The Bhagavad Gita- वेदव्यास
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5/2/20251 मिनट पढ़ें
The Bhagavad Gita- वेदव्यास
"भगवद गीता" — महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित यह ग्रंथ भारतीय दर्शन, आत्मज्ञान, और कर्मयोग की अद्वितीय शिक्षाओं का सार है। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि आध्यात्मिक नेतृत्व, मानसिक दृढ़ता और आत्म-विकास का शाश्वत मार्गदर्शक है।
📖 "भगवद गीता" — एक सम्यक् जीवन-दर्शन
📍 रचयिता: वेदव्यास
📍 स्थान: महाभारत का भीष्म पर्व (अध्याय 23–40)
📍 संवाद: भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच
📍 श्लोक: 700
📍 भाषा: संस्कृत
📍 प्रकार: उपनिषद-सार, योग-दर्शन
🧭 प्रमुख 5 उद्देश्य
धर्म (कर्तव्य) का विवेकपूर्ण निर्णय
कर्मयोग – फल की चिंता से रहित कर्म
आत्मा की अमरता और निर्लेपता की समझ
सामंजस्यपूर्ण जीवन के लिए ज्ञान, भक्ति और ध्यान का मार्ग
आध्यात्मिक संघर्ष और आत्म-प्रबोधन का सहारा
📚 अध्यायों का सारांश (18 अध्याय)
अध्याय शीर्षक मुख्य विषय
1 अर्जुन विषाद योग अर्जुन का मोह और युद्ध से पलायन
2 सांख्य योग आत्मा का ज्ञान, कर्म का परिचय
3 कर्म योग निष्काम कर्म और कर्तव्य
4 ज्ञान-कर्म संन्यास योग ईश्वर द्वारा धर्म की स्थापना
5 संन्यास योग कर्म-संन्यास और कर्मयोग की तुलना
6 ध्यान योग मन का संयम और ध्यान का अभ्यास
7 ज्ञान-विज्ञान योग भक्ति और ब्रह्म का स्वरूप
8 अक्षर ब्रह्म योग मृत्यु के समय की चेतना
9 राजविद्या-राजगुह्य योग परम रहस्य, ईश्वर की भक्ति
10 विभूति योग ईश्वर की दिव्य विभूतियाँ
11 विश्वरूप दर्शन भगवान का विराट रूप
12 भक्ति योग सच्ची भक्ति का स्वरूप
13 क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग शरीर और आत्मा का भेद
14 गुणत्रय विभाग योग सत्त्व, रजस, तमस की प्रकृति
15 पुरुषोत्तम योग आत्मा और परमात्मा का संबंध
16 दैवासुर संपद योग दिव्य और आसुरी प्रवृत्तियाँ
17 श्रद्धात्रय विभाग योग श्रद्धा के प्रकार
18 मोक्ष-संन्यास योग पूर्ण समर्पण और मोक्ष की ओर मार्गदर्शन
🔑 मुख्य शिक्षाएँ (Core Teachings)
1️ आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है
“न जायते म्रियते वा कदाचित्…” (2.20)
आत्मा कभी जन्म नहीं लेती, न ही मरती है।
2️ निष्काम कर्म
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…” (2.47)
केवल कर्म करने का अधिकार है, फल की अपेक्षा नहीं।
3️ कर्म और धर्म का संतुलन
अर्जुन को युद्ध करना चाहिए क्योंकि यह उसका धर्म है, व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर उठकर।
4️ मन का नियंत्रण ही ध्यान है
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्…” (6.5)
आत्मा को स्वयं ही ऊपर उठाना है।
5️ ईश्वर सबमें है, पर सभी ईश्वर में नहीं
“मयि सर्वाणि भूतानि…” (9.4)
भगवान सबमें व्याप्त हैं।
🧘♂️ तीन योगों का समन्वय
योग मार्ग उद्देश्य
कर्मयोग कर्म द्वारा निष्काम सेवा
ज्ञानयोग विवेक द्वारा आत्मज्ञान
भक्तियोग प्रेम द्वारा ईश्वर से एकत्व
🧠 भगवद गीता क्यों पढ़ें?
