The Essence of the Bhagavad Gita-Eknath Easwaran
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5/31/20251 मिनट पढ़ें
The Essence of the Bhagavad Gita-Eknath Easwaran
"The Essence of the Bhagavad Gita" – Eknath Easwaran द्वारा लिखित यह पुस्तक भगवद् गीता की गहराई, रहस्य और जीवन-परिवर्तनकारी शिक्षा को एक साधक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक की दृष्टि से प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक न केवल गीता के श्लोकों की व्याख्या करती है, बल्कि उन्हें आधुनिक जीवन में आत्म-साक्षात्कार, ध्यान और सेवा के माध्यम से कैसे अपनाया जाए, यह भी सिखाती है।
1. आत्मा की अमरता और आत्म-ज्ञान
गीता के केंद्र में यह शिक्षा है कि हम शरीर नहीं हैं, बल्कि अमर आत्मा हैं – अविनाशी, शुद्ध और शाश्वत।
मृत्यु एक परिवर्तन है, न कि अंत। जैसे पुराने वस्त्र बदलते हैं, वैसे ही आत्मा एक शरीर त्याग कर दूसरा धारण करती है।
ईश्वर को जानना है तो पहले स्वयं को जानना होगा – "आत्मा ही परमात्मा का अंश है।"
2. कर्मयोग – निष्काम कर्म का महत्व
"कर्म करो, फल की चिंता मत करो" – यह गीता की मूल शिक्षा है।
ईश्वर को समर्पित होकर कार्य करना ही सच्चा योग है।
सेवा, कर्म और ध्यान के द्वारा अहंकार से मुक्ति पाकर जीवन को एक यज्ञ (त्याग) में बदलना ही सच्चा कर्मयोग है।
3. मन का नियंत्रण और ध्यान का मार्ग
मन चंचल है, परन्तु अभ्यास (अभ्यासेन) और वैराग्य (वैराग्येण) से इसे स्थिर किया जा सकता है।
ध्यान (meditation) ही वह साधन है जिससे हम अपने भीतर के ईश्वर से संपर्क कर सकते हैं।
ईश्वर केवल बाहर नहीं, भीतर भी हैं – "ध्यान के माध्यम से भीतर उतरना ही गीता का सार है।"
4. अहंकार और इच्छाओं से मुक्ति
इच्छाएँ और अहंकार ही दुःख का कारण हैं। इनसे ऊपर उठने के लिए विवेक, त्याग और भक्ति आवश्यक हैं।
"मुझे क्या मिलेगा?" – यह दृष्टिकोण छोड़कर, "मैं क्या दे सकता हूँ?" – यह दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के लिए अहंकार का विसर्जन आवश्यक है।
5. अध्यात्मिक योद्धा का जीवन
अर्जुन प्रतीक है उस हर व्यक्ति का जो जीवन की कठिनाइयों से जूझ रहा है।
युद्ध केवल बाहर नहीं, भीतर भी है – मन, इंद्रियाँ, वासनाएँ, मोह – यह सब आंतरिक युद्ध के क्षेत्र हैं।
जो इस युद्ध में स्थिर बुद्धि होकर खड़ा होता है, वही सच्चा साधक है।
6. भक्ति, ज्ञान और कर्म का समन्वय
गीता केवल एक मार्ग की बात नहीं करती – इसमें भक्ति (प्रेम), ज्ञान (विवेक) और कर्म (सेवा) – तीनों का समन्वय है।
तीनों मार्ग एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं – परमात्मा की प्राप्ति और आत्म-शुद्धि।
7. श्रीकृष्ण – एक गुरु का प्रतीक
श्रीकृष्ण केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक आदर्श आध्यात्मिक गुरु हैं, जो अंधकार में मार्गदर्शन करते हैं।
