब उन्होंने श्रीलंका के कैंडी राज्य में प्रवेश किया, तो उन्हें एक जासूस समझकर गिरफ्तार कर लिया गया और गुलाम बना दिया गया।
जोसफ वाज़ ने इस कठिन परिस्थिति को स्वीकार किया और इसे अपनी सेवाओं का हिस्सा बना लिया।
धीरे-धीरे उनके व्यवहार और सेवा भावना ने राजा के दिल को छू लिया।
उन्हें न केवल रिहा किया गया, बल्कि कैंडी में स्वतंत्र रूप से धर्म का प्रचार करने की अनुमति भी मिली।
4. मीराकल ऑफ क्रॉस
एक बार जोसफ वाज़ को स्थानीय समुदाय के सामने एक सूखी लकड़ी का टुकड़ा दिखाकर ईश्वर के चमत्कार का प्रदर्शन करने के लिए चुनौती दी गई।
उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की और उस सूखी लकड़ी से पानी का प्रवाह शुरू हो गया।
इस घटना के बाद कई लोग ईसाई धर्म की ओर आकर्षित हुए और उनका सम्मान करने लगे।
5. स्थानीय भाषा सीखने और संस्कृति को अपनाने की प्रेरणा
संत जोसफ वाज़ ने श्रीलंका की स्थानीय भाषा (सिंहला) और संस्कृति को अपनाया।
वे स्थानीय लोगों से संवाद करने के लिए उनकी भाषा बोलते और उनकी परंपराओं का सम्मान करते थे।
उनके इस व्यवहार ने धर्म प्रचार में बाधाओं को दूर किया और उन्हें स्थानीय समुदाय के करीब लाया।
6. मरीजों और गरीबों की सेवा
एक बार श्रीलंका में चेचक की महामारी फैली।
जोसफ वाज़ ने मरीजों की देखभाल की, जबकि अन्य लोग उनसे दूर भागते थे।
उन्होंने न केवल उनकी चिकित्सा सहायता की बल्कि उन्हें मानसिक और आध्यात्मिक संबल भी दिया।
उनकी सेवा भावना ने उन्हें एक "पवित्र आत्मा" के रूप में स्थापित किया।
7. राजा के समक्ष ईमानदारी का चमत्कार
श्रीलंका के कैंडी के राजा ने जोसफ वाज़ से उनके धर्म के बारे में सवाल किया।
जोसफ वाज़ ने निडर होकर कहा, "मैं ईश्वर की सेवा करता हूँ, और मुझे किसी भी अन्य चीज़ का डर नहीं।"
उनकी ईमानदारी और साहस ने राजा को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने जोसफ वाज़ को अपने राज्य में स्वतंत्रता से धर्म प्रचार करने दिया।
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