✅ जीवन की कठिन परिस्थितियों में निर्णय लेने की शक्ति देती है
✅ मानसिक स्थिरता और आत्मिक शांति का मार्ग दिखाती है
✅ कार्य, भक्ति, विवेक और ध्यान का समन्वय सिखाती है
✅ आधुनिक जीवन में भी अत्यंत प्रासंगिक है — करियर, परिवार, सामाजिक जिम्मेदारी में संतुलन बनाने हेतु
"भगवद गीता रिफ्लेक्शन प्रश्नावली" प्रस्तुत है – अध्याय अनुसार आत्मचिंतन और आत्मविकास हेतु गहरे सवाल, जो गीता के श्लोकों और मूल शिक्षाओं पर आधारित हैं:
📘 गीता रिफ्लेक्शन प्रश्नावली (18 अध्याय)
प्रत्येक अध्याय के लिए 3 गहन प्रश्न
🧩 अध्याय 1: अर्जुन विषाद योग
क्या मैंने कभी किसी कर्तव्य से भागने की कोशिश की है? क्यों?
क्या मेरी भावनाएँ कभी मेरे निर्णयों को नियंत्रित करती हैं?
कठिनाई के समय मेरा दृष्टिकोण क्या होता है – सामना या संकोच?
🧠 अध्याय 2: सांख्य योग
क्या मैं स्वयं को शरीर मानता/मानती हूँ या आत्मा?
क्या मैं कर्म करते समय फल की चिंता करता हूँ?
मृत्यु को लेकर मेरा दृष्टिकोण क्या है?
🔧 अध्याय 3: कर्म योग
क्या मैं अपने कार्यों को पूरी निष्ठा से करता/करती हूँ?
क्या मेरे कर्म समाज को लाभ पहुंचाते हैं?
मैं किस प्रकार के कर्म को निष्काम मानता/मानती हूँ?
🔥 अध्याय 4: ज्ञान-कर्म संन्यास योग
क्या मैं अपने ज्ञान को कर्म में रूपांतरित करता हूँ?
क्या मेरा ज्ञान मुझे अहंकारी बनाता है या विनम्र?
क्या मैं सच्चे गुरु की खोज में हूँ?
🌿 अध्याय 5: कर्म-संन्यास योग
क्या मैं त्याग और कर्म के बीच संतुलन बना पाता हूँ?
क्या मेरा मन शांत है या बाहरी परिस्थितियों से व्याकुल?
सच्ची मुक्ति का मेरे लिए क्या अर्थ है?
💫 अध्याय 6: ध्यान योग
क्या मैं नियमित ध्यान करता/करती हूँ?
ध्यान में मेरी सबसे बड़ी बाधा क्या है?
क्या मैं आत्मनिरीक्षण के लिए समय निकालता/निकालती हूँ?
🕉️ अध्याय 7: ज्ञान-विज्ञान योग
क्या मैं ईश्वर को एक सिद्धांत के रूप में जानता/जानती हूँ या अनुभव से?
क्या मुझे परम सत्य की खोज है?
मेरी भक्ति कैसी है – अवसरवादी या समर्पित?
🌊 अध्याय 8: अक्षर ब्रह्म योग
क्या मृत्यु के बाद जीवन के प्रति मेरी कोई सोच है?
क्या मैं अपनी मृत्यु की तैयारी में कुछ करता/करती हूँ?
क्या मेरी चेतना स्थिर और केंद्रित रहती है?
🔱 अध्याय 9: राजविद्या राजगुह्य योग
क्या मैं अपने भीतर भगवान की उपस्थिति को महसूस करता/करती हूँ?
क्या मैं निःस्वार्थ सेवा में विश्वास करता/करती हूँ?
क्या मेरा जीवन आध्यात्मिक रूप से समर्पित है?
🔔 अध्याय 10: विभूति योग
क्या मैं सृष्टि में ईश्वर की विभूतियों को देख पाता/पाती हूँ?