वे अर्जुन की उलझनों का समाधान करते हैं, उन्हें अपने धर्म का बोध कराते हैं।
इसी प्रकार प्रत्येक साधक को अपने जीवन में एक जीवित गुरु की आवश्यकता होती है।
8. गीता – एक ध्यान का ग्रंथ
गीता को केवल विचारों से नहीं, अनुभव और साधना से समझा जा सकता है।
गीता का वास्तविक सार अनुभव में आता है जब हम नियमित ध्यान, सेवा और त्याग के साथ जीवन जीते हैं।
"हर दिन गीता को जीना ही उसका सच्चा पाठ है।"
9. अध्यात्मिक अनुशासन (Spiritual Discipline)
गीता केवल उपदेश नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुशासन की विधि है – संयम, स्वाध्याय, सेवा और ध्यान इसका मूल है।
यह व्यक्ति को स्व के छोटे दायरे से निकाल कर सम्पूर्ण ब्रह्मांड के साथ एकात्म की ओर ले जाती है।
10. गीता का आधुनिक जीवन में महत्व
गीता केवल युद्धभूमि के लिए नहीं है – यह कार्यालय, घर, समाज और अंतरात्मा की लड़ाई में भी सहायक है।
तनाव, भ्रम, भय और मोह से ग्रसित आज के मनुष्य के लिए गीता दिशा, स्पष्टता और संतुलन प्रदान करती है।
यह पुस्तक केवल भगवद् गीता की श्लोकों की व्याख्या नहीं करती, बल्कि उसे एक जीवंत आध्यात्मिक मार्गदर्शन के रूप में प्रस्तुत करती है, जो साधक को आत्म-ज्ञान, ध्यान और सेवा के रास्ते पर ले जाती है।
🔹 1. आत्मा की पहचान और जीवन का वास्तविक उद्देश्य
ईस्वरान बताते हैं कि:
हमारा सच्चा स्वरूप आत्मा है — न शरीर, न मन, न बुद्धि। आत्मा शाश्वत है, जन्म-मरण से परे है।
गीता के पहले अध्याय में अर्जुन का मोह केवल युद्ध को लेकर नहीं है, बल्कि अपने ‘स्व’ को लेकर भ्रम है।
आत्म-ज्ञान ही जीवन का मुख्य उद्देश्य है। जब हम यह जान लेते हैं कि "मैं देह नहीं, आत्मा हूँ," तब सारा भय समाप्त हो जाता है।
श्लोक (2.20): "न जायते म्रियते वा कदाचित्..."
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
🔹 2. निष्काम कर्म – कर्मयोग की ऊँचाई
अर्जुन युद्ध छोड़ना चाहता था क्योंकि वह फल की चिंता कर रहा था। श्रीकृष्ण उसे कर्म का महत्व बताते हैं।
निष्काम कर्म का अर्थ है बिना किसी स्वार्थ या फल की अपेक्षा से कर्म करना।
कर्म करते समय मन शांत हो, यह साधना है। जब कर्म ईश्वर को अर्पित हो जाए, तब वह योग बन जाता है।
श्लोक (2.47): "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन..."
ईस्वरान इसे आधुनिक जीवन में भी लागू करते हैं –
"आप नौकरी करें, परिवार संभालें, समाज में रहें – लेकिन उस काम से अपनी पहचान मत जोड़िए। बस ईश्वर को समर्पित भाव से कार्य करें।"
🔹 3. मन का स्वामी बनना – ध्यान का विज्ञान
मन चंचल है। विचार आते हैं, भावनाएँ उथल-पुथल करती हैं।
गीता का एक मुख्य उद्देश्य है — मन को नियंत्रित करना, शांत करना।
ईस्वरान कहते हैं:
ध्यान (Meditation) से मन को एकाग्र किया जा सकता है।
गीता का संदेश है कि मन साधक का मित्र भी है और शत्रु भी – यह साधना से तय होता है।
श्लोक (6.6): "बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः..."