किस रूप में मुझे ईश्वर की उपस्थिति अधिक महसूस होती है?
क्या मैं प्रकृति में परमात्मा का अनुभव करता/करती हूँ?
🌀 अध्याय 11: विश्वरूप दर्शन योग
क्या मैं सम्पूर्ण ब्रह्मांड को एकत्व से देख सकता/सकती हूँ?
क्या मैं परिवर्तनशील जीवन को स्वीकार करता/करती हूँ?
क्या मैं अपने छोटे अहं को छोड़कर ईश्वर की महिमा में लीन हो पाता/पाती हूँ?
🌸 अध्याय 12: भक्ति योग
मेरी भक्ति कैसी है – भावना आधारित या कर्म आधारित?
क्या मैं सब जीवों में भगवान को देखता/देखती हूँ?
क्या मेरा प्रेम निःस्वार्थ है?
🏹 अध्याय 13: क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग
क्या मैं अपने शरीर और आत्मा का भेद समझता/समझती हूँ?
क्या मैं अपने जीवन क्षेत्र (field of action) को पहचानता हूँ?
क्या मुझे आत्मा की चेतना का अनुभव होता है?
🌗 अध्याय 14: गुणत्रय विभाग योग
मेरे स्वभाव में कौन सा गुण प्रमुख है – सत्व, रजस, या तमस?
क्या मैं अपने गुणों को बदलने के लिए प्रयास करता/करती हूँ?
क्या मैं गुणातीत अवस्था (बियॉन्ड गुणा) की ओर अग्रसर हूँ?
🕊️ अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग
क्या मैं संसार के वृक्ष से स्वयं को जोड़ता हूँ या परम पुरुष से?
क्या मैं आत्मा को सर्वश्रेष्ठ जानकर कार्य करता/करती हूँ?
क्या मैं अज्ञान की जड़ों को काटने का प्रयास कर रहा/रही हूँ?
🏛️ अध्याय 16: दैवासुर संपद विभाग योग
क्या मेरे स्वभाव में दैवी गुण अधिक हैं या आसुरी?
क्या मैं क्रोध, लोभ, ईर्ष्या पर विजय पा रहा/रही हूँ?
मैं किन दैवी गुणों को बढ़ाना चाहता/चाहती हूँ?
⚖️ अध्याय 17: श्रद्धात्रय विभाग योग
मेरी श्रद्धा किस प्रकार की है – सात्विक, राजसिक, या तामसिक?
क्या मेरा भोजन, दान और तप सात्विक है?
क्या मैं अपने विश्वास को परखता/परखती हूँ?
🔚 अध्याय 18: मोक्ष संन्यास योग
क्या मैंने त्याग और संन्यास का अर्थ सही से समझा है?
क्या मैं मोक्ष की ओर अग्रसर हूँ या बंधनों में उलझा हूँ?
क्या मैं अपने स्वधर्म को पहचानकर उसे निभा रहा/रही हूँ?