उनके अनुसार:
"हर सुबह ध्यान करने वाला साधक, गीता को जीवन में उतारता है। ध्यान ही वह नौका है जो आत्मा को परमात्मा तक पहुँचाती है।"
🔹 4. जीवन एक युद्ध है – अर्जुन हर व्यक्ति है
अर्जुन केवल पांडवों का योद्धा नहीं है — वह हम सभी का प्रतिनिधित्व करता है।
हमारे जीवन में भी कई कुरुक्षेत्र हैं — मोह, क्रोध, वासना, लालच, भय।
ईस्वरान बताते हैं:
"हर व्यक्ति जब अपने भीतर के मोह से जूझता है, तब वह अर्जुन है; और जब वह आत्मा की आवाज़ को सुनता है, तब वह कृष्ण की ओर बढ़ता है।"
यह आत्मिक युद्ध, साधना से लड़ा जाता है।
🔹 5. गुरु की आवश्यकता – श्रीकृष्ण का महत्व
गीता का आरंभ तब होता है जब अर्जुन कहता है:
"मैं आपका शिष्य हूँ, मुझे उपदेश दीजिए।"
ईस्वरान बताते हैं कि:
आत्मिक मार्ग में गुरु का होना अनिवार्य है। बिना मार्गदर्शन के मनुष्य भटकता है।
श्रीकृष्ण केवल एक देवता नहीं हैं, वे आध्यात्मिक गुरु हैं, जो अंधकार में प्रकाश दिखाते हैं।
"जब तक जीवन में एक सतगुरु नहीं होता, तब तक गीता केवल एक किताब बनी रहती है। जब गुरु मिलते हैं, तब वह जिंदा अनुभव बनती है।"
🔹 6. तीन योगों का समन्वय – कर्म, भक्ति और ज्ञान
Easwaran गीता को केवल ज्ञान या भक्ति का ग्रंथ नहीं मानते। वे स्पष्ट करते हैं कि गीता में तीनों मार्ग हैं:
कर्मयोग – सेवा, त्याग, कर्म में ईश्वर को समर्पण।
ज्ञानयोग – विवेक, आत्म-चिंतन, "मैं कौन हूँ?" की खोज।
भक्तियोग – ईश्वर में पूर्ण प्रेम और आत्म-समर्पण।
श्लोक (9.22): "अनन्याश्चिन्तयन्तो मां..."
जो केवल मुझमें लीन रहते हैं, मैं उनकी रक्षा करता हूँ।
उनके अनुसार:
"जो व्यक्ति केवल पढ़ता है वह ज्ञानी हो सकता है, लेकिन जो सेवा करता है, ध्यान करता है, और ईश्वर को प्रेम करता है – वही गीता को जी रहा है।"
🔹 7. गीता का आधुनिक जीवन में उपयोग
ईस्वरान के अनुसार:
गीता सिर्फ युद्ध या मंदिर के लिए नहीं है। यह ऑफिस, घर, ट्रैफिक, हर रोज़ के तनाव में मार्गदर्शक बन सकती है।
जब कोई व्यक्ति तनाव में हो, निर्णय न ले पा रहा हो, या मोह में हो – वह गीता से मार्गदर्शन पा सकता है।
उनकी सलाह:
"हर दिन 10 मिनट गीता का पाठ करें, और ध्यान करें। धीरे-धीरे आपके भीतर का अर्जुन जागेगा, और कृष्ण स्वयं बोलेंगे।"
“The Essence of the Bhagavad Gita” – Eknath Easwaran के अनुसार, भगवद् गीता की शिक्षाएँ केवल पुस्तक तक सीमित न रहकर जीवन में प्रयोग में लाई जाएं, तभी वे वास्तविक फल देती हैं। Easwaran बार-बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि गीता एक जीवन जीने की विधि (A manual for daily living) है।
यहाँ पर गीता की प्रमुख शिक्षाओं को जीवन में प्रयोग करने की व्यावहारिक विधियाँ (Practical Applications) प्रस्तुत की जा रही हैं:
🔸 1. ध्यान (Meditation) को दिनचर्या का हिस्सा बनाना
गीता में बार-बार "ध्यान" (ध्यानयोग) का उल्लेख आता है।
प्रयोग की विधि:
प्रतिदिन सुबह एक ही समय पर, शांत वातावरण में कम से कम 15-20 मिनट ध्यान करें।
ईस्वरान का सुझाव है: किसी पवित्र श्लोक या मंत्र पर ध्यान लगाएँ (जैसे – “ॐ”, “शांतिः”, “श्री राम”, “गुरुर्ब्रह्मा…” आदि)।
मन को बार-बार उसी शब्द पर लौटाएँ। यह अभ्यास धीरे-धीरे चित्त को शांत करता है।
लाभ:
तनाव कम होता है, निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है, और आत्म-नियंत्रण विकसित होता है।
🔸 2. कर्म को साधना बनाना (Work as Worship)
गीता सिखाती है: कर्म करो, फल की इच्छा त्यागो।
प्रयोग की विधि:
अपने हर कार्य को (चाहे वह घर की सफाई हो, नौकरी हो या सेवा) "ईश्वर को अर्पित" मानकर करें।
"मैं यह कार्य अपने स्वार्थ के लिए नहीं, सेवा के लिए कर रहा हूँ" – ऐसा भाव रखें।
काम करते समय पूरा ध्यान उसी कार्य में लगाएँ, उसे यज्ञ समझें।
लाभ:
जीवन में उद्देश्य और आनंद आता है। काम बोझ नहीं लगता।
🔸 3. इंद्रियों और मन पर संयम का अभ्यास
गीता कहती है – "मन ही मित्र है, और मन ही शत्रु।"
प्रयोग की विधि:
दिन में एक बार कोई ऐसा "छोटा त्याग" करें जिससे मन पर नियंत्रण बढ़े (जैसे – अनावश्यक मोबाइल उपयोग न करना, वाणी में संयम रखना)।
"स्वयं पर नियंत्रण" रखने को प्रतिदिन का अभ्यास बनाएं।
लाभ:
धीरे-धीरे आत्म-अनुशासन और स्थिरता का विकास होता है।
🔸 4. समत्व भाव – परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखना
गीता कहती है: “सुख-दुख, जय-पराजय में सम रहो।”
प्रयोग की विधि:
जब कोई सफलता मिले – अहंकार न आए।
जब असफलता या आलोचना मिले – अंदर टूटें नहीं।
ईस्वरान का अभ्यास: “अपने मन को देखें, और कहें – यह भी बदल जाएगा।”
लाभ:
जीवन की उठा-पटक में भी भीतर शांति बनी रहती है।
🔸 5. नियमित स्वाध्याय (Spiritual Reading)
Eknath Easwaran के अनुसार, प्रतिदिन आध्यात्मिक ग्रंथों का स्वाध्याय करना ध्यान की तैयारी है।
प्रयोग की विधि:
प्रतिदिन गीता का एक श्लोक पढ़ें और उसका अर्थ मन में रखें।
उसे दिनभर के कार्यों में याद करें – “क्या मैं इस शिक्षा के अनुसार कार्य कर रहा हूँ?”
चाहें तो एक छोटा “ध्यान-पत्रिका” रखें और उसमें विचार लिखें।
लाभ:
धीरे-धीरे गीता की शिक्षाएँ अंतर्मन में उतरने लगती हैं।
🔸 6. सेवा (Selfless Service) को दिनचर्या में जोड़ना
ईस्वरान कहते हैं:
“जब हम दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करते हैं, हम अपने अहंकार से मुक्त होने लगते हैं।”
प्रयोग की विधि:
हर सप्ताह/माह एक कार्य ऐसा करें जिसमें केवल दूसरों का भला हो (बुजुर्ग की मदद, ग़रीब को भोजन, पर्यावरण की सेवा आदि)।
यह सेवा बिना किसी अपेक्षा के करें।
लाभ:
आत्मा की गहराई से जुड़ाव होता है। मन में करुणा और संतोष का भाव आता है।
🔸 7. मौन और मनन – खुद से बातचीत का समय
गीता केवल पढ़ने की नहीं, मनन की पुस्तक है।
प्रयोग की विधि:
प्रतिदिन 10-15 मिनट का समय मौन और आत्म-चिंतन के लिए रखें।
प्रश्न करें: "क्या मैंने आज स्वार्थ से काम किया?", "क्या आज मन पर मेरा नियंत्रण था?"
लाभ:
आत्म-निरीक्षण से वास्तविक आध्यात्मिक उन्नति होती है।
🔸 8. गुरु या मार्गदर्शक की खोज
गीता में अर्जुन तभी बदलता है जब वह कहता है – "मैं आपका शिष्य हूँ।"
प्रयोग की विधि:
एक जीवंत आध्यात्मिक शिक्षक या मार्गदर्शक को खोजें जिनसे आप समय-समय पर मार्गदर्शन ले सकें।
नहीं मिल सके तो गीता को ही “गुरु” मानकर उसके अनुसार जीवन जीना शुरू करें।
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