"गीता कार्ड्स" – भगवद गीता के प्रत्येक अध्याय से चुने गए 18 प्रेरणादायक श्लोक, जो आत्म-चिंतन, ध्यान और जीवन मार्गदर्शन के लिए रोज़ उपयोग किए जा सकते हैं।
📿 गीता कार्ड्स (18 अध्याय, 18 श्लोक – हिंदी अनुवाद सहित)
📘 अध्याय 1: अर्जुन विषाद योग
श्लोक 1.28
"दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्। सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति॥"
🪷 भावार्थ: जब अपने स्वजनों को युद्ध हेतु प्रस्तुत देखा, अर्जुन का मन व्याकुल हो गया।
📘 अध्याय 2: सांख्य योग
श्लोक 2.47
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"
🪷 भावार्थ: कर्म करने में तेरा अधिकार है, फल में कभी नहीं।
📘 अध्याय 3: कर्म योग
श्लोक 3.19
"तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।"
🪷 भावार्थ: इसलिए आसक्ति रहित होकर अपना कर्तव्य करते रहो।
📘 अध्याय 4: ज्ञान-कर्म संन्यास योग
श्लोक 4.38
"न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।"
🪷 भावार्थ: इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है।
📘 अध्याय 5: कर्म-संन्यास योग
श्लोक 5.18
"विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि... समदर्शिनः।"
🪷 भावार्थ: ज्ञानी व्यक्ति सभी को समदृष्टि से देखता है।
📘 अध्याय 6: ध्यान योग
श्लोक 6.6
"बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।"
🪷 भावार्थ: जिसने आत्मा को वश में किया है, वह उसका मित्र बन जाता है।
📘 अध्याय 7: ज्ञान-विज्ञान योग
श्लोक 7.7
"मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।"
🪷 भावार्थ: हे अर्जुन! मुझसे श्रेष्ठ और कुछ नहीं है।
📘 अध्याय 8: अक्षर ब्रह्म योग
श्लोक 8.5
"अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।"
🪷 भावार्थ: जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करता है, वह मुझे ही प्राप्त होता है।
📘 अध्याय 9: राजविद्या राजगुह्य योग
श्लोक 9.22
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां... योगक्षेमं वहाम्यहम्।"
🪷 भावार्थ: जो मुझे अनन्य भक्ति से याद करते हैं, उनके योग और क्षेम की रक्षा मैं करता हूँ।
📘 अध्याय 10: विभूति योग
श्लोक 10.20
"अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।"
🪷 भावार्थ: हे अर्जुन! मैं समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ।
📘 अध्याय 11: विश्वरूप दर्शन योग
श्लोक 11.32
"कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धः।"
🪷 भावार्थ: मैं काल हूँ, जो संसार का संहार करता हूँ।
📘 अध्याय 12: भक्ति योग
श्लोक 12.15
"यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।"
🪷 भावार्थ: जो न किसी को व्याकुल करता है, न किसी से व्याकुल होता है – वही प्रिय भक्त है।
📘 अध्याय 13: क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग
श्लोक 13.2
"इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।"
🪷 भावार्थ: हे अर्जुन! यह शरीर 'क्षेत्र' (क्षेत्र) कहा जाता है।
📘 अध्याय 14: गुणत्रय विभाग योग
श्लोक 14.6
"सत्त्वं सञ्जयते ज्ञानं।"
🪷 भावार्थ: सत्त्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है।
📘 अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग
श्लोक 15.7
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।"
🪷 भावार्थ: सभी जीव मेरी ही सनातन अंश हैं।
📘 अध्याय 16: दैवासुर संपद विभाग योग
श्लोक 16.1-3
"अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः... दया भूतेष्वलोलुप्त्वं।"
🪷 भावार्थ: दैवी गुणों में भयरहितता, करुणा, क्षमा, दया प्रमुख हैं।
📘 अध्याय 17: श्रद्धात्रय विभाग योग
श्लोक 17.3
"सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।"
🪷 भावार्थ: प्रत्येक व्यक्ति की श्रद्धा उसके स्वभाव के अनुसार होती है।
📘 अध्याय 18: मोक्ष संन्यास योग
श्लोक 18.66
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।"
🪷 भावार्थ: सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ – मैं तुम्हें मोक्ष दूँगा।
"गीता इन लाइफ" — डायरी टेम्पलेट
(कर्म, ज्ञान और भक्ति योग के तीन खंडों में)
✍️ Daily Entry Format:
📅 Date: ____________
1️ कर्म योग – मेरा आज का निष्काम कर्म क्या था?
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2️ ज्ञान योग – मैंने आज क्या आत्मिक या आध्यात्मिक ज्ञान सीखा?
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3️ भक्ति योग – मैंने कैसे ईश्वर से जुड़ने का प्रयास किया?
✍️ (जैसे: ध्यान, पाठ, सेवा, मौन)
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🌿 Reflection: क्या मैंने गीता के किसी श्लोक को अपने जीवन में उतारा? कौन सा?
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